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हालात

मंजिरी “निधि”
बडौदा (गुजरात)
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आज उजड़ा सा लगे,
देख तेरा संसार
संकट में दिखे मानव
और घर द्वार
कैसे और क्या करें
लगे यह मन कहाँ
विपदा हैं आन पड़ी
दुःखी जन जन यहाँ
बहोत ही दुःखी संसार
लोग रोते हुए
देख मानव भेड़ियों को
स्वप्न खोते हुए
कितने हुए
गोलियों के शिकार
कितने मार खा-खा कर
मरने को तैयार
छीन कर वे
लोकतंत्र को ले गये
अपने जाते दूर
देख बिलखते हुए
सारी इच्छाओं को
बंदूक की नोक पर
पूर्ण करवा रहे
महिलाएँ और बच्चे
जुल्म का शिकार हो रहे
शर्मसार हुई
सम्पूर्ण मानवता
कहाँ जाए वो
सारी जनता ?
छोड़ निज घर
द्वार तड़पकर,
जन चले विकट
विपदा से हारकर
कठपुतली बन नाच
डोर उनके हाथ
छोड़ चलें दुनिया
नहीं है कोई साथ
मचा हुआ हाहाकार
खोज रहे हैं नव आधार
नहीं उठा पा रही भू भार
त्राहि-त्राहि करती सरकार
कुछ तो करो भगवन
कब तक यूँ मूक खड़े रहोगे?
डर के साये में आज,
करदो अब बेडा पार

परिचय :- मंजिरी पुणताम्बेकर “निधि”
निवासी : बडौदा (गुजरात)
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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