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गीत

रघुवर कब तक आओगे
गीत

रघुवर कब तक आओगे

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** मात्रा भार--१६--१४ जग से अत्याचार मिटाने, रघुवर कब तक आओगे। कब से राह तकें हम तेरे, कब दर्शन दिखलाओगे।। क्रंदन करती धरती माता, कष्ट नहीं सह पाती है। अपने पुत्र जनो का दुखड़ा, इसको खूब रूलाती है।। कब इसके रूखे उपवन में, प्रेम सुधा बरसाओगे।। छिड़ी हुई है जंग जहाॅ में, निज प्रभुता दिखलाने को। साधन हीन लगे हैं जग में, निज अस्तित्व बचाने को।। साधन वानो को कब आकर, राह सही दिखलाओगे।। धरती से अम्बर तक खतरा, साफ दिखाई देता है। कुदरत रहकर मौन हमेशा, सारे गम सह लेता है।। धधक रही इस सृष्टि को कब, आकर तुम हर्षाओगे।। नहीं सुरक्षित जग में कोई, आज़ यहाॅ हैं नर नारी। मानवता पर भी छाई है, आज यहाॅ संकट भारी।। राम इन्हें मानवता का कब, आकर पाठ पढ़ाओगे।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरार...
सुन कान्हा फागुन आयो
गीत, भजन, स्तुति

सुन कान्हा फागुन आयो

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** सुन कान्हा फागुन आयो। संग होरी त्यौहार लायो। तू होरी पै मोय लाल, पीलो, हरो, नीलो रंग पिचकारी। भर-भर डारैगो। हां! राधा फागुन आयो। संग होरी त्यौहार लायो। तू भी होरी पै मो पै लाल, पीलो, हरो, नीलो रंग पिचकारी। भर-भर डारैगी। मैं और तू होरी रंगन। तै संग खेलेंगे, एक-दूजे के। नयन देखेंगे मैं तोरे नैनन में। तू मोरे नैनन में प्रेम रंग देखेगो। होरी ऐसी खेलेंगे ज्यो जल। मध्य उछरे त्यों हमारो। हिय प्रेम रंग होरी से गदगद। होय जात उमंग संग हर्षित हो। उर मयूर सौ नाचत अरू हम। द्वौ ऐसी प्रेम रंग होरी खेले। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
सुख संदेश
गीत

सुख संदेश

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** गीत मोहब्बत के लिखता हूँ बड़े प्यार से गाता हूँ। अंधेरे दिलों में प्रेम का दीपक जलता हूँ। और जीने की कला लोगों को सिखाता हूँ। गीत मोहब्बत के लिखता हूँ बड़े प्यार से गाता हूँ।। दिलों में पल रही कड़वाहट और नफरतो के बीजो को। अपने दिलों से तुम निकालो और प्यार मोहब्बत को अपनाओ। तेरे दिल की दशा और काया निश्चित ही बदल जायेगी। तेरे जीवन में खुशीयों की फिर बहार आ जायेगी।। गीत मोहब्बत के लिखता हूँ बड़े प्यार से गाता हूँ। अंधेरे दिलों में प्रेम का दीपक जलता हूँ।। रखा क्या है नफरत और कड़वाहटो को दिल में रखकर। तू इसी में उलझा रहता है और इसी को जीवन कहता है। और दफन कर रहा है अपनी नई नई उमंगो को। बस नफरतो में जीता और उसी में मरता रहता है।। गीत मोहब्बत के लिखता हूँ बड़े प्यार से गाता हूँ। अंधेरे दिलों में प्रेम का द...
विस्मृत चित्र श्रम का
गीत, छंद

विस्मृत चित्र श्रम का

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** गीत, आधार छंद - लावणी भाग्य मिटाया मजदूरों का, धन के मदिर बयारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।। गमक स्वेद की समा न पायी, कभी कागजी फूलों में। अमिट वेदना श्रम सीकर की, फँसती गई उसूलों में।। वार सहे पागल लहरों के, युग-युग विवश किनारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।।१ कौर रहे हाथों से रूठे, वस्त्र बदन की व्यथा कहे। बिन बारिश ही पर्णकुटी के, विकल नैन से अश्रु बहे।। लूटी है सपनों की डोली, खादिम बने कहारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।।२ दूध पिलाया पुचकारा है, आस्तीनों के व्यालों को। भूख छेड़ देती है पल-पल, घायल पग के छालों को।। देह निचोड़ी श्रमजीवी की, लालच के बाजारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने...
फागुन आयो रे ….
गीत

फागुन आयो रे ….

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पीली चुनर ओढ़े धरती, पुष्पों का श्रृंगार किये हर्ष और उल्लास का, मौसम आयो रे फागुन आयो रे। रंग-बिरंगी फूली सरसों, पिया बिन तरसी जो बरसों प्रेम रंग अब रँगेगी गौरी फागुन आयो रे। गौरी घूँघट में शरमाये, पिया देख मन को हर्षाये दोनों संग-संग भीगेंगे अब फागुन आयो रे। टेसू के हैं फूल घुले, रंग उड़े गुलाल अखियाँ ढूंढे साजन को, रंग हो गया लाल प्रेम रस की चली फुहारें फागुन आये रे। कोयल छेड़े मीठी तान, गौरी मन हर्षाये पिया मिलन की आस में तन को है तरसाये संग-संग भीगेंगे तन-मन फागुन आयो रे। रचा महोत्सव पीत का, फागुन खेले श्याम, रंगों में भीगी राधा भागी गोपी धाम कृष्ण मुरारी ढूंढे श्यामा फागुन आयो रे। राधा-राधा रटे श्याम की, बंसी की मीठी तान सारा जग जाने श्यामा मोहन की है जान युगल जोड़ी देखो...
स्त्री आगे बढी
गीत

स्त्री आगे बढी

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** स्त्री आगे बढी, आगे बढी। हिमालय और चंद्रमा पर चढ़ी। दुर्गा तो कभी काली बनी, यशोदा भी और राधा बनी। लक्ष्मीबाई बन दुश्मन छाती चढ़ी, स्त्री आगे बढी, आगे बढी। मॉं,बहन,बेटी बन हमें संभाले, सावित्री बन यमराज से भी बचाले। सेना में जा आज सीमा पर खड़ी, स्त्री आगे बढी, आगे बढी। ना पिछे थी ना रहेगी, ना दुख सहे ना सहेगी। स्त्री कुप्रथाओं से मिलकर लडी, स्त्री आगे बढी, आगे बढी। परिचय :- नितिन राघव जन्म तिथि : ०१/०४/२००१ जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर पिता : श्री कैलाश राघव माता : श्रीमती मीना देवी शिक्षा : बी एस सी (बायो), आई०पी०पीजी० कॉलेज बुलन्दशहर, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से, कम्प्यूटर ओपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट डिप्लोमा, सागर ट्रेनिंग इन्स्टिट्यूट बुलन्दशहर से कार्य : अध्यापन और साहित्...
देखने की तमन्ना तुम्हें
गीत

देखने की तमन्ना तुम्हें

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** देखने की तमन्ना तुम्हें फिर हुई तेरी गलियों से जब मैं गुजरता रहा खिड़कियों से जो देखा तुम्हें रूबरू दर्द दिल में जो था फिर उभरता रहा देखने की तमन्ना ... छू गया एक झोंका मुझे प्यार का अनसुनी एक आवाज आने लगी दिल ने दिल से कहा पास आओ मेरे प्रीत की रीत मुझको लुभाने लगी जब से तेरे खयालों में जीने लगा कोई सागर हृदय में उमड़ता रहा देखने की तमन्ना ... तेरी पहली छुवन याद आने लगी इश्क का मुझ को पहला ये एहसास था तन बदन में जो सिहरन उठी उस घड़ी तेरी चाहत का कैसा यह आभास था सांस तेरी मुझे छू गई इस तरह ख्वाब की वादियों में उतरता रहा देखने की तमन्ना ... तेरी खुशबू का अंदाज मुझको मिला और मादक बदन ये नशीला हुआ कैसी बरसात में तन ये भीगा हुआ आंख का रंग फिर से रंगीला हुआ तेरे मेरे मिलन की घड़ी आ गई तुम म...
कलयुग सतयुग लग रहा
गीत, भजन

कलयुग सतयुग लग रहा

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कलयुग भी सतयुग जैसा लग रहा विद्यासागर जी के कामो से। कितने जीवो के बच रहे प्राण उनकी गौ शालाओं से।। जीव हत्या करने वाले अब स्वयं आ रहे उनकी शरण में। लेकर आजीवन अहिंसा का व्रत स्वयं करेंगे उनकी रक्षा अब। ऐसे त्यागी और तपस्यवी संत जो स्वयं पैदल चलते है। और जगह जगह प्राणियों की रक्षा हेतु भाग्यादोय खुलवाते।। कलयुग भी सतयुग जैसा लग रहा विद्यासागर जी के कामो से। कितने जीवो के बच रहे प्राण उनकी गौ शालाओं से।। मांस मदिरा बेचने वाले अब स्वयं रोक लगवा रहे। चारो तरफ अहिंसा का अब पाठ ये ही लोग पड़ा रहे। कलयुग को देखो कैसे अब सतयुग ये लोग बना रहे। घर घर में सुख शांति का आचार्यश्री का संदेश पहुंचा रहे।। लगता है जैसे भगवान आदिनाथ स्वंय अवतार लेकर आ गये। और छोटे बाबा के रूप में आकर सब जीवो का उद्दार कर रहे है। तभी...
सुघ्घर माघ के महिना
आंचलिक बोली, गीत

सुघ्घर माघ के महिना

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी लोकगीत बड़ नीक महिना माघ के, आगे वसंत बहार। खुशी मनावव संगवारी, करके खूब श्रृंगार। सुघ्घर मऊरे हे आमा हर, महर महर ममहावय। अमरइया मं बइठे कोइली, सुघ्घर गीत सुनावय।। आज खुशी ले झूमत हावय, ये सारा संसार बड़ नीक महिना माघ के आगे वसंत बहार हरियर हरियर खेत खार हे, सुघ्घर हे फुलवारी। बड़ नीक लागे रूख छाँव हर, जइसे हे महतारी।। धरती दाई के कोरा मा, सब सुख हावय अपार बड़ नीक महिना माघ के आगे वसंत बहार किसिंम किसिंम के फूल फूले हे, देख के मन हरषावय। लाली लाली परसा फूल गे, आगी घलव लजावय।। सुरूर सुरूर पुरवाही सुघ्घर, गावय राग मल्हार बड़ नीक महिना माघ के आगे वसंत बहार चार दिन के जिनगानी हे, जादा झन इतरावव। ये वसंत के बेर मा संगी, जुर मिल खुशी मनावव।। राम कहे झन भूलव मन मा, करल...
हां, हूं भारत वीर मैं
गीत

हां, हूं भारत वीर मैं

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** नभ मैं, हूं धरा मैं हिम मैं, हूं सूर्य मैं आग मैं, हूं नीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं सिंधु मैं, हूं ताल मैं आदि मैं, हूं अन्त मैं खीर मैं, हूं चीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं कण मैं, हूं ब्रह्मांड मैं ज्ञान मैं, हूं विज्ञान मैं भाल मैं, हूं तीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं अस्त्र मैं, हूं शस्त्र मैं ज्ञात मैं, हूं अज्ञात मैं वैद्य मैं, हूं पीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं शीत मैं, हूं ग्रीष्म मैं बसंत मैं, हूं बरसात मैं वाचाल मैं, हूं गंभीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं तम मैं, हूं प्रकाश मैं दिन मैं, हूं रात मैं अधीर मैं, हूं धीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं प्रेम मैं, हूं क्रोध मैं राग मैं, हूं द्वेष मैं रांझा मैं, हूं हीर मैं हां, हूं भारत वीर मैं अल्प मैं, हूं विकराल मैं कठोर मैं, हूं नरम मैं मृत...
तुमसे उल्फ़त जताने का गम है
गीत

तुमसे उल्फ़त जताने का गम है

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझे तुमसे उल्फ़त जताने का गम है तुम्हीं पे ये दिल रीझ जाने का गम है तेरा नाम ले-ले सताया जमाना तुमने भी अक्सर बनाया बहाना चाहत पे भी शक किया तुमने मेरी मेरे प्यार को आजमाने का गम है खुशी तो मिली पर मिला गम जियादा नहीं भांप पाए तुम्हारा इरादा समर्पण की सारी हदें पार भी की तुम्हीं पर मोहब्बत लुटाने का गम है तुम्हें हमने अपना मुकद्दर बनाया यादों से तेरी ही दामन सजाया भंवर में सफीना फंसी है हमारी तुम्हें अपना साहिल बनाने का गम है परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तकें प्रकाशित, ११ काव्य...
शपथ गीत
गीत

शपथ गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रहें सदा ही दूर छद्म से, सकल जगत में काज सभी। गमन करेंगे सत्य मार्ग पर, शपथ उठाएँ आज सभी। सतत पढ़ाएँ पाठ प्रेम का, घृणा धरा से दूर करें। महा प्रयासों के अमोघ से, दुखी मनुज की पीर हरें। सदा रखें निज जन्म भूमि की, दिशा-दिशा में लाज सभी। गमन करेंगे सत्य मार्ग पर, शपथ उठाएँ आज सभी। मनुज सभी हैं एक विश्व में, रक्त सभी का लाल यहाँ। थके सभी की देह एक दिन, चले नित्य अविराम कहाँ। करें सुशोभित नित्य शीश पर, सुखद गुणों का ताज सभी। गमन करेंगे सत्य मार्ग पर, शपथ उठाएँ आज सभी। नहीं बचें शोषक समाज में, मिले सभी को न्याय सुखद। कभी भलाई और प्रेम के, नहीं रहे परिणाम दुखद। रहें नियंत्रित आसमान में, कुटिल शिकारी बाज सभी। गमन करेंगे सत्य मार्ग पर, शपथ उठाएँ आज सभी। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक...
हम सजग प्रहरी
गीत

हम सजग प्रहरी

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** निज सर्वस्व चढा़येंगें, देश समृद्ध बनायेंगें। हम भारत के सजग प्रहरी हम सोना उपजायेंगे। अपना लहूँ बहाया तब, यह आजादी मुस्काई है। मेहनत और पसीने से, यह हरियाली लहराई है। दुशमन धूल मिलायेंगे, घरती हरी बनायेंगे। हम सोना उपजायेंगे। भारत मां ने याद किया, तब राणा शिवा हमीं तो थे घाव घाव पर मरहम पट्टी, सच्ची दवा हमीं तो थे। हम तलवार उठायेंगे, हल से महल सजायेंगे। हम भारत के सजग प्रहरी हम सोना उपजायेंगे। अपना देश बचायेगें। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में...
आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी
गीत

आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी

राम स्वरूप राव "गम्भीर" सिरोंज- विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** अब न आये ऐसी आफत, जैसी उनने झेली है। अपनी आजादी की खातिर वक्ष पे गोली ले ली है।। जय- जय अमर शहीद मेरे, जय जय अमर शहीद। करते अपनी मेहनत, अपनी रोटी चैन से खाते हैं। बुंदेले -हरबोले, चारण जिनके गीत सुनाते हैं।। हम सोते हैं सुख नींदों में उनकी ही सौगातें हैं। जो उनकी थी अंतिम रात्रि, हमको शुभ प्रभातें हैं। दीवाली हो रोशन, उनने खून की होली खेली है।। अपनी आजादी की खातिर वक्ष पे गोली ले ली है। जय-जय अमर शहीद मेरे जय- जय अमर शहीद उनका भी परिवार खड़ा था, उनकी भी थी अभिलाषा। किन्तु रगों का गर्म लहू रखता था उनसे कुछ आशा। एक ध्येय था, एक लालसा एक थी उनकी परिभाषा। इंकलाब के नारे मुँह पर वन्दे मातरम् की भाषा। जौहर के समतुल्य समर हो, स्वयं आहूति दे ली है।। अपनी आजादी की खातिर वक्ष पे गोली ले ली है। जय- जय अ...
कहाँ तुम चले गए
गीत

कहाँ तुम चले गए

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** वो याद बहुत आते वो याद बहुत आते, जो हमसे दूर हुए। हम ये ना जान सके, क्यों कर वे दूर हुए।। जीवन एक दरिया है, उठते हैं यहाँ लहरें। कोई कैसे शांत रहे, पग पग है यहाँ खतरे।। हलचल से भरी दुनिया, इसने कई रूप लिए वो याद बहुत आते गम का कितना साया, मंडराता रहा सर पर। कब तक यूं जी पाएं, जीवन में डर डर कर।। सहते ही रहे अब तक, इसने जो जख्म दिए वो याद बहुत आते हमने ये न जाना था, ये दिन भी आएगा। यादें उसकी हमको, रह रह तड़पाएगा।। कुछ बोल नही पाए, रहे खून के घूंट पिए वो याद बहुत आते जी लेंगे जैसे भी, हम तेरी जुदाई में। हमने खूब दर्द सहा, तेरी रुसवाई में।। थे राम सुहाने दिन, हमने जो साथ जिए वो याद बहुत आते परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) ...
मान लेना कहना ल मोर
गीत

मान लेना कहना ल मोर

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** मान लेना कहना मोर कोरोना कहर चलत हे चारो ओर ग भईया मोर हे बहिनी मोर मान लेना कहना ल मोर दु गज दूरी अऊ मास्क जरूरी हे हाथ तय सेनेटाईजर ले मांज लेना रे मान लेना कहना ल मोर ग भईया मोर हे बहिनी मोर मान लेना कहना ल मोर भीड़ - भाड़ जगह म नई जाना हे एक दूसर ले दुरिहा रहिके गोठियाना हे अऊ कोरोना टीका सबझन लगवाना हे जेकर ले खुलही हमर जिंदगी के किवाड़ वो मान लेना कहना ल मोर ग भईया मोर हे बहिनी मोर मान लेना कहना ल मोर बैरी कोरोना संगी हमला सतावत हे कहुं कोरोना त कहुं ओमीक्रान बनके आंखी दिखावत हमिला दिखावत हे जिनगी के करलव ग हियाव मान लेना कहना ला मोर ग भईया मोर हे बहिनी मोर मान लेना कहना मोर कोरोना जागरूकता सबझन म जगाना हे लईका सियान कोरोना टीका सबोझन लगवाना हे खुद के बचाव म सबे के सुरक्षा हे भेदभा...
वीर सपूत
गीत

वीर सपूत

प्रशान्त मिश्र मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश) ******************** देश के प्यारे वीर सपूतों तुमको मेरा सलाम। देश की खातिर लड़ते लड़ते दे दी अपनी जान। इससे प्यार है मुझको, इससे प्यार है मुझको। गलत बात से दूर रहो तुम यही हमारा नारा है, भारत प्यारा देश हमारा सारे जहां से न्यारा है। प्यारे भारत देश के हित में सरस प्रेम फैला दें, दुश्मन के ऊपर हम मुसीबत के पत्थर बरसा दें। देश की खातिर मर मिट जाएं दे दें अपनी जान। इससे प्यार है मुझको, इससे प्यार है मुझको। भारत मां के चरणों में हम शीश काट कर रख दें, जिसने हम पर आंख उठाई उसे काट कर रख दें। भगत सिंह के वंशज हैं हम दुश्मन को समझा दें, और कारगिल विजय दिवस की उनको याद दिला दें। प्यारे भारत देश की खातिर हो जाएं कुर्बान। इससे प्यार है मुझको, इससे प्यार है मुझको। परिचय :-  प्रशान्त मिश्र निवासी : ग्राम पचवारा पोस्...
नव वर्ष स्वागत गीत
गीत

नव वर्ष स्वागत गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वृद्ध दिसम्बर के जाते ही, आया जग में नूतन वर्ष। आशाएँ जागीं हैं अगणित, सभी ओर है स्वागत हर्ष। कोरोना पर हुआ नियंत्रण, टीकों ने पाई है जीत। यत्न सकल मानव रक्षा के, सफल हुए हैं आशातीत। लाएँगे परिणाम सुखद ही, सकारात्मक सब संघर्ष। आशाएँ जागीं हैं अगणित, सभी ओर है स्वागत हर्ष। बाज़ारों में चहल-पहल है, बढ़ने लगे सभी व्यापार। प्रतिष्ठान खुल गए सभी अब, घर से निकले हैं नर-नार। पाएँगे सब अच्छे अवसर, अब होगा सबका उत्कर्ष। आशाएँ जागीं हैं अगणित, सभी ओर है स्वागत हर्ष। अकर्मण्यता लुप्त हो गई, करने लगे सभी जन कार्य। निज जीवन निर्वाह के लिए, हुआ परिश्रम है अनिवार्य। उन्नत होंगी सभी दिशाएँ, कहीं नहीं होगा अपकर्ष। आशाएँ जागीं हैं अगणित, सभी ओर है स्वागत हर्ष। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उ...
आ हिंदी बैठ ज़रा
गीत

आ हिंदी बैठ ज़रा

ललिता शर्मा ‘नयास्था’ भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** आ हिंदी बैठ ज़रा, तेरा थोड़ा शृंगार करूँ। नवयुग की इस परिपाटी पर, तेरी थोड़ी मनुहार करूँ।। भूल गए हैं पथ के पंथी, पंखों को लहराना। भूल गये हैं मातृभूम पर, अपना ही ध्वज फहराना।। भूले भटके इन राहगिरों में, फिर से वो ही उद्गार भरूँ।। आ हिंदी बैठ ज़रा, तेरी थोड़ी मनुहार करूँ।। इस नवयुग की परिपाटी पर, तेरा थोड़ा शृंगार करूँ।। निर्झर मिश्री तुझसे बहती, किसलय सीखे खिलना। हिंद धरा की हिंद वाणी तू, बहुत ज़रूरी तुझसे मिलना।। अंग-अंग में रंग भरूँ मैं, नित अवलेखा से प्यार करूँ।। आ हिंदी बैठ ज़रा, तेरी थोड़ी मनुहार करूँ।। इस नवयुग की परिपाटी पर, तेरा थोड़ा शृंगार करूँ।। चरण पखारूँ नित उठकर, गुणगान करूँ मैं तेरे। तू ही धरणी, तू ही करणी, ये मान भरूँ मैं तेरे।। अपनेपन का आभास करा, कभी न तेरा अपकार करूँ...
गुरु ही भगवान है
गीत

गुरु ही भगवान है

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** तर्ज : ये दिल तुम बिन कही.... गुरु बिना ज्ञान कभी मिलता नहीं हम क्या। गुरु चरणो को बारंबर हम अब नमन करे। गुरु बिना...........।। जो श्रध्दा और भक्ति से पूजते है गुरुवर को। उन श्रावक के जीवन में कभी बाधायें नहीं आती। गुरु की छाया उन पर सदा ही बनी रहती है। इसीलिए वो श्रावक गण सदा ही खुश रहते है।। गुरु बिना ज्ञान कभी मिलता नहीं हम क्या। गुरु चरणो को बारंबर हम अब नमन करे। गुरु बिना...........।। गुरुओं के बताये मार्ग पर जो भी श्रावक चलता है। आत्म कल्याण का मार्ग उन्हीं लोगों को मिलता है। जीवन जीने का आनंद भी उन सब का अलग होता है। इसलिए तो गुरुओं की शरण हम सबको चाहिए।। गुरु बिना ज्ञान कभी मिलता नहीं हम क्या। गुरु चरणो को बारंबर हम अब नमन करे। गुरु बिना...........।। गुरु दर्शन में ही अब प्रभु दर्शन दिख...
तेरी ईर्ष्या में …
गीत

तेरी ईर्ष्या में …

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** तेरी ईर्ष्या में क्या रखा है, जरा प्यार करके तो देख। यह जिंदगी बड़ी प्यारी है जरा यकी करके तो देख। ये जिंदगी कितनी हसीन होगी, किसी को उपहार दे के तो देख। तेरी ईर्ष्या में..... इस ईर्ष्या में बड़ी तपन है, इसे शीतल करके तो देख। यह शोला है और अगन है, तू इसको बुझा के तो देख। इसी धरा में जन्नत उतर जाएगी, किसी को उपकार करके तो देख। तेरी ईर्ष्या में..... ये ईर्ष्या ये जलन बड़ी बुरी है, इस जलन को तू बुझा के देख। मन को मन से ये करती दूरी है, तू जरा सा पास आ के देख। ये जिंदगी तेरी सवँर जाएगी, तू जरा सा प्यार करके तो देख। तेरी ईर्ष्या में..... परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं...
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
गीत

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** बेटी को मत मार कोख में, जब यह घर में आती है। यह अपने संग मात पिता के, घर में खुशियाँ लाती है।। ईश्वर की वरदान है बेटी, उसकी नेमत है प्यारी। कुदरत की अनमोल कृति यह, सबसे है सुंदर न्यारी।। इसकी भोली सूरत सबके, मन को कितना भाती है यह अपने संग मात पिता के घर में खुशियाँ लाती है मात पिता की आँखो की बस, होती यही दुलारी है। घर आँगन में फिरती बनके, जैसे राजकुमारी है।। कुछ भी हो पर मात पिता को, यह ना कभी सताती है यह अपने संग मात पिता के घर में खुशियाँ लाती है शिक्षा का अधिकार इन्हें भी, अब तो पूरा देना है। इनको भी आगे बढ़ने की, अब तो मौका देना है।। नहीं किसी से पीछे रहना, अब इनको कब भाती है यह अपने संग मात पिता के घर में खुशियाँ लाती है सीमा पर बेटी रहकर अब, करती सबकी रखवाली। पर्वत...
आओ बच्चों तुम्हें बताएँ
गीत, बाल कविताएं

आओ बच्चों तुम्हें बताएँ

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** आओ बच्चों तुम्हें बताएँ समझो बाल सम्मान की । बाल दिवस का त्योहार है आज संस्कारों से भरा खान की ।। माता पिता के राजदुलारे चाचा नेहरू कहलाते हैं । बच्चों के वे हैं प्यारे इसीलिए बाल दिवस मनाते हैं। गाँधी टोपी पहनते कुरता और लाल गुलाब लगाते हैं। नेहरू का जन्म दिवस मनाएँ उनके आदर्शों को अपनाते हैं । देखो ऊपर तस्वीर है जिनके नेहरू की पहचान की बाल दिवस का त्योहार है आज संस्कारों से भरा खान की । खेलो कूदो और बनो गुणवान पढ लिखकर बनाओ पहचान । माता पिता का कहना मानो बड़े बुजुर्गों का करो सम्मान । मिला तुम्हें बाल अधिकार जीवन स्तर का ये वरदान । भेदभाव न करो शिक्षा की लड़की लड़का एक समान । जीवन की मूलभूत जरूरत है समझो रोटी कपड़ा मकान की । बाल दिवस का त्योहार है आज संस्कारों से भरा खान की । ज...
मेरा बालोद महान
गीत

मेरा बालोद महान

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** मेरा बालोद महान मेरा बालोद महान... गंगा मैया, रानी माई, सियादेवी मंदिर विशाल है तांदुला, खरखारा जलाशय की प्राकृतिक सौंदर्य ता बेमिसाल है शिवनाथ की तांदुला नदी बालोद की शान है मेरा बालोद महान मेरा बालोद महान... वन भैंसा भालू शीतल जंगल की शान है स्वयंभू गणेश मूर्ति है विराजमान मेरा बालोद महान मेरा बालोद महान... सरई वीजा खम्हार के जंगल खिले चार, महुआ, तेंदूपत्ता, हर्रा, बहेड़ा, आंवला मिले महापाषाणीय स्मारक शिव कपिलेश्वर है धाम बालोद (दल्लीराजहरा) खनिज संपदा का पूरे विश्व में है बखान मेरा बालोद महान मेरा भारत महान... देखो-देखो छत्तीसगढ़ की शान मेरा बालोद महान... देवी देवताओं का प्राण प्रतिष्ठा मिलाप राजाराव पठार है सर्व समुदाय जहां एकजुट हो जाए यह एकमात्र आधार है रेला पट्टा गौण नृत्य स...
एक दीपक यहाँ भी
गीत

एक दीपक यहाँ भी

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** दीपावली को दीप कुछ जलाएं, इस धरा से, सारे अँधेरे मिटाएं । अहंकार जैसे कितने ही दानव- आकर बस गए, हृदय में हमारे- अन्दर या बाहर सुरक्षित नहीं हैं- अपने-पराये सब, शत्रु हैं सारे । रक्षा हिट ऋषियों की राम जैसे वीरता, आदर्श हम भी अपनाएं । जुआ-नशा सब गलत बात हैं ये इस पावन पर्व को पावन बनाओ, मस्तिष्क में, ठहरा है तम हमारे- कोई तो दीपक यहाँ भी जलाओ । ये जीवन सुखों से परिपूर्ण होगा- नियमित जो, राम का नाम गाएं । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, विश्व मानव,...