
अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच (मध्य प्रदेश)
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बदला-बदला मौसम का मन,
बादल घिर-घिर आते हैं।
विरही नैना मन आंगन में,
अंगारे बरसाते हैं।।
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नींदे रातों की रूठी है,
रूठे हैं सपने सारे।
काले बादल बरसे हैं,
बैरन काली रातें हैं।।
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चुभन बड़ी बेदर्दी से तब,
दर्द बढ़ा देती तन का।
गीली नर्म हवा के झोंके,
जब-जब शूल चुभाते हैं।।
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कितनी पीड़ा होती होगी,
आंखों से निकले आँसू।
मौन लबों के रहते भी सब,
राज उगलते जाते हैं।।
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पानी आग बुझाने वाला,
जब शोले भड़कता है।
सिर्फ तपस्वी तन ही उसको,
काबू में कर पाते हैं।।
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मदिरा ऊपर से जब बरसे,
पवन नशीला बन जाए।
पीने वाले क्यों चूकेगें,
अपनी प्यास बुझाते हैं।।
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गीली राते हों साथी हों,
“अनंत” जिनके पहलू में।
रोज दिवाली होती उनकी,
हर दिन ईद मनाते हैं।।
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परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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