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चुहिया और बुढ़िया

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रचयिता : विनोद वर्मा “आज़ाद”

एक बुढ़िया कचरा जलाकर खाना बना रही थी, एक चुहिया उधर से गुजरी, देखकर बुढ़िया से बोली-का हम लकड़ी लाय दे तुमको।
बुढ़िया ने कहा-लाय दो ।
चुहिया दौड़ी-दौड़ी गई और लकड़ी लाकर बुढ़िया को दे दी। बुढ़िया रोटी उतार रही थी, ठीक उसी वक्त चुहिया रोटी पर उछलकूद करने लगी ।
बुढ़िया बोली–ए चुहिया ये का कर रही।
चुहिया बोली–मैं डांग गई, डांग से मैं लकड़ी लई, लकड़ी मैंने तोए दय। का एक चंदिया भी नय देगी?
बुढ़िया –ले जा ।
चुहिया चंदिया लेकर जा रही थी, उसकी निगाह एक कुम्हार पर पड़ी जी बच्चे को मिट्टी की गोली दे रहा था।
चुहिया –ए भाई तेरे को चंदिया दूँ।
वह तुरन्त बोल उठा–हाँ-हाँ..
चुहिया ने चंदिया कुम्हार को दी और उसकी मटकियों पर उछलकूद करने लगी।
कुम्हार बोला–ए चुहिया! ये का कर रही?
चुहिया –मैं डांग गई, डांग से मैं लकड़ी लई, लकड़ी मैंने बुढ़िया दय, बुढ़िया मोहे चंदिया दय, का तू मोहे एक हंडिया भी नय देगो?
कुम्हार–ले जा ।
एक गुजर के घर के पास से चुहिया जा रही थी। गुजर छाछ कर रहा था, उसकी मटकी तिड़क गई, तो चुहिया बोली मैं हंडिया दूँ।
तो गुजर बोला है दे, नही तो मेरा मक्खन बिखर जाएगा।
बुढ़िया ने मटकी दे दी। और फिर वही उछलकूद। वह सूखाग्रस्त इलाके वाले इस परिवार की भैसों पर उछलकूद करने लगी।
गुजर बोला-ए चुहिया ये का कर रही ?
चुहिया बोली–मैं डांग गई, डांग से मैं लकड़ी लई, लकड़ी मैंने बुढ़िया दय, बुढ़िया मोहे चंदिया दय, चंदिया मैंने कुम्हार दय, कुम्हार मोहे हंडिया दय, हंडिया मैंने तोहे दय, का एक भैंस भी नय देगो ?
गुजर–ले जा (सूखे की वजह से चंदी चारा और जल की कमी थी)
चुहिया भैस लेकर एक राज्य में पहुंची। राजा के बच्चे दूध के लिए मचल रहे थे। चुहिया राजा से जाकर बोली –दूध के लिए भैस दू का राजा?
राजा बोला–हां, इसी की तो जरूरत थी।
चुहिया राजमहल में जाकर ढेरों रानियों के साथ उछलकूद करने लगी। हलचल के कारण राजा ने चुहिया से –ए चुहिया ये कया कर रही ?
चुहिया–मैं डांग गई, डांग से मैं लकड़ी लय, लकड़ी मैंने बुढ़िया दय, बुढ़िया मोहे चंदिया दय, चंदिया मैंने कुम्हार दय, कुम्हार मोहे हंडिया दय, हंडिया मैंने गुज़र दय, गुज़र मोहे भैस दय, भैस मैने तोए दय, का एक रानी भी नय देगो?
राजा–ले जा।
रानी के साथ चल पड़ी चुहिया अगले सफर की ओर….
एक घर से धुंआ उठ रहा था। एक ढोली कचरा जलाकर रोटियां सेक रहा था। चूल्हा जल नही पा रहा था।
बुढ़िया ने ढोली से कहा–खाना बनाने वाली दू ?
ढोली खुश हो गया–बोला हाँ …..
चुहिया ढोलको पर उछलकूद करने लगी, तब ढोली बोला–ए चुहिया ! ये का कर रही है?
चुहिया–मैं डांग गई, डांग से मैं लकड़ी लय, लकड़ी मैंने बुढ़िया दय, बुढ़िया मोहे चंदिया दय, चंदिया मैंने कुम्हार दय, कुम्हार मोहे हंडिया दय, हंडिया मैंने गुज़र दय, गुज़र मोहे भैस दय, भैस मैंने राजा दय, राजा मोये रानी दय। का मोये एक ढोलक भी नय देगो ?
ढोली –ले जा।
चुहिया ढोलक लेकर एक पेड़ पर चढ़कर ढोलक बजाकर गाने लगी  ढोल-ढमाका-ढम्मक-ढु, रानी के बदले आई तू।

लेखक परिचय :- 
नाम – विनोद वर्मा
सहायक शिक्षक (शासकीय)
एम.फिल.,एम.ए. (हिंदी साहित्य), एल.एल.बी., बी.टी., वैद्य विशारद पीएचडी. अगस्त २०१९ तक हो जाएगी।
निवास – इंदौर जिला मध्यप्रदेश
स्काउट – जिला स्काउटर प्रतिनिधि, ब्लॉक सचिव व नोडल अधिकारी
अध्यक्ष – शिक्षक परिवार, मालव लोकसाहित्य सांस्कृतिक मंच म.प्र.
अन्य व्यवसाय – फोटो & वीडियोग्राफी
गतिविधियां – साहित्य, सांस्कृतिक, सामाजिक क्रीड़ा, धार्मिक एवम समस्त गतिविधियों के साथ लेखन-कहानी, फ़िल्म समीक्षा, कार्यक्रम आयोजन पर सारगर्भित लेखन, मालवी बोली पर लेखन गीत, कविता मुक्तक आदि।
अवार्ड – CCRT प्रशिक्षित, हैदराबाद (आ.प्र.)
१ – अम्बेडकर अवार्ड, साहित्य लेखन तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली
२ – रजक मशाल पत्रिका, परिषद, भोपाल
३ – राज्य शिक्षा केन्द्र, श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
४ – पत्रिका समाचार पत्र उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान (एक्सीलेंस अवार्ड)
५ – जिला पंचायत द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
६ – जिला कलेक्टर द्वारा सम्मान
७ – जिला शिक्षण एवम प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) द्वारा सम्मान
८ – भारत स्काउट गाइड संघ जिला एवं संभागीय अवार्ड
९ – जनपद शिक्षा केन्द्र द्वारा सम्मानित
१० – लायंस क्लब द्वारा सम्मानित
११ – नगरपरिषद द्वारा सम्मान
१२ – विवेक विद्यापीठ द्वारा सम्मान
१३ – दैनिक विनय उजाला राज्य स्तरीय सम्मान
१४ – राज्य कर्मचारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१५ – म.प्र.तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी अधिकारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१६ – प्रशासन द्वारा १५ अगस्त को सम्मान

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