वीणा वैष्णव
कांकरोली
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परोपकार दिखावा हर जन ने सदा किया।
किया बहुत कम, और ज्यादा दिखा दिया।
अखबार में छाने का, जुनून ऐसा सर चढ़ा,
सचे परोपकारी को, सबने पर्दे पीछे छुपा दिया।
वृक्ष नदियों को, कैसे सब ने बिसरा दिया।
गाय माता बन पाला, कभी कुछ ना लिया।
सब कुछ किया, यूं इन्होंने अपना समर्पित,
कितने स्वार्थी है हम, हमने उनको भी भूला दिया।
परोपकारी पीठ थप थपाना, कभी न किया।
परोपकारीता का, बस उपहास उड़ा दिया।
लोभ मोह अंधा, बस जीवन को गवाँ दिया।
मनु धर्म का सार परोपकार, यह समझ ना पाया।
पर दु:ख देख जो, द्रवित कभी भी हुआ।
दीन दुखी मदद,जीवन सार्थक वो किया।
मानव है मानवता दिखा, तू परोपकार कर,
प्रभु श्रेष्ठ रचना को, कुछ बिरला ने सार्थक किया।
ऋषि दधीचि को, हर जन ने भुला दिया।
मृत्यु नहीं डरा, कर्ण कवच कुंडल दिया।
परोपकार से, देखो इतिहास है पूरा भरा,
अब सोचो जरा, हमने मातृभूमि हित क्या किया।
कहती वीणा मनु जन्म मुश्किल, कुछ कर।
स्वर्ग बिसरा पागल, क्यूं नर्क ठौर बना रहा।
परोपकार अपना, जिसने नेक काम किया।
चले गए जहां से, पर एक अमिट छाप छोड़ गया।
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परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है।
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