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आओं तुम्हें राजस्थान दिखाता हूँ।

नरपत परिहार ‘विद्रोही’
उसरवास (राजस्थान)
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आओं तुम्हें राजस्थान दिखाता हूँ।
विज्ञान धरती और पोकरण दिखाता हूँ।
शाश्वत समाधि रामा पीर दिखाता हूँ।
आओ तुम्हें
खनिजों का भण्डार दिखाता हूँ।
इन रेतीले धोरों में
मृगतृष्णा का संसार दिखाता हूँ।

भेड़-बकरी, ऊँट और
गोडावन का घर दिखाता हूँ।
आओ तुम्हें केर-काचरी,
कुमट-सांगरी का साग खिलाता हूँ।
जबरौ जैसलमेर
अर जवानों की देवी तमाम दिखाता हूँ।।
ख्वाइशें हैं मन के भीतर,
तुम्हें पुरा राजस्थान दिखाता हूँ।

आओ तुम्हें राजस्थान दिखाता हूँ।
गढ़ चिंतामणि चिडि़याटूँक दिखाता हूँ।
परि-देवताओं से निर्मित मेहरानगढ़ दिखाता हूँ।
आओ तुम्हें
बलिदानी रखिया राजाराम दिखाता हूँ।
मण्डोर, ओसिया
अर जसवन्त थडा़ तमाम दिखाता हूँ।
भली धरती जोधाणे री,
आओ तुम्हें सूर्यनगरी और घंटाघर दिखाता हूँ।

सुवर्णनगरी में काहन्ड़देव का शौर्य दिखाता हूँ।
फिर भी नहीं मानो तो,
वीरमदेव का बलिदान दिखाता हूँ।
सुवर्णगढ़ से जुडी़,
राई के भाव की कथा सुनाता हूँ।
मोदरान में आशापुरा,
रामसीन मे आपेश्वर धाम दिखाता हूँ।
सुन्धा-पर्वत,
भालू अभ्यारण्य तमाम दिखाता हूँ।
पाँच नदियों का संगम अर,
नदियों का जंजाल दिखाता हूँ।
आओं तुम्हें राजस्थान में भी पंजाब दिखाता हूँ।

परिचय :- नरपत परिहार ‘विद्रोही’
निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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