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वफ़ा के नाम पे …
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वफ़ा के नाम पे …

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जिसने चराग़ दिल में वफ़ा का जला दिया ख़ुद को भी उसने दोस्तों इंसां बना दिया। घरबार जिसके प्यार में अपना लुटा दिया उस शख़्स ने ही बेवफा हमको बना दिया। जो मिल गए हैं ख़ाक में वो होंगे और ही हमने तो हौसलों को ही मंज़िल बना दिया। यह है रिहाई कैसी परों को ही काट कर सैयाद तूने पंछी हवा में उड़ा दिया। हंस हंस के ज़ख़्म खाता रहा जो सदा तेरे तूने ख़िताब उसको दगाबाज़ का दिया। 'निर्मल' समझ के अपना जिसे प्यार से मिले उसने वफ़ा के नाम पे धोका सदा दिया। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन ...
चंद्रमा की रोशनी में
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चंद्रमा की रोशनी में

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** २१२२ २१२२ २१२२ २१२ काफिया- 'आ' स्वर वाले शब्द रदीफ़- रुक जाएगी चंद्रमा की रोशनी में हर अमा रुक जाएगी शब भी ये सब देखने को बाख़ुदा रुक जाएगी इश्क़ में रुकते नहीं आशिक़ क़यामत तक यहाँ साथ साजन का मिले तो हर क़ज़ा रुक जाएगी ज़िंदगी का फ़लसफ़ा इतना ही है ये जान लो फ़ासले रिश्तों में हों तो हर दुआ रुक जाएगी ग़र करोगे बंदगी माँ चरणों की ईमान से तो यकीनन ज़िंदगी की हर बला रुक जाएगी है बहुत ही नेक यह फ़रमान इस सरकार का जो सफ़ाई से रहोगे तो वबा रुक जाएगी यदि सनातन सभ्यता की सीख पर तुम ध्यान दो फिर तो सारी पश्चिमी ये बद हवा रुक जाएगी कह रही 'रजनी' इसे तुम अब गिरह में बाँध लो ईश के आगे झुकोगे तो सज़ा रुक जाएगी परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्त...
दिल तोड़ कर मजे़ से
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दिल तोड़ कर मजे़ से

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिल तोड़ कर मजे़ से, लो मुस्कुरा रहे हैं घर को गिरा के मेरा, अपना बसा रहे हैं सारे हसीन गुल थे, जो मेरे  गुलसिताँ के बे-नूर चमन करके, दुनियां महका रहे हैं पूछा जो हाल मैंने, तब सच छुपा गये वे दिल को जलाने वाले, लो मुँह बना रहे हैं ऐसा ये इश्क़ होगा, सोचा नहीं कभी भी दिल में छुपाये ख़ंजर, मुझको डरा रहे हैं मंजिल मेरी तुम्हीं हो, जो बात बोलते थे दामन छुडा़ के मुझसे, अब दूर जा रहे हैं करते थे प्यार खु़दही, मर्जी मेरी कहाँ थी दिल को लगाया क्यूँ था, बैठे जता रहे हैं ताजे़ हैं ज़ख्म 'कोमल' कैसे भरेंगे सोंचो गै़रों में खुश रहे वे, नमकें छिड़का रहे हैं परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से ले...
हम यहाँ परवाज़ ढूँढ़ेंगे
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हम यहाँ परवाज़ ढूँढ़ेंगे

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ सुनहरी शोख़ियों की हम यहाँ परवाज़ ढूँढ़ेंगे तुम्हें जाने-जिगर दे दे के हम आवाज़ ढूँढ़ेंगे दिए हमने जलाए हैं किसी के इश्क़ में अक़्सर उन्हीं में रोशनी का हम सनम आग़ाज़ ढूँढेंगे ये नादाँ दिल कभी सुनता नहीं मेरी सदा अब तो मेरे दिलदार तुममें ही सदा हमराज़ ढूँढ़ेंगे चले आओ सनम तुम अब हमारे पास होली पर कि रँगने का तुम्हें बेहद नया अंदाज़ ढूँढ़ेंगे तुम्हारे इश्क़ में कितनी हुई 'रजनी' ये दीवानी बताने को तुम्हें हम यह नये अल्फ़ाज़ ढूँढ़ेंगे परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहण...
मन में जो पलता रहता है।
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मन में जो पलता रहता है।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** मन में जो पलता रहता है। चेहरे पर चलता रहता है। मन को जो भी रास न आया, आँखों को खलता रहता है। मिट्टी से रिश्ता है उसका, अक़्सर जो फलता रहता है। चाँद, सितारे रात सजायें, सूरज जब ढलता रहता है। हो किस्मत का साथ नहीं तो, मौका हर टलता रहता है । हाल-वक़्त पर चूका फिर वो, हाथों को मलता रहता है । परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच प...
कोई पत्थर दिल अपना
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कोई पत्थर दिल अपना

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** कोई पत्थर दिल अपना कैसे बन सकता है हे नही अपना सपना कैसे बन सकता है देखा नही हे अभी तक जिसको हमने भी यारो वो मेरा ही दीवाना कैसे बन सकता है गुन गुनाया नहीं कभी लफ़्जो मे हमने उसे महफ़िल-ए-मेरी तराना कैसे बन सकता है बीता नही हे यारों अभी तक कुछ भी साथ यारो मेरा वो अफसाना कैसे बन सकता है अभी तो ऑखें हमने खोली है उनके लिये वो ओर का मयखाना कैसे बन सकता है दूरियाॅ हे नहीं जिससे मुलाकात होने वाली किसी ओर का जमाना कैसे बन सकता है घबरा रहा हूॅ मोहन सब कुछ सोच कर मै मुहब्बत का केसाआशियाना बन सकता है परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह...
रिश्ते जितने पानी जैसे
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रिश्ते जितने पानी जैसे

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** रिश्ते जितने पानी जैसे। उतने ही हैरानी जैसे । जब तक चलते हैं अच्छे से, लगते सब गुड़-धानी जैसे । कुछ सबकी मर्ज़ी पर रहते, कुछ अपनी मनमानी जैसे। भोलापन कुछ में बच्चों सा, कुछ है सख़्त जवानी जैसे। हाव-भाव, रस, राग तरन्नुम, ग़ज़लें, गीत, कहानी जैसे । तन की मुश्किल से हैं कोई, कुछ मन की आसानी जैसे। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
हवाओं से बचाया जाएगा
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हवाओं से बचाया जाएगा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** हवाओं से बचाया जाएगा। जहाँ दीपक जलाया जाएगा। न होगा चाँद जब आसमाँ पर, सितारों को जगाया जाएगा। कभी इस बाग की सूरत बदलने, बहारों को मनाया जाएगा। जिसे है बात पर अपनी भरोसा, उसे ही आज़माया जाएगा। जहाँ दिख जाएगी मंजिल हमारी, सफ़र उस हद बढ़ाया जाएगा। वहाँ इस गीत की तारीफ़ होगी, जहाँ ये गुनगुनाया जाएगा। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
दिल लुभाने के लिए
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दिल लुभाने के लिए

संगीता केसवानी **************** रंग कितने हैं जहाँ में दिल लुभाने के लिए। इश्क़ काफी है मगर किस्मत सजाने के लिए।। प्यार, उल्फ़त और चाहत ये ख़ुदा का नूर है। आसरा काफी है उसका प्यार पाने के लिए।। ज़िन्दगी बेबस खड़ी है उस हसीं दीदार को। मौत बैठी हँस रही है लौ बुझाने के लिए ।। ज़िन्दगी बेशक लकीरों का ही चाहे खेल हो। हौसला तनकर खड़ा मंज़िल को पाने के लिए।। ज़िन्दगी चाहे लकीरों का ही क्यों न खेल हो। हौसला तनकर खड़ा मंज़िल को पाने के लिए। झूठ के आगोश में है क़ैद अब तो हर बशर। सच तो छुपता फिर रहा अस्मत बचाने के लिए।। आज क्यों "अल्फ़ज़" मेरे स्याह होते जा रहे हैं। हर सफ़ा बेवस खड़ा मातम मनाने के लिए।। परिचय :- संगीता केसवानी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
कैसे लम्हा-पल निकलेगा
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कैसे लम्हा-पल निकलेगा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** सुनकर जिससे हल निकलेगा। फ़िकरा वो ही चल निकलेगा। जब भीतर की गाँठ खुलेगी, तब बाहर का सल निकलेगा। आज बिताया हमनें जैसा, वैसा अपना कल निकलेगा। टकसालें जो सूरत देगी, सिक्का वैसा ढल निकलेगा। खून-पसीना ,काम के ज़रिए, अक़्सर मीठा फ़ल निकलेगा। रस्सी आख़िर जल जाएगी, फिर भी उसमें बल निकलेगा। भूली-बिसरी यादों के संग, कैसे लम्हा-पल निकलेगा। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहान...
सच्ची बातें
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सच्ची बातें

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** सच्ची बातें जितनी कड़वी लगती है। माने उतने अंदर मीठे रखती है। आहट उसकी मिल जाती है आने की, आँखें अक़्सर जिसकी राहें तकती है। लाख जतन करते हैं मंजिल मिल जाएं, लेक़िन क़िस्मत बनते-बनते बनती है। नींद से पहले घेर लिया जब यादों ने, रात हमारी सोचे- जागे कटती है। जब रहता है पीछे सूरज या चन्दा, तब परछाई आगे- आगे चलती है। कह लेते हैं जो कहता है मन अपना, दुनियाँ चाहें सुनकर-पढ़कर हँसती है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना...
दिल आजकल कहीँ न ये लगता तिरे बग़ैर।
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दिल आजकल कहीँ न ये लगता तिरे बग़ैर।

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** दिल आजकल कहीँ न ये लगता तिरे बग़ैर। आती नहीं है रास ये दुनिया तिरे बग़ैर।। तू तो गया है अपने सफ़र पर कहीं मगर। तबसे ही दिल मिरा नहीं धड़का तेरे बग़ैर।। हर लम्हा मुन्तज़िर है मिरा तेरे वास्ते। लगता नहीं है मुझको तो अच्छा तिरे बग़ैर।। तेरे बिना तो ज़िन्दगी होगी नहीं बसर। मरना मुहाल हो गया मेरा तेरे बग़ैर।। तू क्या गया कि टूट गई है मिरी उमीद। हर सिम्त हो गया है अँधेरा तेरे बग़ैर।। खाने को दौड़ती है ज़माने की हर ख़ुशी। किस-किस तरह से दिल को सँभाला तिरे बग़ैर।। अब तो बहार में भी ख़िज़ा की चुभन लगे। लगता 'शलभ' बसन्त भी फीका तिरे बग़ैर।। परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्...
यादें अपने साथ हमारी रखते हैं।
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यादें अपने साथ हमारी रखते हैं।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** यादें अपने साथ हमारी रखते हैं। लोग जो सबसे दुनियादारी रखते हैं। रखते हैं वो पूछ-परख जज़्बातों की, खुशियों में जो ग़म से यारी रखतें हैं । हाथ हमेशा सिर पर रहता है उनका, जो अपनों की जिम्मेदारी रखतें हैं। दूर है सूरज-चाँद यहाँ सबसे कितने, फिरभी रोशन दुनियाँ सारी रखते हैं। खेल यहाँ जब हम-आपस में होता है, वो अपनों से बाज़ी हारी रखते हैं । परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
रहनुमा
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रहनुमा

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** हर रोज़ ईद का त्यौहार होता है। जब मुझे आपका दीदार होता है।। आपके नूर की रोशनी से हरदम। रोशन ये फ़लक हर बार होता है।। मुश्क़िलें हो जाती हैं आसां मेरी। दुआओं से बेड़ा पार होता है।। पड़ते हैं जब आपके मुबारक क़दम। बियाबां भी मुनव्वर गुलज़ार होता है।। मेरे अश्कों की तड़प देखकर। अब समंदर भी रेगज़ार होता है।। वो मेरा रहनुमा है "काज़ी" । उससे ही मुझे प्यार होता है।। परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर" निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
उनकी रहती आँख तनी
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उनकी रहती आँख तनी

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** उनकी रहती आँख तनी। जिनकी हमसे है बिगड़ी। होती अक़्सर आपस में, बातों की रस्सा-कस्सी। सुनकर झूठी लगती है, बातें सब चिकनी-चुपड़ी। सम्बन्धों पर भारी है, जीवन की अफ़रा-तफ़री। चेहरा जतला देता है, अय्यारी सब भीतर की। आगे - पीछे चलती है, परछाई सबकी, अपनी। चाहे थोड़ी लिखता हूँ, लिखता हूँ सोची-समझी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
तुमसे न कर सकी मैं मुलाकात क्या करूँ
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तुमसे न कर सकी मैं मुलाकात क्या करूँ

संगीता केसवानी **************** २२१ २१२१ १२२१ २१२ तुमसे न कर सकी मैं मुलाकात क्या करूँ दिल में दबे रहे मेरे जज़्बात क्या करुँ। खामोश वो नज़र ही कई वार कर गई बोले बिना किए सवालात क्या करूँ। थम सा गया है वक़्त तेरे इंतज़ार में बदले कभी नही मेरे हालात क्या करुँ। क्यों ज़ुल्म ढा रही है तेरी याद अब सनम होती है आँसुओं की ही बरसात क्या करूँ। कितने सफे भरे मुहोब्बत के रंग से अल्फ़ाज़ कर सके न करामात क्या करूँ। परिचय :- संगीता केसवानी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं...
धूप बनकर कभी हवा बनकर
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धूप बनकर कभी हवा बनकर

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** धूप बनकर कभी हवा बनकर। वो निभाता है क़ायदा बनकर। पास लगता है इस तरह सबके, काम आता है वो दुआ बनकर। राह मुश्किल या दूर मंज़िल तक, साथ आता है रहनुमा बनकर। तपते-जलते हुए महीनों का, मन खिलाता है वो घटा बनकर। बात उसकी क़िताब जैसी है, याद रखता है वो सदा बनकर। है उसी का यहाँ सभी रुतबा, ये जताता है वो ख़ुदा बनकर। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्द...
उन्हीं के हाथ में तैयारियाँ हैं
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उन्हीं के हाथ में तैयारियाँ हैं

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** उन्हीं के हाथ में तैयारियाँ हैं। कि जिनके साथ में लाचारियाँ हैं। ज़रूरत है उसे मिलता नहीं है, बड़ी मजबूर जिम्मेदारियाँ हैं। हवा को आसमानों की पड़ी है, जमीं पर जान की दुश्वारियाँ हैं। तरक्क़ी हो रही है झूठ साबित, कड़ी इस दौर की बीमारियाँ हैं। बदल लेता है, चलकर रूप अपना, ये कैसी मर्ज़ की अय्यारियाँ हैं। बचाते हैं वही दामन यहाँ पर, कि जिनके हाथ में पिचकारियाँ हैं। लगेंगे कैसे पंख इन इरादों को, पढ़ें-लिक्खों में जब बैगारियाँ हैं। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्...
मंज़िलें… ये डगर और है आदमी
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मंज़िलें… ये डगर और है आदमी

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** मंज़िलें, ये डगर और है आदमी। मुश्किलें, ये सफ़र और है आदमी। रात के साथ है नींद की रंजिशें, रतजगे, ये पहर और है आदमी। वक़्त के साथ मिलकर गुजरते रहे, सिलसिले ,ये बसर और है आदमी। होशआ पायेगा किस तरह इस जगह, मैक़दे, ये असर और है आदमी। है सितारों भरा रात का आसमाँ, फासलें, ये नज़र और है आदमी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...
थे सभी जितने भुलाए सिलसिले
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थे सभी जितने भुलाए सिलसिले

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** थे सभी जितने भुलाए सिलसिले। आज फिर से साथ अपने आ मिले। था हमारा भी सफ़र उस ओर का, जिस तरफ़ से आ रहे थे काफ़िले। जो छुपे थे बादलों की ओट में, वो सितारें आसमाँ पर आ खिले। सब परिंदे दूर तक उड़ते रहे, पेड़ लेक़िन इस जमीं से न हिले। हमने उनका रास्ता अपना लिया, जिनसे हम रख्खा करे शिकवे गिले। हरकतों से बाज़ अपनी आएंगे, तब तलक होते रहेंगे ज़लज़ले। हैं हमारी ओर के रिश्ते - भले, पाएंगे उनसे सभी वैसे सिले। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया ज...
बदला-बदला मौसम का मन
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बदला-बदला मौसम का मन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** बदला-बदला मौसम का मन, बादल घिर-घिर आते हैं। विरही नैना मन आंगन में, अंगारे बरसाते हैं।। ***** नींदे रातों की रूठी है, रूठे हैं सपने सारे। काले बादल बरसे हैं, बैरन काली रातें हैं।। ***** चुभन बड़ी बेदर्दी से तब, दर्द बढ़ा देती तन का। गीली नर्म हवा के झोंके, जब-जब शूल चुभाते हैं।। **** कितनी पीड़ा होती होगी, आंखों से निकले आँसू। मौन लबों के रहते भी सब, राज उगलते जाते हैं।। ****** पानी आग बुझाने वाला, जब शोले भड़कता है। सिर्फ तपस्वी तन ही उसको, काबू में कर पाते हैं।। ***** मदिरा ऊपर से जब बरसे, पवन नशीला बन जाए। पीने वाले क्यों चूकेगें, अपनी प्यास बुझाते हैं।। ***** गीली राते हों साथी हों, "अनंत" जिनके पहलू में। रोज दिवाली होती उनकी, हर दिन ईद मनाते हैं।। **** परिचय :- अ...
मेरी महफिल में फिर आप…
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मेरी महफिल में फिर आप…

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरी महफिल में फिर आप आ जाइए दर्द का गीत कोई सुना जाइये इस मुकद्दर का कुछ भी भरोसा नहीं आप खुद ही इसे आजमा जाइए इश्क मेरा समंदर की लहरों सा है डूब कर इसमें मुझको डूबा जाइये जब तलक आप मुझसे मिलोगे नहीं कुछ तसल्ली तो मुझको दिला जाइए मैं मोहब्बत का मारा मुसाफिर हूं अब रास्ता कुछ नया तो बता जाइए मुस्कुरा कर मुझे देखिए आप फिर आप मुझको गले से लगा जाइए प्यार के रास्ते तो कठिन है मगर सिलसिला ऐसा कुछ तो चला आ जाइए परिचय :-  निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित ...
मुझे तुमसे इतनी फ़क़त है शिकायत
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मुझे तुमसे इतनी फ़क़त है शिकायत

अब्दुल हमीद इदरीसी मीरपुर, कैण्ट, (कानपुर) ******************** मुझे तुमसे इतनी फ़क़त है शिकायत। न भरपूर मुझको मिली तुमसे उल्फ़त। है बाक़ी अभी देखना हमको हमदम, कहाँ जा रुकेगी ये नाक़िस सियासत। वो करते रहे हैं वो करते रहेंगे, है हासिल उन्हें बस इसी में महारत। नहीं बाल बाँका कोई कर सकेगा, रहेगी जो यकजा बड़ी इक जमाअत। लड़ा दुश्मनों से हमीद उस घड़ी तक, रही जब तलक तन बदन में हरारत। परिचय :- अब्दुल हमीद इदरीसी  निवास - मीरपुर, कैण्ट, (कानपुर) साहित्यिक नाम : हमीद कानपुरी घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने छायाचित्रएवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हि...
जो आसमां को छूने के ख्वाब देखते हैं।
ग़ज़ल

जो आसमां को छूने के ख्वाब देखते हैं।

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** जो आसमां को छूने के ख्वाब देखते हैं। हम तो उन्हें दर-दर ठोकरें खाते देखते हैं।। हम तो सदा अपनी औकात में ही रहते हैं। क्योंकि हम तो ख्वाहिशें ही नहीं रखते हैं।। नजूमियों के चक्कर मे न पड़ मेरे दोस्त । हम तो मेहनत व दिमाग से काम करते हैं।। दुनियां में धन-दौलत की तो कमी नहीं । हम तो किस्मत के लिखे पर विश्वास रखते हैं।। "नाचीज़" हम मज़हब के घेरे से कोसों दूर हैं। हम तो सर्वधर्म-समभाव में विश्वास रखते हैं।। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन...
भंवर में सफीना
ग़ज़ल

भंवर में सफीना

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** गजल - १२२,१२२,१२२,१२२ भंवर में सफीना न हिम्मत डरी है। न गम जो झुके हैं खुशी कब झुकी है।। उधर एक कंधों पे वो जा रहा है। इधर एक दुल्हन चली आ रही है।। यही जिंदगी है मुसलसल लड़े जो। गमों में खुशी गुनगुनाती फिरी है।। महामारिया भी बहुत देख ली हैं। डरें तो डरें क्यों खुदा तो नहीं है।। खिंजा है कभी तो कभी हैं बाहरें। झरे पात शाखे शजर तो हरी है।। भले रात कितनी ही लंबी रही हो। मगर रात की भी सहर तो हुई है।। हकीकत यही है बता दो सभी को। चली कब किसी की भी दादागिरी है।। खुशी कब किसी की ऐ "अनंत" हुई है। बड़ी बेवफा है बड़ी मनचली है।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प...