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कोरोना काल

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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हिंदी साहित्य जगत में
अब तक आया है चतुर्थ काल
भक्ति रीती वीर और आधुनिक काल
यह पंचम काल बनकर उभरा है
यह भयावह विस्मयकारी कोरोना काल
यह किसी? प्रकृति की नियति है की मानव है कैद
महाभूल में भविस्य काल की अंधकार में।
वुहान सहर चीन राष्ट्र ने।
पूरी मानवता को झोंक चुका
लॉकडौन की हाहाकार और अंधकार में।
पंचम सुर में बज रहा यह
कोरोना की दुखद भयावह राग।
हाय यह कैसा आया? कोरोना का दुखद काल
मानव मानव से संसंकित है
वेहद दुखद यह संतप्त घड़ी है
दिख रही सामने आने वाली
भूख मेरी और विपदा की घड़ी है
जागो जागो है त्रिपुरारी घट घट के वासी
फिर से तू विश पान करो कोरोना का संघार करो
अमृत कलश को छलकवो है अभ्यंकर
हे नटराज फिर दे दो अभय दान
मिट जाए यह मानवता का दुखद काल
तेरे चरणों मे है इस अकिंचन का सहस्त्रो प्रणाम।

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परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला – पूर्वी चंपारण (बिहार)
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान


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