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बचपन

मुकेश गाडरी
घाटी राजसमंद (राजस्थान)

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सबसे अनोखी ये अवस्था
ना कुछ करना ना कुछ पड़ना
गलियोंमें गुमते ग्याला बनते
खेल -खेल में जो लेते मजा
कभी ना हम दिल में चुभाते
दोस्ती में ना भेदभाव का चलन……..
ऐसा था हम सब का बचपन…
माँ -पिता के साथ जो रहते
बारिश का हमको खुभ लुभाना,
मिट्टी से जो घर बनाना
दादी से कहानियां सुनते
ननिहाल के लिए हम तो रोते,
छोटी सी मुस्कान से आंगन मेरा भर जाता
गलती जब हम करते,
माँ के आँचल मे जा छिपते
माँ की ममता का तब होता मिलन…..
ऐसा था हम सब का बचपन…
पता नहीं ये कोनसा युग है
छुपा है बचपन को लेकर
आई एक तकनीक एसी
सपनों में होते जेसे घूम,
हो गयें उस तकनीक में बूम
चलो कुछ एसा करते,
जिसका कभी ना आदि-अन्त
करना हमको ऐसा प्रचलन….
ऐसा था हम सब का बचपन..

परिचय :- मुकेश गाडरी
शिक्षा : १२वीं वाणिज्य
निवासी : घाटी( राजसमंद) राजस्थान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।

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