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मिट्टी के खिलौनें

आरती यादव “यदुवंशी”
पटियाला, पंजाब
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बचपन में खेला जिन मिट्टी के खिलौनों से मैंने
आज जाकर उन मिट्टी के खिलौनों से
मैंने जीवन की असली सीख पाई है,
सपनों की टूटी इस दुनियाँ में मैंने
फिर से जीवन जीने की आस जगाई है।।

नन्हीं सी होती थी तब मैं
जब मिट्टी के खिलौनें बनाती थी,
उन गीले कच्ची मिट्टी के खिलौनों को मैं
आँगन की दीवार पे रखकर सूखाती थी,
रोज़ सुबह जल्दी उठ कर “वो सूखे या नहीं ”
ये देखनें मैं छत पर फिर चढ़ जाती थी।।

तस्तरी, गिलास, बेलन, चौका, भगौना, चूल्हा
बाल्टी और मैं कई बर्तन नए बनाती थी,
नन्हीं सी इक गुड़िया थी मेरी
मैं उस गुड़िया का ब्याह रचाती थी।।

पंडित,नाऊ और धोबी भी बनते थे
हम सब उस प्यारी गुड़िया के ब्याह में,
नन्हीं प्यारी गुड़िया की बारात भी इक दिन आई थी,
कुछ नन्हें दोस्त मेरे बने थे बराती वहां
खेल-खेल में उस दिन हमनें, सबको भोज भी खिलवाई थी,
भोज के पश्चात फिर हमनें गुड़िया का ब्याह रचाया था,
गुड़िया को डोली बिठा के हमनें, शोर बहुत ही मचाया था,
उस दिन के इस खेल में हम सब ने ही मौज मनाई थी।।

मिट्टी के उन सुंदर खिलौनों को मैंने
फिर अपनें आँगन की दीवार पर रखा था,
रात में आई आंधी थी और बारिश बहुत ही आई थी,
सुबह मैं भागी गई थी छत पर ये देख वहां घबराई थी,
मेरे मिट्टी के उन सारे सुदंर खिलौनों को
उस बारिश ने मिट्टी फिर से बनाई थी,
मेरे भोले से चेहरे पर उस दिन, उदासी देख ये छाई थी।।

एक बार वो मिट्टी के खिलौनें टूट गए तो क्या हुआ
हमें फिर से खिलौनें बनाने की बात माँ ने हमें सुझाई थी,
“कोई भी चीज़ यदि एक बार टूट जाए
तो हमें हार बिलकुल भी नहीं माननीं चाहिए
बल्कि फिर उसे दुबारा कुछ और भी बेहतर
बनाने की कोशिश करनी चाहिए”
ये बात उस दिन मेरी माँ ने मुझे समझाई थी,
बचपन में खेला जिन मिट्टी के खिलौनों से मैंने
आज जाकर उन मिट्टी के खिलौनों से
मैंने जीवन की असली सीख पाई थी।।

परिचय :- आरती यादव “यदुवंशी”
निवासी : पटियाला, पंजाब
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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