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रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर
सड़क की पगडंडियों से गुजरता अनुपम गर्मी की तपिश से परेशान हो रहा था। सरकारी स्कूल की नौकरी ऐसी थी। कि गाँव की पाठशाला का भार उसी के जिम्मे आ गया था। गर्मी में स्कूल की छुट्टियां होने के बावजूद भी कोई ना कोई काम से उसे जाना ही पड़ता। आज उसे नए नियमों से स्कूल की भर्तियों को लेकर प्रारूप तैयार करना था। इसी सिलसिले को दिमाग में रखते हुए, वह धूल भरे गुबार से गुजर रहा था। तभी जोरो से आँधी शुरू हो गई। वह सिर छुपाने के लिए जगह की तलाश कर रहा था। तभी उसे वहाँ एक सूखा सा बंजर पेड़ दिखाई दिया। वह उसी पेड़ के नीचे थोड़ी देर के लिए रुका तो ऊपर से उस पर कुछ बूंदे पानी की गिरी। उसने देखा आसमान तो साफ है। फिर यह पानी की बूंद कहां से गिरी। उसने ऊपर नजर उठा कर देखा। तो उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया। वह आँधी के रुकने का इंतजार कर रहा था। तभी एक और बूंद उसके कंधे पर गिरी अब उसको बड़ा आश्चर्य हुआ। इस सूखे पेड़ पर कोई भी नहीं है। आसमान भी साफ है। फिर पानी की बूंद कहां से गिरी तभी उस पेड़ से आवाज आई…।,
पेड़ बोला.., “आज मैं बहुत दुखी हूं कि तुम्हें पर्याप्त मात्रा में छाया नहीं दे सकता, तुम मेरे आश्रय में खड़े हो फिर भी मैं तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकता। इस पर अनुपम बोला…, “तुम्हारा कोई दोष नहीं,पर्यावरण की कमी से यह सब हो रहा है। इस पर पेड़ रोने लगा.., “मेरा यह हाल तो तुम लोगों ने मिलकर किया है। देखो तो मेरे आस पास दूर दूर तक कोई कोई दरख्त ही नही। थोड़ा पानी गिरता है, तो यह बंजर धरती सोख लेती है। मुझ तक तो पहुँचता ही नहीं, इसी कारण मेरी शाखाएं सूख रही है। पसीना पोछते हुए अनुपम बोला,”यह मंजर अब हर तरफ देखने को मिलता है। तभी पेड़ ने सवाल किया.., “क्या करते हो तुम…?, “मैं एक शिक्षक हूं, इसी गाँव में इस साल नया आया हूं। पेड़ ने सवाल किया, “क्या पढ़ाते हो…?” मैं सभी विषय पढ़ाता हू। ‘अच्छा इससे विद्यार्थियों को क्या शिक्षा मिलती है। “बस पढ़ लिखकर अच्छी डिग्री प्राप्त करो और अपने पैरों पर खड़े होकर माता-पिता का नाम रोशन करो। तभी पेड़ ने जोर से अट्टहास लगाया., “बोला तुम्हारा काम विषय से पढ़ाना तो है, पर जब इस पीढी को पर्याप्त पर्यावरण हरियाली ही नहीं मिलेगी, धरती का पानी खत्म हो जाएगा। और जब आज यह स्थिति है। कि हमारी पीढ़ियां समाप्त हो गई है। तो इन बच्चों को तुम क्या दे कर जाओगे। और इस उच्च शिक्षा का क्या मोल रह जायेगा, आज इतनी गर्मी से तुम तप रहे हो, इससे ज्यादा गर्मी से आने वाली पीढियां तपेगी। तो क्यों ना मैं तुम्हें जो विषय देता हूं। तुम उस विषय पर विद्यार्थियों को पढ़ा कर उन विद्याथियों की मदद से हमे पुनरुत्थान की ओर ले जा सकते हो। विद्यार्थियों की मदद से इस पर्यावरण को बचाने मदद करो। ताकि सही दिशा में तुम्हारे पढ़ाये हुए विषयों को सार्थकता मिलेगी, पेड़ की बात सुन अनुपम को वास्तविकता का अनुभव होने लगा। उसने उस वृक्ष को वचन देते हुए कहा, “कि हमारे समाज में पढ़े लिखे लोग तो बहुत हैं, पर सही शिक्षा का आज भी अभाव है। “मैं आज से ही आपको बचाने का पूरा प्रयास करूंगा। पेड़ उम्मीद की आस में मुस्कुरा उठा। आँधी थम चुकी थी। लेकिन अनुपम के दिलो-दिमाग में आँधी के तेज झोंके चल रहे थे। अनुपम स्कूल के कुछ विद्यार्थियों के साथ पर्यावरण बचाने की ओर अपना एक कदम बढ़ा चुका था। उसने नीम, पीपल, बरगद के हवादार पौधों को विद्यार्थियों की सहायता से लगाने लगा। उसमें एक नई ऊर्जा का संचार होने लगा ।यह देखकर वह पेड़ भी आशा भरी नजरों से मुस्कुरा रहा था।
अब उसे भी अपने परिवार के सदस्य भविष्य में बड़े होते नजर आने लगे। अनुपम ने उस पेड़ को धन्यवाद देते हुए। “कहा दोस्त, मैंने तो तुम्हारे साथ आजीवन दोस्ती कर ली है। इस पर पेड़ बोला,”शहर गाँव के हर स्कूल में पर्यावरण बचाने की इस मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए सभी को एक-एक कदम आगे बढ़ाना होगा। यही संकल्प लेकर अनुपम उस पगडंडियों से मुस्कुराते हुए गुजर रहा था। अब इस शीतलता को जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प जो उसने लिया था …..
परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर
जन्म तिथि : ५.९.१९७०
लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख,
शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार,
प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोसा, विवशता, सलाम, पसीने की बूंद,,
कविताएं :- वो सूखी टहनियाँ, शिक्षा, स्वार्थ सर्वोपरि, अमावस की रात, हायकू कविताएं राष्ट्र, बेटी, सावन, आदि।
प्रकाशन : भाषा सहोदरी द्वारा सांझा कहानी संकलन एवं लघुकथा संकलन
सम्मान : “भाषा सहोदरी” दिल्ली द्वारा
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