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कुंडल छंद “ताँडव नृत्य”

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया (असम)
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कुंडल छंद विधान

यह २२ मात्रा का सम पद मात्रिक छंद है जिसमें १२,१० मात्रा पर यति है। अंत में दो गुरु आवश्यक; यति से पहले त्रिकल आवश्यक। मात्रा बाँट :- ६+३+३, ६+SS
चार चरण का छंद। दो दो चरण समतुकांत या चारों चरण समतुकांत।

नर्तत त्रिपुरारि नाथ, रौद्र रूप धारे।
डगमग कैलाश आज, काँप रहे सारे।।
बाघम्बर को लपेट, प्रलय-नेत्र खोले।
डमरू का कर निनाद, शिव शंकर डोले।।

लपटों सी लपक रहीं, ज्वाल सम जटाएँ।
वक्र व्याल कंठ हार, जीभ लपलपाएँ।।
ठाडे हैं हाथ जोड़, कार्तिकेय नंदी।
काँपे गौरा गणेश, गण सब ज्यों बंदी।।

दिग्गज चिंघाड़ रहें, सागर उफनाये।
नदियाँ सब मंद पड़ीं, पर्वत थर्राये।।
चंद्र भानु क्षीण हुये, प्रखर प्रभा छोड़े।
उच्छृंखल प्रकृति हुई, मर्यादा तोड़े।।

सुर मुनि सब हाथ जोड़, शीश को झुकाएँ।
शिव-शिव वे बोल रहें, मधुर स्तोत्र गाएँ।।
इन सब से हो उदास, नाचत हैं भोले।
वर्णन यह ‘नमन’ करे, हृदय चक्षु खोले।।

परिचय : बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
जन्म दिनांक : २८ अगस्त १९५२
निवास स्थान : तिनसुकिया (असम)
रुचि : काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वार्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न हूँ।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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