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बादल और नदी

संजय वर्मा “दॄष्टि”
मनावर (धार)
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इतनी चुप क्यों हो
जैसे रीति नदियाँ
तुम्हारी खिलखिलाहट
होती थी कभी
झरनों जैसी कलकल।
रूठना तो कोई तुमसे सीखे
जैसे नदियाँ रूठती बादलों से
मै बादल तुम बनी
स्वप्न में नदी
सूरज की किरणें झांक रही
बादलों के पर्दे से
संग इंद्रधनुष का तोहफा लिए
सात रंगों में खिलकर
मृगतृष्णा दिखाता नदियों को
रीति नदियों में
पानी भरने को बेताब बादल
सौतन हवाओं से होता
परेशान।
नदी से प्रेम है तो
बरसेगा जरूर
नही बरसेगा तो
नदियां कहाँ से
कलकल के गीत गुनगुनाए।
औऱ बादल सौतन हवाओं के
चक्कर मे
फिजूल गर्जन के गीत क्यों गाए।
जो गरजते क्या
वो बरसते नही
यदि प्यार सच्चा हो तो
बरसते जरूर।

परिचय :- संजय वर्मा “दॄष्टि”
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन)

शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन :- देश – विदेश की विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक”, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली,
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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