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दोहा

गांधी के तीन बंदर
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गांधी के तीन बंदर

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बंदर गुण पर नजर थी, जो गिनती में तीन। गांधी अनुयायी सही, लाख बजा लो बीन।। साथ रखे वो घूमते, व्यापक था प्रभाव। एक सदी से दिख रहा, बहुत विचित्र स्वभाव।। गलत देख कर गुम हुए, पाए जो संस्कार। पट्टी आंख पर है चढ़ी, हो रहा व्यभिचार।। व्यर्थ वानर अब खड़ा, पनप रहे कुविचार। अभिभावक के सामने, बिगड़ रहा परिवार।। छठी इंद्रिय तेज है, असमंजस कपिराज। गांधी तेरे देश में, अखर रहे हैं काज।। हम कानों से क्या सुनें, सुनती जब दीवार। कर्ण कपि खुद नाच रहा, अनर्थ मय तकरार।। सुनना भी पसंद नहीं, सुंदर भी जब बोल। वानर थाम रहे तुला, कैसे खोलें पोल।। बड़बोला मानव हुआ, एक रहे नित काम। मुख पट्टी भी कपीश की, कचरा गई तमाम।। गांधी के बंदर पले, बहुत बरस की भोर। जीवनकाल खत्म हुआ, चलन दूर का शोर।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १...
मित्रता
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मित्रता

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मित सच्चा देखिए, कर दिया जान निसार। यारी ऐसी कहां मिले, ज्यों पीयूष इसरार। जल में डूबा देखकर, याद आया इकरार। संकट में साथ देना, इक-दूजे से करार। यार-यार पर कर दिया, अपने प्राण निसार। अपने मित्र के लिए, सब भूल गया इसरार। मां की ममता भूला, अब्बा का भूला प्यार। सबसे ऊपर हो गया, यार के खातिर यार। हिंदू मुस्लिम सिख ले, दिल से सच्चा प्यार। मानव से मानव मिले, ज्यों पीयूष इसरार। पोखर भी रोया होगा, देख अनोखा यार। मरकर भी न जुदा हुआ, सच्चा इनका प्यार। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि र...
आधार छंद
छंद, दोहा

आधार छंद

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आधार छंद - दोहा सपनों के आकाश में, पंछी बन संसार। दिखा रहा जादूगरी, रिश्तों को संहार।।१ दृष्टि प्रवंचक घूरती, तन का स्वेद निचोड़, तृषित नैन से भूख के, बहे अश्रु की धार।।२ व्यथित हुई हैं चींटियाँ, भूल गयी प्रतिरोध। यह मौसम जो दे रहा, कोड़े की फटकार।।३ संस्कारों का आवरण, तार-तार कर शर्म। बना रहा मन क्रूरतम, धर्म मनुजता मार।।४ सड़कों पर ज्वालामुखी, घर-घर में आक्रोश। समरसता को दे दिया, उन्मादक आहार।।५ तख्ती बैनर झंडियाँ, जलसों के परवाज। मार रहे सौहार्द को, बन घातक हथियार।।६ सत्ता के घर कैद में, सुख की धवल प्रभात। चढ़ सीने पर दीन के, करे बदन विस्तार।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी ...
शिक्षक चालीसा
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शिक्षक चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* पांच सितम्बर गुरुदिवस, राधा कृष्ण मनाय। शिक्षक सारे राष्ट्र का, निर्माता कहलाय।। जयजय गुरुवर शिक्षक भाई। सारा जग है करत बड़ाई।।१ गुरु विश्वामित द्रोण कहाये। सांदिपन ने कृष्ण पढ़ाये ।।२ तुम चाणक बन राष्ट्र बनाते। चन्द्रगुप्त को राज दिलाते।।३ तुम गुरुवर बन कला सिखाते। जनगणमण भी गान कराते।।४ राजनीति शिक्षा में आई। तब से गुरु की साख गिराई।।५ शिक्षक के हैं भेद अनेका। शिक्षा कर्मी गुरुजी एका।।६ संविदा उच्च सहायक जानो। व्याख्याता प्राचार्य बखानो।।७ अतिथि की नही तिथी बताते। जीवन दुखड़ा सभी सुनाते।।८ समय का फेर बदलते देखा। आय व्यय का करते लेखा।।९ कर्मचारी बन वेतन पाते। सकल योजना तुम्हीं चलाते।१० बच्चों को भोजन खिलवाते। मिड डे की भी डाक बनाते।।११ समग्र अयडी भी बनवाओ। ता पीछे मेपिंग करवाओ।।१२...
भादों की बरसात में
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भादों की बरसात में

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* भादों की बरसात में, मेरो मन हुलसाय। मोहन तेरी याद में, मोसे रहो न जाय।।१ बनो मेघ तुम दूतड़ा, जाव पिया के पास। प्रीतम के संदेश की, रहती मन में आस।।२ बरसाने की राधिका, नंद गांव के लाल। रिमझिम-रिमझिम बरस के, सबको करो निहाल।।३ राधा ने ऐसी करी, तुमसे कही न जाय। बंसी मुकुट छुड़ाय के, सखियां लई बुलाय।।४ घन बरसे घनश्याम से, मघा पूरवा साथ। ग्वाला घूमे गौ संग, लई लकुटिया हाथ।।५ वृंदावन की गलिन में, राधा संग गुपाल। बलदाऊ के संग में, गैया चारे लाल।।६ एक दिना की बात है, मोहन माखन खाय। पीछे आई गोपिका, मां को लिया बुलाय।।७ मैया से कहने लगी, चोरी करते लाल। देखें तो पति बंधे मिले, भाग गयो वो ग्वाल।।८ हाथ जोड़ कहने लगी, माफ करो अब श्याम। मैं तो मूरख गोपिका, तू जग को घनश्याम।।९ लाला तुम बड़ चतुर हो, हमें रहे भरमा...
हरियाली तीज
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हरियाली तीज

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावन की शुभ तीज है, आनंद अति उमंग। गौरी पूजे नारियाँ, मन उल्लास उतंग।। सावन के झूले पड़े, झूले सुंदर नार। सजी-धजी सखियाँ हँसे, ऊँची पींगें मार।। मालपुए मीठे करें, मुँह में मधुर मिठास। घर-घर सावन तीज का, पर्व मनाएं खास।। शंकर-गौरी पूजती, सभी सुहागन नार। सुख सौभाग्य सँवारती, माँगे शुभ संसार।। हरियाली चहुँ ओर है, हुआ हरित संसार। पावस की बूंदें करें, सकल धरा श्रृंगार।। बरखा बरसे झूमके, व्योम धरा सन्देश। इंद्रधनुष के रंग सजे, निखरे नभ का वेश।। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से लेखन रचना प्रकाशन : साहित्यिक पत्रिकाओं में, कविता, कहानी, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल आदि का प्रकाशन, आकाशवाणी...
संवेदन संदूक
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संवेदन संदूक

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** हुई रिक्त इंसान की, संवेदन संदूक। हर हमीद ने हाथ अब, थाम रखी बंदूक।।१ उर में रखे सँभालकर, नफरत वाले बीज। तभी परस्पर खून से, तर हो रही कमीज।।२ भाईचारे की नसें, काट रहे हम रोज। समरसता उन्माद में, कौन सका है खोज।।३ अलगू जुम्मन नित्य ही, करते वाद-विवाद। अब जख्मी सद्भाव से, रिसने लगा मवाद।।४ जहर फसल पर सींचकर, किया प्रदूषित खेत। बचा न कोई गीत अब, गाये हम समवेत।।५ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु...
बादल
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बादल

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** काले बादल नभ चढ़े, घटा लगी घनघोर। शीतल मन्द पवन चली, नाच रहे वन मोर। कोयल पपिहा कुंजते, दादुर करें पुकार। काले बादल देखकर, ठंडी चली बयार। काले बादल नभ चढ़े, बरसे रिमझिम मेह। गौरी झूला झूलती, साजन सावन नेह। घटा गगन शोभित सदा, बादल बनकर हार। मेघ मल्लिका रूपसी, धरा सजे सौ बार। प्यासी धरती जानकर, बादल झरता नीर। लहके महके वनस्पति, बरसे जीवन क्षीर। धरती दुल्हन हो गई, बादल साजन साथ। यौवन में मदमस्त है, प्रीत पकड़ कर हाथ। बादल से वसुधा करी, स्नेह सुधा का पान। गागर सागर से भरी, स्वर्ण कलश सम्मान। मूंग मोठ तिल बाजरा, यौवन में मदमस्त। धान तुरही लता चढ़ी, बादल पाकर उत्स। श्वेत नीर फुव्वार से, भीगे गौरी अंग। खुशी खेत में नाचती, बादल हलधर संग। दुल्हा बनकर चढ़ चला, बादल तोरण द्वार। दुल्हन प्यारी सज गई...
गुरु-महिमा
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गुरु-महिमा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गुरु सूरज है, चाँद है, गुरु तो है संवेग। अपने शिष्यों को सदा, देता जो शुभ नेग।। ज्ञान, मान, नव शान दे, दिखलाए जो राह। शिष्यों का निर्माण कर, पाता है गुरु वाह।। गुरु देता है शिष्य को, सत्य संग आलोक। बने शिष्य उल्लासमय, तजकर सारा शोक।। गुरु करके नित त्याग को, बनता सदा महान। गुरु से सदा समाज को, मिलती चोखी शान।। गुरु के प्रखर प्रताप से, रोशन होता देश। गुरु-वंदन नित ही करो, ले साधक का वेश।। गुुरु तो नित उजियार है, मारे जो अँधियार। गुरुकृपा से दिव्य हो, शिष्यों का संसार।। गुरु जीवन का सार है, गुरु जीवन का गीत। गुरु से तो हर शिष्य को, मिलती है नित जीत।। गुरु आशा, विश्वास है, गुरु है नव उत्साह। हर युग में गुरु को मिली, वाह-वाह अरु वाह।। गुरु ईश्वर का रूप है, गुरु विस्तृत आकाश। जो बिन गुरु रहता...
दोहाष्टक
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दोहाष्टक

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** यौवन रस बरसा मगर, हुई न प्रीति प्रगाढ़।। मृदु चुंबन की आस में, दुर्बल हुआ असाढ़।।१ चितवन ने होकर मुखर, बिछा दिया है जाल। चुग्गा चुगने को प्रणय, खग सा भरे उछाल।।२ मदिर नैन झुकते गये, रक्तिम हुए कपोल। चुंबन का प्रतिसाद पा, थिरक उठे रमझोल।।३ हृदय पृष्ठ पर प्रीति के, उग आये जलजात। नैनो से झरने लगे, प्रियता युक्त प्रपात।।४ ले स्वरूप संकल्पना, जोड़ - जोड़ संदर्भ। शब्द-बीज का प्रस्फुटन, हो जब कवि के गर्भ।।५ धरा मेघ मिल रच रहे, प्रियता के अनुबंध। रोम-रोम से आ रही, मदिर पावसी गंध।।६ जला दिये तारीफ कर, हीरामन ने दीप। रत्नसेन मन जा बसा, प्रिय के सिंहल द्वीप।।७ सम्बन्धों के दुर्ग की, कवच बने प्राचीर। मोती रखे सहेज कर, पड़ी सीप ज्यों नीर।।८ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र...
गणित सूत्र को गाइये
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गणित सूत्र को गाइये

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* लंबाई चौड़ाई गुणा, क्षेत्रफल का मान। चाल समय का गुणा करें, दूरी का हो ज्ञान।।१ लंबाइ चौड़ाई अरु, ऊंचाई गुण आन। आयतना को पाइए, कहत हैं कवि मसान।।२ त्रिज्या पाई दो गुनी, वृत्त की परिधि जान। त्रिज्या दुगुनी व्यास है, कहत हैं कवि मसान।।३ आंकड़ों का योग करें, कुल संख्या का भाग। फिर औसत को पाइये, मिले गणित का राग।।४ दर समय अरू मूल का, गुणा करें सम्मान। सौ से भाग दीजिये, सरल ब्याज को आन।।५ गायन वाचिक परम्परा, भारत की पहिचान। गणित ज्ञान को गाइये, कहत हैं कवि मसान।।६ संकेत १. क्षेत्रफल=लंबाई×चौड़ाई २. दूरी=चाल×समय ३. आयतन=लंबाई×चौड़ाई ×ऊंचाई ४. वृत्त की परिधि= २πr या २×त्रिज्या ५. औसत=सब संख्याओं का योगफल/संख्याओं की संख्या ६. सरल ब्याज=मूलधन×दर×समय/१०० परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आ...
बारह पूनम जानिये
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बारह पूनम जानिये

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* हनुमत प्रगटे चैत में, बुद्ध बैसाख जान। जेठ कबिरा अवतरे, अषाढ़ व्यास महान।।१ सावन में राखी बंधे, भादों तर्पण दान। शरद पूर्णिमा क्वार की, वाल्मीक भगवान।।२ कार्तिक नानक जानिये, अगहन दत्त सुजान। पौष कहो शाकंभरी, माघ रैदास आन।।३ फागुन में होली जले, नाश बुराई जान। बारह पूनम जानिये, हिन्दी महिना ज्ञान।।४ परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा देश के कई राज्यों ने पुरस्कृत भी किया है। डॉं. मसानिया विगत १० वर्षों से हिंदी गायन की विशेष विधा जो दोहा चौपाई पर आधारित है, चालीसा लेखन में लगे हैं। इन चालिसाओं को अध्ययन की सुविधा के लि...
नायक शुभ परिवार का
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नायक शुभ परिवार का

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** सुखद निलय की मूल है, पिता धूप में छाँव। नायक शुभ परिवार का, दृढ़ ग्रहस्थ दे पाँव।।(१) नित्य दिवस निशि कर्म कर, पोषक पालनहार। उदर तृप्त परिवार का, प्रमुदित शुभ घर द्वार।। (२) अति कठोर उर आवरण, अंत मृदुल संसार। कठिन परिश्रम से पिता, सुत भविष्य दे तार।। (३) मूक हृदय मधु भाव रख, कर्म करे दिन-रात। विपदा में सुत ढाल बन, प्रलय काल दे मात।।(४) थाम ऊँगली प्रति कदम, साथ चले वो पंथ। उनके काँधे बैठकर, देखे उत्सव ग्रंथ।।(५) पिता डाँट कड़वी लगे, करती औषध कर्म। बुरी आदतें त्यागनें, कुशल निभाए धर्म।।(६) कर्मठता से सींचकर, नींव बनाए दक्ष। यश वैभव सुविधा सभी, पिता प्रदायक वृक्ष।। (७) शीर्ष पिता साया रहे, सकल स्वप्न साकार। खुशियों के विस्तार से, मिटे तमस कटु खार।।(८) रिश्तें सब अपने लगे, पिता रहे जब साथ।...
तुलसी का पौधा
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तुलसी का पौधा

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** तुलसी का पूजन करो, श्रृद्धा से धर ध्यान। जग के सारे देव में, यह है परम महान।। जल देते प्रति दिन इन्हें, जो भी नर या नारि। संकट उनका नित हरें, महादेव त्रिपुरारि।। घर के ऑंगन में रखें, तुलसी पौधा रोप। कष्ट सभी संहारती, रोके सकल प्रकोप।। धर्म-कर्म होता नहीं, बिन तुलसी के पत्र। मिल जाती हर ठौर में, यहाॅं-वहाॅं सर्वत्र।। श्री विष्णु को प्रिय यही, रहे सदा ही संग। भोग नहीं इसके बिना, कहते सभी प्रसंग।। रोग निवारक है दवा, इसके गुंण अनंत। तुलसी को सब मानते, हो गृहस्थ या संत।। तुलसी पौधा देव का, है जग पर उपकार। *राम* बिमारी में करें, इससे शुभ उपचार।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा...
तमस घनेरा हो रहा
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तमस घनेरा हो रहा

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तमस घनेरा हो रहा, श्याम थाम लो हाथ। दास अकेला हो गया, रहना हर पल साथ।। नहीं अकेला राह में, चलता रह दिन-रात। कृष्ण सदा ही साथ हैं, सुन ले अब तू तात।। पीड़ा मन की बोलती, अश्रु बहे दिन-रैन। श्याम अकेला कर गए, नहीं हिया में चैन।। आया तू संसार में, निपट अकेला तात। जाना है सब त्याग के, सुनना इतनी बात।। मीत अकेला रह गया, हुई अकेली रात। अश्रु नैन में भर गए, तभी हुई बरसात।। कभी अकेला सा लगे, सुनना मन की बात। कहीं दबी तुममें रही, लक्ष्यहीन सौगात।। कभी अकेला मत करो, खुद को जानो आप। कुछ क्षण भीतर झाँक लो, काटो हर संताप।। स्व मूल्यांकन तो करो, नहीं अकेले आप। पा लोगे तुम जीत को, करो साधना जाप।। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन ...
चारो खाने चित्त
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चारो खाने चित्त

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** चारो खाने चित्त हो गए अब खत्म हो गया खेल अहम खा गया बबुआ को अब जी भर बीनें बेल मुर्गा मदिरा मज़हब जैसा चला न कोई चारा हाथ मल रहे लुटिया डूबी अब्बा हुए बेचारा चचा भतीजा और बहन जी सभी हो गए पस्त हाथ मल रहा हाथ हुआ जो हर मंसूबा ध्वस्त राजनीति की पिच पर देखो खा गए ऐसा धक्का क्लीन बोल्ड बबुआ हुए अब हैं हक्का बक्का मिट्टी में मिल गए ख्वाब सकते में सैफई कुल ओम प्रकाश बड़ बोले की भी सिट्टी पिट्टी गुल गढ़ते रहे समाजवाद की नित्य नई परिभाषा ताक में बैठी जनता ने पलट दिया ही पासा स्वामी की भी अक्ल गुम बिखर गई हर आस बुत्त हो गया कुनबा सारा हुआ पुनः वनवास अक्ल के मारे चौधरी की देखो चर्बी गई उतर हेल का मारा बेल हुआ ना सूझे कोई डगर रहो सदा औकात में बंधु कहते यही बुजुर्ग अहंकार में ढह जाएगा बन...
अवगुंठन के खोल पट
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अवगुंठन के खोल पट

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** अवगुंठन के खोल पट, सुधियों की बारात। थिरकी मानस पृष्ठ पर, जैसे निविड़ प्रपात।।१ अधर शलाका से प्रिया, गई अधर रस घोल। गुलमोहर पी मत्त है, करता कलित किलोल।।२ आतप का अवदान पा, तन हो गया निहंग। मन का वृंदावन रँगा, गुलमोहर के रंग।।३ अनुरंजक अवसाद ने, किये स्वप्न चैतन्य। भिगो गया अंतस पटल, सुधियों का पर्जन्य।।४ आशाएँ बूढ़ी हुई, साँझ गई जब हार। नव प्रभात ने फिर किया, किरणों से शृंगार।।५ पुष्प प्रभाती प्रीति के, चुनकर लायी भोर। अवसंजन की कामना, मुखर हुई पुरजोर।।६ हुआ समर्पित भाव से, प्रणयन जो अनुमन्य। मरुथल मन महका गये, सुधियों के पर्जन्य।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
चिंता…. चिंतन
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चिंता…. चिंतन

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चिंता चिंता कभी न कीजिए यह है चिता समान सेहत तन मन की हरे रखो सदा यह भान चिंता से कुछ ना बने तन दुर्बल हो जाय सुख व चैन मन का लुटे काज न कोई भाय चिंतन चिंता से चिंतन भला मन हर्षित हो जाय राम नाम का सिलसिला बन्धन मुक्त कराय शुभ चिंतन करो मनवा सभी पाप मिट जाय बिन पानी साबुन बिना मन निर्मल हो जाय परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindir...
फागुन ने आलाप भर …
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फागुन ने आलाप भर …

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन ने आलाप भर, पढ़े प्रीति के छंद। बढ़ा समीरण में नशा, पुष्प-पुष्प मकरंद।।१ मन्मथ पर मधुमास का, ज्यों ही पड़ा प्रभाव। खारिज यौवन ने किया, पतझड़ का प्रस्ताव।।२ तन कान्हा की बाँसुरी, मन राधिका मृदंग। बजा स्वयं नित झूमता, 'जीवन'हुआ मलंग।।३ मन के गमले में खिला, दुर्लभ प्रीति गुलाब। झुककर स्वागत में खड़ा, इस तन का महताब।।४ देख रहा है स्वर्ग से, जब से मरा कबीर। भेदभाव की हो रही, गहरी और लकीर।।५ सड़कों पर आएँ निकल, घर के पूजन-पाठ। शिक्षित हो कर बन गया, हृदय हिन्द का काठ।।६ शकुनि चित्त जब-जब चले, छल चौसर के दाँव। दुख का आतप जीतता, हारे सुख की छाँव।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपन...
मेरा दामन मैला
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मेरा दामन मैला

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** मेरा दामन मैला लेकिन किसकी चुनरी धोरी बोल एक अंगुरिया मुझे दिखाई बाकी तीनों तेरी ओर! बीच राह कीच भरा हो बच कर निकलो दोनों छोर गर पंक बीच पत्थर मारोगे छींटा लागे चारों ओर! नहीं बेटियां रक्षित घर में नाते रिश्ते हो गए गौण बाड़ खेत खाने लगे तो फिर बोलो रखवाले कौन! बटी मनुजता जात धर्म में देश की बात करे ना कोय ना दादुर तुल सके तराजू ना मानुष का एका होय!!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
होली आई झूम के
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होली आई झूम के

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** होली आई झूम के, खेलें रंग गुलाल। मस्ती में सबका हुआ, हाल यहाॅ बेहाल।। धर पिचकारी मारते, भर भर सब पर रंग। बाल वृद्ध देखो चलें, लेकर सबको संग।। सब मिलकर के गा रहे, सुंदर होली गीत। छोड़ सभी शिकवा गिला, आज़ बने सब मीत।। ढ़ोलक की है थाप पर, नाचें सब हुरियार। देखो सारे आज़ हैं, खूब किये श्रृंगार।। कोयल मीठी गा रही , बैठ आम की डाल। अमराई की छांव में, खेल रहे सब बाल।। आज खुशी से नाचता, यह सारा संसार। फागुन लेकर आ गया, होली का त्यौहार।। टेसू फूले लाल है, सुंदर है वन बाग। होली खेलो प्रेम से, छेड़ बसंती राग।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित ...
छत्तीसगढ़ी दोहे
आंचलिक बोली, दोहा

छत्तीसगढ़ी दोहे

रामकुमार पटेल 'सोनादुला' जाँजगीर चांपा (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी दोहे) होरी हे के कहत मा, मन म गुदगुदी छाय। गोरी गुलाल गाल के, सुरता कर मुसकाय।। एक हाँथ गुलाल धरे, दुसर हाँथ पिचकारि। बने रंग गुलाल लगा, गोरी ला पुचकारि।। रंग रसायन जब लगे, होही खजरी रोग। परत रंग तन मन जरय, नहीं प्रेम के जोग।। चिखला गोबर केंरवँछ, जबरन के चुपराय। खेलत होरी मन फटे, तन मईल भर जाय।। परकिरती के रंग ले, रंग बड़े नहि कोय। डारत मन पिरीत बढ़े, खरचा न‌इ तो होय।। परसा लाली फूल ला, पानी मा डबकाय। डारव कतको अंग मा, कभु न जरय खजवाय।। परसा फूले लाल रे, पिंवँरा सरसों फूल। गोरी होरी याद रख, कभु झन जाबे भूल।। होरी अइसन खेल तैं, सब दिन सुरता आय। अवगुन के होरी जरे, कभु गुन जरे न पाय।। तन के भुइयाँ अगुन के, लकरी लाय कुढ़ोय। अगिन लगा ले ग्यान के, हिरदे उज्जर होय।। लाल ...
अनुपम दोहे
दोहा

अनुपम दोहे

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** १) दिनन बाड़ बीते जग सत्य ना दीखो मोए । टहरत आऊं मशान तौ साँचहिं सन्मुख होए।। २) क्रोधि शील सज्जन चपल ज्ञानी मूर्ख अनजान। लेकर सबको जो चलैं। वो ही चतुर सुजान।। ३) पर परनिंदक को नहीं अनुपम पाए पार। कपट, घृणा, छल ईर्ष्या निंदा कै श्रृंगार।। ४) दूरी इनसन राखिए जो निज हित की चाह। दिखैं जहां कर जोड़ कै तुरत बदल लो राह।। ५) स्वप्न दिखै चितवऊं उहय 'अनुपम' तोरो रूप। हाँसे जग मुझपर स्वयं लेकर चरित कुरूप।। ६) जे भगतन खैं जो कहैं तसहिं तुरत तस पाएं। ज्ञान डरो बौनो जहाँ भगति बो रस कहलाए।। ७) लंबी रचना का कहूँ ? जा में शब्द हजार। दोह बखानत मैं चली ले ग्रंथन को सार।। ८) पण्डित सो ना बांचिये जिनके ज्ञान अगाध। शीश स्वयं के दम्भ अरु प्रशनन करत हैं घाघ।। ९) हरि से गाढ़ी प्रीति तौ शास्त्र रटे का काम? ...
तुहिन कणों से
दोहा

तुहिन कणों से

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** तुहिन कणों से ज्यों भरा, प्रत्यूषा ने अंक। कांतियुक्त आदित्य की, काया हुई मयंक।। ठिठुरे हुए निसर्ग को, काया के अनुरूप। खोल पिटारी बाँटता, अर्क मखमली धूप।। सिंदूरी सा ज्यों हुआ,प्राची का मुख म्लान। गीत प्रभाती गा विहग, भरने लगे उड़ान।। गाये सुख की छाँव ने, गीत मंगलाचार। मिला धूप के पाँव को, छालों का संसार।। द्वेष जलाकर प्रीति का,उपजाते सद्भाव। बने सहारा शीत में, आदिम हुए अलाव।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प...
धूप
दोहा

धूप

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** हुआ देह का धूप से, मनभावन सत्संग। खिलें कुमुदिनी की तरह, शीतल सिकुड़े अंग।।१ भोर अगहनी दे गई, भू पर छटा अनूप। आँगन में आ खेलती, कोमलांग सी धूप।।२ बालकनी में भोर से, ठिठक खड़ी है धूप। सेंक रही है पीठ को, बचा-बचाकर रूप।।३ गिरफ्तार कर धूप को, ठोक रहे घन ताल। उजड़ गई जो आजकल, सूरज की चौपाल।।४ मतदाता के नैन पर, पट्टी बाँधे भूप। बाँट रहा है छीनकर, मुट्ठी-मुट्ठी धूप।।५ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ...