निर्मल कुमार पीरिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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फासले मिलों के हैं वहां,
होते हैं तय भर पल में,
विचारों को मिलता हैं सुकू,
उजालों संग विचरने में…
अंकों का वहां कोई मोल नही,
जाती हैं पलक झपकने में,
बिन हवा ही बह जाते हैं हम,
रूहानी उस शून्य जहान में…
नही जिस्मों का कोई काम हैं,
प्रतिरुप प्रतिम्बित तारों में,
परिलक्षित होते वो पास पास,
होता हैं भम्र झिलमिलाने में…
ऊँचाई हो या हो गहराई,
नाप नही कोई, उस पार में,
बसी हैं सूक्ष्म-सोच-सीमित,
बंद पल्लों के, इस पार में…
धूल धसरित परतों के बीच,
रौशनी ही टिमटिमाती हैं,
कहने को है अबोल जुबा,
पर नजरों से बतियाती हैं…
क्या मायने है, उन शब्दों के,
जो सिर्फ, कहे सुने जाते हैं,
निर्वातमय हैं जहां तो क्या,
मन-मन के करीब रहते है…
रौशनी सी, गति इस मन की,
परे मगर, नही ध्वनि मेल हैं,
झांक के देखो पल्लों के पार,
स्याह नही, परतों का मेल हैं…
समझो,बूझो, निकलो,जानो,
गलियारों में भी कही वास हैं,
खिड़कियों के उस पार कही,
अब भी झिलमिलाती आस है…
परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया
शिक्षा : बी.एस. एम्.ए
सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि.
निवासी : इंदौर, (म.प्र.)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं
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