विवेक रंजन ‘विवेक’
रीवा (म.प्र.)
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विश्व से कर दो दूर कोरोना
इतना घातक हुआ संक्रमण,
चहुँदिश मानवता का क्रंदन।
जन-जन तक अब पहुँच चुका,
दूषित विष अणु का संवर्धन।
मन बुद्धि संग हैं दंभ से घायल,
वायु, पृथ्वी, आकाश, अनल, जल।
हमने प्रकृति संग खूब किये छल,
कब तक वह रह पाती निश्चल।
सीना धरती का चीर ही डाला,
बिना नियंत्रण खनिज निकाला।
धवल गगन को करके काला,
प्राणवायु में भर दी ज्वाला।
लज्जा तज दी तोड़ दी माला,
थाम लिया मदिरा का प्याला।
सुरा-सुन्दरी, जीव निवाला,
हमने जाने क्या-क्या कर डाला।
सहनशक्ति की भी सीमा है,
भले प्रकृति सबकी माँ है।
यह विष अणु माँ की माया है,
दयादात्रि बस प्रकृति माँ है।
अंतर्मन से उद्बोध हुआ है,
अब हमको भी बोध हुआ है।
कभी न होगी हमसे गलती,
हमें बहुत विक्षोभ हुआ है।
आत्मग्लानि से भीग उठे हम,
निर्दोषों की जान तो लो ना।
क्षमा करो माँ ! क्षमा करो ना,
विश्व से कर दो दूर कोरोना।
शुभ पुण्य रीति अपनायेंगे माँ !
हम फिर से तुम्हें सजायेंगे माँ !
शुचिता के पथ नैतिकता संग,
जीवन भर चलते जायेंगे माँ !
क्षमा करो माँ ! क्षमा करो ना,
विश्व से कर दो दूर कोरोना।
परिचय :– विवेक रंजन “विवेक”
जन्म –१६ मई १९६३ जबलपुर
शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र
लेखन – १९७९ से अनवरत…. दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास “गुलमोहर की छाँव” प्रकाशित हुआ है।
सम्प्रति – सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं।
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