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ग़ज़ल

जब अरमान फलेगा तो
ग़ज़ल

जब अरमान फलेगा तो

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** जब अरमान फलेगा तो। मन के साथ चलेगा तो। आँखें जी भर सो लेगी, सूरज, शाम ढलेगा तो। पत्थर भी कतरा-कतरा, आख़िरकार गलेगा तो। रिश्ता गिरकर संभलेगा, गर व्यवहार पलेगा तो। होगा सब पर हक सच का झूठा हाथ मलेगा तो। मिलकर, मिल न पायेगा, मौका दूर टलेगा तो। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा...
खुशबू
ग़ज़ल

खुशबू

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** पलकों पर ठहरी है रात की खुशबू अनकही अधूरी हर बात की खुशबू साँसों की थिरकन पर चूड़ी का तरन्नुम माटी के जिस्म में बरसात की खुशबू पतझड़ पलट गया दहलीज तक आकर जीत गई अंकुरित ज़ज्बात की खुशबू अहसास-ऐ-मुहब्बत तड़प तड़प के मर गया जिंदा रही पहली मुलाकात की खुशबू पलकें झुका के कैफियत कबूल की मगर ज़वाबों से आती रही सवालात की खुशबू जुल्फों की कैद में कुछ अरसा ही रहे उम्र भर आती रही हवालात की खुशबू कली रो पड़ी हूर के गजरे में संवर कर भूल ना पाया पड़ोसी पात की खुशबू I परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
ग़मज़दा क्यूँ है
ग़ज़ल

ग़मज़दा क्यूँ है

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** दिल मेरा आज ग़मज़दा क्यूँ है जिसको देखो वही ख़फ़ा क्यूँ है। हम समझते हैं जिसे जानेज़िगर, जानेमन मन का दुश्मन वही बना क्यूँ है। हजारों ख्वाहिशें कुर्बान हैं जिस पर मेरी जान करके भी बुत बना क्यूँ है। जख़्म देता है जो दिल को मेरे तड़पा के दिल का मालिक वही बना क्यूँ है। मैंने अश्कों को बड़ी मुश्किलों से रोका है फिर भी दिल उसका तलबग़ार बना क्यूँ है। दिल मेरा आज ग़मज़दा क्यूँ है जिसको देखो वही ख़फ़ा क्यूँ है। परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्...
राह कब तन्हा रही है।
ग़ज़ल

राह कब तन्हा रही है।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** आ रही है , जा रही है। राह कब तन्हा रही है। रास्तों के सिलसिले सब, जिंदगी समझा रही है। जब दिलों की गाँठ उलझें, इक हँसी सुलझा रही है। बैठकर कोयल शज़र पर, तान ऊँची गा रही है। जीत उसकी जब ख़ुशी भी, हार को अपना रही है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
आ गई मझधार फिर से
ग़ज़ल

आ गई मझधार फिर से

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** आ गई मझधार फिर से। खुल गई पतवार फिर से। मौज से कश्ती मिली तो, मिल गई रफ़्तार फिर से। कर नहीं पायी कही जब, घिर गई सरकार फिर से। बात अपनी ज़िद पकड़कर, बन गई तकरार फिर से। ज़िन्दगी आकर के हद में, हो गई घर-बार फिर से। आ गया किरदार रब का, जब हुई दरकार फिर से। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
कहीं मुश्किल… कहीं आसां
ग़ज़ल

कहीं मुश्किल… कहीं आसां

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** कहीं मुश्किल, कहीं आसां मिला है। यही इस जिंदगी का सिलसिला है। रखी हमनें हमेशा ही तसल्ली, भले सबसे हमें हक कम मिला है। मनाही में रज़ा हम ढूंढ लेंगे, यहाँ हमको किसी से क्या गिला है। बचा है बाग में वो ही अकेला, कहीं इक फूल जो छुपकर खिला है। हमारे सामने होकर जो गुज़रा, कहीं रुकता नहीं वो काफ़िला है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
दर्द की दवा बना ली मैंने
ग़ज़ल

दर्द की दवा बना ली मैंने

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** किसी ने वाह-वाह की किसी ने अपना ही मुंह फेर लिया तुमने जो दर्द दिया उस दर्द से अपनी ये गजल बना ली मैंने दर्द भरी गजल लिखकर इस जमाने को सुना दी मैंने। किसी ने वाह-वाह की किसी ने अपना ये मुंह फेर लिया ऐसी मशहूर हुई गजल मेरी सोई किस्मत जगा ली मैंने। तुम्हारे दिए दर्द ने तो दुनिया में नाम कर दिया मेरा दर्द भरी गजल को गाकर शोहरत अपनी जमा ली मैंने। कई शायरों ने अपने इस दर्द को अपनी शायरी में पिरोया है लेकिन इसी गजल से शायरों पर धाक जमा ली मैंने। जो दर्द दिया था तुमने अब उसी दर्द की दवा बनाई है यारों इस दर्द की दवा देकर कई रोशन दुआ कमा ली मैंने। रोशन दुआओं के असर से हमारे यह दर्द फना हो जाते है इन्हीं दुआओं के कारण तकदीर के द्वार खुलवा लिए मैंने। तुम्हारे दिए दर्द से ही मैंने भी यहां दौलत और शोहरत पाई है...
मैं मुर्दो की आवाज़ था
ग़ज़ल

मैं मुर्दो की आवाज़ था

लाल चन्द जैदिया "जैदि" बीकानेर (राजस्थान) ******************** दुःख है मुझे कि मैं मुर्दो की आवाज़ था ज़मीर न था उन्ही का मै रखता राज़ था। करते रहे सितमगर, मेरे कंधे की सवारी, मुझे लगा, मैं गगन का शिकारी बाज़ था। मकसद मे होते रहे, अकसर वो कामयाब भ्रम मे जीया जैसे मैं ही उनका आज़ था। जब हुआ जुदा कोई आंख, मायूस न थी मुस्कुरा रहे थे लोग जिन पे मुझे नाज़ था। बढ़ता रहा बेखौफ, अंगारो की जानिब मैं मेरा हर जो कदम, जैसे नया आगाज़ था। अपनी धून मे जीता गया मैं शायर "जैदि" ख़्यालो मे मेरे, कभी न तख्त-ओ-ताज़ था। परिचय -  लाल चन्द जैदिया "जैदि" उपनाम : "जैदि" मूल निवासी : बीकानेर (राजस्थान) जन्म तिथि : २०-११-१९६९ जन्म स्थान : नागौर (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान) कार्य : राजकीय सेवा, पद : वरिष्ठ तकनीक सहायक, सरदार पटेल मेडिकल कोलेज, बीकानेर। रुचि : लेखन, आकाशवाणी व...
वो जुबाँ पर सवार होती तो
ग़ज़ल

वो जुबाँ पर सवार होती तो

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** वो जुबाँ पर सवार होती तो। बात कुछ धार-दार होती तो। जान लेती मलाल भीतर के, जब नज़र भी कटार होती तो। बात अपना कहा बदल लेती, एक की जब हज़ार होती तो। उनके चहरे की वो हँसी नकली, अब हमें नागवार होती तो। आज जिसकी ख़ुशी रखी हमनें, जीत वो बार -बार होती तो। इन बहारों से दोस्ती रखती, तितली गर होशियार होती तो। पास रहती वो दूर होकर भी, मुझ सी वो बेकरार होती तो। फिर अंधेरो का डर नहीं होता, रोशनी आर -पार होती तो। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : ...
बरसते आँसुओं को देखो
ग़ज़ल

बरसते आँसुओं को देखो

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** देखना है तो बरसते आँसुओं को देखो मुस्कुराते हुए इन होठों में क्या रखा है। पोछना है तो बहते आँसुओं को पोंछो बेवजह!दुख व दर्द देने में क्या रखा है। देखना है तो कराहते आहों को देखो किसी के झूमते कदमो में क्या रखा है। बाँट सको तो किसी को खुशियाँ बाँटो बेवजह!खुशियाँ छिनने में क्या रखा है। देखना है तो तरसते आँखों को देखो किसी के खुश जिंदगी में क्या रखा है। दे सको आंखों को चैन का चमक दो बेवजह!आँसु को देने में क्या रखा है। देखना है तो बेबस लाचारों को देखो किसी के मस्त जिंदगी में क्या रखा है। दे सको तो उनको कुछ सहारा दे दो बेवजह!बेसहारा करने में क्या रखा है। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह ...
घबरायी होगी
ग़ज़ल

घबरायी होगी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** ख़त मेरा वो पायी होगी। जी भर वो इतरायी होगी।। घर लगता है घर सा मुझको। शायद घर वो आयी होगी।। देख दरीचे से फिर मुझको। मन ही मन शरमायी होगी।। दी होगी द्वारे पर दस्तक। पर थोड़ा घबरायी होगी।। मुझे देखकर तस्वीरों में। अपना मन बहलायी होगी।। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अपनी हास्य एवं व्यंग्य लेखन की वजह से लोकप्रिय हुए युवा कवि आश...
अब तक है शेष डगर साथी
ग़ज़ल, गीतिका

अब तक है शेष डगर साथी

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** अब तक है शेष डगर साथी। आओ चलते मिलकर साथी।। यदि मानव हो तुम भी मैं भी, फिर क्यों इतना अंतर साथी।। तुम उच्च महल मैं हूँ झोपड़, पर मैं भी तो हूँ घर साथी।। उपयोग हमारा दोनों का, है बिल्कुल ही रुचिकर साथी। यदि तुमने वैभव पाया है, पाये नौकर चाकर साथी।। तो मैं आध्यात्म भक्ति सेवा, सत्कार वरित किंकर साथी। हो तुम अपूर्ण मैं भी अपूर्ण, पूरा केवल ईश्वर साथी।। फिर क्यों तन तान मदांध हुए। आओ मुड़कर भीतर साथी। यह जग तो केवल एक स्वप्न, इसमें क्यों मद मत्सर साथी। सबको जब जाना परमस्थल, उस परमात्मा के दर साथी।। फिर क्यों है इतना भेद भला, क्या सेवक क्या अफसर साथी। हम एक पिता की संतानें, है एक जगह पीहर साथी।। तुम 'नित्य' सही को भूल गये, है सबके जो अंदर साथी।। परिचय :- आचार्य...
तलबगार हम भी थे
ग़ज़ल

तलबगार हम भी थे

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** नशा बनकर होठो पर पैमानों की शराबों में मिलेंगे दुआ बन कर आपको आपकी फरियादो में मिलेंगे प्यार का खत बनकर आपको किताबों में मिलेंगे करोंगे जब याद कभी तुम हमको अपने दिल से खुदा कसम तन्हाई में आपको ख्वाबों में मिलेंगे। इश्क है तो इश्क का इजहार करना भी जरूरी है। कोशिश तो करो हम आपको उन इरादों में मिलेंगे। सुना है इश्क का अक्सर नशा सर चढ़कर बोलता है नशा बनकर होठो पर पैमानों की शराबों में मिलेंगे। जब कभी देखोगे तुम अपने आपको आईने में हम आपको आपके चढ़ते हुए शबाबो में मिलेंगे। तुमने भी पूछा था कि क्या हमको तुमसे इश्क है तुम भी हमारा खत पढ़ लेना उत्तर खत के जवाबों में मिलेंगे। कभी तुम्हारी खूबसूरती के तलबगार हम भी थे। कभी अपने चेहरे से लगाओ हम रेशमी नक़ाबो में मिलेंगे। परि...
दर्द सहना, दर्द लिखना मेरी पहचान रहने दो …
ग़ज़ल

दर्द सहना, दर्द लिखना मेरी पहचान रहने दो …

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** दिल में खौफ ए ख़ुदा मंदिर में भगवान रहने दो, करम इतना तो हो हमारे सब अरमान रहने दो। रोटी की कीमत, भूख की तलब पूछिए गरीब से, बेघर खुश हूं ऊंचे महलों के तो दरबान रहने दो। ठोकड़ों में जी रहे लिवास दवा न दुआ मिलती है, खुली किताब हूं मेरे सर पे आसमान रहने दो। लफ्जों का कोई ख़ास नायाब कारीगर नहीं हूं मैं, दर्द सहना दर्द लिखना मेरी ये पहचान रहने दो। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ह...
साथ उसके हबीब है कोई
ग़ज़ल

साथ उसके हबीब है कोई

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** साथ उसके हबीब है कोई। शख़्स वो खुशनसीब है कोई। पास जिसकी हर दुआ उस पर, यार उसका ग़रीब है कोई। नींद के हाल मुस्कुराता है, ख़ाब उसके करीब है कोई। देखकर रह गया वहीं थमकर, वो नज़ारा अजीब है कोई। जान देने को अपनी हाज़िर है, वो परिंदा अदीब है कोई। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
बातों का मेरी तुझपे गर-असर दिखाई दे।
ग़ज़ल

बातों का मेरी तुझपे गर-असर दिखाई दे।

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** बातों का मेरी तुझपे गर-असर दिखाई दे। तब जा के मुझे तुझमें भी अनवर दिखाई दे।। मज़हब की सियासत ही है इंसान की दुश्मन। नीयत से मुझे इसकी सरासर दिखाई दे।। फ़िरते हैं हवस अपनी मिटाने को भेड़िये। बेशक़ न अभी तुमको ये मंज़र दिखाई दे।। उड़तीं हैं गरम रेत से जो झिलमिलाहटें। मुमक़िन है तुम्हें ये भी समंदर दिखाई दे। अब क़त्ल के सारे वो तऱीके बदल गये। वाज़िब कि नहीं हाथों में खंज़र दिखाई दे। शैतां ने तिलिस्मात बिछाया सियासतन। हर सर है खूँ-ब-खूं नहीं पत्थर दिखाई दे। बस ज़िस्म पे शैदा न हुआ कर ऐ नित्यानंद। हो सकता क़े चूनर में दु-नश्तर दिखाई दे।। हे! हरि के अवतंस प्रभो तुम, हो करुणा निधि श्री भगवान।। परिचय :- आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” जन्म तिथि : ३० जुलाई १९८२ पिता : भगवद्विग्रह श्री जय ज...
साथ अपने …
ग़ज़ल

साथ अपने …

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** साथ अपने क़िताब रखते हो। फ़लसफ़ा लाज़वाब रखते हो। रोशनी की तुम्हें कमी कैसी, पास जब माहताब रखते हो । है यहाँ और है वहाँ कितना, सब जुबाँ पर हिसाब रखते हो। हो जहाँ तुम समाँ महक जाए, साँस अपनी गुलाब रखते हो। हम इसी बात के रहे क़ाइल, दोस्ती बेहिसाब रखते हो। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
समंदर को खल गई
ग़ज़ल

समंदर को खल गई

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** इतनी सी बात थी जो समंदर को खल गई। काग़ज़ की कश्ती कैसे भँवर से निकल गई।। पहले ये पीलापन तो नहीं था गुलाब में। लगता है अब ज़मीन की मिट्टी बदल गई।। अब पूरे तीस दिन की रियायत मिली उसे। फिर मेरी बात अगले महीने पे टल गई।। अशआर में बचे हैं मुहब्बत के हादसे। वरना मेरी कहानी मेरे साथ जल गई।। कल तक तो बेगुनाह समझते थे सब मुझे। क्यों राय आज सारे जहाँ की बदल गई।। मयख़ाने की डगर से जो मेरा गुज़र हुआ। वाइज़ की बात रह गई साक़ी की चल गई।। रंजो अलम हैं साथ ज़माने हुए "शलभ"। अब तो ये ज़िन्दगी इसी साँचे में ढल गई।। परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्न साहि...
तू न दिल से लगाए तो क्या फायदा
ग़ज़ल

तू न दिल से लगाए तो क्या फायदा

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ********************           २१२ २१२ २१२ २१२ तू न दिल से लगाए तो क्या फायदा दिल तुझे ही न पाए तो क्या फायदा बाग़बाँ के लिए लाख कलियाँ खिलीं लूट भँवरा ले जाए तो क्या फायदा आपने प्रेम से मुझको देखा नहीं सारी दुनिया बुलाए तो क्या फायदा मैं तो .मसरूर तेरी मुहब्बत में हूँ तू न रग़बत दिखाए तो क्या फायदा देश बरबाद करते रहे लोग जो उन पे हीरे लुटाए तो क्या फायदा आज कातिब ही ग़ालिब हुआ है यहाँ सत्य लिखना न आए तो क्या फायदा ख़ूब साक़िब ने देखा मुझे ग़ौर से फिर भी रजनी न भाए तो क्या फायदा शब्दार्थ मसरूर- प्रसन्न रग़बत- दिलचस्पी कातिब- लिखने वाला ग़ालिब- छाया हुआ साक़िब- चमकता तारा परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व...
थोड़ा ख़ुद पर भी इठलाना बाकी है।
ग़ज़ल

थोड़ा ख़ुद पर भी इठलाना बाकी है।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** रस्ते - रस्ते दीप जलाना बाकी है। अँधियारों का डर झुठलाना बाकी है। सुनकर जो भी सपनों जैसी लगती है, उन बातों से मन बहलाना बाकी है। नए दौर की चढ़ती -बढ़ती शिक्षा में, सच्चाई का गुर सिखलाना बाकी है। बूझ रहें हैं लोग यहाँ सबके के चेहरे, उनको अपना घर दिखलाना बाकी है। सबकी शान, बढ़ाई वाले मौकों पर थोड़ा ख़ुद पर भी इठलाना बाकी है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
हमें भी वही राह दिखला रही है।
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हमें भी वही राह दिखला रही है।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** हमें भी वही राह दिखला रही है। हवा जिस दिशा में चली जा रही है। जो आदत नहीं है निभाने की हममें, रिवायत वही बात समझा रही है। पता ही नहीं है किसी को हक़ीक़त, भुलाओं में दुनियाँ पली आ रही है। रखें मान किसका, रहें साथ किसके, सदाएँ, सदाओं को भरमा रही है। करे पार कैसे वो दरिया-समुन्दर, जो कश्ती हवाओं से टकरा रही है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
घिरी मझधार में नैया
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घिरी मझधार में नैया

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ घिरी मझधार में नैया मुसीबत ने भी मारा है सुनो हे मातु नवदुर्गा तुम्हें मैंने पुकारा है सजाऊँ माँग में बेंदी दमकती नाक में नथुनी चुनर है लाल तेरी माँ सितारों से सँवारा है गले में हार है शोभित लिए हो हाथ में खप्पर बजे जब पाँव में पायल लगे सुंदर नज़ारा है बड़ा हूँ पातकी बालक सदा करता हूँ नादानी करो उद्धार माँ अब आपका ही इक सहारा है तुम्हारे ही सहारे है भवानी अब मेरी कश्ती करो अब पार रजनी को नहीं दिखता किनारा है परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाश...
दर्दे-ऐ-दिल
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दर्दे-ऐ-दिल

लाल चन्द जैदिया "जैदि" बीकानेर (राजस्थान) ******************** दर्दे-ऐ-दिल, किस को सुनाऊँ मैं गुजर रहे है दिन, कैसे बताऊँ मैं, तन्हाइयों से तंग आ गया जनाब, हर बात, अब कैसे समझाऊँ मैं। मजे लोग लेगे ये सोच चुप रहता, खुद का दिल खुद से बहलाऊँ मैं। दुनिया मे मुझे गम, सभी ने दिऐ है इल्जाम अब ये किस पे लगाऊँ मैं। कुरेद रहे है जख़्म जो बारबार मेरे बेरहम जख्मो को कैसे दिखाऊँ मैं। खुश है देख मुसीबत मे रक़ीब मेरे उनसे बताऐं कैसे प्यार निभाऊँ मैं। शब्दार्थ :- रक़ीब :- प्रतिद्वंद्वी परिचय -  लाल चन्द जैदिया "जैदि" उपनाम : "जैदि" मूल निवासी : बीकानेर (राजस्थान) जन्म तिथि : २०-११-१९६९ जन्म स्थान : नागौर (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान) कार्य : राजकीय सेवा, पद : वरिष्ठ तकनीक सहायक, सरदार पटेल मेडिकल कोलेज, बीकानेर। रुचि : लेखन, आकाशवाणी वार्ताकार, सम्मान :...
वक्त का इम्तिहान
ग़ज़ल

वक्त का इम्तिहान

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वक्त का इम्तिहान होता है कितना गहरा निशान होता है आंधियों में बचा कहां है कुछ वाकया ए बयान होता है मुद्दतों बाद इतनी शोहरत हो कोई इक खानदान होता है मुफलिसी में न छत न दरवाजा ना कोई आसमान होता है अपनें बच्चों की परवरिश खातिर बाप तो बागवान होता है परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, २०१६ से लेखन में अभिरुचि विशेष : आध्यात्मिक प्रवक्ता एस्ट्रोलॉजर। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्...
बैठती है
ग़ज़ल

बैठती है

डॉ. जियाउर रहमान जाफरी गया, (बिहार) ******************** न यों फूलों पे सुर्खी बैठती है तुम्हारे लब पे तितली बैठती है फिराया था कभी जो उंगलियां मैं ना अब बालों में कंघी बैठती है जो तुम पैवस्त हमे में हो गए हो दिसंबर की भी सर्दी बैठती है मुझे बाहर से मुश्किल है समझना बहुत अंदर से हल्दी बैठती है ना उस कॉलेज में पढ़ना मुझे है जहां बाहर से लड़की बैठती है परिचय :-  डॉ. जियाउर रहमान जाफरी निवासी : गया, (बिहार) वर्तमान में : सहायक प्रोफेसर हिन्दी- स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, मिर्जा गालिब कॉलेज गया, बिहार सम्प्रति : हिन्दी से पीएचडी, नेट और पत्रकारिता, आलोचना, बाल कविता और ग़ज़ल की कुल आठ किताबें प्रकाशित, हिन्दी ग़ज़ल के जाने माने आलोचक, देश भर से सम्मान। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...