Saturday, November 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

ग़ज़ल

कही हमनें ज़ुबानी और थी
ग़ज़ल

कही हमनें ज़ुबानी और थी

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** कही हमनें ज़ुबानी और थी। हक़ीक़त में कहानी और थी। सभी ने बात पूछी और पर, हमें अपनी सुनानी और थी। परिंदों की उड़ानों में वहाँ, हवाओं की रवानी और थी। किनारें जा मिले मझधार में, नदी की वो जवानी और थी। कमाई,नाम ,शोहरत,दाम से, हमें इज्ज़त कमानीऔर थी। यहाँ आबाद थे सब शहर पर, ख़ुशी की राजधानी और थी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर...
उम्र को हो गए हासिल हम भी
ग़ज़ल

उम्र को हो गए हासिल हम भी

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** उम्र को हो गए हासिल हम भी। आप के हो गए क़ाबिल हम भी। देखकर आप हैं मदहोश हमें, हुस्न से हो गए क़ातिल हम भी। वो जिसे राह पर छोड़ा हमने, पा गए आज वो मंजिल हम भी। पास आई ये मयकशी कैसी, बिन पिये हो गए ग़ाफ़िल हम भी। रोज दरिया के रहे साथ सफ़र, इसलिए हो गए साहिल हम भी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
लोग जब सिर पे बिठाने लग गए
ग़ज़ल

लोग जब सिर पे बिठाने लग गए

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** लोग जब सिर पे बिठाने लग गए। भावनाएं हम भुनाने लग गए।। **** बैठ जब कमजोर कंधों पर गए। रोज ही उत्सव मनाने लग गए।। ***** जो हमें बर्बाद करने के लिए। आए थे वो सब ठिकाने लग गए।। ***** जो छिड़कते थे नमक वे लोग भी। घांव पर मरहम लगाने लग गए।। ***** बैठ चरणों में गए, काबिल हुए। लोग वो ईनाम पाने लग गए।। ****** नेकियाँ कर वो छपे अखबार में। लोग कुछ नजरें झुकाने लग गए।। ***** झूठ अपना सच बना पाए न हम। अब तलक कितने बहाने लग गए।। ***** गांठ रिश्तो में पड़ी "अनंत "ऐसी। खुल न पाई है जमाने लग गए।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि ...
कहने की ही शान हुआ हूँ
ग़ज़ल

कहने की ही शान हुआ हूँ

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** कहने की ही शान हुआ हूँ। मैं कितना नादान हुआ हूँ। रखते-रखते खैर-ख़बर सब, ख़ुद से ही अंजान हुआ हूँ। सोचे लेकिन मिल ना पाये, उन सपनों की खान हुआ हूँ। सुनकर बातें सब अंदर की, दीवारों के कान हुआ हूँ। कर के थोड़ी किस्सागोई, मैं अपनी पहचान हुआ हूँ। नींदों के संग ख़्वाब नहीं हैं, सुनकर मैं हैरान हुआ हूँ। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
डूबते सूरज की रंगत
ग़ज़ल

डूबते सूरज की रंगत

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** डूबते सूरज की रंगत फिर से बहलाने लगी है, पास आकर फिर उदासी ज़ख्म सहलाने लगी है। जाने किनकी और किन गुस्ताखियों का कर्ज़ है, मुस्कुराती ज़िंदगी सब आज कुम्हलाने लगी है। यूं तो हसीं ख्वाब के गुंचे खिले हैं बाग में, देखता हूँ उन सभी की शाम ढल जाने लगी है। मुट्ठियों में तुम हवा को कैद करते रह गये, रूह की ताकत के आगे मौत शरमाने लगी है। फासले का फलसफा तुम मान भी जाओ ‘विवेक’, रफ्ता-रफ्ता ज़िंदगी अब राह पर आने लगी है। परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न स...
करते करते क़िस्सागोई
ग़ज़ल

करते करते क़िस्सागोई

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** करते करते क़िस्सागोई। हमनें सच्ची बात डुबोई। मन ने धीरज रख्खा लेक़िन, आँख हमारी झर-झर रोई। जाग रहे थे हम ही तन्हा, जब थी सारी दुनियाँ सोई। आज वही हम काट रहें हैं, फ़सल वही जो हमनें बोई। भूल गए अब वो ही हमको, हमने जिनकी याद सँजोई। कान सुनी या आँखों देखी, बात हमारी माने कोई। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं...
जीवन साथी
ग़ज़ल

जीवन साथी

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** सब का तन जीवन साथी है, सब का मन जीवन साथी है। होता परिवर्तन पल-पल पर, परिवर्तन जीवन साथी है।। जिस पर खेला बचपन मेरा, सर्दी गर्मी बरसात सही। ना भूला हूँ उस आंगन को, वो आंगन जीवन साथी है।। पानी से दूर रहा कब मैं, पानी है मेरे जीवन में। जल जीवन है सब देख रहे, जल का धन जीवन साथी है।। सांसो की सारी माया है, आती जाती हर सांस कहे। वायू का जीवन मैं होता, जो नर्तन जीवन साथी है।। गर्मी जीवन का लक्षण है, ठंडा होना मर जाना है। अग्नि का दामन छूटा कब, ये दामन जीवन साथी है।। है गगन नहीं कुछ भी लेकिन, ये अंश मगर मानव का है। संतुलित रखें जो अंशों को, वो पावन जीवन साथी है।। हम सफर रहा वो बनकर के, पग-पग पर साथ दिया मेरा। वो भी जीवन साथी, उसका, अपनापन जीवन साथी है।। परिचय :- अख्तर अली श...
कभी तुम पाँव चलना सीख लोगे
ग़ज़ल

कभी तुम पाँव चलना सीख लोगे

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** कभी तुम पाँव चलना सीख लोगे। गिरोगे तो सम्भलना सीख लोगे। मिलेगा हौसला इन गल्तियों से, घिरोगे तो निकलना सीख लोगे। जुबाँ तक आई कोई बात वैसी, कहोगे तो बदलना सीख लोगे। कभी पानी से थोड़ा बर्फ़ में तुम, जमोगे तो पिघलना सीख लोगे। चकोरों की शिकायत चाँदनी से, सुनोगे तो मचलना सीख लोगे। जो संगेमरमरी पर हाथ अपना, रखोगे तो फिसलना सीख लोगे। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां...
जिंदगी कटती रहे।
ग़ज़ल

जिंदगी कटती रहे।

धीरेन्द्र कुमार जोशी कोदरिया, महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** इस तरह यह जिंदगी कटती रहे। सुख बढ़ें, दुश्वारियां घटती रहें। हम बढ़ें, तुम भी बढ़ो तो बात हो। दूरियां दिल की यूं ही पटती रहें। खुशबुओं से प्यार की महके जहां, बेल उल्फत की सदा फलती रहे। होंठ चुप हों, नयन से बातें करो, जब चली है बात तो चलती रहे। दुश्मनी के दायरों को कम करो, ये बुराई क्यों यूं ही बढ़ती रहे। जो पेड़ गिरते हैं, नए फिर रोपिए, जोत जीवन की सदा जलती रहे। जी तेरे अंदाज में अपनी खुशी से, बात दुनिया को खले, खलती रहे। परिचय :- धीरेन्द्र कुमार जोशी जन्मतिथि ~ १५/०७/१९६२ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म.प्र.) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम. एससी.एम. एड. कार्यक्षेत्र ~ व्याख्याता सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा, स...
आपसे जब हुई दूरियाँ
ग़ज़ल

आपसे जब हुई दूरियाँ

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** आपसे जब हुई दूरियाँ। हो गई कितनी मजबूरियाँ। हमने उतने बढ़ाये क़दम, मिल गई जितनी मंजूरियाँ। क्यों सभी ने मना कर दिया, आज लेने से दस्तूरियाँ। थे जहाँ फ़िर वहाँ आ गये, पाँवों में बंध गई धूरियाँ। हम भले हाँ कहें, भले ना कहें, पाल ली हमनें मगरूरियाँ। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा ...
जब मैं हुई बीमार
ग़ज़ल

जब मैं हुई बीमार

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ कभी जब मैं हुई बीमार बेटे काम आते हैं न होना माँ परेशाँ तुम यही कहकर लुभाते हैं बिना मेरे कहाँ ये सब कहीं आराम पाते हैं नहीं होते मगर नाराज़ चाहे हाँफ़ जाते हैं बनाते रोटियाँ बेडौल टेढ़ी या कभी मोटी न रहने दें मुझे भूखा क्षुधा मेरी मिटाते हैं निहारूँ जब कभी भी मैं बड़ा ही प्यार आता है निवाले तोड़कर मुझको वे ही खाना खिलाते हैं दवा खाओ चलो मम्मी सदा आवाज़ देकर वे समय अब हो गया हर पल यही मुझको बताते हैं न ख़ुद का होश है उनको न चिंता है उन्हें अपनी लगें चलने मेरी मम्मी इसी में दिन बिताते हैं ज़रा सी खाँस दूँ तो वे चले आते तुरत दौड़े कहो क्या हो गया मम्मी बड़ी चिंता जताते हैं तरस जाती है ये 'रजनी' बिठा लूँ गोद में उनको शिफ़ा मिल जाए अब मुझको यही बेटे मनाते हैं परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रि...
तबीयत उदास है
ग़ज़ल

तबीयत उदास है

मुकेश शर्मा कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) ******************** दूर हर लम्हा मुझसे मेरी होशो-हवास है, आ भी जा बहारे-ज़िंदगी तबीयत उदास है। बहार है अपनी शबाब पे, हर मंज़र हसीं है, मगर आता हसरतों को कुछ भी नहीं रास है। दर्दों में ही सिमट कर रह गयी है ज़िन्दगी मेरी, सिर्फ़ ग़मों का जहाँ ही आजकल मेरे पास है। उदासियों के दौर में सुकून नज़र आता नहीं है, एक मुद्दत से ज़हन बे-सुकून है, बदहवास है। भूले से भी नहीं आती हैं अब बहारें दर पे मेरे, राब्ता वीरानियों से ही आजकल मेरा ख़ास है। परिचय :- मुकेश शर्मा पिता : स्व. श्री रामदयाल शर्मा माता : श्रीमती किस्मती देवी जन्म तिथि : १५/९/१९९८ शैक्षिक योग्यता : स्नातक निवासी : ग्राम- डुमरी, पडरौना जनपद- कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
भूल गई थी सच्चाई ये
ग़ज़ल

भूल गई थी सच्चाई ये

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** भूल गई थी सच्चाई ये, वो अपनी नादानी से। मछली कैसे रह पाएगी, दूर, गई जो पानी से।। मानवता तो आभूषण है, मरने तक जो साथ रहे। मानव कैसे भुला सकेगा, मानवता मनमानी से।। तर्क जीत भी जाए लेकिन, सच तो हार नहीं सकता। ज्ञानी कब हारा है लोगों, दुनिया में अज्ञानी से।। नाहक, चुपड़ी रोटी खाए, हक जेलों में सिर पीटे। आंखें देख रही है मंजर, सारा ये हैरानी से।। नम होने की देर फकत है, मिट्टी है जरखेज बहुत। जल्दी ही चहकेगा गुलशन, बाहर आ वीरानी से।। माना जान है तुझमें लेकिन, है क्या जानवरों सा तू। कब तक दूर रखेगा खुदको, तू फितरत इंसानी से।। दूर करें क्यों "अनंत" उनको, रूहें जिनकी एक हुई। मर जाता है दूर हुआ तो, दीवाना, दीवानी से।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७...
अंगूर की ये बेटी
ग़ज़ल

अंगूर की ये बेटी

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************************** २२१ २१२२ २२१ २१२२ अरकान- मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन अंगूर की ये बेटी कितनी है ग़म कि मारी। रहती है क़ैद हरदम बोतल में ये बेचारी।। बेबस समझ के इसको जिसने भी चाहा छेड़ा। कितनों ने साथ इसके यूँ रात है गुजारी।। दर-दर भटक रही है सड़कों पे बिक रही है। है बदनसीब कितनी अंगूर की दुलारी।। गलियों से ये महल तक हर रात बनती दुल्हन। देखो नसीब इसका फिर भी रही कुंवारी।। ग़म हो या हो खुशी ये होती शरीक सब में। फिर भी इसे बुरी क्यों कहती है दुनिया सारी।। दिल टूटा जब किसी का इसने दिया सहारा। ग़म के मरीज़ों को है ये जान से भी प्यारी।। समझा न ग़म किसी ने देखो निज़ाम इसका। हँस-हँस के सह रही है हर ज़ुल्म ये बेचारी।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)...
मिलो तो तबीयत से
ग़ज़ल

मिलो तो तबीयत से

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** मिलो तो तबीयत से मिला करो। दिल खोल कर मुस्कराया करो।। कितने दिनों की है ये जिन्दगी। खुश होकर जिन्दगी जिया करो।। दिल से दिल मिला कर जीओ। मौज से जिन्दगी को जिया करो।। अपनों से जी भर मिला करो। हालचाल सबके पूछते रहा करो।। सदा प्रसन्नता से जिन्दगी जीओ। क्रोध से भी कोसों दूर रहा करो।। हम आपस में यूँ ही मिलते रहें। दुआ सबके लिए भी किया करो।। सुख-दुख का नाम ही है जिन्दगी। तालमेल से ही 'नाचीज' जिया करो।। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी र...
क्या नहीं है मुझमें
ग़ज़ल

क्या नहीं है मुझमें

विकास सोलंकी खगड़िया (बिहार) ******************** देखो क्या-क्या नहीं है मुझमें सब कुछ तुझसा नहीं है मुझमें। मिट्टी पानी वही आग हवा केवल आसमा नहीं है मुझमें। आती - जाती बहारें तो हैं कोई ठहरा नहीं है मुझमें। आईना देख के लगता है सब पहले सा नहीं है मुझमें। दुनिया से अब छुपाऊं क्या मैं कुछ भी ऐसा नहीं है मुझमें। इतना खाली हुआ सोलंकी कुछ आज बचा नहीं है मुझमें। परिचय :-विकास सोलंकी निवासी : खगड़िया (बिहार)) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करक...
अँधेरे में दिखते सितारे हमेशा
ग़ज़ल

अँधेरे में दिखते सितारे हमेशा

अब्दुल हमीद इदरीसी मीरपुर, कैण्ट, (कानपुर) ******************** ख़ुदा की रज़ा पर जो चलते नहीं हैं। कभी भाग्य उनके संवरते नहीं है। अँधेरे में दिखते सितारे हमेशा, उजाले में हरगिज़ निकलते नहीं हैं। उन्हीं को मिला करते नायाब मोती, किनारे किनारे जो चलते नहीं हैं। नहीं जीत सकते मुकम्मल वो बाज़ी, समर में जो पूरा उतरते नहीं हैं। नसीबों में आती नहीं हैं बहारें, समय के मुताबिक जो चलते नहीं हैं। उन्हें हर घड़ी रहता गिरने का खतरा, क़दम दर क़दम जो सम्भलते नहीं हैं। कोई मानता ही नहीं उनका कहना, खरे बात पर जो उतरते नहीं हैं। समय का जो उपयोग करते हैं अच्छा, कभी हाथ अपने वो मलते नहीं हैं। परिचय :- अब्दुल हमीद इदरीसी  निवास - मीरपुर, कैण्ट, (कानपुर) साहित्यिक नाम : हमीद कानपुरी घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
मैं ख़ुद से ही प्यार करूँ
ग़ज़ल

मैं ख़ुद से ही प्यार करूँ

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** मैं ख़ुद से ही प्यार करूँ। या उनसे व्यापार करूँ । जितनी साख कमाई है, उसको तारों-तार करूँ। सबकी नज़रें हैं मुझ पर, किससे आँखें चार करूँ। जीत किसी के हिस्से कर, अपने हक में हार करूँ। कहना है जो कहना है, कितना सोच विचार करूँ। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी ...
शर्त जीने की
ग़ज़ल

शर्त जीने की

सतपाल 'स्नेही' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** शर्त जीने की मुझे यूँ यार बतलाई गई ज़िंदगी की हर तमन्ना हो गई आई-गई वक़्त कम होना रहीं उसकी सदा मजबूरियाँ जब कभी मिलने मिरी लाचार तनहाई गई आजकल की ज़िंदगी से ख़ूब है बेहतर मियाँ ये बता कर मौत मेरे सामने लाई गई मैं नहीं समझा मगर वो भी कहाँ जाना मुझे कुछ न कुछ दोनों दिलों में ही कमी पाई गई दास्ताँ में जबकि दोनों का अहम किरदार था बारहा मेरी कहानी थी कि दुहराई गई आख़िरी वो ही हुआ जो इश्क़ में होता रहा बाद मरने के हमारी दास्ताँ गाई गई परिचय :- सतपाल 'स्नेही' पिताश्री : पंडित खजान सिंह माताश्री : श्रीमती परभी देवी जीवन साथी : श्रीमती सुनीता शर्मा जन्म तिथि : १५ अप्रेल,१९५४ जन्म स्थान : गाँव-ताजपुर,जिला-सोनीपत (हरियाणा) स्थाई निवास : बहादुरगढ़ (हरियाणा) शिक्षा : स्नातक + डी एम एल टी सम्प्रति : ...
हुस्न देखा तेरा
ग़ज़ल

हुस्न देखा तेरा

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** बहर - २१२ २१२ २१२ २१२ हुस्न देखा तेरा तो ठगा रह गया चाँद अपनी जगह पर खड़ा रह गया क़ह्र अँगड़ाइयाँ ख़ूब ढाती रहीं पास मेरे न कुछ भी बचा रह गया ज़ुल्फ़ तेरी घटा बन गई रात को दिल का आँगन यहाँ भीगता रह गया गिरह अनकही सी अधर ने कही बात जब आपको देखकर देखता रह गया कर रही आँख से जो इशारे सनम मैं तो तेरी अदा पर लुटा रह गया खिल रही है ये 'रजनी' सितारे लिए आसमां का भी दामन भरा रह गया परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindi...
माल पराया
ग़ज़ल

माल पराया

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** माल पराया खाने वाले, जो धन जोड़ रहे हत्यारे। कितने पागल हैं अपनी ही, किस्मत फोड़ रहे हत्यारे।। जैसे गीद्धों की बन आती, झपट रहे देखो ये हरसूं। अवसर खोज रहे अवसर में, कैसे दौड़ रहे हत्यारे।। कोरोना में जिंदा लाशों, के अंबार अस्पतालों में। मौका पाते ही ताकत से, खूब झंझोड़ रहे हत्यारे।। जिनका फर्ज रहा है आंसू, इस विपदा के वक्त में पोंछें। बेशर्मी से देखा वो ही, खून निचोड रहे हत्यारे।। हमदर्दी के पथ को थामे, लोग यहां कम ही दिखते हैं। दुनिया में जो डूब गए हैं, रिश्ते तोड़ रहे हत्यारे।। कैसे हैं नालायक वे जो, फूलों कांटो को ना जानें। कांटो पर ही चलने की जो, करते होड़ रहे हत्यारे।। सेवा का अवसर सम्मुख हैं, ऐसे जैसे घट पीयुष का। तज कर ऐसा अवसर लगता, घट वो फोड़ रहे हत्यारे।। पर...
जिंदगी का फलसफा
ग़ज़ल

जिंदगी का फलसफा

धीरेन्द्र कुमार जोशी कोदरिया, महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** जी ले इन लम्हों को, शाम ना हो जाए। ख्वाहिशों की सांसें तमाम ना हो जाएं। क्या हुआ वो जो, चिलमन में छुपे बैठे हैं? नजर मत हटा ,जब तक सलाम न हो जाए। खुद की कमजोरी की बेड़ियों को तोड़ दे, आदतों का तू कहीं गुलाम न हो जाए। सपनों को देखने का जुनू छोड़ना नहीं, हसरतों के पैर , कहीं जाम ना हो जाएं । भीड़ से अलग चल, बना अपनी पगडंडी, हर एक अदा जुदा रहे, आम ना हो जाए। कोशिशों में दम भर ,हार को भी जीत ले, जब तलक दुनिया में तेरा नाम न हो जाए। रुक मत, तू रुक मत, तू रुक मत "धीरज, जब तलक तेरा कोई मक़ाम ना हो जाए। परिचय :- धीरेन्द्र कुमार जोशी जन्मतिथि ~ १५/०७/१९६२ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म.प्र.) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम. एससी.एम. एड. कार्यक्षेत्र ~ व्याख्याता सामाजिक गतिवि...
हाथ में हाथ
ग़ज़ल

हाथ में हाथ

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** हाथ में हाथ का है सहारा मिला प्यार तेरा मुझे ख़ूब सारा मिला दर्द मेरे ज़ुदा हो गए हैं सभी जैसे डूबे को पल में किनारा मिला तू करे बेवफ़ाई या कोई सितम क्या कभी तुझको मैं ग़म से हारा मिला जो दग़ा तू करे ये भी अहसान है मान लो मैं मुक़द्दर का मारा मिला राज़ दिल में छुपाए ये पूनम खड़ी रात उसको भी जलता शरारा मिला परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र. के  hindirakshak.com पर रचना प्रकाशन के साथ ही कतिपय पत्रिकाओं में कुछ रचनाओं का प्रकाशन हुआ है सम्मान :- समूहों ...
श्मशानो में देह धधकती
ग़ज़ल

श्मशानो में देह धधकती

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** श्मशानो में देह धधकती, कुछ लालच में अटके हैं। दुनिया के बीहड़ में राही, वे ही पथ से भटके हैं।। जिन पे जिम्मेदारी सौंपी, दुनिया ने भगवान कहा। चोरी पर सीना जोरी है, देखो कैसे खटके हैं।। कुछ को राहत मिट्टी ने दी, कुछ के साथ किया ऐसा। इस दहरी से उस दहरी पे, ले जाकर के पटके हैं।। उम्मीदों का दामन जिस-जिस, ने भी छोड़ दिया हारे। घर के पंखों पर शव उनके, हमने देखा लटके हैं।। जिससे ताकत भू से पाई, ताकतवर वे पेड़ रहे। फूल उन्ही की शाखों पे तो, बाधाओं में चटके हैं।। सब कुछ देकर भी जो खुश हैं, मानवता के वाहक हैं। लोग यहां कुछ ऐसे ही तो, अलग सभी से हट के हैं।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : ...
जमीं पर फिर कहीं अब
ग़ज़ल

जमीं पर फिर कहीं अब

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** जमीं पर फिर कहीं अब आसमान उतरेगा। मुसीबत में कहीं वो मेहरबान उतरेगा। न कुछ कहना जरूरी, न कुछ सुनना जरूरी। दिलों के रास्ते वो बेजुबान उतरेगा। इबादत और दुआएँ, असर अपना करेगी, कहीं पर राम-यीशु, रेहमान उतरेगा। रहे महफ़ूज जिसमें, सभी हम लोग सारे, वो लेकर साथ अपने घर-मकान उतरेगा। फ़िकर उसको वहाँ है, यहाँ भर के सभी की, वो लेकर और थोड़ा इम्तिहान उतरेगा। दिया उसने कभी कुछ जो है अपना-हमारा, कहाँ हमसे कभी वो एहसान उतरेगा। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत...