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गीत

नैन बिंबित हैं
गीत, छंद

नैन बिंबित हैं

आचार्य डाॅ. वीरेन्द्र प्रताप सिंह 'भ्रमर' चित्रकूट धाम कर्वी, (उत्तर प्रदेश) ******************** छंद : मधुरागिनी छंद (वर्णिक) गीत विधान : वर्णवृत :- तगण, भगण, रगण, तगण, भगण, गा। शिल्प : १६ वर्ण, १०/६ वर्ण पर यति, समपाद वर्णिक छंद, दो-दो चरण समतुकांत। संकल्प से मन की मयूरी, नाचती वन में। सामर्थ से सपने सजाती, स्वयं के तन में।। आराधिके बन दामिनी की, नृत्य है करती। निर्विघ्न चंचल चंचला-सी, चूमती धरती।। आकाश से चुनती अपेक्षा, साधना घन में। सामर्थ से सपने सजाती, स्वयं के तन में।‌। अम्भोज-सा बिखरा पड़ा है, दिव्यता छहरे। दे ताल अंबर को पुकारे, धारणा लहरे।। झूमें लता तरु पुष्प डाली, प्रेम अर्चन में। सामर्थ्य से सपने सजाती, स्वयं के तन में।। प्रत्यूष की अभिलाष में द्वै, नैन बिंबित हैं। कौमार्य की वन वीथिका में, बिंब चिह्नित हैं।। वातास गंधिल शोभती है, प्...
गूँज रहीं बूँदों की सरगम
गीत

गूँज रहीं बूँदों की सरगम

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** गूँज रहीं बूँदों की सरगम, पावन हिय गलियारों में। चलो सखी झूला झूलें हम, शीतल सी बौछारों में।। छोड़ घोंसलें भीगे-भीगे, पंछी आए आँगन में। नहीं मिला दाना चुगने को, अब के देखो सावन में।। चल झरनों से बात करें हम, झम-झम करें फुहारों में। गूँज रहीं बूँदों की सरगम, पावन हिय गलियारों में।। धरती मिलने चली गगन से, नयनों में काजल डाले। आलिंगन को व्याकुल सरिता, प्रीति समंदर-सी पाले।। सुधि-बुधि खो कलिकाएँ बैठी, भ्रमरों की गुंजारों में। गूँज रहीं बूँदों की सरगम, पावन हिय गलियारों में।। मादक अधर मिलन को व्याकुल, मोहे पुरवाई प्यारी। सुलगे देह प्रीत में साजन, काम-बाण से मैं हारी।। यौवन प्रेम मगन हो नाचे, चाहत की झंकारों में। गूँज रहीं बूँदों की सरगम, पावन हिय गलियारों में।। परिचय :- मीना भट्ट "स...
अनुपम आभा
गीत

अनुपम आभा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अनुपम आभा बिखराएगी, दीप सजाकर थाली। अंतः का तम दूर हटेगा, तब होगी दीवाली।। भेदभाव, झगड़े-झंझट जब, सारे मिट जाएँगे। फैलेगा नूतन प्रकाश तब, भोर नयी पाएँगे।। जब लेंगे संकल्प नए हम, होगी रात न काली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीप सजाकर थाली।। अमन-चैन के फूल खिलेंगे, सतरंगी बगिया में। सबको रोटी-कपडे़ होंगे, अपनी इस दुनिया में।। मानवता की जोत जलेगी आएगी खुशहाली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीप सजाकर थाली।। सच्चाई की पूजा होगी, सत्कर्मों की माला। होंगे कृष्ण कर्मयोगी-से, राधा जैसी बाला।। रामराज्य होगा इस जग में, बिखरेगी सुख-लाली। अनुपम आभा बिखराएगी, दीप सजाकर थाली।। नेह-प्यार के संबंधों से, महकेगा जग सारा। सींचेगी रसधार सुधा की, घर-घर भाईचारा।। देख प्रफुल्लित प्रीति-वाटिका, पुलकित होगा माली...
जब सजन देख फिर शृंगार होगा
गीत

जब सजन देख फिर शृंगार होगा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** २१२२ २१२२ २१२२ २१२२ चाँद निकलेगा सजन जब देख फिर शृंगार होगा। व्रत रखे साजन सुहागन साथ तो भरतार होगा।। उम्र लंबी हो सजन की नित्य करती कामना है। माँगती वरदान प्रभु से वामिनी सुख साधना है।। देख करवाचौथ को पूजा करूँ मन मीत आजा। गंग सी बहती चलूँ अब संग गाती गीत राजा।। ओट चलनी देखती जिसको वही तो प्यार होगा। सात जन्मों का निराला संग अपना मान प्रियतम। है खनक चूड़ी झनक पायल सुनाती नित्य सरगम।। नाक की नथनी कहे साजन सदा ही ध्यान देगा। आज करवा चौथ को चंदा कहे प्रिय मान देगा राम सिय जोड़ी रहे सुंदर सजन संसार होगा। बन चकोरी राह तकती ये सुहागन देख तेरा। प्रीत का हिय है बसेरा चाँद सीमा पार मेरा।। अर्ध्य देती चाँद को वंदन करूँ प्रिय प्रेम पलता। चन्द्र ले जा आज पाती दिव्य दीपक प्रेम जलता।। डोर पावन प्रेम की पनप...
भाव की अभिव्यंजना
गीत

भाव की अभिव्यंजना

राम कुमार प्रजापति "साथी" जतारा, टीकमगढ़ (मध्यप्रदेश) ******************** भाव की अभिव्यंजना होती अलंकृत, सप्त स्वर नव रस भरे उर तार झंकृत। भव्यता की दिव्यता दिनमान हिंदी। शुभ सदन शौभाग्यशाली शान हिंदी। वर्ण बावन वृह्म मुख से उच्चरित। बृक्ष बट के पात सम शुभ पल्लवित। सौम्यता सामर्थ्य सत पथ संचलन, वेद महिमा गा रहे मन स्फुटित। छन्द सलिला गीत गंगा सौम्य संगम, हिन्द हिन्दू हर्ष हिदुस्तान हिंदी। शुभ सदन शौभाग्यशाली शान हिंदी। व्याकरण की शुद्धता उर में लियेहै। गीत गाये भारती हुलषे हिये है। जन्म से जीवन बनी आदर्श प्रिय तुम, प्राण हिंदी प्रीत पट समरस किये है। ध्यान चिंतन खोज की पावन नसेनी, तर्क से अनुबंध कर विज्ञान हिंदी। शुभ सदन शौभाग्यशाली शान हिंदी। मातृभाषा मन मृदुल मोहित अधर अस। राष्ट्र भाषा के लिए अब हो समर बस। आइए मिल सब लड़ें यह जंग दुर्लभ, आज से ही लीज...
गहरे अँधियारे
गीत

गहरे अँधियारे

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** श्रद्धा का विषवर्धक दरिया, तोड़ रहा नित नर्म किनारे। स्वच्छ पुलिन को निक्षेपण में, सौंप रहा गहरे अँधियारे।। छल के पाँसे लेकर बैठी, मैले मन की मथुरा काशी। पाप-पुण्य की ले दोधारी, हरिद्वार हो गया विनाशी। यहाँ लगाती साँझ सबेरे, भूख निमज्जन कर जयकारे।। क्रत्रिम दिनकर ने ही की है, ऊँच-नीच की हेराफेरी। पोथी के पन्ने-पन्ने पर, छल-छंदों ने जीत उकेरी।। अधनंगे मजरे-टोले के, हिस्से आये आँसू खारे।। सुप्त देह में चेतनता की, जब-जब उठती रही तरंगें जितने बिल से बाहर निकले, उतनी गहरी हुई सुरंगें।। रक्त-बीज से उगते परचम, जिह्वा पर रखते अंगारे।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
गहन ज्ञान का लोक प्रदाता
गीत

गहन ज्ञान का लोक प्रदाता

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** गहन ज्ञान का लोक प्रदाता, गुरु सर्जक कहलाता है। शत-शत वंदन हम करते हैं, शिक्षक भाग्य विधाता है।। कच्ची माटी को मथता है, शिल्पी है देख निराला । प्रतिभाओं को पंथ सुझाए, आदर्शों की है शाला।। सदाचार संयम से पावन, शिक्षा अलख जगाता है। लोक आचरण उत्तम अनुपम, शुभ मंगल भी व्यवहारी। आलोकित करता है जग को, सत्कर्मी है उपकारी।। मानवता की शिक्षा देता, सत्य पंथ ले जाता है। अनुशासन का पाठ पढ़ाता, सच्चा योगी है न्यारा। मार्ग -प्रणेता और समीक्षक, संस्कृति-पोषक भी प्यारा।। शिक्षा का उत्थान करे नित, पारस सबको भाता है। ज्ञान प्रभाकर है सुखसागर, शिक्षा में भी गहराई। दोष निवारक है शिष्यों का, विनयशील है सुखदाई।। ब्रह्म-ज्ञान का भव संवाहक, यश वैभव दिलवाता है।। शिष्यों का कल्याण करे नित, धवल लोक की अभिल...
आसमान में बादल छाए
गीत, छंद

आसमान में बादल छाए

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** विधा- गीत सार- छंद आसमान में बादल छाए, श्वेत श्याम हैं प्यारे। घूम रहे हैं दशों दिशा में, लगते सबको न्यारे।। मौसम है बारिश का देखो, बादल लगे गरजने। रिमझिम-रिमझिम बूंद सुहानी, लगती मन को हरने।। देख इन्हें है हर्षित होता, तन मन सभी हमारे आसमान में बादल छाए, श्वेत श्याम हैं प्यारे डोल रहे हैं साथ हवा के, इधर-उधर मतवाले। कभी अकेले कभी साथ में, रहते बाॅंहे डाले।। देख-देख इनकी सुंदरता, ऑंखें कभी न हारे आसमान में बादल छाए, श्वेत श्याम हैं प्यारे है कपास सा कोमल कितना, लगे बर्फ का गोला। धरती में जलधार बहे जब, इसने है मुह खोला।। होते हैं मुश्किल में जग के, रहने वाले सारे आसमान में बादल छाए, श्वेत श्याम हैं प्यारे लगता उड़कर आसमान में, इन बादल को छू लूॅं। उड़ता है मन पंख पसारे, कैसे ...
मोहब्बत में
गीत

मोहब्बत में

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** मोहब्बत में अक्सर लोग, सब कुछ भूल जाते है। दिल दिमाग में उसके, मोहब्बत छाई रहती है। न कुछ कहता न सुनता, बस अपने में मस्त रहता। और प्यार के सागर में, वो डूब जाता है।। नैन से नैन लड़ा के, दिलमें उतर जाती है। फिर दिल के अंदर जो, मोहब्बत को बढ़ाती है। जिसके कारण ही वो, आंखों में छाई रहती है। और दीप मोहब्बत का, दिलों में जला देती है।। किसी से दिल लगाना, आसान नहीं होता है। प्यार में जीना मरना, आसान नहीं होता है। ये वो आग होती है जिसे, कोई बूझा सकता नहीं। इसलिए सच्ची प्रेमी, आजकल कम होते हैं।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्...
पितृ आरती
गीत, भजन, स्तुति

पितृ आरती

राम स्वरूप राव "गम्भीर" सिरोंज- विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** आरती पूज्य पूर्वज की, हमारे कुल के अग्रज की श्राद्ध तिथि आज है जिनकी, दिवंगत कुल के अग्रज की क्वार पक्ष कृष्ण मनभावन, स्मृति अपनों हो पावन नयन जो दे गए सावन, यजन उनके चरण रज की आरती पूज्य पूर्वज की.... डाव, कुशघांस से अर्पण, दुग्ध तिल जौं का कर मिश्रण हो तर्पण मंत्र का पाठन, दोश हर मंगल कारज की आरती पूज्य पूर्वज की... श्राद्ध का शुभ दिवस आया, दिवंगत प्रिय की सुधि लाया दान उनके निमित्त भाया, आरती पूज्य की... श्राद्ध की षोडश तिथि न्यारी, ग्याजी हैं सरित सारी पितामह, तात, ताऊ, मातु, ताई, भाई-भावज की आरती पूज्य पूर्वज की, हमारे कुल के अग्रज की पितृ देवाय च विद्महे, कुल अग्रजाय च धीमहि, तन्नो पूर्वज प्रचोदयात परिचय :- राम स्वरूप राव "गम्भीर" (तबला शिक्षक) निवासी : सिरोंज जि...
हिन्दी हिंदुस्तानी भाषा
गीत

हिन्दी हिंदुस्तानी भाषा

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** मात्रा भार- १६-१४ हिन्दी हिंदुस्तानी भाषा, इस पर हम अभिमान करें। नतमस्तक इसके चरणों में, इसका हम सम्मान करें।। केवल अक्षर इसे न समझें, यह माथे की बिंदी है। दुनिया में यह सबको प्यारी, लगती अपनी हिंदी है।। मुक्त कंठ से आओ मिलकर, हम इसका गुणगान करें हिन्दी हिंदुस्तानी भाषा, इस पर हम अभिमान करें रग-रग में बहती है जैसे, रक्त बूॅंद की धारा है। प्राण वायु बन पोषित करती, जीवन यही हमारा है।। सुधा पिलाती है यह हमको, इसका हम रस पान करें हिन्दी हिंदुस्तानी भाषा, इस पर हम अभिमान करें इस हिन्दी के हर अक्षर में, मिलता है विज्ञान भरा। सदा दमकती है कुंदन सा, कर लो यह पहचान जरा।। सूर्य ज्योति सी सदा चमकती, इसका हम अनुमान करें हिन्दी हिंदुस्तानी भाषा, इस पर हम अभिमान करें हिन्दी के बिन हिंदुस्ताॅ...
मोक्ष पथ को जाने
गीत, भजन

मोक्ष पथ को जाने

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** गीत/भजन छोड़ दो मिथ्या दुनियां, सार्थक जीवन के लिए। इससे बड़ा सत्य कुछ, और हो सकता नहीं। चाहत अगर प्रभु को पाने की हो । तो ये मार्ग से अच्छा कुछ, और हो सकता नहीं।। छोड़ दो.......।। मन में हो उमंग प्रभु को पाने की। करना पड़ेगा कठिन तपस्या तुम्हें। मिल जाएंगे तुमको प्रभु एक दिन। बस सच्ची श्रध्दा से उन्हें याद करो।। छोड़ दो........।। आत्म कल्याण का पथ ये ही हैं। बस इस पर चलने की तुम कोशिश करो। मोक्ष का द्वार तुम को मिल जाएगा। और जीवन सफल तेरा हो जाएगा।। छोड़ दो.......।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindir...
हे! गिरिधर गोपाल
गीत

हे! गिरिधर गोपाल

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे! गिरिधारी नंदलाल, तुम कलियुग में आ जाओ। सत्य, न्याय रो रहे आज तो, नवजीवन दे जाओ।। जीवन तो अभिशाप हो रहा, बढ़ता नित संताप है। अधरम का तो राज हो गया, विहँस रहा अब पाप है।। गायों, ग्वालों, नदियों, गिरि की, रौनक फिर लौटाओ। सत्य, न्याय रो रहे आज तो, नवजीवन दे जाओ।। अंधकार की बन आई है, है अंधों की महफिल। फेंक रहा नित शकुनि पाँसे, व्याकुल है अब हर पल।। अर्जुन सहमा-डरा हुआ है, बंशी मधुर बजाओ। सत्य,न्याय रो रहे आज तो, नवजीवन दे जाओ।। मानव अपने पथ से भटका, कंस अनेकों दिखते। नाग कालिया जाने कितने, जो सबको हैं डँसते। ज़हर मारकर सुधा बाँट दो, चमत्कार दिखलाओ। सत्य,न्याय रो रहे आज तो, नवजीवन दे जाओ।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास...
ए मेरे वतन के लोगों सुनों
कविता, गीत

ए मेरे वतन के लोगों सुनों

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** ए मेरे वतन के लोगों सुनों आओं मैं तुम्हें सुनाऊँ एक कहानी.... जो मिट गया भारत माता पर क्या इसलिए ही थी उसकी जवानी.... अपनी माँ के दिल का था वो राजा.... देखों कैसे फिर उसके तन पर तिरंगा सजा.... तोड़ दी सारी हदें उसनें वतन को चाहने की.... नहीं बचीं थी कोई भी जगह गोली खाने की.... टूटी होगी चूडियाँ, तो टूटने दो ना.... रूठी होगी बहना, तो रूठने दो ना.... उन आंसुओं की ममता में मुझे बहनें देना.... पिता जो कहें मेरा तो मुझे वही रहने देना.... ए मेरे वतन के लोगों सुनों आओं मैं तुम्हें सुनाऊँ एक कहानी.... रक्त बड़ा ईमानदार था उसका नही था उसमें जरा भी पानी..... बन के मुस्कान मैं तेरी ये प्रिये, तेरे होंठो पर हरदम रहूँगा..... तुम मुझे पुकार लेना अपने नैनों से मैं तुम्हारी आवाज बन जाऊंगा.... देखों कैसी बोली व...
दर्द का गीत
गीत

दर्द का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** रोदन करती आज दिशाएं, मौसम पर पहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे हैं वो, घाव बहुत गहरे हैं ।। बढ़ता जाता दर्द नित्य ही, संतापों का मेला कहने को है भीड़,हक़ीक़त, में हर एक अकेला रौनक तो अब शेष रही ना, बादल भी ठहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे वो, घाव बहुत गहरे हैं ।। मायूसी है, बढ़ी हताशा, शुष्क हुआ हर मुखड़ा जिसका भी खींचा नक़ाब, वह क्रोधित होकर उखड़ा ग़म, पीड़ा सँग व्यथा-वेदना के ध्वज नित फहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे हैं वो घाव बहुत गहरे हैं ।। नए तंत्र ने हमको लूटा, कौन सुने फरियादें रोज़ाना हो रही खोखली, ईमां की बुनियादें कौन सुनेगा,किसे सुनाएं, यहां सभी बहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे है वो घाव बहुत गहरे हैं ।। बदल रहीं नित परिभाषाएं, सबका नव चिंतन है हर इक की है पृथक मान्यता, पोषित हु...
माँ चरणों में प्रभु का वास
गीत, भजन

माँ चरणों में प्रभु का वास

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** (तर्ज:- मैं पल दो पल का..... ) तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा पर प्रभु दर्शन नहीं मिल पाये है। किये थे पूर्व जन्म में अच्छे कर्म। इसलिए मनुष्य जन्म तुम पाये हो।। तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा..। तुझसे पहले कितने भक्तगण यहाँ आकर देखो चले गये। पर वो भी शायद प्रभु के दर्शन बिना ही यहाँ से लौट गये। वो भी मनुष्य पर्याय को पाये है तू भी मनुष्य गति को पाये हो। पर लगता तुम्हारी श्रध्दा में कुछ तो कमी जरूर रही होगी।। तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा...। एक दिन एक भविष्य वाणी को सुनकर तू ह्रदय घात को सह गया। तेरी आत्मा उन शब्दो को सुनकर अंदर ही अंदर से हिल गई। तू यहाँ वहाँ क्यों भटक रहा हे अज्ञानी मानव तू सुन। तेरी ही घर में प्रभु है और तू यहाँ वहाँ उन्हें खोज रहा।। तू वर्षो से यहाँ वहाँ भटक रहा...।। कहते है माँ के च...
सरल कहानी है
गीत

सरल कहानी है

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** २२१ १२२२ २२१ १२२२ डा डा र ड रा रा डा डा डा र ड रा रा डा ई काफ़िया, है रदीफ़ धुन - इस मोड़ से जाते हैं कुछ सुस्त कदम रस्ते सरल कहानी है सरकार इनायत हो दरकार हमारी है हर दिन यह दावत हो इज़हार हमारी है ये महफ़िले अपनी नायाब करिश्मा है आदाब करें तुमको तक़दीर शुमारी है तुम कुछ न कहो तो भी हर बात इशारा है तस्वीर बसी दिल में कसमें हम खाई हैं तेरे खत पढ़ती हूँ रो रोकर सोती हूँ क्यूँ ख़्वाब न देखूँ मैं ये सरल कहानी है परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्री...
दर्शन से धन्य हुये
गीत, भजन

दर्शन से धन्य हुये

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** विधा : गीत भजन तर्ज : तेरे इश्क का मुझे पर हुआ... गुरु विद्यासागर के दर्शन से हम। मानों आज हमसब हो गये धन्य। गुरु विद्यासागर के दर्शन से हम। मानों आज हमसब हो गये धन्य। गुरु विद्या सागर के दर्शन से हम।। जिसे भी मिले दर्शन विद्या गुरु के। मानव जीवन उनका सफल हो गया। कलयुग में भी देखो सतयुग जैसे मुनिवर। चलते फिरते तीर्थंकर कहते लोग उन्हें।। गुरु विद्यासागर के दर्शन से हम। मानों आज हमसब धन्य हो गये।। चारों दिशाओं में ऐसे मुनिवर। बहुत कम हमें देखने को मिले। त्याग और तपस्या की वो एक मिसाल है। साक्षात जैसे वो सबके भगवान है।। गुरु विद्यासागर के दर्शन से हम। मानों आज हमसब हो गये धन्य।। मुझे जैसे ही मिला गुरुवर का आशीर्वाद। मानों आत्मा में मेरे कमल खिल गया। ना अपनी रही सुध तब और न कुछ और दिखा। बस...
मेरा अस्तित्व है क्या…
गीत

मेरा अस्तित्व है क्या…

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** मैं क्या हूं, मैं क्यों रो पड़ा, मैं क्या हूं, मैं क्यों हस रहा। मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या, मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या। "मैं कैसे कहूं, किससे कहूं, कोई अपना पराया, लगने लगा।" मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या, मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या...।। मान भी जा, ऐ दिल ना हो दुखी, मेरा होना, ना होना एक जैसा। "मैं कैसे कहूं, किससे कहूं, कोई अपना पराया, लगने लगा।" मेरा दिल रोये, मेरा अस्तित्व है क्या, मैं कुछ नहीं मेरा अस्तित्व है क्या। मैं कुछ नहीं मेरा अस्तित्व है क्या...।। जाना अनजाना सा, सपना लगे, मैं अपना कहने, कहते चला। "मैं कैसे कहूं, किससे कहूं, कोई अपना पराया, लगने लगा।" मेरा मन तड़पे, मेरा अस्तित्व है क्या, मैं कुछ नहीं, मेरा अस्तित्व है क्या। मैं कुछ...
सुखागमन गीत
गीत

सुखागमन गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तन-मन पीड़ित प्रहर-प्रहर था, नित कठिनाई ढोने से। दुर्गम पथ भी सुगम हुआ है, साथ तुम्हारा होने से। चैन हृदय से चला गया था, कष्ट असीमित थे भारी। नाग विषैले बने सभी दुख, थे डसते बारी-बारी। अवसर सुख के चले गए थे, बीज अश्रु के बोने से। दुर्गम पथ भी सुगम हुआ है, साथ तुम्हारा होने से। दूर हुए थे सभी सहायक, पास बचीं थीं दुविधाएँ। पग-पग बाधा खड़ी हुई थी, रूठ गईं थीं सुविधाएँ। मिलने आता रहा निरन्तर, दुख महि के हर कोने से। दुर्गम पथ भी सुगम हुआ है, साथ तुम्हारा होने से। तुम आए तो मिले सभी सुख, भाग्य जगा जो सोया था। प्राप्त हुआ है पुनः सभी वह, जो भी मैंने ने खोया था। संध्याएँ अब लगें रजत-सी, भोर लगें सब सोने-से। दुर्गम पथ भी सुगम हुआ है, साथ तुम्हारा होने से। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्य...
मत रोको पर समझो
गीत

मत रोको पर समझो

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** छम-छम करती नदी बहती टेढ़े-मेढ़े, ऊँचे-नीचे रास्तो से। संग मिलकर वो चलती है छोटी-छोटी नदी नाले को। सबको अपना पानी देती और देती है शीतलता। बहते-बहते किनारों को हराभरा वो करती जाती।। छम-छम करती नदी चलती टेढ़े-मेड़े, ऊँचे-नीचे रास्ते से।। उदगम स्थल से देखो तो बहुत छोटी धारा दिखती है। पर जैसे-जैसे आगे बहती वैसे-वैसे बड़ती जाती है। फिर भी अपने स्वरूप पर कभी घमंड नहीं करती वो। कितने गाँवो और शहरो की प्यास बुझाती रहती है।। छम-छम करती नदी बहती टेढ़े-मेढ़े, ऊँचे-नीचे रास्तो से।। जब जब रोका लोगों ने इसके चलते रास्ते को। तब-तब मिले उन्हें विनाशता के परिणाम। जितनी शीतलता ये देती है उससे ज्यादा दुख भी देती। इसलिए मैं कहता हूँ लोगों मत रोको इसके रास्ते को।। छम-छम करती नदी बहती टेढ़े-मेढ़े, ऊँचे-नीचे रास्ते से।। ...
किस्मत वाले है वो
गीत, भजन

किस्मत वाले है वो

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** (तर्ज : तू कितनी अच्छी है....) तुम कितने अच्छे हो तुम कितने सच्चे हो। नियम-सयंम के पक्के हो। ओ गुरुवर ओ विद्यासागर ओ गुरुवर ओ विद्यासागर। की ये जो संसार है बन है कांटो का तुम फुलवारी हो। ओ विद्यासागर ओ गुरुवर ओ विद्यासागर ओ गुरुवर।। छाले पड़ गये तेरे पैरो में चलते चलते इस दुनियां में धर्म की ज्योत जलाने को। आत्म कल्याण के लिए तुमने छोड़ा घर द्वार। ओ गुरुवर ओ विद्यासागर ओ गुरुवर ओ विद्यासागर।। तुम कितने अच्छे हो तुम कितने सच्चे हो। नियम सयंम के पक्के हो। ओ गुरुवर ओ विद्यासागर ओ गुरुवर ओ विद्यासागर।। अपना नहीं तुम्हें सुख दुख कोई पर औरो की चिंता तुमने की। श्रावको के मन में ज्योत जलाई जैसा वो समझे वैसा ही उन्हें समझाया।। ओ विद्यासागर ओ गुरुवर ओ विद्यासागर ओ गुरुवर।। गुरु श्रवको के जा होते है वो ह...
आगे बढ़ता चढ़ता सूरज
गीत

आगे बढ़ता चढ़ता सूरज

डॉ. प्रीति प्रवीण खरे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** आगे बढ़ता चढ़ता सूरज, नभ पर चलता गाता सूरज। आगे बढ़ता चढ़ता सूरज।। ख़ुशियों के तुम दीप जलाओ, बाग़ों-बाग़ों फूल खिलाओ। मन में हो जब घोर निराशा, आशाओं का उगता सूरज। आगे बढ़ता चढ़ता सूरज।। बरगद पीपल छाँव लुटाए, नदिया अपना राग सुनाए। हँसते-हँसते जंगल बोला, गीत सुनानें आता सूरज। आगे बढ़ता चढ़ता सूरज।। जब शाम ढले घर आँगन में, तब जुगनू निकले सावन में। बदली पे जब मस्ती छाई, आँख मिचौली करता सूरज। आगे बढ़ता चढ़ता सूरज।। नभ पर चलता गाता सूरज। आगे बढ़ता चढ़ता सूरज।। परिचय :- डॉ. प्रीति प्रवीण खरे निवासी : कोटरा सुल्तानाबाद रोड भोपाल (मध्य प्रदेश) लेखन विधाएँ : गीत, ग़ज़ल, कविता, कहानी, लघुकथा, नाटक एवं बाल साहित्य। प्रकाशन : राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का ...
स्वर्णिम मध्यप्रदेश है
गीत

स्वर्णिम मध्यप्रदेश है

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** स्वर्णिम, मध्यप्रदेश है..., स्वर्णिम, मध्यप्रदेश है...। स्वर्णिम, मध्यप्रदेश है..., स्वर्णिम, मध्यप्रदेश है...। जन-जन गाहे यशगान..., भाग्यवान है यह राज्य, उज्जवल..., मध्यप्रदेश है। अतुल्य भारत करे गुणगान, स्वर्णिम, मध्यप्रदेश है। मेरा भारत है महान्, स्वर्णिम, मध्यप्रदेश है। स्वर्णिम, मध्यप्रदेश है...।। शान-ए-हिन्दुस्तान मेरा, सौंदर्य हृदयप्रदेश यह। अखंड भारत में विशेष यह, स्वराज्य सर्वश्रेष्ठ है। नवयुग का अनुपम सृजन, सर्वांगीन उत्थान यहां। रोशन मध्यप्रदेश यह, तारीफ-ए-हिन्दुस्तान है। जन-जन गाहे यशगान..., लोकप्रिय है यह राज्य, सुखद..., मध्यप्रदेश है। अतुल्य भारत करे गुणगान, स्वर्णिम, मध्यप्रदेश है। मेरा भारत है महान्, स्वर्णिम, मध्यप्रदेश है। स्वर्णिम, मध्यप्रदेश है...।। स्वास्थ्य-शिक...
हो युद्ध विराम! युद्ध विराम!
गीत

हो युद्ध विराम! युद्ध विराम!

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** मानवता को मिले शान्ति और हो आराम हो युद्ध विराम! युद्ध विराम! ना डर हो किसी का और ना हो अत्याचार धरा पर ना रहे दुख दर्द और लाशों का भार घर छोड़ ना पड़े किसी का शरणार्थी नाम हो युद्ध विराम! युद्ध विराम! ना रोए बहू और ना फटे मां का कलेजा हे प्रभु! तू ही आ अमन और चैन देता बने होली की भोर और दिवाली की शाम हो युद्ध विराम! युद्ध विराम! ना खून की नदी और ना हो आसूं की बाढ ना छिपे मानव मानव से बंकरों की आड़ नितिन का प्रभु के चरणों में बारम्बार प्रणाम हो युद्ध विराम! युद्ध विराम! परिचय :- नितिन राघव जन्म तिथि : ०१/०४/२००१ जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर पिता : श्री कैलाश राघव माता : श्रीमती मीना देवी शिक्षा : बी एस सी (बायो), आई०पी०पीजी० कॉलेज बुलन्दशहर, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से, कम...