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बाल दिवस

विनोद सिंह गुर्जर
महू (इंदौर)

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चलो चलें बच्चे हो जायें।
लुका-छिपी में फिर खो जायें।।
अर्थ, व्यर्थ की उलझन से,
दूर कहीं जाके सो जायें।।..

तू मेरे संग खेल सिथोली,
मैं फिर तेरी चोटी खींचू।
तू मेरी सब्जी ले भागे,
मैं फिर तेरी रोटी खींचू।।

तेरे आंचल में सिर रखके,
थोड़ा हंस, थोड़ा रो जायें।।…

चलो चलें बच्चे हो जायें।
लुका-छिपी में फिर खो जायें।।…

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परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है।


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