नैन बिंबित हैं
आचार्य डाॅ. वीरेन्द्र प्रताप सिंह 'भ्रमर'
चित्रकूट धाम कर्वी, (उत्तर प्रदेश)
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छंद : मधुरागिनी छंद (वर्णिक) गीत
विधान : वर्णवृत :-
तगण, भगण, रगण, तगण, भगण, गा।
शिल्प : १६ वर्ण, १०/६ वर्ण पर यति,
समपाद वर्णिक छंद, दो-दो चरण समतुकांत।
संकल्प से मन की मयूरी, नाचती वन में।
सामर्थ से सपने सजाती, स्वयं के तन में।।
आराधिके बन दामिनी की, नृत्य है करती।
निर्विघ्न चंचल चंचला-सी, चूमती धरती।।
आकाश से चुनती अपेक्षा, साधना घन में।
सामर्थ से सपने सजाती, स्वयं के तन में।।
अम्भोज-सा बिखरा पड़ा है, दिव्यता छहरे।
दे ताल अंबर को पुकारे, धारणा लहरे।।
झूमें लता तरु पुष्प डाली, प्रेम अर्चन में।
सामर्थ्य से सपने सजाती, स्वयं के तन में।।
प्रत्यूष की अभिलाष में द्वै, नैन बिंबित हैं।
कौमार्य की वन वीथिका में, बिंब चिह्नित हैं।।
वातास गंधिल शोभती है, प्...