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ग़ज़ल

जी के जंजाल की तरह
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जी के जंजाल की तरह

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** जी के जंजाल की तरह, हम हैं फुटबाल की तरह। सब हैं बीमार की तरह, सिर्फ़ मैं अनार की तरह। सपनों को पंख क्या लगे, तुम मिले धमाल की तरह। चादर को तान सो गये, हम भी ससुराल की तरह। गुड़ से गोबर हुये सपन, पर जिये कमाल की तरह। जन्नत कश्मीर सी मिली पर मुये बवाल की तरह। सब कुछ उनके लिये यहाँ, हम बस टकसाल की तरह। ख़्वाहिशें उघार क्या हुईं हम हैं कंगाल की तरह। उनके मक़तल सजे हुये, हम कच्चे माल की तरह।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
मुझे रास आई न दुनिया तुम्हारी
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मुझे रास आई न दुनिया तुम्हारी

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ग़ज़ल - २१२ २१२ २१२ २१२ मुझे रास आई न दुनिया तुम्हारी। परेशां तुम्हारा यहाँ है पुजारी।। सुखी है वही जो ग़लत है जहाँ में। सही आदमी बन गया है भिखारी।। दरिंदे हैं बे-ख़ौफ़ कितने यहाँ पर। सरेआम लुटती बाजारों में नारी।। जो सौ में सवा सौ काहे झूठ यारों। वही रहनुमा बन गया है मदारी।। यही डर है सबको सही बोलने में। कहीं घट न जाए ये इज़्ज़त हमारी।। बड़ा तो वही है जो चलता अकड़ कर। शरीफों का जीना जहाँ में है भारी।। निज़ाम अब कहाँ जाए या रब बताओ। भरी है बुराई से दुनिया ये सारी।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, रा...
न्याय की तलाश
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न्याय की तलाश

अजय प्रसाद अंडाल, बर्दवान (प. बंगाल) ******************** सदियों से ही उचित न्याय की तलाश में हूँ दलितों, पीड़ितों औ शोषित के लिबास में हूँ। ज़िक्र मेरी भला कोई करे क्योंकर ग्रंथो में कहाँ नज़रो के, वाल्मिकी या वेद व्यास में हूँ। हर दौर ही दगा दे गई यारों दिलासा दे कर बस ज़रुरत के मुताबिक उनके पास में हूँ। रोज़ लड़ता हूँ लड़खड़ाकर जंग ज़िंदगी से मुसीबतों के महफ़ूज साया-ए-उदास में हूँ। कभी तो अहमियत मिलेगी मेरी गज़लों को अजय उस महफिल-ए-ग़ज़ल की तलाश में हूँ परिचय :-  अजय प्रसाद शिक्षा : एम. ए. (इंग्लिश) बीएड पिता : स्वर्गीय बसंत जन्म : १० मार्च १९७३ निवासी : अंडाल जिला- बर्दवान प. बंगाल सम्प्रति : अंग्रेजी अध्यापक- देव पब्लिक स्कूल बिजवान नालंदा, (बिहार) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी...
वही इंसान तो…
ग़ज़ल

वही इंसान तो…

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** वही इंसान तो अक्सर सही मंजिल नहीं पाता। जो सच्ची राह पर अपनी कभी चलकर नहीं जाता। सभी मुश्किल उसे इस राह की हैरान करती है, कभी जो हौसला अपना यहाँ लेकर नहीं आता। वो बातें हैं यहाँ उसके लिए इक फ़लसफ़े जैसी, हक़ीक़त में जिन्हें अपने अमल में जो नहीं लाता। निभाते हैं सभी उसकी रिवायत को शराफ़त से, बना रहता है जब उसका सभी से कुछ न कुछ नाता। कभी वो ख्वाहिशें उसकी यहाँ पूरी नहीं होती, कि जिसको ये नहीं भाता कि जिसको वो नहीं भाता। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जा...
हाल, वक़्त की
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हाल, वक़्त की

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** हाल, वक़्त की हर तैयारी रखते हैं। लोग वही जो ज़िम्मेदारी रखते हैं। रस्ता, दूरी, मुश्किल, मंज़िल सोच-समझ, साथ सफ़र के वो हुशियारी रखते हैं। सुनकर, पढ़कर लोग उन्हें समझें-बूझें, बातें ऐसी अपनी सारी रखते हैं। आते-जाते जीवन के जितने लम्हें, यादें उनकी मीठी-खारी रखते हैं। काम कोई, कब आ जाये तंग मौके पर, सबसे अपनी दुनियादारी रखते हैं। कहते तो हैं वो सब अपने मन की, लेक़िन जैसे बात हमारी रखते हैं। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है...
तेरे दर्शन की ख्वाहिश है
ग़ज़ल

तेरे दर्शन की ख्वाहिश है

मुकेश सिंघानिया चाम्पा (छत्तीसगढ़) ******************** ग़ज़ल - १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ सुधारों अब दशा भगवन तेरे दर्शन की ख्वाहिश है पड़े हैं सुने सब मंदिर तेरे कीर्तन की ख्वाहिश है हुए बेचैन अब घर में ही रह हम बंदियों जैसे खुले वातावरण में अब जरा विचरण की ख्वाहिश है भरा है मन बहुत संवेदना हिन देख लोगों को व्यथित मन में बहुत अब शोर की क्रंदन की ख्वाहिश है हुई क्यूँ ऐसी ये दुनिया भला कारण है क्या इसका इसी पर अब मनन की और गहन चिंतन की ख्वाहिश है जगत जकड़ा हुआ अज्ञानता के घोर अंधेरों में उजालों की नयी किरणों के अब सृजन की ख्वाहिश है अजब सी इक हवा का डर है पसरा सबके हृदय में सभी खुशहाल और भयमुक्त हो ये मन की ख्वाहिश है तेरे चरणों में ही दिन रात मेरे जैसे हों गुजरे तेरे दर पर ही निकले दम मेरे जीवन की ख्वाहिश है मनाएँ फिर तेरा उत्सव बड़े हर्ष और उल्लासों से तू कर दे पहले सी दुनिया ये अब जन...
जिंदगी इक सफ़र है
ग़ज़ल

जिंदगी इक सफ़र है

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ग़ज़ल - २१२ २१२ २१२ २१२ अरकान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन जिंदगी इक सफ़र है नहीं और कुछ। मौत के डर से डर है नहीं और कुछ।। तेरी दौलत महल तेरा धोका है सब। क़ब्र ही असली घर है नहीं और कुछ।। प्यार से प्यार है प्यार ही बंदगी। प्यार से बढ़के ज़र है नहीं और कुछ।। नफ़रतों से हुआ कुछ न हासिल कभी। ग़म इधर जो उधर है नहीं और कुछ।। घटना घटती यहाँ जो वो छपती कहाँ। सिर्फ झूठी ख़बर है नहीं और कुछ।। बोलते सच जो थे क्यों वो ख़ामोश हैं। ख़ौफ़ का ये असर है नहीं और कुछ।। जो भी जाहिल को फ़ाज़िल कहेगा 'निज़ाम'। अब उसी की कदर है नहीं और कुछ।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परि...
शराफ़त
ग़ज़ल

शराफ़त

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** रिवायत को शराफ़त से निभाया ही नहीं जाता। उधर मैं भी नहीं जाता, इधर वो भी नहीं आता। उसे मैं सामने पाकर निगाहें फेर लेता हूँ, वही उसको नहीं भाता, वहीं मुझको नहीं भाता। जताता है वही अक़्सर सफ़र में होंसला अपना, कभी कोई मुसाफ़िर जब तलक ठोकर नहीं खाता। किनारे चाहते हैं रोज़ ही मझधार से मिलना, मग़र लहरों का पानी दूर इतना चल नहीं पाता। कभी मिलकर ये सूरज, चाँद तारे बात करते हैं, भला हमसे जमाने का अँधेरा हट नहीं पाता। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रच...
ताल्लुकात
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ताल्लुकात

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** किस रिवायात से ताल्लुकात रखते हो सुबूं से मय से पीने से ताल्लुकात रखते हो बे वक्त कोई किसी को दखल नहीं देता यारो हर बात हुजूर की पीने से ताल्लुकात रखते हो न जमाने का ख़ौफ़ न नज़र से लेना कोई फ़कत तुम पीने से ताल्लुकात रखते हो तुम होश मे हो या किसी मस्ती के आलम मे करीब हे कोई पीने से ताल्लुकात रखते हो उन्हे हमें गिराने की ज़िद हे तो घूंघट उठा दूं शिकस्त-ए-मोहन पीने से ताल्लुकात रखते हो शब्दार्थ - रिवायात - घराना, खानदान सुबूं - जाम परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक म...
जिगर के ख़ून
ग़ज़ल

जिगर के ख़ून

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ग़ज़ल - १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ अरकान- मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन जिगर के ख़ून से लिखना वही तहरीर बनती है। इन्हीं कागज़ के टुकड़ों पर नई तक़दीर बनती है।। ग़ज़ल इतनी कही फिर भी न समझा हम भी शायर हैं। मेरी भी ज़िंदगी गुमनाम इक तस्वीर बनती है।। किसी को जीते जी शोहरत किसी को मरने पर मिलती। कहीं ग़ालिब बनी किस्मत कहीं ये मीर बनती है।। तुम्हारी सोच कैसे इतनी छोटी हो गई यारों। हमारे नर्म लहजे से भी तुमको पीर बनती है।। 'निज़ाम' अपनी क़लम रखकर दुबारा क्यों उठाई है। बुढ़ापे में बता राजू कहीं जागीर बनती है।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो ...
चल चल रे मुसाफ़िर
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चल चल रे मुसाफ़िर

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ग़ज़ल - २२१ १२२२ २२१ १२२२ अरकान- मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन चल चल रे मुसाफ़िर चल है मौत यहाँ हर पल मालूम किसी को क्या आए की न आए कल भूखा ही वो सो जाए दिन भर जो चलाए हल सोया है जो कांटों में उठता वही अपने बल वो दिल भी कोई दिल है जिस दिल में न हो हलचल ढकते हैं बराबर वो टिकता ही नहीं आँचल इतरा न जवानी पर ये जाएगी इक दिन ढल विश्वास किया जिसपे उसने ही लिया है छल रोशन तो हुई राहें घर बार गया जब जल कहते हैं सभी मुझको तुम तो न कहो पागल जो ताज को ठुकरा कर सच लिखता कलम के बल शायर वही अच्छा है जिसका नहीं कोई दल करनी का 'निज़ाम' अपनी मिलना है सभी को फल अब ढूंढ रहे हो हल जब बीत गए सब पल परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अप...
कोई आता न ही जाता जहाँ पर
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कोई आता न ही जाता जहाँ पर

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** कोई आता न ही जाता जहाँ पर। करेंगे हम भी क्या जाकर वहाँ पर। बिछड़कर साथ जो उसके चला था, हमारी है नज़र उस कारवाँ पर। सुबह वो चाँद ख़ुद से पूछता है, अकेला रह गया फिर आसमाँ पर। वो बातें आप में देखी तो फिर से, भरोसा आ गया उस दास्ताँ पर। गुजरता है कभी जो दिल से होकर, रहा करता है वो अपनी जुबाँ पर। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प...
दिल बेचारा
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दिल बेचारा

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** हर किसी का दिल कभी न कभी दुःखता है, मेरी एक आखिरी पहचान है ये "दिल बेचारा"। हर कोई अपने दिल को तसल्ली देना चाहता है, पर मानने को तैयार नहीं है ये "दिल बेचारा"। आपकी आँखों में आँसू तो हर कोई दे सकता है, पर आपके आँसुओं को पीना चाहता है ये "दिल बेचारा"। जब-जब याद आएगी तुम्हें अपने इस खास बन्दे की, तब-तब तुम्हें रुला देगा ये "दिल बेचारा"। मैं इस दुनिया में रहूँ या न रहूँ पर, मेरी कमी का एहसास कराएगा ये "दिल बेचारा"। आपका भी है दिल बेचारा, मेरा भी है दिल बेचारा, दर्द से भरे मन को समझाएगा ये "दिल बेचारा"। मैंने तो अपनी ज़िन्दगी जी लिया दोस्तों, तुम्हारी ज़िन्दगी के साथ चलेगा ये "दिल बेचारा"। जब मेरी कमी का एहसास तुम्हें होगा, फिर से मेरी याद तुम्हें दिलाएगा ये "दिल बेचारा"। सब कुछ सह लेना जीवन में हार कभी मत मानना, साज़िशें...
निगाहे इश्क़ में
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निगाहे इश्क़ में

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ अरकान- मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन कैसी निगाहे इश्क़ में तासीर हो गई। जिस पर पड़ी नज़र तेरी तस्वीर हो गई।। निकला न ख़ून जिस्म से घायल हुआ हुँ यूँ। क़ातिल नज़र थी ऐसी जो शमशीर हो गई।। बाहों मे बंध के हो गया क़ैदी किसी का मैं। माला गले की पांव में ज़ंजीर हो गई।। घर में बचा है कुछ न जरूरत है कुछ मुझे। दीवानगी मेरी मेरी जागीर हो गई।। कल तक सभी थे साथी जहाँ में "निज़ाम" के। तन्हा हूँ आज कैसी ये तक़दीर हो गई।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्...
इन्तजार
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इन्तजार

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** इन्तजार में तेरा आशियाँ बनाती रही दरवाजे पर यूँ बंदनवार लगाती रही लौट ही आयेगा दिल की जमी पर खुद को झूठी दिलासा दिलाती रही सूरत यार की दिल में सजा रखी है अपनी चाहत शिद्दत से निभाती रही इस बात का यकीन है तू नहीं मेरा तेरा ही नाम की मेंहदी रचाती रही मुहब्बत का अहसास ऐसे जताया जमी पर ही जन्नत दिखाती रही गुम हुई हूँ इस तरह विरानियो में दुनिया से खुद को ही छुपाती रही तुझे इल्म नहीं है मेरी मुहब्बत का तेरे अश्क़ मेरी आँखों से बहाती रही खुद में ही खुदा को पा लिया है "मधु" पत्थरों से ये झूठा रिश्ता निभाती रही परिचय :-  मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा स...
चला जाऊँगा
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चला जाऊँगा

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** रहकर तुम्हारी यादों में कुछ दिन और फिर मैं अपनी मंजिल की ओर चला जाऊँगा। क्यूँ रो रहे हो मेरे ख़ातिर ऐ दुनिया वालों कुछ दिन बाद तुम्हारी यादों से चला जाऊँगा। ये दुनिया इन्सान को इन्सान नहीं समझती इन्सानियत से थककर मैं अब चला जाऊँगा। ये दुनिया क़ाबिलियत को क़ाबिल नहीं समझती क़ाबिलियत को ज़मीं पर रखकर मैं चला जाऊँगा। लोग तारीफ़ की ही तारीफ़ करना चाहते हैं ख़ुद की तारीफ़ सुनने यमलोक चला जाऊँगा। दुनिया ये मोहब्बत को मोहब्बत नहीं देती मोहब्बत पाने माँ की गोद में चला जाऊँगा। क्या है ख़ुदा और क्या है उसकी ख़ुदाई देखने सब उसके पास चला जाऊँगा। जब - जब सताएगी मुझे माँ की याद झट से मैं उसके पास चला जाऊँगा। रहकर तुम्हारी यादों में कुछ दिन और फिर मैं अपनी मंजिल की ओर चला जाऊँगा। परिचय :- आदर्श उपाध्याय निवासी : भवानीपुर उमरी, अं...
गये उनको ज़माना हो गया
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गये उनको ज़माना हो गया

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. गये उनको ज़माना हो गया है। ये तन्हा आशियाना हो गया है। ये आँखे देखती है उस तरफ़ ही, जहाँ उनका ठिकाना होगया है। उसे हम आज तक ओढ़े हुए हैं, जो रिश्ता अब पुराना हो गया है। जो पहले सब हमारी ओर से था, वो अब उनका बहाना हो गया है। वहाँ भी रोशनी कम हो चली है, यहाँ भी टिमटिमाना हो गया है। यूँ चहरे पर ख़ुशी को आज़माना, हमारा मुस्कुराना हो गया है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय ए...
सर उठाकर वो चला
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सर उठाकर वो चला

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** सर उठाकर वो चला जो वक्त के सांचे ढला है, और जो उठ उठ गिरा वो तो कोई बावला है। आज के इस दौर में, वह शख्स कहलाता भला है, मयकदे से लौट कर जो दो कदम सीधा चला है। किस ग़ुरूर में हैं हुज़ूर, क्या इतना भी नहीं जानते जो भी था उरूज़ पर वह एक ना इक दिन ढला है। गुरबत-ओ-अफलास में क्या मुस्कुराना जुर्म था, शहर में दंगे हुये तो पहला घर उसका जला है। जी भर जीने का मौका एक बार ही मिले विवेक, सफ-ए-मंज़र पे ज़िंदगी का नाम ही हर्फे बला है।   परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों ...
कोई भी शख़्स
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कोई भी शख़्स

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ अरकान- मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन कोई भी शख़्स हर मैदान में क़ाबिल नहीं होता। जो आक़िल है कभी वो मौत से ग़ाफ़िल नहीं होता।। उसे इंसान कहना भी है इक तौहीन इसाँ की। जो सुख दुख में भी अपनों के कभी शामिल नहीं होता।। कोई रंजो अलम होता न होता दर्द-ए-दिल यारो। सुकूँ से कटते दिन जीना यहाँ मुश्किल नहीं होता।। सुनाते थक गया हूँ दास्तान-ए-ग़म ज़माने को। किसी से कुछ बताने के लिए अब दिल नहीं होता।। है नाशुक्री वफ़ा के बदले में कुछ चाहना यारो। वफ़ा हासिल है ख़ुद इससे बड़ा हासिल नहीं होता।। ये है बहर-ए-ग़म-ए-हस्ती इसी में डूबना होगा। यही साहिल है इसमें दूसरा साहिल नहीं होता।। लुटाते हैं मता-ए-जाँ भी राह-ए हक़ मे दिल वाले। जमा करता वो धन दुनिया में जो आक़िल नहीं होता।। मशक्कत के बिना हमने तो कुछ मिलते न...
मैं क्या करुँगा
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मैं क्या करुँगा

आदर्श उपाध्याय अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश ******************** अपने दिल की तक़लीफ़ों को मैं ही जानता हूँ इसे दूसरों से बताकर मैं क्या करुँगा। ख़ुद अपने को सिमट-सिमट हर रोज जी रहा हूँ किसी और से बाँटकर मैं क्या करुँगा। मेरी रसके-कँवर ने मेरा फोन तक नहीं उठाया अब इस ज़िन्दगी को लेकर मैं क्या करुँगा। तुमने बिन सोचे कर लिया सगाई किसी और से अब तुम्हारे बिना जीकर मैं क्या करुँगा। हर कोई कर रहा है मुझे दफ़नाने की साज़िश घर में कैद होकर मैं क्या करुँगा। अपने ही लोगों ने मुझे दे दिया है धोखा दोस्ती की भूल में जीकर मैं क्या करुँगा। मैं तो चाहता हूँ हर किसी के होठों पर मुस्कान हो पर ख़ुद रो-रोकर मैं क्या करुँगा। खुश रहना ऐ शातिरों अब मै जा रहा हूँ इससे ज़्यादा तुम्हें दुःखी करके मैं क्या करुँगा। माफ़ करना दोस्तों मैं जा रहा हूँ तुम्हें छोड़कर तुम्हारे साथ रहकर ही अब मैं क्या करुँगा। अपने...
रस्ता ठहरा-ठहरा क्यों है
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रस्ता ठहरा-ठहरा क्यों है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. रस्ता ठहरा-ठहरा क्यों है। घर के बाहर पहरा क्यों है। सोच रही हैं आँखें भारी, रात बिना तम गहरा क्यों है। सबके मुश्किल हालातों में, उनका ख़ाब सुनहरा क्यों है। इंसानों की तो हद न कोई, इंसा हद पर ठहरा क्यों है। तन, मन, धन वालों का जमघट, लगता आख़िर सहरा क्यों है। आमजनों की सुनवाई में, मुंसिफ़ इतना बहरा क्यों है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@...
महिमा मंडन
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महिमा मंडन

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** महिमा मंडन की चाहत में रोज़ हो रहा खून उजड़ रही रिश्तों की बगिया जीवन होता चून आशक्ति ने बदल दिया है रिश्तों का संसार प्रेम समर्पण बीती बातें स्वार्थ का बस अम्बार हम जो कह दें ब्रह्म वाक्य है यही आज का दौर नारद मोह से ग्रसित ज़माना नही सोचना और अहंकार प्रतिकार का ऐसा चढ़ा हुआ है भूत वाह वाह जो नहीं करेगा होगा वही अछूत रिश्ते भी अब चक्रव्यूह हैं संभल के करो प्रवेश जीना मुश्किल हो जाता है मिले अनंत कलेश स्वहित साधन हुई साधना यही आज का खेल तुच्छ स्वार्थ के लिए हो रहा दुश्मन से भी मेल मित्र बनाने से पहले खूब लीजिए ठोंक बजाय साहिल मान रहे हैं जिसको कहीं मुकर न जाय परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पु...
सवाल क्यूं हैं
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सवाल क्यूं हैं

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गर हैं तलाश-ए-वजुद तो, इतना बवाल क्यूं हैं, एक सांस ही तो ली हैं, हजार सवाल क्यूं हैं... हैं हसरत-ए-परवाज और हौसले बुलंद भी, जब आँधिया भी साथ तो, गगन गेरो सा क्यूं हैं... हो मुबारक-ए-अजान औ सज़दे नबी के तुम्हें, हैं ख़ुदाई इश्क़ मेरा, जहांन को शिक़वे क्यूं हैं... दौर-ए-ज़ोर-ए-आज़माईश, ख़ुदी से हैं "निर्मल", हैं हवा भी सँग लौ फिर, ख़ौफ-ए-स्याह क्यूं हैं... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, ...
तूने जो दिया ज़ख्म
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तूने जो दिया ज़ख्म

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** तूने जो दिया ज़ख्म तो नासूर बन गया। धोखा और दिल तोड़ना दस्तूर बन गया। मुझको तू दिखाती रही मजबूरियां सभी...२ मैं भी उन्ही को देखकर मजबूर बन गया। तूने जो दिया ज़ख्म तो नासूर बन गया। बनते हो क्यों शरीफ गुनहगार हो तुम्ही...२ जो दिखाया आईना तो ये कसूर बन गया। तूने जो दिया ज़ख्म तो नासूर बन गया। दुनिया की चमक तुमको मुबारक हो मतलबी...२ तुमको सनम बता के मैं मशहूर बन गया। तूने जो दिया ज़ख्म तो नासूर बन गया। परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं...
चराग़ घी के
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चराग़ घी के

प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" विदिशा म.प्र. ******************** रौशन चराग़ घी के। हों घर में हम सभी के हाथों का बढ़ना, अच्छा ! लेकिन हों, दोस्ती के। हैं मोतियों से मंहगे, हों अश्क गर खुशी के। जीना करेंगे मुश्किल, कुछ काम आदमी के। उन का भी कोई होगा, जब "प्रेम" हैं, सभी के। . परिचय :-  प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में कविता, कहानी, व्यंग्य व बुंदेली ग़ज़लो...