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जीवन के रंग

राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)
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नीरा का रो-रो कर बुरा हाल था। आज होली के दिन,उसके परिवार पर ये कैसी आफत टूट पड़ी थी? पूरे मोहल्ले में इसी परिवार की चर्चा हो रही थी। सभी नीरा को हौसला देने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे थे। पर सब बेकार था। उसने अपना पति खो दिया था। वह उसे बार-बार होली खेलने से रोक रही थीं। पर गगन ने उसकी एक ना सुनी थी। उसे होली खेलने का बहुत शौक था।
अब वह उसके सामने खून से लथपथ पड़ा था। उसे लाल गुलाल बहुत पसंद था। हाय! यह लाल रंग। यह गगन को बार-बार उठाने का प्रयास कर रही थी। सास ने उसे खींच कर सीने से लगा लिया। मेरी बेटी मत रो, यह भगवान की मर्जी है। भगवान को हम पर दया क्यों नहीं आई?नीरा रो-रोकर चिल्ला रहीं थीं।
माँ का भी रो-रो कर बुरा हाल था। वह भी भगवान से पूछ रही थी? मेरा लाल, मुझसे क्यों छीन लिया? भगवान, मेरे लाल की जगह मुझें उठा लेता। तुझें मुझ विधवा पर दया क्यों नहीं आई?
पहले तुमने मेरे पति उठा लिया। मैं किसी तरह सह गई। अब इस घर का चिराग भी बुझा दिया। क्या कसूर था, मेरे बेटे का? आग लगेगी उनको, जिन्होंने मेरे बेटे को मुझसे छीन लिया। सास-बहू का दिल दहला देने वाला रुदन देखकर सभी का कलेजा फट रहा था। सभी बेबस और लाचार थे। चारों तरफ आँसू ही आँसू थे।
दूर कहीं से होली के गीतों की आवाज सुनाई दे रही थी। आसमान में अभी भी रंग उड़ रहे थे। पर नीरा को सारा आसमान लाल दिखाई दे रहा था। उसका संसार उजड़ चुका था। गगन की शव-यात्रा में पूरा गाँव शामिल हुआ था। सभी गमगीन थे। होनी के आगें सभी नतमस्तक थे।सभी एक-दूसरे से कह रहे थे, होनी को कौन टाल सकता है? हम तो भगवान के हाथ की कठपुतली हैं।
भगवान जब चाहे हमें अपने पास बुला सकता है। कुछ लोग कह रहे थे, यह होली हमारे गाँव की खूनी होली है। नीरा रात भर बिलखती रहीं। उसे बार-बार ख्याल आ रहा था कि गगन अभी आकर उसके आँसुओं को पोछ देगा। साल भर के विवाहित जीवन में उसने एक बार भी उसे रोने नहीं दिया था। कभी डांटना तो दूर आँखे तक नहीं दिखाई थी।
उसके जीवन का हर दिन खुशियों से भरा था। गगन उसे बाहों में भर लेता था।
जब भी वह अपने मायके रहने की जिद करती, गगन का हँसता हुआ चेहरा मुरझा जाता था। वह उसे उदास देख कर गले लगा लेती थी। मैं तो दो दिनों के लिए जा रही हूँ, अच्छा एक दिन के लिए। मुझें माँ की बहुत याद आ रही है, जाने दो ना गगन। अच्छा तुम भी मेरे साथ चलो। शाम को एक साथ लौट आएंगे। उसका चेहरा गुलाब की तरह खिल जाता था। वह उसका हाथ पकड़कर चूमने लग जाता था। वह भी मन ही मन कह उठती थी। भगवान, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, जो आपने मुझें इतना प्यार करने वाला पति दिया। अतीत की यादें उसे थोड़ा बहुत सुकून देती। पर वर्तमान की असहनीय पीड़ा उसके रोम-रोम में दर्द भर देती थी।
पर वक्त कहाँ ठहरता है? वह तो अपनी गति से चलता रहता है। सास अब उसे बहू नहीं बेटी समझती थी। रात-दिन उसके भविष्य को लेकर चिंता में लगी रहती थी। वह उसे हमेशा अतीत को भूल जाने को कहती थी। पर नीरा अपने सुहाने अतीत को किसी भी कीमत पर भुलाना नहीं चाहती थी। वह अपने जख्मों को हरा रखना चाहती थी। वह हर पल गगन को अपने साथ ही महसूस करती थी।
समाज के लोग, पड़ोसी, गगन की माँ को समझाते थे। बहू को उसके मायके भेज दो। वह यहां किसके सहारे अपने दिन गुजारेगी। वह सभी की बातें सुनती, विचार करती। पर मुँह से कुछ ना बोलती थीं। उसका रोम-रोम अपनी बेटी नीरा का कर्जदार था।
अब तो नीरा की सारी हरकतें गगन से मेल खाती थी। वह भी गगन की तरह,माँ को पीछे से भीच लेती थी। खाने की तारीफ करती नहीं थकती थी। वह सास के आगे-पीछे मंडराती रहती थीं। उसे अब नीरा में गगन की छवि साफ- साफ दिखाई देती थी। नीरा के प्रति उसका मोह बढ़ता जा रहा था। वह सब समझती थी कि एक ना एक दिन वह संसार से चली जाएगी, फिर उसकी बेटी नीरा का क्या होगा? इस कल्पना से ही वह कांप उठती थी। उसकी आँखे नम हो जाती थी।
उसे भगवान पर पूरा भरोसा था कि वह कोई ना कोई रास्ता जरूर निकाल देगा। वह खुद को रोज दिलासा देती रहती थी। नीरा के सामने वह हमेशा खुश रहती थीं। नीरा को भी अपनी सास की चिंता थी। वह भी उनके सामने हँसती-खेलती रहती थी।
उदासी को अपने आस-पास फटकने तक नहीं देती थी। वक्त अगर जख्म देता है तो मरहम भी लगाता है। पर कभी-कभी पीड़ा दूर होने में समय लग जाता है। माँ की पीड़ा धीरे-धीरे बीमारियों में बदलती जा रही थी। नीरा की सुंदरता भी चिंता के कारण फीकी पड़ रही थी।
गाँव में एक नया डॉक्टर आया था। काम के प्रति समर्पित, लोगों की सेवा करने वाला। उसे अपने दवाखाने के लिए एक सहयोगी की आवश्यकता थी। पर उसे कोई सहयोगी नहीं मिल रही थी। वैसे भी गाँव में पढ़ी-लिखी लड़कियाँ बहुत कम थी। किसी ने डॉक्टर साहब को नीरा का नाम सुझा दिया। डॉक्टर साहब नीरा से मिले, उन्होंने माँ जी के सामने अपनी समस्या रखी।
माँ जी नीरा को दवाखाने भेजने के लिए मान गई। नीरा को लोगों से बड़ा लगाव था। गांव के सभी लोग उसे बेटी ही समझते थे। वह गाँव के लोगों की देखभाल करती। सभी उसे दुआएं देते। डॉक्टर साहब, नीरा की कर्तव्य-निष्ठा देखकर बहुत खुश थे। वह उस पर बहुत भरोसा करते थे। दवाखाने का नाम दूर-दूर तक फैलता जा रहा था। नीरा का समर्पण किसी से छुपा नहीं था। रोगी दूर-दूर से आते, अपना उपचार करवाते,ठीक होते। और नीरा की खूब तारीफ करते।
नीरा डॉक्टर साहब की सेवा-भावना से बहुत प्रभावित थी। डॉक्टर साहब, कल माँ जी, आपको खाने पर बुला रही है। जी मैं जरूर आऊंगा। वैसे भी मुझ अनाथ को माँ के प्यार का कोई एहसास नहीं हैं।
मेरा बचपन अनाथ-आश्रम में बीता हैं। मुझें तो रिश्ते नातों का पता भी नहीं है। ठीक है, नीरा! मैं कल जरूर आऊँगा। डॉक्टर साहब:-माँ जी, खाना बहुत स्वाद, लाजवाब बना है। नीरा खाना परोस रही थी। डॉक्टर साहब, खाने की तारीफ करते नहीं थक रहे थे। धीरे-धीरे उनका मेल-जोल बढ़ता ही जा रहा था।
मुखिया:- माँ जी,आपसे एक प्रार्थना हैं। क्या हम इस बार गाँव में होली मना सकते है? बाकी आपकी मर्जी। इस पर विचार करें…। वह होली का नाम सुनकर सहम गई। नीरा भी चुपचाप सब सुन रही थीं। वह माँ जी के चेहरे पर उठते भावों को देख रही थी। वह माँ जी के गले लग गई।
डॉक्टर साहब-नीरा:- गाँव में लोग होली क्यों नहीं मनाते? नीरा ने डॉक्टर साहब को अतीत की सारी घटना बता दी। उसकी आँखे झरने की तरह बह रही थी।
डॉक्टर साहब: नीरा:- आज तुम दवाखाना संभालों। मुझें कुछ जरूरी काम है। वह मुखिया को लेकर माँ जी मिलें। माँ जी, गगन तो लौट नहीं सकता। क्या मैं गगन की जगह ले सकता हूँ। मैं नीरा से शादी करना चाहता हूँ। क्या आप उसके जीवन…। वह आगे कुछ ना बोल सका। आप नीरा से बात कर लेना। मुखिया जी ने भी माँ जी समझाया। माँ जी भगवान तुम्हें डॉक्टर साहब के रूप में गगन लौटना चाहता है।
माँ जी: नीरा :- बेटी में तुम्हारी शादी करना चाहती हूँ। डॉक्टर साहब से, तुम्हारी क्या मर्जी है? मैं दोबारा से अपना बेटा, बहुँ पाना चाहती हूँ।
नीरा:- कुछ नहीं कह सकी, पर उसकी खामोशी सब कुछ कह रही थी। आज फिर ढोल-नगाड़े बज रहे थे। चारों तरफ से होली के गीत गूँज रहे थे। आसमान रंगों से भरा था। नीरा शादी के जोड़े में बहुत सुंदर लग रही थी। डॉक्टर साहब, माँ जी के साथ हाथ में गुलाल लिए नीरा की तरफ बढ़ रहे थे। दोनों के चेहरों पर गुलाल लगे थे। उन्होंने उसके चेहरे को भी रंग दिया। डॉक्टर साहब ने माँ जी और नीरा को गले लगा लिया। नीरा मन ही मन सोच रही थी, होली के रंग कितने सुन्दर होते हैं? पर माँ जी ने जैसे उसके मन की आवाज सुन ली थी। वह नीरा के सिर पर हाथ रख कर कमरें से बाहर आ गई, यह कहते हुए बेटी भगवान ने तुम्हारे जीवन में फिर से होली के रंग भर दिए हैं…।

परिचय : राकेश तगाला
निवासी : पानीपत (हरियाणा)
शिक्षा : बी ए ऑनर्स, एम ए (हिंदी, इतिहास)
साहित्यक उपलब्धि : कविता, लघुकथा, लेख, कहानी, क्षणिकाएँ, २०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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