मातु शारदे
सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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सरसी छंद (१६, ११)
मातु शारदे मैया मेरी, देती मन को जान।
शीश हाथ पर उसका मेरे, बढ़ता मेरा ज्ञान।।
सच्चाई के पथ चलने की, देती हमको सीख।
निज के श्रम से सब मिलता है, दे ना कोई भीख।
मानवता का पथ ही आगे, करता नव निर्माण।
सुख सुविधाएँ बढ़ती जाती, होता सबका त्राण।
माना मैं मूरख अज्ञानी, इसमें क्या है दोष।
कभी कहाँ मुझको आता है, इस पर कोई रोष।
दूर करेगी हर दुविधा माँ, इसका मुझको बोध।
जिसको भी चिंता करना है, वो ही कर लें शोध।।
ज्ञान ज्योति माँ सदा जलाती, नित नित देती ज्ञान।
समझ रही है मैया मेरी, मैं मूरख अंजान।
कालिदास मूरख को भी तो, बना दिया विद्वान ।
घटा मान विद्योतमा का, सभी रहे हैं जान।।
दंभी रावण की मति फेरी, उसका हुआ विनाश।
और विभीषण को मैया पर, था पूरा विश्वास।
कंस और श्री कृष्ण कथा ...