ये मजबूरी हमारी है
शरद जोशी "शलभ"
धार (म.प्र.)
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ये मजबूरी हमारी है, छुपाकर रख नहीं सकते
चिरागों को हवाओ से, बचाकर रख नहीं सकते
हज़ारों दर्द देता है, उसी से प्यार भी तो है
निगाहों से उसे पलभर हटाकर रख नहीं सकते
हमे ख़्वाहिश फ़लक की है, वहाँ भी देखना होगा
हमेशा सामने ये सर, झुकाकर रख नहीं सकते
अभी तक जो भी चाहा है, उसे पाकर रहे हैं हम
ये बाहों को हमेशा यूं उठाकर रख नहीं सकते
हक़ीक़त में अगर तू आ सके तो आ घड़ी भर को
तेरी तस्वीर ही दिल से लगाकर रख नहीं सकते
ये पानी और ये है आग संगम हो तो कैसा हो
ग़म-ए-दिल को खुशी के संग मिलाकर रख नहीं सकते
"शलभ" मालूम है दुनिया तबाह हो जाएगी अपनी
ये सोए दर्द को पलभर जगा कर रख नहीं सकते
परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं।
विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल।
प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वा...