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मानव से मानव को जोड़े

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच

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नफरत की दीवारें तोड़ें।
मानव से मानव को जोड़ें।।
यकसांखून बनाया सबका,
यकसां जान बनाई है।
स्वीकारें ये इसमें लोगों,
सबकी छिपी भलाई है।।

हमको जन्म मिला यूं प्यारा,
जन-जन को दें सदा सहारा।
जितने भी प्राणी हैं जग में,
दर्जा सबसे अलग हमारा।।
कोई भी हम मजहब माने।
मानवता के सभी खजाने।।
कभी किसी में वैर भाव की,
दिखी नहीं परछाई है।
स्वीकारें ये इसमें लोगों,
सबकी छिपी भलाई है।।

प्यार सिखाते हैं सब मजहब,
नफरत किसने सिखलाई कब।
किसने दर्द नहीं समझा है,
पैरोंकार दया के हैं सब।।
पर पीडा को कौन बढ़ाता।
हिंसा से किसका है नाता।।
धरती पे दुख कैसे कम हों,
सबने अलख जगाई है।
स्वीकारें ये इसमें लोगों,
सबकी छिपी भलाई है।।

हम मजहब के लिए नहीं हैं,
कहो नही क्या बात सही है।
हमें जरूरत मजहब की तो ,
अपने हित के लिए रही है।।
कैसे जीवन अपना तारें।
दीनो दुनिया यहां संवारें।।
ठेकेदारों के गर मोहरे,
बनें बहुत दुखदायी है।
स्वीकारे ये इसमें लोगों,
सबकी छिपी भलाई है।।

मनके अलग एक माला है,
प्याले अलग एक हाला है।
“अनंत” राहें अलग अलग पर,
मंजिल पर रब रखवाला है।।
जब जैसी थी जहां जरूरत।
पैगम्बर लाए वो रेहमत।।
रेहबर इंसानों के खातिर ,
आए ये सच्चाई है।
स्वीकारें ये इसमें लोगों,
सबकी छिपी भलाई है।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
निवासी : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)


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