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गीत

जाग, अब मत सो चिरैया
गीत

जाग, अब मत सो चिरैया

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** है बड़ा निष्ठुर जमाना। जाँच के ही पग उठाना। सद्जनों में है अहेरी, जाल सब जाने बिछाना।। हाथ में तलवार रख ले, चाहती हक जो चिरैया।।१ छाँव के छाते तने हैं। बस दिखावे को बने हैं। तंत्र के साधक सिपाही, काम लिप्सा में सने हैं।। स्वप्न के उर्वर पटल पर, शूल तू मत बो चिरैया।।२ घाव रिश्तों ने दिए जो। खून के आँसू पिए जो। अब चुकाने का समय है, कर्ज वे मन पर लिए जो।। कीच जो तुझ पर उछाले, अब उन्हीं को धो चिरैया।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
कृष्ण अवतार
गीत, भजन

कृष्ण अवतार

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण। सिर्फ एक बार मुझे चरण को छू लेने दो। हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।। रोज सपने में दिखते हो मुझे प्यारे कृष्ण। कहाँ है पर है नहीं तेरा ठिकाना मेरे कृष्ण। किस जगह की छवि मुझे रोज दिखते हो। उस जगह पर मुझे तुम बुला लो कृष्ण।। हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।। अपनी आँखों से तुम देखते हो जग से। हर किसी पर तेरे दृष्टि रहती है कृष्ण। मेरे आँखों में भी दिव ज्योति दे दो। ताकि मैं सुबह शाम तेरे दर्शन कर सकूँ।। हम तेरे दर्शन को आये है बहुत दूर से कृष्ण।। अपनी लीलाएं दिखाकर सबको लूभाते हैं। खेल-खेल में अंत राक्षको का कर दिया। और कंस मामा को भी संदेश देते गए। फिर एक दिन क्रीड़ा के द्वारा ही कृष्ण ने। कंस का वध करके मथुरा को मुक्त किया।। हम तेरे दर्शन को आये है बहु...
सावन के घर
गीत

सावन के घर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** धरना देने सावन के घर, पहुँचा रिक्त घड़ा। बोझ कर्ज का लिए शीश पर, सोयाबीन खड़ा।। खेत धान के माँगे पानी, मक्का मुरझायी। उड़द मूँग मौजेक ग्रस्त हैं,अरहर अलसायी।। गिलकी लौकी कद्दू के तन, विष का शूल गड़ा।। बोझ कर्ज का लिए शीश पर, सोयाबीन खड़ा।।१ ज्वार बाजरा आरक्षण की, देख रहे राहें। मतदाता गन्ना भी चाहे, पकड़ो अब बाहें।। धमकी देता मूँगफली का, घायल हुआ धड़ा।। बोझ कर्ज का लिए शीश पर, सोयाबीन खड़ा।।२ कुल्थी सन जगनी ने पायी, राहत दो चुटकी। हुई अल्पसंख्यक श्रेणी में, जब कोदो-कुटकी।। मेघराज ने जल वितरण में, पहरा किया कड़ा।। बोझ कर्ज का लिए शीश पर, सोयाबीन खड़ा।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी ...
हे कृष्ण ! पुकारे…
गीत

हे कृष्ण ! पुकारे…

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** हे कृष्ण पुकारें तुमको अब तो आ जाओ अपनी सारी लीलाएं, फिर से दिखलाओ। भारत माँ को फिर से शत्रु ने घेरा है, और नागों ने अन्दर भी डाला डेरा है, तेरे सब ग्वाले भी सोये हैं चादर तान कर्म-विमुख सब, चारों ओर अंधेरा है, स्वार्थ में हम जो सदियों से खोए-सोये पाञ्चजन्य का घोष, तुम फिर से गुंजाओ। हम धर्म-कर्म सबको ही भूले-भाले हैं, हमसे बहुत दूर हो चुके सभी उजाले हैं, बुजुर्गों की ना सुनें, पढ़ें ना ग्रंथों को रातें तो रातें, सब ही दिन भी काले हैं, अर्जुन जैसा पात्र, बना करके हमको तुम गीता का सन्देश, आज फिर से गाओ। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परि...
भारत प्यारा देश हमारा
गीत

भारत प्यारा देश हमारा

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** जहां भगत सिंह उद्धव और आजाद हुए है जहां महाभारत जैसे धर्म युद्ध हुए हैं बहती जहां गंगा यमुना की पावन धारा है सबसे अच्छा भारत प्यारा देश हमारा जो विश्व शांति का है प्रतीक अनेक धर्मों को जिसने है अपनाया दीन दुखियों को दिया है जिसने सहारा है सबसे अच्छा भारत प्यारा देश हमारा जो सत्य की हमेशा जय बोले है जिसने सदैव धर्म को अपनाया जो लगता हमें प्राणो से भी प्यारा है सबसे अच्छा भारत प्यारा देश हमारा सनातन और इसकी संस्कृति का रखवाला जो नाम कमाता है विश्व में फेंककर भाला है जहां हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई का भाईचारा है सबसे अच्छा भारत प्यारा देश हमारा परिचय :- नितिन राघव जन्म तिथि : ०१/०४/२००१ जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर पिता : श्री कैलाश राघव माता : श्रीमती मीना देवी शिक्षा : बी एस सी (बायो), आई०पी०पीजी...
ये कैसी दूरी सावन में
गीत

ये कैसी दूरी सावन में

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये कैसी दूरी सावन में रात उतर आई आंगन में पवन के झोंके ले हिलोरे चांद कहे हमें आ मिलो रे रुत मिलन की है आई रे बदली गगन में है छाई रे जिले जो पल मिले जीवन मे ये कैसी दूरी सावन में रात उतर आई आंगन में ।। महकता जो हर सिंगार है रजनीगंधा का खुमार है टिप-टिप बरसे है रसरंग तन मन मे उठी है तरंग है ताप अनल का यौवन में ये कैसी दूरी सावन में रात उतर आई आंगन में ।। भोर में खनकते है कंगन कसमसाती देह के बंधन कजरा गजरा रूठा-रूठा प्रीतम मेरा झूठा-झूठा मयूर नांचे ना चितवन में ये कैसी दूरी सावन में रात उतर आई आंगन में ।। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : उप पुलिस अधीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्ष...
रक्षाबंधन गीत
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रक्षाबंधन गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सुखदाई वर्षा ऋतु आई, धरती पर सावन मुस्काया। राखी पर बहना उदास है, सब आए पर अनुज न आया। सात समंदर पार बसा है, पत्र बहुत लम्बे लिखता है। मोबाइल पर करता बातें, मुखड़ा भी उसका दिखता है। मन में कुछ बदलाव नहीं है। बदल गई पर उसकी काया। राखी पर बहना उदास है, सब आए पर अनुज न आया। अधिक व्यस्त है वह कहता है, उसे मिला अवकाश नहीं है। है विदेश में दुनिया सारी, पर भारत-सा प्राश नहीं है। माँ के हाथों निर्मित लड्डू, जग में अनुपम कहीं न पाया। राखी पर बहना उदास है, सब आए पर अनुज न आया। पापा स्वस्थ नहीं रहते हैं, मौन बहुत रहतीं हैं माता। केवल सात महीने बीते, दादी त्याग गईं हर नाता। सभी कुशल-मंगल है घर में, भाई को बस यही बताया। राखी पर बहना उदास है, सब आए पर अनुज न आया। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहि...
सागर बनकर
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सागर बनकर

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** इस तम के पर्वत पर चढ़कर सूरज लाएंगे, फिर तो उत्सव घर-घर में हर रोज मनाएंगे। दुख के बादल दाँत दिखाते द्वारे-द्वारे पर, खट-खट कुंडी बजा रहे हैं किसी इशारे पर। शीघ्र अँधेरे को इसकी ओकात बताएंगे।। थोड़ी गलती हमसे हो गयी स्वार्थ में खोए, धर्म-कर्म सब भूल-भाल तालाबों से सोए। सागर बनकर के लेकिन अब ज्वार उठाएंगे।। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, विश्व मानव, स्पूतनिक, मनस्वी वाणी, राष्ट्रीय पहल, राष्ट्रीय नवाचार, कुबेर टाइम्स, मोनो एक्सप्रेस, अमृत महिमा, नव किरण, जर्जर...
तिरंगा लहराए
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तिरंगा लहराए

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** हृदय में लहरें उठती हैं- जब-जब ये तिरंगा लहराए, बलिदानी जो बलिदान हुए- वह याद सभी हमको आये। इस माटी का मोल जरा- पूछो तो फौजी भाई से- बेटा जब बॉर्डर पर हो- तब पूछो उसकी माई से, अपनी भारत माँ के किस्से- हमको अम्मा ने बतलाए। हँसकर फांसी पर झूले- आजादी के मतवाले थे, सावरकर, शेखर, सुभाष- और भगत सिंह निराले थे, इन वीर सपूतों के कारण ही- आजादी को हैं हम पाए। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, विश्व मानव, स्पूतनिक, मनस्वी वाणी, राष्ट्रीय पहल, राष्ट्रीय नवाचार, ...
कोरोना का टीका
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कोरोना का टीका

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** राहत सरकारी पाना हो, गर तुझको सुखदाई। कोरोना का टीका जाकर, लगवा प्यारे भाई।। ****** टीका नहीं लगाओगे तो, कैसे सफर करोगे। कंट्रोल के राशन के बिन, कैसे पेट भरोगे।। सुविधाओं से वंचित रहना, तो होगा दुखदाई। कोरोना का टीका जाकर, लगवा प्यारे भाई।। ***** अगर परीक्षा देनी पहले, टीका बहुत जरूरी। लापरवाही क्षम्य नहीं है, हसरत रहे अधूरी।। शर्त यही पहली प्रवेश की, हमने यार लगाई। कोरोना का टीका जाकर, लगवा प्यारे भाई।। ***** हो कोई सम्मेलन चाहे, उसको मान दिलाए। टीका लेने वाला ही तो, प्रथम पंक्ति में जाए।। जो अपना ही दुश्मन हो, कब जाने पीर पराई। कोरोना का टीका जाकर, लगवा प्यारे भाई।। ****** सेवाहित ऑफिस जाना हो, लो टीका फिर सेवा। वेतन रुक जाएगा वरना, दूर रहेगा मेवा।। टीके का प्रमाण रहे बन, ...
मैं भारत की बेटी हूँ
गीत

मैं भारत की बेटी हूँ

आरती यादव "यदुवंशी" पटियाला, पंजाब ******************** मैं भारत की बेटी हूँ, भारत का गीत सुनाती हूँ गाँधी, बोस और चंद्रशेखर की कुर्बानी को गाती हूँ, भगत सिंह भारत माँ की ममता का कर्ज चुकता है इसके दामन की रक्षा हेतु सूली पर चढ़ जाता है, लड़ी लड़ाई झांसी वाली, दुश्मन उससे हार गए जाने कितने देश भक्त, जो शीश भारत पर वार गए, स्वतंत्र, समृद्ध और सबल भारत की आज़ादी को गाती हूँ मैं भारत की बेटी हूँ, भारत का गीत सुनाती हूँ ।। जब अंग्रेजी सत्ता की तानाशाही ना बर्दाश्त हुई भारत की भोली जनता जब उनसे बहुत हताश हुई, भड़क उठी ज्वाला हर दिल में, स्वतंत्रता संग्राम की गली-गली फिर लहर चली इक आज़ादी के नाम की, भारत के लालों के आगे दुशमन देखो हार गए, भारत के लालों को देखो, भारत पर शीश वो वार गए, सींचा जिसको रक्त बूँद से, मैं वो किस्सा बतलाती हूँ, मैं भारत की बे...
भारत की महिमा
गीत

भारत की महिमा

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** गाओ माँ भारती की महिमा, जीवन सुखमय आराम है.... वीर सपूतों ने दे दी बलिदानी, मातृभूमि खातिर हो गए कुर्बानी। उनके वीरता को करे सलाम हैं ... जग में सोने की चिड़ियाँ कहलायें, विश्व पटल पर जो परचम लहरायें। यही भारत भूंईया के काम हैं... अमर शहीदों को नमन करते हैं, हर-पल, हर-क्षण वंदन करते हैं। यही तो मातृभूमि की धाम हैं तीन रंगों से निर्मित हैं तिरंगा, आन-बान-शान इनके है अंगा। माँ भारती की असली दाम हैं ... अनेकता में एकता यही विशेषता हैं, समन्वय भाव पुष्प यही विशालता हैं। भारत की करते हम बखान हैं ... भारत देश प्राणों से प्यारा हैं, गंगा यमुना सरस्वती तीनों धारा हैं। दृश्य अनुपम नयनाभिराम हैं ... स्वदेश की रक्षा हिमालय करती है, कन्याकुमारी चरणों को धोती हैं। चारों दिशाओं में तीरथ धाम है...
मैं शायर हु तेरे शहर का
गीत

मैं शायर हु तेरे शहर का

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैं शायर हु तेरे शहर का मैं आशिक हु तेरे शहर का कहे सभी दीवाना मुझ को मैं पक्का हु अपनी धुन का मैं शायर हु तेरे शहर का ।। गीत गाना मेरी आदत में जीत जाना मेरी आदत में सब दिलो पर राज करता हूँ सभी का मैं काज करता हूँ मैं यार हूँ सभी दिलबर का मैं शायर हु तेरे शहर का ।। हर तरफ मेरी आशिकी है हर तरफ मेरी मौसिकी है जो भी देखे मुझे एक बार देखता ही रहे बार बार मैं यार नही एक बार का मैं शायर हु तेरे शहर का ।। मुझ में तेरी रवानी देख भूली हुई वो कहानी देख याद तेरी पल पल आऊंगा याद में तेरी बस जाऊंगा तू सुरीला मेरी बहर का मैं शायर हु तेरे शहर का ।। मेरा अरमान तेरा सपना कोई तो हो मेरा अपना जान मुझे एक बार कहना तू ही तो है मेरा गहना है पैगाम तेरे सफर का मैं शायर हु तेरे शहर का मैं आशिक हु तेरे शहर का ।। परि...
सावन गाता है
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सावन गाता है

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** सच-सच मेरे नयन बताओ, मत इन तारों को गिनवाओ, सूरत दिखा-दिखाकर चंदा मेघों में क्यों छिप जाता है ? क्यों श्वासों को नोंच रहे हैं यादों के पंछी आवारा, इच्छाओं की नाव बह चली और मन का खो गया किनारा, दूर रहो, ओ मस्त हवाओ ! पर मुझको इतना बतलाओ- मेरी वीणा टूट गयी जब- फिर ये सावन क्यों गाता है? छिपा-छिपा रोपे जो मैंने सब सपने नीलाम हो गए, तनिक जरा सी ठोकर खाई, और हाथों के जाम खो गए, मिलने का कोई जतन बताओ कोई मंत्र मुझे सिखलाओ पीपल भी तो पतझड़ बनकर फिर से पत्ते फल पाता है। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर ...
धरा पर सूर्य
गीत

धरा पर सूर्य

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** एक दिन, अपने जीवन का- अंधेरा भी मिटाना है, धरा पर सूर्य लाकर उजालों को चुराना है । इन केशों के जंगल की है, छाया बहुत काली, नहीं सच देखने देतीं हैं मेरी आँख मतवाली । हुई है आन्दोलित जीभ कि हमको और खाना है । ये मन, अब तो गगन को माँगते थकता नहीं देखो, कि उड़ जाता है, बाँधे से भी ये बंधता नहीं देखो । अधरों पर लगा ताला हृदय में डूब जाना है । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, विश्व मानव, स्पूतनिक, मनस्वी वाणी, राष्ट्रीय पहल, राष्ट्रीय नवाचार, कुबेर टाइम्स, मो...
गुरुदेव की भक्ति
गीत, भजन

गुरुदेव की भक्ति

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** भक्ति मैं करता तेरे साझ और सबेरे। चरण पखारू तेरे साझ और सबरे। चरण पखारू तेरे साझा और सबरे। तेरे मंद-मंद दो नैन मेरे मनको दे रहे चैन। तेरे मंद-मंद दो नैन...। क्या ज्ञान क्या अज्ञानी जन, आते है निश दिन मंदिर में। एक समान दृष्टि तेरी पड़ती है उन सब जन पर। पड़ती है दृष्टि तेरे उन सब पर। तेरे कर्णना भर दो नैन मेरे मनको दे रहे चैन। तेरी कर्णना भरे दो नैन मेरे मनको दे रहे चैन।। त्याग तपस्या की ऐसे सूरत हो। चलते फिरते तुम भगवान हो। दर्शन जिसको मिल जाये बस। जीवन उनका धन्य होता। जीवन उनका धन्य होता। तेरा जिसको मिले आशीर्वाद। उसका जीवन हो जाये कामयाब। तेरा जिसको मिले आशीर्वाद। उसका जीवन हो जाये कामयाब।। ऐसे गुरुवर विद्यासागर के चरणों में संजय करता उन्हें वंदन, करता उन्हें शत शत वंदन।। परिचय :- बीना ...
देवतुल्य परिवार मिले
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देवतुल्य परिवार मिले

डॉ. राजीव पाण्डेय गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** प्राणवंत हो सुप्त भावना, हो पूरण सब मनोकामना। वाणी में अमृत घुलता हो। बाँहो का हार मचलता हो। अग्रज के सम्मुख हम नत हो। आदर्शों में अध्ययनरत हों। हो बीजारोपण ममता का। जहाँ पाठ पढ़े सब समता का। कर्मठता का मूल्यांकन हो। हर योग यहाँ मणिकांचन हो। घर घर मे तुलसी सेवा हो। हर मूर्ति यहाँ सचदेवा हो। जहाँ वेद ऋचाएं गुंजित हों। आशीषों से अभिनन्दित हों। घर प्रगतिशील कल्पना हो। जीवन में नई अल्पना हो। मुरली की तान बिखरती हो। मंदिर घण्टा ध्वनि बजती हो। जीवन का कोना कुसुमित, रोज यहाँ त्योहार मिले। संस्कृतियों के संरक्षण हित देवतुल्य परिवार मिले। सुरभित क्यारी सी गंध मिले। उन सुमनों पर मकरन्द मिले। उन पर भृमरों का गुंजन हो। कली का अलि से अभिनन्दन हो। जहाँ पक्षी करते होंकलरव। हो गन्ध गंध में हर अवयव। ...
क्यूँ न गीत खुशी के गायें
गीत

क्यूँ न गीत खुशी के गायें

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** जब स्वच्छंद अम्बर तले, लहर रही हो हरियाली, जब उपवन के पुष्प देख, हर्षित हो रहा हो वन माली, तब क्यूँ न गीत खुशी के गायें! जब जग में जगी हो मानवता, मानव में ना हो विषमता, सेवा में समर्पण हो तन मन, पूजा जाए जब अपना वतन, तब क्यूँ ना गीत खुशी के गायें! जहाँ महिला जग में न्यारी हो, महके भाईचारा की क्यारी हो, जब राग द्वेष आडम्बर परे, दिखते नारी नर खरे खरे, तब क्यूँ ना गीत खुशी के गायें ! जहाँ शिक्षा की ही पूजा हो, सब हो अपना ना दूजा हो, भूखे को भोजन देने पानी, बड़ी लंबी पंक्ति में हो दानी। तब क्यूँ ना गीत खुशी के गायें! परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी...
जनसंख्या बढ़ती जाती है
गीत

जनसंख्या बढ़ती जाती है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** जनसंख्या बढ़ती जाती है, कौन नियंत्रण कर पाएगा। संसाधन सीमित हैं भाई, कब ये सत्य समझ आएगा।। ***** सोच समझकर काम करें हम, खुशहाली घर आंगन लाएं। मनमाने आचरण हमेशा, हमें गर्त में लेकर जाएं।। शोलों पे चलने वाला क्या, गीत मल्हार कभी गाएगा। संसाधन सीमित हैं भाई, कब ये सत्य समझ आएगा।। ****** धरती जितनी है उतनी ही, रहने वाली है ना भूलें। सत्य यही है याद रखें हम, कोरे भ्रम में कभी न झूलें।। क्या कोई घर बना हवा में, मालिक घर का कहलाएगा। संसाधन सीमित हैं भाई, कब ये सत्य समझ आएगा।। ****** भार बढ़ाया धरती पर तो, टुकड़े टुकड़े हो जाएगी। इसकी या उसकी होगी तब, काम कहां सबके आएगी।। पैर काट जो बना अपाहिज , खुद पे कहर फकत ढ़ाएगा। संसाधन सीमित हैं भाई, कब ये सत्य समझ आएगा।। ******** कितनी मारा मारी ज...
बरसात की बूंदें
गीत

बरसात की बूंदें

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** हमसे पूँछ रही है बरसात की बूंदें पता तुम्हारा..... रहते हो मुझमें तुम और पता बता दिया दिल है हमारा..... सावन की पहली बरसात जो तुम से मिलने आएं....... बूंदों में मुझे तुम देख लेना....... पीकर तुम उन बूंदों को मन अपना भर लेना..... फिर भी अगर तन्हाई न जाएं........ ख्वाबों में मुझे तुम बुला लेना...... अपनी नींदों में मुझे तुम सुला देना....... हमसे पूँछ रही है बरसात की बूंदें पता तुम्हारा..... रहते हो मुझमें तुम और पता बता दिया दिल है हमारा..... देखों बारिश तुम से मिलने आई है..... हवाओं में भी मदहोशी छाईं है..... एक अलग खूशबू फूलों में समाई है..... धरा की खूबसूरती मन को भाई है..... नदियों ने भी अपने किनारों से छलांग लगाई है..... फिर भी मौहब्बत में ये कैसी तन्हाई है..... हमसे पूँछ रही है बरसात की...
हम कबीर के वंशज
गीत

हम कबीर के वंशज

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** कलम हाथ में है हमको ये, नाविक पार उतारेगा। हम कबीर के वंशज हमको, वक्त भला क्या मारेगा।। हिन्दू मुसलमान दोनों को, जो उठकर ललकार सके। अंधकार को नूर के कपड़े, पहना कर तम मार सके।। नहीं दुश्मनी किसी से पाली, मित्र सभी के कहलाये। क्या करते वे आईना थे, सब के दाग नजर आये।। हम भी उनके पथ अनुगामी, लोक हमें स्वीकारेगा। हम कबीर के वंशज हमको, वक्त भला क्या मारेगा।। अपनी प्रतिभा और गति को, अपनी जिद से चमकाई। राम नाम का मंत्र सीखकर, निर्गुण की महिमा गाई।। मंदिर मस्जिद काबा काशी, छाप तिलक या हो माला। सब को दूर रखा चाहत को, अपना खुदा बना डाला।। यही सिखाया कर्म सभी के, पथ के खार बुहारेगा। हम कबीर के वंशज हमको, वक्त भला क्या मारेगा।। जिस पथ चले "अनन्त" कबीरा, पथ कबीर का कहलाया। सुविधा स...
हवा बहती जाए रे
गीत

हवा बहती जाए रे

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** मन्द-मन्द, ठंडी-ठंडी। हवा बहती जाए रे ... मन मन्दिर में मिलन की घण्टी बजती जाए रे ....! तेरे मन की भाषा को कब से पढ़ते-पढ़ते अब जुदाई को भी सहा नहीं जाए रे ......! मेरे मन की कलियां खिल-खिल जाए रे... उनकी प्यारी प्यारी यादें मन में बहती जाए रे........! कब तक तड़पाओगे प्रीत की डोरी से बांध के..... प्यार के मौसम में मिलन की प्यास बढ़ती जाए रे.........! प्रेम के सागर में मन की बातें करते-करते.... कल-कल यौवन की नदियां थर्र-थर्र मचलती जाए रे.....! मेरे मन का गीत कब सुनोगे तुम ... गाते-गाते आंसुओ से आंखें छलकी जाए रे.....! रूप सागर को कब आ कर निहारो-गे..... मेरे अल्हड़पन की अब तो मुस्कान थमती जाए रे.....! मुझे नैनों में बसा कर घूंघट के पट कब खोलोगे..... भरी गगरिया यौवन की अब छलकी जाए रे.......!!! परिचय ...
दुनिया का कुछ भान नहीं था
गीत

दुनिया का कुछ भान नहीं था

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दुनिया का कुछ भान नहीं था, सभी लोग लगते थे अपने। नवयौवन के मादक दिन थे, नित आते थे सुन्दर सपने! प्रेम अनल ने घेर लिया था, नयनों से बहता था पानी! सुध-बुध सारी बिसराई थी, बैठी थी सिर पर नादानी। प्रेम रोग के कारण हरदम, तन-मन बहुत लगे थे तपने! नवयौवन के मादक दिन थे, नित आते थे सुन्दर सपने! मानव मन की मर्यादा है, सहनशीलता की भी हद हैं! कष्ट और कठिनाई हों तो, डगमग-डगमग होते पद हैं! जब दुख की आँधी चलती थी, लगता था उर अधिक तड़पने! नवयौवन के मादक दिन थे, नित आते थे सुन्दर सपने! टूट गए थे बाँध सब्र के, आशा के दीपक कंपित थे! रुका हुआ था भाग्य सितारा, नियति के निर्णय लंबित थे! संकट की छाया में प्रायः, ईश नाम लगते थे जपने! नवयौवन के मादक दिन थे, नित आते थे सुन्दर सपने! परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित...
रूठ न जाए
गीत

रूठ न जाए

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** इस बात का डर है, वो कहीं रूठ न जायेंI नाजुक से है अरमान मेरे, कही टूट न जायें।। फूलों से भी नाजुक है, उनके होठों की नरमी। सूरज झुलस जाये, ऐसी सांसों की गरमी। इस हुस्न की मस्ती को, कोई लूट न जायें। इस बात का डर है, वो कहीँ रूठ न जायें।। चलते है तो नदियों की, अदा साथ लेके वो। घर मेरा बहा देते है, बस मुस्कारा के वो I लहरों में कही साथ, मेरा छूट न जायें I इस बात का डर है, वो कहीं रूठ न जायें I। छतपे गये थे सुबह, तो दीदार कर लिया I मिलने को कहा शामको, तो इनकार कर दिया I ये सिलसिला भी फिरसे, कहीं टूट न जायें। इस बात का डर है, वो कहीं रूठ न जायें I। क्या गारंटी है की फिरसे, कही वो रूठ न जाएं। मिलने का बोल कर कही भूल न जाये। हम बैठे रहे बाग़ में, उनका इंतजार करके। वो आये तो मिलने पर देखकर हमें चले गये।।...
क्या रोजगार पा सकेंगे हम
गीत

क्या रोजगार पा सकेंगे हम

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** एक बात पूंछनी है रेहबरों बताओगे, सच-सच बताओगे, क्या रोजगार पा सकेंगे हम। यूँ रोजगार पा सकेंगे हम।। वादा किया था आप हमको देंगे रोजगार। आएंगी रोनकें घरों में आएंगी बहार।। उतरेगा बदन का लिबास जो है तार-तार। सरकारी नौकरियों से कर पाएंगे श्रृंगार।। सोचा न था निजीकरण पे आप जाओगे। सारी ही नौकरियाँ ठेकों पे उठाओगे।। कुछ को बढ़ाओगे, क्या रोजगार पा सकेंगे हम। यूँ रोजगार पा सकेंगे हम।। विश्वास किया आपको हम चुनके ले आए। परचम उठाए आपके गुणगान भी गाए।। कुर्सी पे बिठाया है ऐसे पैर जमाए। जिनको हिलाने कोई शूरवीर न पाए।। उम्मीद न थी हमसे यूँ नजरें चुराओगे। विश्वास एक जगा था बड़े काम आओगे।। खुशियां लुटाओगे, क्या रोजगार पा सकेगें हम। यूँ रोजगार पा सकेंगे हम।। जाकर के नजर फेर लोगे किसको पता था। आश्वासनो...