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दोहा

नहीं बनो तुम बेरहम
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नहीं बनो तुम बेरहम

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** दुनिया कितनी बेरहम, दया-धर्म से दूर। मानवता ने खो दिया, अपना सारा नूर।। जो होता है बेरहम, पशु के जैसा जान। ऐसे मानव को कभी, नहीं मिले सम्मान।। नहीं बनो तुम बेरहम, रखो नेह का भाव। पर-उपकारी जीव में, होता करुणा-ताव।। रखो प्रकृति औदार्य तुम, तभी बनेगी बात। रहम जहाँ है पल्लवित, वहाँ पले सौगात।। जो होता है बेरहम, बनकर रहे कठोर। करे पाप, अन्याय वह, बिन सोचे घनघोर।। नरपिशाच बन बेरहम, करता नित्य कुकर्म। सत्य त्यागकर अब मनुज, गहता पंथ अधर्म।। हिटलर था अति बेरहम, किया बहुत संहार। ऐसे मानुष से सदा, फैले बस अँधियार।। कोमलता को रख सदा, बंदे अपने पास। मत बनना तू बेरहम, वरना टूटे आस।। जो होता है बेरहम, होता सदा कुरूप। सूरज भी देता नहीं, उसको अपनी धूप।। टेरेसा बनकर रहो, करुणा रखकर संग। कभी न बन तू बे...
40 साल बाद
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40 साल बाद

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* कपिलदेव नायक बने (विश्वकप विजय २५.६.१९८३) तरासी के साल में, आया था भूचाल। कपिलदेव नायक बने, भारत मां के लाल।। साठ साठ के मेच में, करते बेड़ा पार। किरकेट के बजार में, भारत की सरकार। पौने दो सौ रन बना, नया रचा इतिहास। विश्वकप को जीत के, लीनी थी फिर सांस।। टी-ट्वन्टी की क्या कहूँ, चौकों की बौछार। छक्के भी तो छूटते, बालर हा हा कार।। दो हजार अरु सात में, आया धोनी राज। बीस-बीस के मेच में, भारत के सिर ताज।। दो हज्जार एकादशा, बरस अठाइस बाद। तेंदुलकर की टेक थी, भारत कप निर्बाध।। हसन का बंगला ढहा, अंग्रेजन टकरार। आयरिश भी चले गये, डच भी भये किनार।। अफरीका भारी पड़ा, फिर भी कटी पतंग। इंडीजवेस्ट पिट गया, रहा नहि कोइ संग।। पोंटिंग आउट भये, अफरीदि गये हार। संगकारा संघर्ष में, छूट गई तलवार।। ...
दर्शन दो दुर्गा माँ
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दर्शन दो दुर्गा माँ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** दुर्गा माँ तुम आ गईं, हरने को हर पाप। संभव सब कुछ है तुम्हें, तेरा अतुलित ताप।। बढ़ता ही अब जा रहा, जग में नित अँधियार। करना माँ तुम वेग से, अब तो तम पर वार।। भटका है हर आदमी, बना हुआ हैवान। हे माँ! दे दो तुम ज़रा, मानव-मन को मान।। सद्चिंतन तजकर हुआ, मानव गरिमाहीन। दुर्गा माँ दुर्गुण हरो, सचमुच मानव दीन।। छोटी-छोटी बच्चियाँ, हैं तेरा ही रूप। उन पर भी तुम ध्यान दो, बाँटो रक्षा-धूप।। हम सब हैं तेरा सृजन, तू सचमुच अभिराम। दुर्गा माँ तू तो सदा, रखती नव आयाम।। ये पल पावन हो गए, लेकर तेरा नाम। यह जग दुर्गे है सदा, तेरा ही तो धाम।। दुर्गा माँ तुम वेगमय, तुम तो हो अविराम। धर्म, नीति तुमसे पलें, साँचा तेरा नाम।। दुर्गा माँ तुमने किया, मार असुर कल्याण। नौ रूपों में तुम रहो, पापी खाते बाण।। सिंहव...
चेहरा भाव
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चेहरा भाव

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मानो कहकर सोचना, दे जाता अवसाद। जो सोचकर कहे सदा, मनमोहक हो नाद।। चेहरा भाव जानिए, अंतर्मन की चाल। कलम समझ तो अनवरत, भाषा मालामाल।। हाव_भाव गुण देन से, जीवन कुछ आसान। दोहरापन छिपा कहीं, कर लेते पहचान।। मुख से प्रकट कुछ करे, मन में रखे दुराव। भिन्न रूप अति सहजता, दिखता है स्वभाव।। पढ़कर भाषा अंग की, माना होती जीत। बचना हो जब गैर से, उसकी है ये रीत।। रिश्तों संग कटुता कभी, देती जब आभास। सहज ढंग परखो इन्हें, सुखद रहे आवास।। विभिन्न अर्थ नकारते, अपनी जिद की टेक। सदाचार ही खो गया, जो बन सकता नेक।। साफ झलकते भाव की, परख शक्ति ही शान। शब्द चयन आधार से, मृदु कुटिल पहचान।। गुण अवगुण दोनों रहें, जग मानव का सार। सहनशील हरदम नहीं, अवश्य करो विचार।। परख अनोखी चाहतें, संभव रहे बचाव। हर पहलू के रूप दो, गलत ...
स्वामी विवेकानंद
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स्वामी विवेकानंद

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** प्रखर रूप मन भा रहा, दिव्य और अभिराम। स्वामी जी तुम थे सदा, लिए विविध आयाम।। स्वामी जी तुम चेतना, थे विवेक-अवतार। अंधकार का तुम सदा, करते थे संहार।। जीवन का तुम सार थे, दिनकर का थे रूप। बिखराई नव रोशनी, दी मानव को धूप।। सत्य, न्याय, सद्कर्म थे, गुरुवर थे तुम ताप। काम, क्रोध, मद, लोभ हर, धोया सब संताप।। गुरुवर तुमने विश्व को, दिया ज्ञान का नूर। तेज अपरिमित संग था, शील भरा भरपूर।। त्याग, प्रेम, अनुराग था, धैर्य, सरलता संग। खिले संत तुमसे सदा, जीवन के नव रंग।। था सामाजिक जागरण, सरोकार, अनुबंध। कभी न टूटे आपसे, कर्मठता के बंध।। सुर, लय थे, तुम ताल थे, बने धर्म की तान। गुरुवर तुम तो शिष्य का, थे नित ही यशगान।। मधुर नेह थे, प्रीति थे, अंतर के थे भाव। गुरुवर तुमने धर्म को, सौंपा पावन ताव।। वं...
हिंदी के दोहे
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हिंदी के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी में तो शान है, हिंदी में है आन। हिंदी का गायन करो, हिंदी का सम्मान।। हिंदी की फैले चमक, यही आज हो ताव, हिंदी पाकर श्रेष्ठता, रखे उच्चतर भाव।। हिंदी में है नम्रता, देती व्यापक छांव। नवल ताज़गी संग ले, पाये हर दिल ठांव।। दूजी भाषा है नहीं, हिंदी-सी अनमोल। है व्यापक नेहिल 'शरद', बेहद मीठे बोल।। हिंदी का बेहद प्रचुर, नित्य उच्च साहित्य। बढ़ता जाता हर दिवस, इसका तो लालित्य।। हिंदी प्राणों में बसे, यही भावना आज। हर दिल पर करती रहे, मेरी हिंदी राज।। हिंदी नित गतिमान हो, सदा करे आलोक। इसी तरह हरदम प्रथम, फिर मन कैसा शोक।। हिंदी मेरा ज्ञान है, यह मेरा अभिमान। रोक सकेगा कौन अब, इसका तो उत्थान।। हिंदी में संवेग है, हिंदी में जयगान। सारे मिल नित ही करें, हिंदी का गुणगान।। हिंदी पूजन-यज्ञ है,...
राखी पर दोहे
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राखी पर दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** राखी में तो धर्म है, परंपरा का मर्म। लज्जा रखने का करें, सारे ही अब कर्म।। राखी धागा प्रीति का, भावों का संसार। राखी नेहिलता लिए, नित्य निष्कलुृष प्यार।। राखी बहना-प्रीति है, मंगलमय इक गान। राखी है इक चेतना, जीवन की मुस्कान।। राखी तो अनुराग है, अंतर का आलोक। हर्ष बिखेरे नित्य ही, परे हटाये शोक।। राखी इक अहसास है, राखी इक आवेग। भाई के बाजू बँधा, खुशियों का मृदु नेग।। राखी वेदों में सजी, महक रहा इतिहास। राखी हर्षित हो रही, लेकर मीठी आस।। राखी में जीवन भरा, बचपन का आधार। राखी में रौनक भरी, देती जो उजियार।। भाई हो यदि दूर तो, डाक निभाती साथ। नहीं रहे सूना कभी, वीरा का तो हाथ।। यही कह रहा है 'शरद’, राखी का कर मान। वरना होना तय समझ, मूल्यों का अवसान।। राखी में आवेश है, राखी में उल्लास। राखी...
प्रीति की रीति के दोहे
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प्रीति की रीति के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन दिखता है वहाँ, जहाँ प्रीति की रीति। अंतर्मन में चेतना, पले नेह की नीति।। नित्य प्रीति की रीति से, जीवन बने महान। ढाई आखर यदि रहें, दूर रहे अवसान।। संग प्रीति की रीति है, तो जीवन खुशहाल। कोमल भावों से सदा, इंसां मालामाल।। जियो प्रीति की रीति ले, तो सब कुछ आसान। मन की पावनता सदा, लाती है उत्थान।। जहाँ प्रीति की रीति है, वहाँ बिखरता नूर। सुख आ जाता साथ में, हो हर मुश्किल दूर।। ताप प्रीति की रीति है, जो हरती अवसाद। श्याम-राधिका हो गए, सदियों को आबाद।। अगर प्रीति की रीति है, तो होगा यशगान। दिल से दिल जुड़कर सदा, रचते नवल विधान।। आज प्रीति की रीति से, युग को दे दो ताप। जीवन तब अनमोल हो, दर्द उड़े बन भाप।। प्रीति रीति मंगल रचे, करे सदा आबाद। प्रीति बिना इंसान तो, हो जाता बरबाद।। रीति प...
धरती करे पुकार
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धरती करे पुकार

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन भर गाते सभी, धरा मातु के गीत। हरियाली को रोपकर, बन जाएँ सद् मीत।। हरी-भरी धरती रहे, धरती करे पुकार। तभी हवा की जीत है, कभी न होगी हार।। हरियाली से सब सुखद, हो जीवन अभिराम। पेड़ों से साँसें मिलें, धरा बने अभिराम।। धरा सदा ही पालती, संतति हमको जान। रखो धरा के हित सदा, बेहद ही सम्मान।। धरा लुटाती नेह नित, वह करुणा का रूप। उसकी पावन गोद में, सूरज जैसी धूप।। धरा लिए संसार नित, बाँटे सुख हर हाल। हवा, नीर, भोजन, दुआ, पा हम मालामाल।। धरा-गोद में बैठकर, होते सभी निहाल। मैदां, गिरि, जंगल सघन, सुख को करें बहाल।। हरियाली के गीत नित, धरा गा रही ख़ूब। हम सबको आनंद है, बिछी हुई है दूब।। नित्य धरा-सौंदर्य लख, मन में जागे आस। अंतर में उल्लास है, नित नेहिल अहसास।। धरा सदा करुणामयी, बनी हुई वरदान।...
नीर से ही जीवन है
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नीर से ही जीवन है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नीर लिए आशा सदा, नीर लिए विश्वास । नीर से सांसें चल रही, देवों का आभास ।। अमृत जैसा है सदा, कहते जिसको नीर । एक बूँद भी कम मिले, तो बढ़ जाती पीर ।। नीर बिना जीवन नहीं, अकुला जाता जीव । नीर फसल औ' अन्न है, नीर "शरद" आजीव ।। नीर खुशी है, चैन है, नीर अधर मुस्कान । नीर सजाता सभ्यता, नीर बढ़ाता शान ।। जग की रौनक नीर से, नीर बुझाता प्यास । कुंये, नदी, तालाब में, है जीवन की आस ।। सूरज होता तीव्र जब, मर जाते जलस्रोत । घबराता इंसान तब, अनहोनी तब होत ।। नीर करे तर कंठ नित, दे जीवन को अर्थ । नीर रखे क्षमता बहुत, नीर रखे सामर्थ्य ।। नीर नहीं बरबाद हो, हो संरक्षित नित्य । नीर सृष्टि पर्याय है, नीर लगे आदित्य ।। नीर बादलों से मिले, कर दे धरती तृप्त । बिना नीर के प्रकृति यह, हो जाती है तप्त ।। नीर ...
महाप्रभु वल्लभ चालीसा
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महाप्रभु वल्लभ चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* श्री वल्लभ सुमिरन करुं, मनुज रूप अवतार। लीला राधे श्याम की, कीनी जग विस्तार।। जयजय महप्रभु वल्लभदेवा। पुष्टि मार्ग को तुम्ही सेवा।।१ इलम्मागारु कोख से आये। लक्षमन भट्ट पिता कहाये।।२ संवत पंद्रह सौ पैंतीसा। एकादशी को जन्में ईशा।।३ कृष्णा पक्ष मास बैसाखा। धरम महीना जग की आशा।।४ जिला रायपुर चम्पा ग्रामा। आये वल्लभ जन कल्याणा।।५ गोपाल कृष्ण कुल के देवा। मातु पिता सब करते सेवा।।६ गुरु मंगला विल्व पढ़ाया। अष्टादश का मंत्र बताया।।७ काशी में प्रभु विद्या पाई। अल्पकाल में करी पढ़ाई।।८ स्वामी नारायण दी शिक्षा। तिरदंडा संयासी दिक्षा।।९ ब्रह्मसूत्रअणु भाष्य बनाया। उत्तर मीमांसा कहलाया।।१० भगवत टीका की कर रचना। तत्व अर्थ दीपा का लिखना।।११ अग्निदेव अवतारा भाई। जगत गुरु की पदवी पाई।।१२ काशी अं...
गाँव
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गाँव

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गाँव बहुत नेहिल लगें, लगतें नित अभिराम। सब कुछ प्यारा है वहाँ, सृष्टि-चक्र अविराम।। सुंदरता है गाँव में, फलता है मधुमास। जी भर देखो जो इसे, तो हर ग़म का नाश।। सुंदर हैं नदियाँ सभी, भाता पर्वतराज। वन-उपवन मोहित करें, दिल खुश होता आज।। हरियाली है गाँव में, गूँजें मंगलगान। प्रकृति सदा ही कर रही, गाँवों का यशगान।। खेतों में धन-धान्य है, लगते मस्त किसान। हैं लहरातीं बालियाँ, करें सुरक्षित शान।। कभी शीत, आतप कभी, पावस का है दौर। नयन खोल देखो ज़रा, करो प्रकृति पर गौर।। खग चहकें, दौड़ें हिरण, कूके कोयल, मोर। प्रकृति-शिल्प मन-मोहता, किंचित भी ना शोर।। जीवन हर्षाने लगा, पा मीठा अहसास। प्रकृति-प्रांगण में सदा, स्वर्गिक सुख-आभास।। जीवन को नित दे रही, प्रकृति सतत उल्लास। हर पल ऐसा लग रहा, गाँव सदा ह...
गाँव की बेटी-दोहों में
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गाँव की बेटी-दोहों में

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी भाती गाँव की, जो गुण से भरपूर। जहाँ पहुँच जाती वहाँ, बिखरा देती नूर।। बेटी प्यारी गाँव की, प्रतिभा का उत्कर्ष। मायूसी को दूरकर, जो लाती है हर्ष।। बेटी जो है गाँव की, करना जाने कर्म। हुनर संग ले जूझती, सतत् निभाती धर्म।। गाँवों की बेटी सुघड़, बढ़ती जाती नित्य। चंदा-सी शीतल लगे, दमके ज्यों आदित्य।। कुश्ती लड़ती, दौड़ती, पढ़ने का आवेग। गाँवों की बेटी लगे, जैसे हो शुभ नेग।। बेटी गाँवों की भली, होती है अभिराम। जिसके खाते काम के, हैं अनगिन आयाम।। खेतों से श्रम का सबक, बढ़ना जाने ख़ूब। गाँवों की बेटी प्रखर, होती पावन दूब।। करती बेटी गाँव की, अचरज वाले काम। मुश्किल में भी लक्ष्य पा, हासिल करती नाम।। गाँवों को देती खुशी, रचती है सम्मान। बेटी मिट्टी से बनी, रखती है निज आन।। राजनीति, सेना ...
पुस्तकें सत्य की
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पुस्तकें सत्य की

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** सदा पुस्तकें सत्य की, होती हैं आधार। सदा पुस्तकों ने किया, परे सघन अँधियार।। देती पुस्तक चेतना, हम सबको प्रिय नित्य। पुस्तक लगती है हमें, जैसे हो आदित्य।। पुस्तक रचतीं वेग से, संस्कारों की धूप। पढ़ें पुस्तकें मन लगा, पाओ तेजस रूप।। पुुस्तक गढ़े चरित्र को, पुस्तक रचती धर्म। पुस्तक में जो दिव्यता, बनती करुणा-मर्म।। पुस्तक में इतिहास है, जो देता संदेश। पुस्तक से व्यक्तित्व नव, रच हरता हर क्लेश।। पुस्तक साथी श्रेष्ठतम, सदा निभाती साथ। पुस्तक को तुम थाम लो, सखा बढ़ाकर हाथ।। पुस्तक में दर्शन भरा, पुस्तक में विज्ञान। पुस्तक में नव चेतना, पुस्तक में उत्थान।। पुस्तक का वंदन करो, पुस्तक है अनमोल। पुस्तक विद्या को गढ़े, पुस्तक की जय बोल।। विद्यादेवी शारदा, पुस्तकधारी रूप। पुस्तक को सब पूजते, रंक र...
हे प्रेम जगत में सार
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हे प्रेम जगत में सार

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** हे प्रेम जगत में सार कोई सार नही, मन करले प्रभु से प्यार और कोई प्यार नही। भाव का भूखा हूं मैं भाव ही एक सार है, भाव से मुझको भजे तो समझो बेड़ा पार है। प्रेम के कारण ही भगवान श्रीराम जी, ने शबरी के यहां जूठे बेर को खाए। प्रेम कारण ही श्री-कृष्णा जी ने विदूर, के यहां केले के छिलके के भोग लगाए। प्रेम न उपजे बाड़ी में प्रेम न बिके बाजार, प्रेम करले उस परमात्मा से करेगें बेड़ा पार। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
नारी तू नारायणी
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नारी तू नारायणी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नारी तू नारायणी, है दुर्गा का रूप। रमा, उमा, माँ शारदे, में तेरी ही धूप।। नारी तू नारायणी, ज्ञान, चेतना, मान। जिस गृह रहती तू वहाँ, पलता नित उत्थान।। नारी तू नारायणी, जीवन का है सार। तेरे कारण ही मिला, जग को यह उजियार।। नारी तू नारायणी, है सुर, लय अरु ताल। गहन तिमिर हारा सदा, काटे तू सब जाल।। नारी तू नारायणी, तू हर पल अभिराम। तू धन, विद्या, नूर है, तू है मीठी शाम।। नारी तू नारायणी, गरिमा तेरे संग। खुशियों का उत्कर्ष तू, तेरे अनगिन रंग।। नारी तू नारायणी, रोते को है हास। मायूसी में तू रचे, जगमग करती आस।। नारी तू उर्जामयी, नारी तू तो ताप। तेरे गुण, देवत्व को, कौन सका है माप।। नारी तू नारायणी, ममतामय हर रोम। करुणामय, शालीन है, ऊँची जैसे व्योम।। नारी तू नारायणी, कभी न माने हार। साहस तेरा...
पर्यायवाची शब्द चालीसा
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पर्यायवाची शब्द चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* कृष्ण कंहैया श्याम अरु, मोहन बृज गोपाल। दीनबंधु राधारमण, दुखहारक नंदलाल।। पर्यायवाची में लखो, बहु शब्दों का ज्ञान । भाषा की कर साधना, कहत हैं कवि मसान।। सरस्वती भारति मां शारद। ब्रह्मासुत ज्ञानी मुनि नारद।।१ पवनतनय कपिपति हनुमाना। राघव रघुवर राजा रामा।।२ स्वामी पति नाथ अरू कंता। साधू मुनि यति ज्ञानी संता।।३ विष्णुपगा गंगा सुरसरिता। कुंजा उपवन बाग बगीचा।।४ सोम सुधाकर शशि राकेशा। राजा भूपति भूप नरेशा।।५ वानर बंदर मर्कट कीशा। ईश्वर भगवन प्रभु जगदीशा।।६ पुत्र तनय सुत बेटा पूता । कोकिल कोयल पिक परभूता।।७ विष्णु चतुर्भुज हरी चक्रधर। वारिद बादल नीरद जलधर।।८ गणपति गणनायक लंबोदर। भ्राता भाई बंधु सहोदर।।९ सर तालाब सरोवर पुष्कर। आशुतोष शिव शंभू शंकर।।१० जहर हलाहल विष की धारा। बैरी दुश्मन शत्रु ...
आयुर्वेदिक दोहे
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आयुर्वेदिक दोहे

ऋषिता मसानिया आगर  मालवा (मध्य प्रदेश) ******************* थोड़ा सा गुड़ लीजिए, दूर रहें सब रोग। अधिक कभी मत खाइए, चाहे मोहनभोग।। अजवाइन और हींग लें, लहसुन तेल पकाय। मालिश जोड़ों की करें, दर्द दूर हो जाय।। ऐलोवेरा-आँवला, करे खून की वृद्धि। उदर व्याधियाँ दूर हों, जीवन में हो सिद्धि।। दस्त अगर आने लगें, चिंतित दीखे माथ। दालचीनि का पाउडर, लें पानी के साथ।। मुँह में बदबू हो अगर, दालचीनि मुख डाल। बने सुगन्धित मुख, महक, दूर होय तत्काल।। कंचन काया को कभी, पित्त अगर दे कष्ट। घृतकुमारि संग आँवला, करे उसे भी नष्ट।। बीस मिली रस आँवला, पांच ग्राम मधु संग। सुबह शाम में चाटिये, बढ़े ज्योति सब दंग।। बीस मिली रस आँवला, हल्दी हो एक ग्राम। सर्दी कफ तकलीफ में, फ़ौरन हो आराम।। नीबू बेसन जल शहद, मिश्रित लेप लगाय। चेहरा सुन्दर तब बने, बेहतर यही उपाय।। मधु का सेवन जो करे, सुख ...
समय चुनाव का
छंद, दोहा

समय चुनाव का

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** दोहा छंद आया समय चुनाव का, करना है मतदान। हमें बनाना है यहाॅं, मिलकर एक विधान।। लोकतंत्र की जान है, वोटर का अधिकार। स्वस्थ प्रशासन के लिए, यह सुंदर आधार।। सोच समझकर ही करें, हम अपना मतदान। दूर प्रलोभन से रहें, बढ़े देश की शान।। छणिक प्रलोभन में डिगे, कभी नहीं ईमान। सच्चे मतदाता बनें, रखना है यह ध्यान।। ऐसे नेता को चुनें, समझ सके जो पीर। मतदाता के ऑंख से, पोंछ सके जो नीर।। पाॅंच वर्ष की योजना, लाती है सरकार। जनता के हित में बने, वही करें स्वीकार।। मतदाता को चाहिए, कर नेता की जाॅंच। वोट उसी को दीजिए, लगता हो जो साॅंच।। जाति धर्म की भावना, इन सबसे हों दूर। वोट कभी मत कीजिए, होकर के मजबूर।। प्रत्यासी जाना हुआ, देश भक्त इंसान। राजनीति की हो परख, उसे करें मतदान।। अपना देश महान है, इसकी...
स्वच्छता के दोहे
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स्वच्छता के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** बिखरी हो जब गंदगी, तब विकास अवरुध्द। घट जाती संपन्नता, खुशियाँ होतीं क्रुध्द।। वे मानुष तो मूर्ख हैं, करें शौच मैदान। जो अंचल गंदा करें, पकड़ो उनके कान।। सुलभ केंद्र तो कर रहा, सचमुच पावन काम। सचमुच में वह बन गया, जैसे तीरथ धाम।। फलीभूत हो स्वच्छता, कर देती सम्पन्न। जहॉं फैलती गंदगी, नर हो वहाँ विपन्न।। बनो स्वच्छता दूत तुम, करो जागरण ख़ूब। नवल चेतना की "शरद", उगे निरंतर दूब।। अंधकार पलता वहाँ, जहाँ स्वच्छता लोप। जागे सारा देश अब, हो विलुप्त सब कोप।। मन स्वच्छ होगा तभी, जब स्वच्छ परिवेश। नव स्वच्छता रच रही, नव समाज, नव देश।। है स्वच्छता सोच इक, शौचालय-अभियान। शौचालय हर घर बने, तब बहुओं का मान।। शौचालय में सोच हो, कूड़ा कूड़ादान। तन-मन रखकर स्वच्छ हम, रच दें नवल जहान।। जीवन में आनंद त...
प्रिये! तुम्हारे रूप का …
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प्रिये! तुम्हारे रूप का …

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** प्रिये! तुम्हारे रूप का, ज्यों ही खिला बसंत। नैनों में हँसने लगा, सुधियों का हेमंत।।१ ठिठुरन ले जब आ गई, माघ-पौष की रात। बैरन निंदियाँ कर रही, रोज कुठाराघात।।२ प्रत्यूषा के द्वार पर, दिखलाने औचित्य। कुहरे का स्वेटर पहन, घूम रहा आदित्य।।३ साया ज्यों ही झूठ का, लगा निगलने धूप। गरम चाय की केतली, ले आया ठग भूप।।४ शर्मिंदा जब-जब हुआ, कर्मों पर दरबार। लिखते गौरव की कथा, चारण बन अखबार।।५ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
पितृ अभिव्यक्ति
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पितृ अभिव्यक्ति

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** पिता कह रहा है सुनो, पीर, दर्द की बात। जीवन उसका फर्ज़ है, बस केवल जज़्बात।। संतति के प्रति कर्म कर, रचता नव परिवेश। धन-अर्जन का लक्ष्य ले, सहता अनगिन क्लेश।। चाहत यह ऊँची उठे, उसकी हर संतान। पिता त्याग का नाम है,भावुकता का मान।। निर्धन पितु भी चाहता, सुख पाए औलाद। वह ही घर की पौध को, हवा, नीर अरु खाद।। भूखा रह, दुख को सहे, तो भी नहिं है पीर। कष्ट, व्यथा की सह रहा, पिता नित्य शमशीर।। है निर्धन कैसे करे, निज बेटी का ब्याह। ताने सहता अनगिनत, पर निकले नहिं आह।। धनलोलुप रिश्ता मिले, तो बढ़ जाता दर्द। निज बेटी की ज़िन्दगी, हो जाती जब सर्द।। पिता कहे किससे व्यथा, यहाँ सुनेगा कौन। नहिं भावों का मान है, यहाँ सभी हैं मौन।। पिता ईश का रूप है, है ग़म का प्रतिरूप। दायित्वों की पूर्णता, संघर्षों की ...
मृगनयनी के दृग चटुल, छोड़ रहे ब्रह्मास्त्र….
दोहा

मृगनयनी के दृग चटुल, छोड़ रहे ब्रह्मास्त्र….

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** मृगनयनी के दृग चटुल, छोड़ रहे ब्रह्मास्त्र। बचना हैं तो आप भी, पढ़ें प्रीति का शास्त्र।।१ चंचरीक मन खोलकर, बैठा हृदय गवाक्ष। पढ़े प्रीति की पत्रिका, गोरी के पृथुलाक्ष।।२ भुजपाशों में कैद हो, विहँस उठा शृंगार। जीत गया तन हार कर, मन का वणिक विचार।।४ मेघावरियाँ प्रीति की, बरस रही रस धोल। नर्तन करे कपोल पर, कुंतल भी लट खोल।।४ अवगुंठन कर यामिनी, पढ़े प्रणय के गीत। निक्षण की अभ्यर्थना, स्वीकारो मन मीत।।५ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं...
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डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दीपक बाती तेल मिल, करते तम का नाश। अपना जीवन वार कर, जग में करें प्रकाश।। सीता लांघी देहरी, टूटी घर की रीत। रावण के पाखंड में, साधू वाली प्रीत।। मां के आंचल में मिलें, ममता भरा सुकून। कदमों में जन्नत सदा, बरसे नेह प्रसून।। आज धर्म के नाम पर, होते कितने क्लेश। मानवता को भूलकर, शत्रु बन गये देश।। जय माला शोभित भाल, सूरवीर के संग। रण में झलके वीरता, रुधिर सने हो अंग।। ईश आस्था रखें सदा, सुख दुख में हर बार। जीवन में सहायक है, जग का तारणहार।। आंख शयन की प्रेयसी,नित करती अनुराग। नेह पलक पर सींचती, नयन निंद से जाग।। सात जन्म का साथ था, प्रीत रही अनमोल। नेह लिप्त मीरा रही, रस जीवन में घोल।। लगन लगी जब श्याम से, कहां रहा कुल भान। मीरा माधव प्रेम में, विष का कर ली पान।। सखा श्याम से भेंट कर, नैन ब...
शरद पूर्णिमा
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शरद पूर्णिमा

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** षोडश कल युत चंद्रमा, दिये सुधा सौगात। युगल रचाते रास हैं, शरद पुर्णिमा रात।। शरद पूर्णिमा यामिनी, करें बिहारी रास। राधा घट की स्वामिनी, सोहे दोनों पास।। शरद धवल है चंद्रमा, रजनी पूनम आज। सज्जित षोडश है कला, सुधा सरस है साज।। चन्द्र किरण कोजागिरी, दोष मुक्त सब लोग। भोग प्रसादी खीर का, काया रहे निरोग।। चन्द्र प्रभा शीतल लगे, शरद रहा है साक्ष्य। ताप घटेगा सूर्य का, जाड़ा बनता लक्ष्य।। परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की सभी विधाओं में समान रूप से लेखन रचना प्रकाशन : साहित्यिक पत्रिकाओं में, कविता, कहानी, लघुकथा, गीत, ग़ज़ल आदि का प्रकाशन, आकाशवाणी से प्रसारण। प्राप्त सम्मान : अभिव्यक्ति विचार मंच नागदा से अ...