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धरती की संतान

सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.)
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हम सब धरती की संतान हैं
अच्छा है, समझ है हममें,
हम है समझदार भाइयों-बहनों
हमारा क्या कहना
इसलिए तो भगवान ने हमें
बनाया साहित्यकार
धरती की भलाई करने को
हम सदा है तैयार।

हमें अब बहुत कुछ करने की ज़रूरत है
आखिर जब धरती माँ ने
अपना विशाल आँचल फैला रखा है
हमें कष्ट न हो इसीलिए
एक विशाल परिवार बना रखा है।
हमारे खाने पीने जीने के लिए
लाखों लाख जतन कर रही है।
लायक बच्चों पर धरती माँ
अब नाज़ कर रही है।

नदी, झील, झरने, नदियां
जलस्रोतों को हम
बचाने का कर रहे उत्तम प्रयास
इसलिए तो रचनाकार है
धरती माँ के बालक खास।

पेड़-पौधों से भरी रहे धरा
हर तरफ हो वृक्ष हो हरा-हरा।
प्राकृतिक संपदाओं का हो संरक्षण
खुशहाल बने सभी का जीवन
पशु-पक्षी, पेड़ पौधे, जीव जंतु
सदा के लिए हो सुरक्षित।

हमें अपनी धरती माँ की शान बढ़ानी है
सचमुच तभी तो हम ज्ञानी है
हम सब धरती की हैं संतान
हम सब है महान।

परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, जिला-गोण्डा (उ.प्र.)
वर्तमान निवास : शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव जिला-गोण्डा, उ.प्र.
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई.,पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
साहित्यिक गतिविधियाँ : विभिन्न विधाओं की कविताएं, कहानियां, लघुकथाएं, आलेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि का १०० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन।
सम्मान : एक दर्जन से अधिक सम्मान पत्र।
विशेष : कुछ व्यक्तिगत कारणों से १७-१८ वषों से समस्त साहित्यिक गतिविधियों पर विराम रहा। कोरोना काल ने पुनः सृजनपथ पर आगे बढ़ने के लिए विवश किया या यूँ कहें कि मेरी सुसुप्तावस्था में पड़ी गतिविधियों को पल्लवित होने का मार्ग प्रशस्त किया है।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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