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अपना कर्म सुधारों भाई, जीवन की यही सच्ची भलाई

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
बालोद (छत्तीसगढ़)
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लोग कहते है कि सतनाम कहो पाप कट जायेगा, राम नाम कहो पाप कट जायेगा, गंगा में नहा लो पाप कट जायेगा। इसलिए मैं मानता हूँ कि पाप, तुम करो ही मत। कभी हो गया तो हो गया, आगे अब गलती न करो। गलती तो इंसान से ही होती है, दिवार से नहीं। अत: गलती से बचने के लिये गलती का रास्ता छोड़ना है, यह नहीं कि कोई मंत्र-वंत्र जपकर उसको काटने की बात करनी है। कोई मंत्र-वंत्र जपने की आवश्यकता नहीं है कि जिससे आपका पाप कट जाए। सब कुछ सामने आता है। समझ है अपने कर्म को सुधार करने की, इसी में ही मानव समाज की भला है। मानव को समाज में रहकर जीवन जीने की कला सीखना चाहिए। सदाचार व नैतिकता पर आधारित मार्मिक कहानी का अंश राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के पावन पटल पर रखने का प्रयास है। इसी आशा और विश्वास के साथ पाठकगण सहर्ष अपनाएंगे और इसके अध्ययन मनन से सच्चा बोध तथा रहनी की प्रेरणा मिलेगी ।

एक छोटा-सा सुंदर दृष्टांत है
आत्म चिंतन करने से पाप का अंत है
रहनी सुधार लिया तो सही में वो बंदे संत है

एक बार की बात है एक महात्मा गंगा-स्नान करने ट्रेन से जा रहे थे। उसी ट्रेन पर कई यात्री भी सफर कर रहे थे। यात्रा के दौरान तीर्थयात्री सिगरेट सुलगाकर पीने लगे। महात्मा जी ने कहा, कि आप तीर्थ स्नान, गंगा स्नान करने जा रहे है तो कृपया सिगरेट न पियें। तीर्थयात्रियों ने कहा- महात्मा जी, हम सिगरेट ही नहीं, बल्कि शराब भी पीते हैं। तब महात्मा जी ने कहा-भाई, जब आप लोग सिगरेट पीते हैं, शराब पीते हैं, तो तीर्थ जाने का क्या फल हुआ? तीर्थयात्रियों ने कहा- फल यही है कि सालभर तक जो भी हम पाप किये रहते हैं, गंगा में एक बार स्नान करने से सब पाप धूलित हो जाते है अर्थात सब पाप कट जाते है।
फिर महात्मा ने गंगा जी पूछा-हे गंगे माँ! मुझे ये बताये कि क्या आप सबके पाप काट देती हो। गंगा जी ने उत्तर दिया- मैं तो किसी के पाप को अपने ऊपर नहीं रखती हूँ। यदि मैं सबके पाप रखने लग जाऊं तो स्वयं भस्म हो जाऊंगी। मेरा पानी बहकर समुद्र में जाता है और पानी के साथ सारा पाप भी उन्हीं के साथ बहकर समुद्र में चला जाता है।
तत्पश्चात महात्मा ने समुद्र से पूछा- हे समुद्र महाराज ! ये बतायें कि आप सबके पाप अपने पास क्यों रखते हैं ? समुद्र ने उत्तर दिया- नहीं -नहीं महराज, सबके पाप रखूँ तो मैं ही भस्म हो जाऊं। मेरा पानी तो भाप बनते रहता है। भाप के साथ सारा पाप भी आकाश में चला जाता है।
महात्मा जी फिर आकाश के पास गए और पूछा तो उसने कहा- मैं सबके पाप अपने पास रखूँ तो मैं नष्ट हो जाऊं। मैं तो लोगों के पास जितने पाप हैं जितने पाप है सब बादलों को दे देता हूँ। आप ऊपर की ओर जरा देखे कि बादलों में जितना कालापन है सब जनता का पाप है।

महात्मा जी बादलों के पास गये और उन सबसे पूछे। बादलों ने कहा- महाराज, अगर सबके पाप हम ही रखने लगे तो तत्काल भस्म हो जाएंगे। हम जिनका पाप होता है उन पर ही बरसा देते हैं।

सारांश- बात को समझाने के लिए यह कहानी सृजित की गई है। गंगा, समुद्र और बादल उत्तर क्या देंगे, ये तो जड़ हैं। बात यही है कि हमारा पाप कहीं जाता नहीं है, किंतु हमारे ही ऊपर बरसता है। अपने कर्मों के फलभोग हमें ही भोगने होते हैं। इसलिए कर्म सुधार ही जीवन का सुधार है। हमारे जीवन में सदाचार की महती आवश्यकता है।

परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू
निवासी : भानपुरी, वि.खं. – गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़
कार्यक्षेत्र : शिक्षक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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