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भजन

माँ जगदंबे काली
भजन, स्तुति

माँ जगदंबे काली

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** रक्षा करो माँ जगदंबे काली रक्षा करो माँ जगदंबे काली...... तुम हो दुर्गा तूम ही काली करती हो तुम अपने बल से सारे जगत की रखवाली मेरी भी रक्षा करो माँ बजगदंबे काली। रक्षा करो माँ जगदंबे काली...... तुम हो विद्या तुम ही हो महाविद्या मुझे भी विद्या का दान दो माँ काली। रक्षा करो माँ जगदंबे काली...... तो तुम हो आदि तुम हो अनंत तुमसे है सृष्टि का आरंभ तुमसे ही सृष्टि का अंत रक्षा करो माँ जगदंबे काली...... तुम हो दयालु तुम हो परम् दयालु मेरे सिर पर भी दया का हाथ रख दो माँ काली रक्षा करो माँ जगदंबे काली रक्षा करो माँ जगदंबे काली...... परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करत...
सुन कान्हा फागुन आयो
गीत, भजन, स्तुति

सुन कान्हा फागुन आयो

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** सुन कान्हा फागुन आयो। संग होरी त्यौहार लायो। तू होरी पै मोय लाल, पीलो, हरो, नीलो रंग पिचकारी। भर-भर डारैगो। हां! राधा फागुन आयो। संग होरी त्यौहार लायो। तू भी होरी पै मो पै लाल, पीलो, हरो, नीलो रंग पिचकारी। भर-भर डारैगी। मैं और तू होरी रंगन। तै संग खेलेंगे, एक-दूजे के। नयन देखेंगे मैं तोरे नैनन में। तू मोरे नैनन में प्रेम रंग देखेगो। होरी ऐसी खेलेंगे ज्यो जल। मध्य उछरे त्यों हमारो। हिय प्रेम रंग होरी से गदगद। होय जात उमंग संग हर्षित हो। उर मयूर सौ नाचत अरू हम। द्वौ ऐसी प्रेम रंग होरी खेले। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
मीरा तो थीं प्रेमदिवानी
कविता, भजन

मीरा तो थीं प्रेमदिवानी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहता है इतिहास कहानी, मीरा तो थीं प्रेमदिवानी। कान्हा की थीं वे अनुरागी, माना उनको ही नित स्वामी। महलों का सुख रास न आया, प्रेम डगर की थीं अनुगामी। बहुत मनाया नित्य उन्हें पर, राणा जी की एक न मानी। कहता है इतिहास कहानी, मीरा तो धीं प्रेम दिवानी। राणा भेजे एक पिटारा, मंशा थी मीरा डर जाएँ। खोलें जब तत्काल उसे तो, नाग डसे उनको, मर जाएँ। नाग बना माला सुमनों की, विस्मित थे राणा अभिमानी। कहता है इतिहास कहानी, मीरा तो थीं प्रेमदिवानी। राणा ने फिर विष भिजवाया, कह प्रसाद है यह मोहन का। राणा थे भारी अचरज में, पी मीरा ने शीश झुकाया। श्याम भजन गाकर मंदिर में, जोगन बन बैठी वह रानी। कहता है इतिहास कहानी, मीरा तो थी प्रेमदिवानी। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/...
जागो हे भोले…
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जागो हे भोले…

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** "ईश्वर सत्य है, सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है, सत्यम शिवम् सुंदरम...। सत्यम शिवम् सुंदरम..., सुंदरम..., सुंदरम..., सत्यम शिवम् सुंदरम...।। जागो हे भोले..., जागो..., जागो..., जागो..., जागो हे भोले, जागो प्यारे, मेरे भोले कि सूरत, है निराली। जागो हे भोले...।। गणेश-कार्तिक पूत तुम्हारे, आदिगौरी मां संगिनी तुम्हारी। मन पावन करो, कामना पूर्ण करो, सदा नमन करूं, ओमकार प्यारे। जागो हे भोले...।। हाथो में त्रिशूल डमरूं बाजे, माथे पर त्रिनेत्र चंद्र सांजे, जटा में रहे गंग, डाले गले में भुजंग, नीलकंठेश्वर, महाकाल प्यारे। जागो हे भोले...।। ज्योर्तिलिंग में शक्ति तुम्हारी, करे पूजन ऐ धरती सारी, भक्तों के भगवन्, करूं चरणों में सुमिरन, शिवशक्ति का रूप, भोलेनाथ प्यारे। जागो हे भोले...
हरी धरै मुकुट खेले होली
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हरी धरै मुकुट खेले होली

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** हरी धरै मुकुट खेले होली, हरि धरै मुकुट खेले होरी || मोर मुकुट पीतांबर पहने, हाथ पकड़ राधा गोरी || हरि धरे मुकुट खेले होरी कितने बरस के कुंवर कन्हैया, कितने बरस राधा गोरी || हरि धरेमुकुट खेले होरी दसहि बरष के कुंवर कन्हैया, सात बरष राधा गोरी || हरी धरे मुकुट खेले होरी कहा पैरी कृष्णा होरी खेले, कहां पैरि राधा गोरी || हरी धरे मुकुट खेले होरी मुकुट पैरि कृष्णा होली खैलै, चीर पैरि राधा गोरी || हरि धरै मुकुट खेलै होरी काहिन के दो खंभ बने हैं, काहिन लागि रहे डोरी || हरि धरै मुकुट खेलै होरी अगर चन्दन के दो खंभ बने हैं, रेशम लागि रहे डोरी || हरी धरे मुकुट खेले होरी कौन वरण के कृष्ण कन्हैया, कौन अवरण राधा गोरी || हरि धरै मुकुट खेले होरी श्याम वर्ण के कृष्ण कन्हैया, गौर वरण अ राधा गोरी || हरी धरे मुकुट खेले हो...
भगवन् तेरी शरणम्…।
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भगवन् तेरी शरणम्…।

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** भगवन् तेरी शरणम्, मैं आया कृपा करना, भगवन् तेरी शरणम्, मैं आया कृपा करना। जो तेरी इच्छा हो, तो मुझपर दया करना, जो तेरी इच्छा हो, तो मुझपर दया करना। भगवन् तेरी शरणम्...।। मेरे माता-पिता, गुरु की, छवि दिखे तुझमें, श्रीगणेश, शिव-शक्ति का, दिव्य रूप दिखे तुझमें। मेरी आत्मा का मालिक तू, श्रद्धा-नमन स्वीकार करना, एक आस ही मेरे पास, प्रभु मुझपर कृपा करना। भगवन् तेरी शरणम्...।। तेरी सूरत दीवानी है, मैं तेरा दीवाना हूं, मन मंदिर मेरे आजा, मैं तेरा पूजारी हूं। मेरे दिल की धड़कन तू, श्रद्धा-भक्ति स्वीकार करना, एक आस ही मेरे पास, प्रभु मुझपर कृपा करना। भगवन् तेरी शरणम्...।। धन दौलत नहीं चाहूं, मुझे तेरा सहारा हो, बस यही दुआ मांगू, निच्छल प्रेम मेरा हो। यह विनती मेरी सुनले, श्रद्धा-भाव स्व...
बिल्व-वृक्ष
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बिल्व-वृक्ष

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** बिल्व-वृक्ष शिव का रूप, पिता ने एक लगाया था | देवालय निकट शिव स्वरूप, परमेश्वर ने एक लगाया था || बिल्व-वृक्ष...... मैंने भी निज गृह में एक, सदाफल वृक्ष लगाया था | सेवा करके उसकी भक्तिपरक, मैंने स्वयं से बड़ा बनाया था || बिल्व-वृक्ष....... टूटी शाखा तब कलेश हुआ था, गृहस्थ सुखार्थ वृक्ष लगाया था | करता था प्रतिदिन अभिषेक, बिल्वपत्रार्पणार्थ वृक्ष लगाया था || बिल्व-वृक्ष..... आज कहाँ बिल्व-वृक्ष गया, अष्टोत्तरी पूर्त्यर्थ जो लगाया था | आज तन ओ असहाय हुए, वृक्ष नष्टार्थ हाथ जो लगाया था || बिल्व-वृक्ष....... निम्बुक वृक्षार्थ आतुर हो क्यों? शिव बिल्व-वृक्ष नहीं बढ़ाया था | आत्म- सुखार्थ मन भयातुर क्यों? मान त्रिदेवों का नहीं रख पाया था || बिल्व-वृक्ष..... परिचय :- सुरेश चन्द्र जोशी शिक्षा : आचार्य, बीएड ...
नित नित शीश झुकाऊँ
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नित नित शीश झुकाऊँ

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अष्टभुजी हैं दुर्गा माता, तू सहस्त्र भुज धारी। तेरी गाथा लिखना मुश्किल, तू पृथ्वी से भारी। तू जीवन आधार सभी का, तू है सबसे प्यारी। हर युग से तू रही सीखती, तेरी महिमा न्यारी। शिव शंकर से सीखा उसने, गरल कंठ में धरना। सीखा माता पार्वती से, कठिन तपस्या करना। दशरथ नंदन से सीखा है, सुख दुख में सम रहना। सीखा भूमि सुता से उसने, लिखा भाग्य में सहना। नटनगर से सीखा उसने, कर्म करें बस अपना। केवल प्रभु की शरण सत्य है, और जगत है सपना। बरसाने वाली से सीखा, खुद बन जाना राधा। राधा में है कृष्ण समाया, और कृष्ण में राधा। लक्ष्मीनारायण से सीखा, बहु अवतारी होना। तज बैकुंठ, धरा पर जाकर, नर संसारी होना। हनुमान से सीखा उसने, काम प्रभु के आना। ऊँचा लक्ष्य रखें जीवन का, प्रभु पद प्रीति लगाना। सीता उ...
कान्हा
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कान्हा

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** क्यों कान्ह तू। कब आवेगो। मोरे नैन तोरे दरस। तरस रहे। तू मोहे इक बार। सपन में ही बता जा। कान्हा तू कब आवैगो। मैं तोरे दरस को अति। व्याकुल मोए भोजन खावै। ना बनै, मोए प्यास। भी नाए लगै। कान्हा अब तो तू। आए जा मोहै दरस। दे जा, मोरै नैना तोरे । दरस अति तरसे। अब तू तनिक देर मत लगा। शीघ्र दरस दे जा। मोहै बता दे तू कब आवैगो। मैं तोरे अभिनन्दन की। तैयारी कर लूँ । मैं तोहै माखन मिश्री। भोग लगाऊँ। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय ह...
पर्व शिव कीर्तन का
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पर्व शिव कीर्तन का

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** मेरे मन में भाव उठा अब, बाबा शिव के कीर्तन का। महापर्व शिवरात्रि सुहावन शिवशंकर के अर्चन का। इस दिन भोले बनते दूल्हा, करके वह पुष्प श्रृंगार। झूमें नाचे तब भक्त सभी, खुशी मनाते हैं अपार। प्रेम मगन होकर उर आता, मधुर भाव शिव नर्तन का। महापर्व शिवरात्रि सुहावन शिवशंकर के अर्चन का। गौरा माता बनती दुल्हन, करती शुभ प्रेम श्रृंगार। आँखों में शिव की छवि होती, सत उर में उमड़ता प्यार। भाव उठे शिव बारात सदा, प्रभु नील पुष्प वर्षण का। महापर्व शिवरात्रि सुहावन शिवशंकर के अर्चन का। भाँग धतूरा सेवन करते, नित भूत प्रेत गण सारे। भाँग मधुर पीसें गौरा जब, पीते तब भोले प्यारे। भोले की करती नित सेवा, रखें मान माँ कंकन का। महापर्व शिवरात्रि सुहावन शिवशंकर के अर्चन का। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्...
आदिदेव महादेव
भजन, स्तुति

आदिदेव महादेव

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को, भोले का यश गाना हैं। रख श्रद्धा आदिनाथ की, भवसागर तर जाना हैं।..... वंदन चंदन कर तिलक लगाएं, अर्पित करते पुष्पों की माला। आदिदेव महादेव का ध्यान धरें, सबके हित उत्तम करने वाला। गौरीशंकर भक्ति में चित्त लगाना हैं। रख श्रद्धा आदिनाथ की भवसागर तर जाना हैं।..... तात कार्तिकेय-गणनायक की, आभा बड़ी निराली हैं। मयूर केतु-गजानन की, छवि नैन सुखदायी हैं। गिरिजापति विश्वनाथ का अलौकिक श्रृंगार करना है। रख श्रद्धा आदिनाथ की भवसागर तर जाना हैं।..... परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
हे शिव शंभू करुणा निधान
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हे शिव शंभू करुणा निधान

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** हे शिव शंभू करुणा निधान, टाले न सके विधि के विधान। अखिल विश्व के पालन हारे, किस भांति करुँ तेरा यशोगान ।। भर दो शक्ति,साहस हम में, आनंद प्रेम, दृढ़ता मन में। हो मानवता हर,जन जन में निज मातृ भूमि का करें मान।। हे शिव शंभू करुणा निधान रोशन कर दो जीवन सबका, मिट जाये "तम" अन्तर्मन का। कर्तव्य विमुख ना रहे कोई, प्रभु हमको दो ऐसा वरदान।। उददेश्यहीन जीवन न रहे, समरसता संबंधों में रहे। निर्विघ्न करो पथ के व्यवधान दे दी हमने अपनी कमान।। हे शिव शंभू करुणा निधान... संघर्षों से निखरें प्रतिपल, संवरे शुभकाज सफल हो कल। हम बन जायें तुम्हरे समान। हे दीनबंधु करुणा निधान...। परिचय :- प्रीति तिवारी "नमन" निवासी : गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार स...
शिवरात्रि महापर्व
कविता, भजन

शिवरात्रि महापर्व

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** शिवरात्रि महापर्व पर बरस रही कृपा कैलाशी की, घट-घट में विराजे शिव शंभू कृपालु शिवा के साथ ।। गंगा विराजे शीश प्रभु के, विष धारण किया है कंठ नंदी करते पहरेदारी शिव प्रभु की प्रिय वासुकी साथ ।। शिव शक्ति के स्वरूप है, शिव ही सृष्टि के मूल आधार गुरुओं के भी गुरु है शिव शंकर, है ऊर्जा अनंत अपार ।। अविनाशी शिव अनंत हैं, सच्चिदानंद सदैव ही सत्य यह सृष्टि विलीन है शिव में ही, है समाहित पूर्ण संसार ।। श्रावण मास का माह प्रिय बहुत शिव शंकर को मेरे, मेघ रूप में अंबर से बरसे प्रभु की कृपा जब अपार ।। महा शिव रात्रि पर हरे शिव भक्तों के दुख, पाप, संताप करके प्रभु की आराधना भर लो भक्ति से मन का थाल ।। है बहुत ही यह सुन्दर काम आज चलो सब शिव के धाम महा शिवरात्रि पर विल्बपत्र चढ़ाकर लेंगे प्रभ...
मैं शिवा तुम्हारी
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मैं शिवा तुम्हारी

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** तुम हो शिव मैं शिवा तुम्हारी, प्रेम संगिनी प्रेम रागिनी। तुम हो शिव..... जब तुम करते नृत्य मनोहर, पग थिरके डमरू के स्वर पर, भाव भंगिमा सुंदर चितवन, करे प्रफुल्लित देवों का मन, तब नर्तक नटराज की गौरी, समा जाए मुद्रा में तेरी। तुम हो शिव...... जब तुम करते जग का चिंतन, कष्ट देख व्यथित होता मन, जन कल्याण हेतु दुख भंजन, तज कर सर्प चन्द्र का बंधन, रत समाधि होते त्रिपुरारी, तब मैं बनती साधना तुम्हारी। तुम हो शिव........ जब होता सागर का मंथन, विष को देख करे जग क्रंदन, सब मिल करें प्रार्थना तुम्हारी, सुन लो शिव वंदना हमारी, नहीं रुके पल भर को शंकर, विषपान करें अंजुल भर कर, हुआ कंठ जब नील तुम्हारा, कर रखकर कर विष रोका सारा, तुम पीड़ा से मौन हो गए, तब मैं बन गई वेदना तुम्हारी। तुम हो शिव मैं शिवा तुम्हारी।...
कलयुग सतयुग लग रहा
गीत, भजन

कलयुग सतयुग लग रहा

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कलयुग भी सतयुग जैसा लग रहा विद्यासागर जी के कामो से। कितने जीवो के बच रहे प्राण उनकी गौ शालाओं से।। जीव हत्या करने वाले अब स्वयं आ रहे उनकी शरण में। लेकर आजीवन अहिंसा का व्रत स्वयं करेंगे उनकी रक्षा अब। ऐसे त्यागी और तपस्यवी संत जो स्वयं पैदल चलते है। और जगह जगह प्राणियों की रक्षा हेतु भाग्यादोय खुलवाते।। कलयुग भी सतयुग जैसा लग रहा विद्यासागर जी के कामो से। कितने जीवो के बच रहे प्राण उनकी गौ शालाओं से।। मांस मदिरा बेचने वाले अब स्वयं रोक लगवा रहे। चारो तरफ अहिंसा का अब पाठ ये ही लोग पड़ा रहे। कलयुग को देखो कैसे अब सतयुग ये लोग बना रहे। घर घर में सुख शांति का आचार्यश्री का संदेश पहुंचा रहे।। लगता है जैसे भगवान आदिनाथ स्वंय अवतार लेकर आ गये। और छोटे बाबा के रूप में आकर सब जीवो का उद्दार कर रहे है। तभी...
नर्मदा
भजन, स्तुति

नर्मदा

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अमरकंटक शिखर उद्भूता होहि अरब सागर विलीना नर्मदा अति पुण्य सलिला दूजा नाम मेकलसुता, रेवा बड़ी रोचक ऐहि उत्पत्ति कथा शिव स्वेद से जन्मी एक कन्या तासु नाम भयो तब नर्मदा गंगास्नान से जो पुण्य फल होई सोई फल नर्मदा दर्शन मात्र से होई सोनभद्र नाम एक राजा जब देखहि पिता मेखल तासु शुभ विवाह इच्छहि विवाह पूर्व सोनभद्र दर्शन उपजी इच्छा नर्मदा देखी तहां सोनभद्र संग दूजी कन्या तेहि अवसर नर्मदा मन क्रोध उपजा दुखित मन लीन्ही एक दृढ़ प्रतिज्ञा विवाह न करहू संकल्प तब लीन्हा विपरीत प्रवाह तेहि अवसर कीन्हा जासु हर पाषाण भयो ईश्वर रे मन! तासु पुण्य दर्शन कर रसना भज हर-हर नर्मदे ! पापनाशिनी सर्व कलुष हर ले परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधि...
मेरे कान्हा जी
भजन, स्तुति

मेरे कान्हा जी

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मुझे अपना मीत बनाओ मेरे कान्हा जी, मुझे भी सखियों के संग रिझाओ मेरे कान्हा जी, मुझे भी रासिको का रास सिखाओ मेरे कान्हा जी, मुझे भी प्रेम की अनुभूति करवाओ मेरे कान्हा जी, मुझे भी माखन चुराना सिखाओ मेरे कान्हा जी, मुझे भी निर्गुण से सगुण का भेद समझाओ मेरे कान्हा जी, मुझे भी रणक्षेत्र का अर्जुन बनाओ मेरे कान्हा जी, मुझे भी गीता का ज्ञान करवाओ मेरे कान्हा जी, मुझमें भी भक्ति का भाव जगाओ मेरे कान्हा जी, परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
राम नाम की मधुशाला (भाग- ५)
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राम नाम की मधुशाला (भाग- ५)

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** अंगूरी मदिरा पीने, मदिरालय जाना पड़ता है। कठिन कमाई से अर्जित धन, व्यर्थ गवांना पड़ता है। राम नाम मदिरा अंतर में, खोल भरम का तू ताला। बिना मूल्य के जी भर पी ले, बन जायेगा मधुशाला। राम नाम मदिरा में डूबा, फिर कुछ नहीं लुभायेगा। पूर्ण तृप्त होगा हरपल तू, खुद में ही सुख पायेगा। बहुत नशीली है ये मदिरा, शीघ्र उठा ले तू प्याला। स्वास्थ नहीं करती खराब ये, पी जा पूरी मधुशाला। पी कबीर ने राम नाम को जब लेखनी उठाई है। ऐसी अमृतवाणी फूटी पढ़ दुनिया हरसाई है। राम नाम की मदिरा पीकर, हाथ लिए घूमा प्याला। दोनों हाथ पिलाई जग को, फिर भी भरी है मधुशाला। राम नाम की मदिरा पीनेवाला, उन्मत रहता है। जग आसक्ति छूट जाती है, सदा स्वस्थ तन रहता है। हाथ कार्य करते दिखते हैं, अंतर चले "नाम" माला। सुमिरन में रम जाता है मन...
शरणागत
भजन, स्तुति

शरणागत

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं दीनहीन दुखीयार हूं मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। मैं जन्म-जन्म का मारा हूं मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। मैं हर जगह से हारा हूं मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। रोग शोक ने मुझे घेरा है मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। मैं अज्ञान अंधकार में डूब रहा मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। मैं चेतन से जड़ बन रहा मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। मैं हर दिन पाप कर्म कर रहा मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। मैं तेरी खोज में हर पल भटक रहा मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। मैं तेरे प्रेम स्नेह के लिए तरस रहा मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता ...
राम नाम की मधुशाला (भाग- ४)
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राम नाम की मधुशाला (भाग- ४)

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** इस पवित्र पावन गंगा में, जो भी नित्य नहाता है। उसके पाप नष्ट होते हैं, मुक्ति धाम को पाता है। मानव जीवन धन्य उसीका , जिसने पिया नाम प्याला। जिसमे छलके नाम की मदिरा, उसे कहेंगे मधुशाला। ये कल्याणदायिनी गंगा, मरुथल में बह सकती है। वो अमोघ शक्ति है इसमें, जो चाहे कर सकती है। नाम जाप ने रत्नाकर डाकू, को ऋषि बना डाला। रामायण की रचना करके, वो बन बैठा मधुशाला। भक्त विभीषण दैत्य हो जन्मा, पर फिर भी वो सात्विक था। रावण का मंत्री था फिर भी, सत्यनिष्ठ और धार्मिक था। राम नाम की प्रीत ने उसको, हनुमत से मिलवा डाला। कर सहयोग प्रभु सेवक का, वो बन बैठा मधुशाला। राम नाम की मदिरा का कुछ, स्वाद जिसे मिल जाता है। वो उसमे ही डूब राम रस, सबको खूब पिलाता है। जिसको ये मदिरा चढ़ जाती, हो जाता है मतवाला। स्वांस स्व...
राम नाम की मधुशाला (भाग- २)
छंद, भजन

राम नाम की मधुशाला (भाग- २)

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** तुम अनन्य सेवक हो राम के, स्वांस स्वांस तेरी माला। तुलसी से लिखवा कर महिमा, "तुलसीदास" बना डाला। पीनेवाला ही तो नाम की, महिमा बतला सकता है। तुम बतलाते जाओ महिमा, लिख दूँ अमृत मधुशाला। नाम नशे में रहते हो तुम, क्यों बस यही बखान करो। सबके अन्तर करो प्रेरणा, राम नाम का पान करो। हनुमत इस अमृत मदिरा का, पकड़ा दो हर कर प्याला। हर घर मे हो साकी प्रभु का, वसुंधरा हो मधुशाला। मदिरालय की मदिरा चढ़ती, तो विवेक हर लेती है। राम नाम की मदिरा सबको, भक्ति का फल देती है। लग जाता पूरी श्रद्धा से, जो होकर के मतवाला। उसकी दृष्टि झूमा देती है, वो बन जाता मधुशाला। उस मदिरा का नशा चढ़े तो, नष्ट सभी कुछ होता है। नाम नशा जितना चढ़ता, मन उतना पावन होता है। नाम नशे में डूबके मीरा ने, विष अमृत कर डाला। नाम नशा सबपर चढ़ ...
नितिन राघव ने अपनी एक कविता में सम्पूर्ण रामायण का सबसे छोटा सारांश लिखकर बनाया इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड
धर्म, धर्म-आस्था, भजन, साहित्यिक, स्तुति

नितिन राघव ने अपनी एक कविता में सम्पूर्ण रामायण का सबसे छोटा सारांश लिखकर बनाया इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** बुलन्दशहर। राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच के रचनाकार २१ वर्षीय नितिन राघव बी.एड प्रथम वर्ष के छात्र हैं तथा अपनी लेखनी के द्वारा साहित्य की सेवा कर रहे हैं। आपने अब तक अनेक कविताएं, कहानियां और निबंध लिखें हैं। अपने इन्हीं कार्यों के लिए समय-समय पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी हो चुके हैं। और अबकी बार उन्होंने एक और महान उपलब्धि हासिल की है, जिसके पता चलते ही उनके परिवार और गांव वाले खुशी से झूम उठे। २१ वर्षीय नितिन राघव ने अपनी एक कविता में सम्पूर्ण रामायण लिखकर इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया और इसी के साथ उन लोगों की भी राह आसान कर दी जो रामायण को लम्बा ग्रन्थ होने के कारण पढ नहीं पाते थे क्योंकि इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास समय कम है परन्तु अब रामायण को एक ही कविता में पढा जा सकता है। इसी के साथ ...
राम नाम की मधुशाला (भाग- १)
छंद, भजन

राम नाम की मधुशाला (भाग- १)

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** हनुमत तुमने ही पकड़ाई, राम नाम अमृत माला। अंतर में प्रेरणा जगाई, लिखूं नाम की मधुशाला। तुमसे बड़ा 'नाम' का साकी, नहीं कोई इस धरती पर । अमृत जाम बनाते जाना, पूरी हो ये मधुशाला। बहुत विघ्न आएंगे पथ में, तुम रक्षक बनकर रहना। विघ्नों पर तुम गदा चलाना, मेरे कर में दे माला। राम नाम हर स्वांस में तेरी, तुम हो सदा भरा प्याला। बतलाते जाना तुम महिमा, में तो बस लिखने वाला। हर घर मे अब राम नाम की, मदिरा को पहुंचाना है। हर जिव्हा को स्वाद चखाकर, मुक्ति मार्ग ले जाना है। जब हर कर में आजायेगा, राम नाम मधु का प्याला । तो हर आंगन बन जायेगा, राम नाम की मधुशाला। तुलसी ने बतलाया कलयुग में, बस नाम सहारा है। सभी संत बतलाते केवल, नाम ही तारण हारा है। इतना नाम पिलादो मुझको, हो जाऊं मैं मतवाला। मेरे रोम रोम से निक...
मर्यादा की मूरत राम
भजन, स्तुति

मर्यादा की मूरत राम

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** माँ कौशल्या की कोख से नृप दशरथ सुत जन्में राम। नवमी तिथि चैत्र मास को अयोध्या का था रनिवास।। निहाल हुए अयोध्यावासी, बजने लगी चहुंओर बधाई। जन जन के अहोभाग्य हो, मानुज तन ले प्रगटे रघुराई।। माता पिता की करते सेवा नित, न्योछावर थे खुशियों की खातिर। छोड़ दिये सुख राज महल के, माँ कैकई के दो वचन खातिर।। पिता की आज्ञा मान गये वन, विश्व बंधुत्व का भाव भर कर। जनकसुता का किया वरण, शिव धनुष भंग स्वयंवर में कर।। चौदह वर्षों के वनवास काल में, राक्षसों, दैत्यों का संहार किया। शबरी के जूठे बेरों को खाकर, नवधा भक्ति दे उद्धार किया. पुत्र, भाई, दोस्त की बने मिसाल, सबकी चिंता को मन में लाये। अपनी चिंता का ध्यान न कर, रावणवध से आतंक मिटाए।। पर ज्ञानी रावण की विद्वता को, अंतरमन से स्वीकार ...
श्री लधूनेश्वर महादेव
भजन, स्तुति

श्री लधूनेश्वर महादेव

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** कूर्मावताराभिधान जनपद में, लधून महादेव तीर्थ है | चंद राजार्चित महादेव का, लधून महादेव तीर्थ है || होती समर्पित नवबाल जहाँ, लधून महादेव तीर्थ है | वैशाख शुक्ल चतुर्दशी जाते, श्री लधून महादेव तीर्थ हैं || कर समर्पण नवान्न नैवेद्य, होता वहाँ महादेवार्चन है | होती अपरा बृहत्पूजा जहाँ, लधून महादेव तीर्थ है || कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी, जागरण होता बैकुण्ठ चतुर्दशी | होता बृहत्मेलायोजन सदा, तिथि कार्तिक शुक्ल की चतुर्दशी || कर शिवार्चना तृतीय प्रहर, लधून महादेव तीर्थ पर हैं | रुद्र यज्ञ होता संपन्न जहाँ, लधून महादेव तीर्थ है || बैठ ध्यान में लिंग शक्ति के, देवियां मांगती जहां वरदान हैं | अद्भुत धाम महादेव का, लधून महादेव तीर्थ है || उषाकाल ले भास्कर किरण, आता डोला लधूनेश्वर का है | जहां भक्त परिक्रमावलोकन करें,...