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कोरोना

माया मालवेन्द्र बदेका
उज्जैन (म.प्र.)

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कोरोना
रो_कोना।
आने दो स्वागत करो। जी भर भर स्वागत करो।
जनता मेरे देश की जनता। स्वदेश का नारा लगा लगा कर स्वदेश को नहीं पहचान पा रही जनता। कितना अपने आप को धोखा देना है।
क्या इस शिक्षित युग में अब भी हमारी जनता को अंगुली पकड़कर चलना सिखाना होगा।
आजादी के बाद इतने वर्षो में कम से कम हर नागरिक इतना तो शिक्षित हो ही गया होगा की उसे स्वयं के भले बुरे का ज्ञान होने लगा होगा। घर परिवार की परिस्थितियों से निपटने की क्षमता यदि है तो कुछ देश के लिए योगदान भी समझ में आता होगा।
हम हर पहलू से सोचे तो सोच यहीं निकल रही है कि हम सब ठीकरे दूसरे के माथे ही फोड़ेंगे।
किसी भी दल की सरकार हो। उसमें कितने भी कपट छल वाले लोग भरे हो, हमारी समझ कहां जाती है।
यदि हम प्रधानमंत्री के पद तक के दावेदार चुन सकते हैं तो हम इतनी बुद्धि तो रखते ही है कि हमारे लिए और देश के लिए क्या अच्छा है।
सरकार क्या करेगी। हर घर में जाकर मच्छर मारेगी की आओ भाई तुम परेशान हो तुम्हें मलेरिया मेरी वजह से हुआ है तो मेरा फर्ज बनता है कि तुम्हारे लिए कुछ करु।
कितना बड़ा देश, एक अनार और सौ बीमार।
सस्ते के लिए दौड़ पड़ते हैं हम। दो रुपया प्लास्टिक की वस्तु के खर्च करके सोचते हैं बहुत बचत कर ली। होली का रंग सस्ता खरीद कर बेचने वाले के लिए रास्ता खोल दिया। पिचकारी, राखी कपड़ा खान-पान सभी सस्ता लगता है। जब स्वास्थ्य पर आती है तो सौ सुनार की और एक लोहार की पड़ती है। सब बातों में सरकार का विरोध होता है तो अगर यह सब वस्तुएं हानिकारक है तो इसका पुरजोर विरोध क्यों नही। इसलिए की हम भी सस्ता ढूंढते हैं। ठीक है अपनी आय के हिसाब से ही आदमी खर्च करेगा। गरीब की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है तो वह सस्ता खरीदेगा। लेकिन क्या बाहर से आती वस्तु के पहले हमारे देश में गरीब नहीं थे, होली दीपावली, राखी नहीं मनी। पिचकारी, रंग पटाखे क्या? हमारे देश में नहीं थे तब भी तो त्यौहार मनते थे तब तो सबकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी भी नहीं थी। गुलामी की जिंदगी में इतनी ताकत से त्यौहार मने और अब आजादी में रंग, पिचकारी पटाखें, पतंग बाहर से आकर आधिपत्य जमा बैठे।
हम तो ऐसे मेजबान है कि मर मिटेंगे पर महान तो कहलायेंगे ही। अभ्यागत स्वागतम करते करते हम आर्थिक रूप से बोझिल मानसिक रूप से परेशान और शारिरिक रुप से बीमार हो चुके है। प्रभावित इतने की हम केवल टीवी और मोबाइल की जिंदगी से ज्यादा इतना भी नहीं सोच पा रहे हैं कि इस बाहरी हवा ने हमारे बच्चों को कितना पंगु बना दिया है।
घर में एक दिन का मेहमान हमें स्वयं को भारी पड़ता है और उस मेहमान का क्या जो देश में आकर वापस जाने का नाम न ले। उसका असर सरकार पर नही। देश पर पड़ रहा है।देश से जनता पर।
कहां से कौन आता है कौनसी बीमारी आती है कितना नुकसान होता है। आंकड़े लाखों में होंगे पर हम अपना एक सही आंकड़ा पहचान कर देश का भला करे। सरकार से क्या बदला, क्या उम्मीद। जो करना है जनता करती है। अच्छे अच्छे नियमों की हम धज्जियां उड़ा देते हैं और हमारे मतलब के नियम कानून में हम ताली बजाते है।
अब क्यो
रोना
करोना
रो_कोना
शरण में आया है दो शरण।
आने दो।
सरकार को मत कोसो।यह तो बदलती रहती है।
मजबूत जनता को होना है।
करोना
अब
हमारे देश में
प्रवेश
करोना।
मत
करोना।

परिचय :-
नाम – माया मालवेन्द्र बदेका
पिता – डाॅ. श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय
माता – श्रीमती चंद्रावली पान्डेय
पति – मालवेन्द्र बदेका
जन्म – ५ सितम्बर १९५८ (जन्माष्टमी) इंदौर मध्यप्रदेश
शिक्षा – एम• ए• अर्थशास्त्र
शौक – संस्कृति, संगीत, लेखन, पठन, लोक संस्कृति
लेखन – चौथी कक्षा मे शुरुवात हिंदी, माळवी,गुजराती लेखन
प्रकाशन – पत्र पत्रिका मे हिन्दी, मालवी में प्रकाशन।
पुस्तक प्रकाशन – १ मौन शबद भी मुखर वे कदी (मालवी) २ – संजा बई का गीत
साझा संकलन – काव्य गंगा, सखी साहित्य, कवितायन, अंतरा शब्द शक्ति, साहित्य अनुसंधान
लघुकथा – लघुत्तम महत्तम, सहोदरी
माळवी – मालवी चौपाल (मालवी)
विधा – हिंदी गीत, भजन, छल्ला, मालवी गीत, लघुकथा हिन्दी, मालवी व्यंग, सजल, नवगीत, चित्र चिंतन, पिरामिड, हायकू, अन्य विधा मे रचना!
सम्मान – झलक निगम संस्कृति सम्मान, श्रीकृष्ण सरल शोध संस्थान गुना द्वारा सम्मान, संस्कृत महाविधालय थाईलैंड द्वारा सम्मान, शब्द प्रवाह सम्मान, हल्ला गुल्ला मंच सम्मान रतलाम, मालवी मिठास मंच द्वारा, नारी शक्ति मंच जावरा, औदिच्य ब्राह्मण समाज,गुरूव ब्राह्मण समाज द्वारा सम्मानित, प्रतिकल्पा सम्मान जमुनाबाई लोकसंस्थान उज्जैन, द्वारा मालवी लेखन के लिए पांडुलिपी पुरस्कार, दैनिक अग्निपथ कवि साहित्यकार सम्मान, शुभसंकल्प संस्था इंदौर, शुजालपुर मालवी न्यास से सम्मानित, संवाद मालवी चौपाल, संजा और मांडना के लिए पुरस्कार
मुख्य ध्येय – हिंदी के साथ आंचलिक भाषा और लोककृति विशेष संजा को जीवंत रखना, बेटी बचाओ मुहिम मे मालवी हिन्दी मे पंक्तिया, संजा, मांडना संरक्षण पच्चीस वर्ष से अधिक भारत से बाहर रहकर हिंदी लेखन का प्रसार, आंचलिक बोली मालवी का प्रसार, मारिशस, थाईलैंड, हिंदी सम्मेलन में उपस्थिति व थाईलैंड में हिंदी गोष्ठी समूह में सहभागिता की।
संरक्षक – झलक निगम संस्कृति, संरक्षक शब्द प्रवाह
संस्थापक – यो माया को मालवो, या मालवा की माया।
अध्यक्ष – संस्कृति सरंक्षण
पुरस्कार प्रदत – “मालवा के गांधी” डॉ लक्ष्मीनारायण पांडेय “मालवा रत्न” स्मृति पुरस्कार!
निवासी – उज्जैन (म.प्र.)


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