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गीत

भाई के अरमान हैं
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भाई के अरमान हैं

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नेह मंगलमय हुआ है, राखियाँ शुभगान हैं। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। हो गया मौसम सुनहरा, चेतना उल्लास में। आन रिश्तों को मिली है, पर्व है विश्वास में।। आ रहा है याद बचपन, आ रहा सब ध्यान में। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। प्रीति हर्षित हो रही है, रीति है नव आस में। नीतियाँ संदेश देतीँ, धर्म है अहसास में।। भावनाएंँ हैं चरम पर, दिव्यता सम्मान में। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। पल बड़े भावुक हैं आये, प्रेम पर अति वेग में। सूत के बदले सुरक्षा, मिल रही है नेग में।। बंध ऐसा बँध गया जो, जा बँधा है आन में। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। डाक ने तो साथ देकर, मार दीं सब दूरियाँ। नेह पर हावी नहीं हैं, आज तो मजबूरियाँ।। है समर्पण और निष्ठा, आज हर अनुमान में। दे रहीं बहनें...
भूख के भजन
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भूख के भजन

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** सत्ता की सड़कों पर फिसल रहें मन। और अधिक मेघ नहीं बरसाओं धन।। लूट गये व्यापारी खेत की तिजोरी। पेट ये बखारी-सा भर न सका होरी। धनिया के माथे की, बढ़ रही थकन।। छूट गई फूलों के हाथों की डोरी। बाँध गए अंटी में नोट सब सटोरी।। महँगा है आज सखे मौत से कफ़न।। काट गई है कैंची, प्रीति की सिलाई। टीस रही पंछी को, धर्म की चिनाई।। थोप दिए हैं मन पर, भूख के भजन।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं...
विरह अग्नि
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विरह अग्नि

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** विरह अग्नि झुलसाती तन को, साजन हमें जलाती है। लौट सजन घर आ जाओ अब, ऋतु मिलन की सुहाती है।। बिलखे है शृंगार हमारा, होंठ अंगारे हो रहे। मतवाले जब बादल उमड़ें, बैठे सजन हम रो रहे।। तन पुरवाई आग लगाती, याद तुम्हारी आती है। तार-तार होता है दामन, मन वृंदावन मुरझाता। प्रेम-पिपासा बढ़ती जाती, कौन बता अब बहलाता।। करें याद क्षण अभिसारों की, सारी रात जगाती है। चालें सर्पिल-सर्पिल आहत, लाल कपोल हुए घायल। तान सुनाती जब पिक मधुरिम, मौन रहे पागल पायल।। आजा सुन अब मनुहारों को, यौवन धार बुलाती है परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : न...
बिलख रहे रस अलंकार हैं
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बिलख रहे रस अलंकार हैं

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बिलख रहे रस अलंकार हैं, चुप है छंद तरंग। रहे उदासी गीतों पर भी, न ग़ज़लों में उमंग।। नवगीतों का दौर चला बस, उसकी है भरमार। नव बिंबों में खोया जीवन, होती है तकरार।। कौन पहेली बूझे इसकी, बदले सभी प्रसंग। रोज़ तंज़ बस रिश्तों पर, महँगाई का नाम। नव चिंतन नव संप्रेषण भी, चले मुक्ति संग्राम।। नई सदी की नई विधा यह, नवल रूप नव रंग। भावों में भी जोश अनोखा, पैनी कटार ओज। जन-जन मोहित रचनाओं पर, करें सत्य की खोज।। डाले रुढ़ियों पर नकेल भी, करता अद्भुत जंग। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्...
राम ही दाता-विधाता
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राम ही दाता-विधाता

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** धन्य देखो भाग्य कुटिया, हैं पधारे आज राम। भक्त है शबरी प्रभो की, नित्य जपती राम नाम।। राम ही दाता विधाता, राम हैं भगवान प्रान। हैं सखा भक्तन सदा ही, राम महिमा देख जान।। राम ही संसार मेरे, राम का कर ध्यान मान। थामते हैं हाथ सबका, राम हैं अवतार भान।। दास सारा जग गुणों की, खान स्वामी राम धाम। राम ही तो आस अब हैं, पार हमको दे उतार। धर्म ही खुद राम प्रभु हैं, कर्म हैं राघव पुकार।। बढ़ गए दुख हैं धरा पर, नाथ अब तू दे उबार। हे अवध स्वामी निराले, देख वो दशरथ कुमार।। नाम उनका जापिए नर, नार साधो.आठ याम। जब कृपा होती प्रभो की, देख खुलते बंद द्वार। राम दें वरदान सुख का, राम ही हैं गंग धार।। राम तारणहार पालें, सृष्टि जानो धर्म सार। लोक नायक हैं प्रजा को, राम देते नेह हार।। राम जीवन लक्ष्य...
मार पड़ी महँगाई की
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मार पड़ी महँगाई की

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मार पड़ी महँगाई की है, नहीं सूझती बात। मिली आज की दौर की हमें, आँसू ही सौग़ात।। रोते बच्चे मिले बटर भी, कुछ रोटी के साथ। पल्लू से आँसू पोंछे माँ, पर मारे-दो हाथ।। छूट गया काम क्या करे अब, खाओ सूखा भात। रोज़ गालियाँ देता पति भी, आती उसे न लाज। कटे जीवनी कैसे उसकी, करे न कोई काज।। पीने दारू बेचें जेवर, रोती बस दिन-रात। घूरे के भी दिन आते हैं, उर रखती बस आस। काम मिलेगा कल फिर उसको, पूरा है विश्वास।। तगड़ा नेटवर्क उसका भी, देगी सबको मात। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्या...
शूलों से भरा प्रेम पथ
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शूलों से भरा प्रेम पथ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** है शूलों से भरा प्रेम-पथ, मनुज-स्वार्थ के खम्भ गड़े। कुछ भौतिक लाभों के कारण, कौरव पांडव देख लड़े।। क्रोध घृणा जग मध्य बढ़ा है, प्रेम सुधा का काम नहीं। त्याग समर्पण को भूले सब, समरसता का नाम नहीं।। अवरोधों को पार करो सब, छोटे हों या बहुत बडे़।। धर्म-कर्म करता ना कोई, गीता का भी ज्ञान नहीं। मोहन की मुरली के जैसी, मधुरिम कोई तान नहीं।। बहु बाधित सुख शांति हुई है, नाते हुए चिकने घड़े।। तप्त हुई वसुधा पापों से, दानव हर पल घात करें। भूल भावना सहयोगों की, राग-द्वेष की बात करें। आवाहन करते खुशियों का, दो मोती प्रभु सीप जड़े।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत...
प्रेम
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प्रेम

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गुज़ारें प्रेम से जीवन, नफ़रती सोच को छोड़ें। हम अपने सोच की शैली अभी से, आज से मोड़ें।। अँधियारे को रोककर, सद्भावों का गान करें। मानव बनकर मानवता का नित ही हम सम्मान करें।। अपनेपन की बाँहें डालें, नव चेतन मुस्काए। दुनिया में बस अच्छे लोगों को ही हम अपनाएँ।। जो दीवारें खड़ी बीच में आज गिरा दें। अपने जीवन की शैली को आज फिरा दें।। लड़ें नहिं,मत ही झगड़ें, कुछ भी नहीं मिलेगा। किंचित नहीं नेह के आँगन में फिर फूल खिलेगा।। देखें हम पीछे मुड़कर के, क्या-क्या नहीं गँवाया। तुमने नहिं, नहिं मैंने लड़कर कुछ भी तो है पाया ।। जो फैलाती हैं कटुता ताक़तें, उनको तो छोड़ें।। गुज़ारें प्रेम से जीवन, नफ़रती सोच को छोड़ें। हम अपने सोच की शैली अभी से, आज से मोड़ें।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : ...
अंगूर सुता
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अंगूर सुता

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बड़ी क्रूर अंगूर सुता यह देख नाश का मूल। जीवन नरक करे यह मदिरा, पीना तुम मत भूल।। जितना पैसा रोज कमाते, खर्च करें भरतार। बिक जाते हैं बड़े-बड़ों के, महल अटारी द्वार। मिलते काँटे ही काटें क्यों, बोते पेड़ वबूल। बड़ी क्रूर अंगूर सुता यह देख नाश का मूल। जर्जर होती नश्वर काया, होते हैं बदनाम। ठप्प काम धंधे हो जाते, रहे हाथ बस जाम।। घर मे कलह नित्य ही होती, सपने मिलते धूल। बड़ी क्रूर अंगूर सुता यह देख नाश का मूल।। मादकता में खोता जीवन, चखता जो है स्वाद। फिर आसव का चक्कर हरदम, लाता है उन्माद।। मधुशाला अभिशाप सुनो यह, होता जीवन शूल। बड़ी क्रूर अंगूर सुता यह देख नाश का मूल।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्...
कुमुदिनियों के गजरे सूखे
गीत

कुमुदिनियों के गजरे सूखे

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कुमुदिनियों के गजरे सूखे, वसंत की अगवानी में। रोम-रोम छलनी भँवरे का, माली की मनमानी में।। परिवर्तन आया जीवन में फूल गुलाबों के चुभते। गुलमोहर के पेड़ो में अब, बस काँटे निशदिन उगते।। गयीं रौनकें हैं उपवन की सुगंध न रातरानी में। बोली लगती सच्चाई की, मिथ्या सजी दुकानों में। प्रतिपक्षी आश्वासन देते, नारों भरे विमानों में।। दाग लगा अपनी निष्ठा को, पोंछें चूनर धानी में। लाक्षागृह का जाल बुन रही, बैठी कौरव की टोली। विष का घूँट पी रहे पाँडव, खाकर रिश्तों की गोली।। जमघट अधर्मियों का लगता, आग लगाते पानी में। पाँच सितारा होटल में तो, भाग्य गरीबों का सोता। नित्य करों के नये बोझ से, व्यापारी बैठा रोता।। चोट बजट घाटे का देता, अपनी ही नादानी में। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवा...
वासंती-बंगा
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वासंती-बंगा

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** शब्दों की धक्का-मुक्की को, कविवर तुम दंगा मत कहना।। मर्यादित है संज्ञा इसको, वासंती-बंगा मत कहना।। केवल कंकड़ ही फेंके हैं, मैंने ही वे भी गुलेल से। कहीं किसी को चोट न पहुँचे, शब्द भिगोये इत्र तेल से।। नमक डालता हूँ घावों पर कहीं इसे पंगा मत कहना।।१ संता बंता और महंता, मेरे सभी सहोदर भाई। अपनी नाक दिखाने ऊँची, इनकी लंका रोज ढहाई।। राज घाट का पानी पी-पी, राजा को नंगा मत कहना।।२ ज्ञान पत्रिका अर्जित करने, भिड़ा दिये थे शब्द मवाली। काँव-काँव के राग सियासी, छीन गये इस मुख की लाली।। मुख से निकल रही जो अविरल, गाली को गंगा मत कहना।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
वंशीधर
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वंशीधर

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** वेणु बजा दो हे वंशीधर, हे मनमोहन हे गिरिधारी। भीगी प्रीति फुहारों से है, मधुवन में बृषभानु दुलारी।। अन्तर्मन में प्रीति बसी है, लोभ कपट सब छूटी माया। अधरों को सिंचित करती है, कामदेव सी तेरी काया ।। कहते सब हैं दीनदयाला, महका दो जीवन फुलवारी। पात -पात पर प्रीति पल्लवित, स्वर्णमयी आभा फैलाती। पावन प्रेम मुरलिया बजती, राधे ललिता प्रीति निभाती।। कटुता की बेलें कटतीं हैं, श्याम शरण पाते सुखकारी। कण-कण में मनमोहन बसते, नित उर नूतन आस जगाते। वृंदावन की गोपी झूमे, कान्हा जब भी रास रचाते।। मंजुल नैना रूप मनोहर, छवि कान्हा शुभ मंगलकारी। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौ...
नादान को ज्ञान
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नादान को ज्ञान

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** नाथ इस नादान को शुभ ज्ञान दो पीर बढ़ती जा रही है ध्यान दो। श्याम हमको साथ तेरा चाहिए। नित्य चरणों में बसेरा चाहिए।। मातु पितु ही आप मेरे प्राण हो। अब सुनो स्वामी जरा कल्याण हो।। बात को कान्हा जरा तुम मान दो। नाथ इस नादान को शुभ ज्ञान दो।। दूर हैं जब आप हम बैचैन है। भूल सकते हम न मीठे बैन है।। अब दया कर दो कृपाला श्याम हो। प्रेम में मीरा बनूँ कुछ नाम हो।। भक्ति का कान्हा सुधा रसपान दो। नाथ इस नादान को शुभ ज्ञान दो।। त्याग माया मोह आयी द्वार हूँ। छोड़ना मत श्याम अबला नार हूँ। हूँ बड़ी व्याकुल किशन अब तार दो। बेणु बजती प्रीत गीता सार दो।। मेट सारे क्लेश सुख भगवान दो। नाथ इस नादान को शुभ ज्ञान दो।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट ...
माला के मोती
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माला के मोती

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** देख-देख कर पीड़ा होती। बिखर रहे, माला के मोती।। तंत्र बना अब लूट तंत्र है, है बस्ती का मुखिया बहरा। गली-गली में दिखी गरीबी, कितने ही दर, तम है गहरा।। झूठ ठहाके लगा रहा है, सच्चाई छुप-छुपकर रोती। बहुतायत झूठे नारों की, मिलते हैं वादों के प्याले। कहते थे सुख घर आयेंगे, मिले पाँव को लेकिन छाले।। रोज बयानों के खेतों में, बस नफ़रत ही फसलें बोती। जाने कितनी ही दीवारें, मन से मन के बीच बना दी। बात किसी की कब सुनता है, मौसम हठी, ढीठ, उन्मादी।। उसकी बातें, उसकी घातें, लगता जैसे सुई चुभोती। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : नि...
चौसर की यह चाल नहीं
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चौसर की यह चाल नहीं

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चौसर की यह चाल नहीं है, नहीं रकम के दाँव। अपनापन है घर-आँगन में, लगे मनोहर गाँव।। खेलें बच्चे गिल्ली डंडे, चलती रहे गुलेल। भेदभाव का नहीं प्रदूषण, चले मेल की रेल।। मित्र सुदामा जैसे मिलते, हो यदि उत्तम ठाँव। जीवित हैं संस्कार अभी तक, रिश्तों का है मान। वृद्धाश्रम का नाम नहीं है यही निराली शान।। मानवता से हृदय भरा है, नहीं लोभ की काँव। घर-घर बिजली पानी देखो, हरिक दिवस त्योहार। कूके कोयल अमराई में, बजता प्रेम सितार।। कर्मों की गीता हैं पढ़ते, गहे सत्य की छाँव। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रत...
मेरा भारत महान
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मेरा भारत महान

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** चंद्रयान पहुँचा चंदा पर, तीन रंग फहराये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। ज़ीरो को खोजा था हमने, आर्यभट्ट पहुँचाया। छोड़ मिसाइल शक्ति बने हम, सबका मन लहराया।। सबने मिल जयनाद गुँजाया, जन-गण-मन सब गाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। मैं महान हूँ, कह सकते हम, हमने यश को पाया। एक महागौरव हाथों में, आज हमारे आया।। जिनको नहीं सुहाते थे हम, उनको हम हैं भाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। जो कहते थे वे महान हैं, उनको धता बताया। भारत गुरु है दुनिया भर का, यह हमने जतलाया।। शान तिरंगा-आन तिरंगा, गीत लबों पर आये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। अंधकार में किया उजाला, ताक़त को बतलाया। जो समझे थे हमको दुर्बल, उन पर भय है आया।। जोश लिये हर जन उल्लासित, हम हर दिल...
अबके वर्ष होली में
गीत

अबके वर्ष होली में

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** गायें गीत मधुर मिलन के अबके वर्ष हम होली में। मलदें विश्वासी प्रेम रंग देश-धर्म की चोली में।। बांटलें खुशियां मिलके सारी हस -हस बांटलें सारे गम। बिसराऐं मन से सारे विकार मिटाएं मन से मन के भृम। क्रोध-क्रूरता त्याग,पुनीत भाव भरें निज बोली में।। गायें गीत..... रहें न नफ़रत के निशां शेष हर डगर खिले सोहार्द-चमन। हर ह्रदय बहे रसधार प्रेम की रुके भेदभाव का कुटिल सृजन। एकता-और-अमन मुस्काये अखंडता की अनुपम रोली में।। गायें गीत... जात-पात आतंक-अधर्म से काम नही अब चलने बाला। हत्या-औ -हिंसा से मनुजों मैल नही अब धुलने बाला। आओ सींचे बंधुता की बगिया भरकर अश्रुजल झोली में।। गायें गीत मधुर मिलन के अबके वर्ष हम होली में।। मलदें विश्वासी प्रेम रंग देश-धर्म की चोली में।। परिचय :- गोविन्द...
राम अवध हैं लौटते
गीत

राम अवध हैं लौटते

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** वायु सुगंधित हो गई, झूमे आज बहार। राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।। सरयू तो हर्षा रही, हिमगिरि है खुश आज। मंगलमय मौसम हुआ, धरा कर रही नाज़।। सबके मन नर्तन करें, बहुत सुहाना पर्व। भक्त कर रहे आज सब, इस युग पर तो गर्व।। सकल विश्व को मिल गया, एक नवल उपहार। राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।। जीवन में आनंद अब, दूर हुई सब पीर। नहीं व्यग्र अंत:करण, नहीं नैन में नीर।। सुमन खिले हर ओर अब, नया हुआ परिवेश। दूर हुआ अभिशाप अब, परे हटा सब क्लेश।। आज धर्म की जीत है, पापी की तो हार। राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।। आज हुआ अनुकूल सब, अधरों पर है गान। आज अवध में पल रही, राघव की फिर आन।। आतिशबाज़ी सब करो, वारो मंगलदीप। आएगी संपन्नता, चलकर आज समीप।। बाल-वृद्ध उल्लास में, उत्साहित नर-नार।। राम अवध हैं लौटते, फै...
देवाधिदेव
गीत, भजन

देवाधिदेव

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** देवाधिदेव भोलेशंकर, परमेश्वर गंगाधारी। शिव-शंकर का अनुपम दर्शन, मानव हित मंगलकारी।। रवि विरन्चि हो धर्म सनातन, सत्यनिष्ठ हो कैलाशी। सात्विक पावन सुभग सौम्य प्रभु,घट-घट बसते अविनाशी।। गौरा संग बिराजें शंभू , प्रभु जग सारा बलिहारी। वैद्यनाथ नागेश्वर भोले, केदारनाथ अभिनंदन। सोमनाथ भीमाशंकर हो, त्र्यंबकेश्वर शंभु वंदन।। त्रिकालदर्शी कपाल भैरव, शशिशेखर भभूति धारी। ओंकारेश्वर घृष्णेश्वर हो, रामेश्वर प्रभु त्रिलोचनम्। मल्लिकार्जुन महाकाल शिवा, विश्वनाथ नीलकंठकम्।। बर्फानी औघड़दानी हो, भस्म मण्डितम बलिहारी।। भाँग धतूरे का भोग लगे, चंदन कर्पूर प्रभु सुहाते। दूग्ध रूद्राक्ष अक्षत अकवन, जल बिल्बपत्र नित भाते।। ताप मिटा बाघम्बरधारी, हे खण्डपरशु हितकारी। गाते महिमा पुराण सारे, दर्शन की प...
अपना ही घर जला रहे …
गीत

अपना ही घर जला रहे …

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अपना ही घर जला रहे हैं, घर के यहाँ चिराग़। फैल रही है सारे जग में, लाक्षागृह सी आग।। शुभचिंतक बन गये शिकारी, रोज़ फेंकते जाल। ख़बर रखें चप्पे-चप्पे की, कहाँ छिपा है माल।। बड़ी कुशलता से अधिवासित, हैं बाहों में नाग। ओढ़ मुखौटे बैठे ज़ालिम, अंतस घृणा कटार। अपनों को भी नहीं छोड़ते, करते नित्य प्रहार।। बेलगाम घूमें सड़कों पर, त्रास दें बददिमाग़। सिसक रही बेचारी रमिया, दिए घाव हैं लाख। लगी होड़ है परिवर्तन की, तड़पे रोती शाख।। हरे वृक्ष सब काटें लोभी, उजड़ रहे वन बाग। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम...
हे! भोलेभंडारी
गीत

हे! भोलेभंडारी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे त्रिपुरारी, औघड़दानी, सदा आपकी जय हो। करो कृपा, करता हूँ वंदन, यश मेरा अक्षय हो।। देव आप, भोले भंडारी, हो सचमुच वरदानी भक्त आपके असुर और सुर, हैं सँग मातु भवानी देव करूँ मैं यही कामना ,मम् जीवन में लय हो। करो कृपा, करता हूँ वंदन, यश मेरा अक्षय हो।। लिपटे गले भुजंग अनेकों, माथ मातु गंगा है जिसने भी पूजा हे! स्वामी, उसका मन चंगा है हर्ष,खुशी से शोभित मेरी, अब तो सारी वय हो। करो कृपा, करता हूँ वंदन, यश मेरा अक्षय हो।। सारे जग के आप नियंता, नंदी नियमित ध्याता, जो भी पूजन करे आपका, वह नव जीवन पाता पार्वती के नाथ, परम शिव, मेरे आप हृदय हो। करो कृपा, करता हूँ वंदन, यश मेरा अक्षय हो।। कार्तिकेय,गणपति की रचना, दिया जगत को जीवन तीननेत्र, कैलाश निवासी, करते सबको पावन जीवन हो उपवन-सा मेरा, अंतस तो ...
कंचन मृग छलता है
गीत

कंचन मृग छलता है

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कंचन मृग छलता है अब भी, जीवन है संग्राम। उथल-पुथल आती जीवन में, डसती काली रात। जाल फेंकते नित्य शिकारी, देते अपनी घात।। चहक रहे बेताल असुर सब, संकट आठों याम। बजता डंका स्वार्थ निरंतर, महँगा है हर माल। असली बन नकली है बिकता, होता निष्ठुर काल।। पीर हृदय की बढ़ती जाती, तन होता नीलाम। आदमीयत की लाश ढो रहे, अपने काँधे लाद। झूठ बिके बाजारों में अब, छल दम्भी आबाद।। खाल ओढ़ते बेशर्मी की, विद्रोही बदनाम। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सत...
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गीत

धुन

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** वेणु की प्रभो प्यारी धुन है, हे मनमोहन हे गिरधारी। भीगी प्रीति फुहारों से है, मधुवन में बृषभानु दुलारी।। अन्तर्मन में प्रीति बसी है, लोभ कपट सब छूटी माया। अधरों को सिंचित करती है, कामदेव सी तेरी काया ।। धुन भाती वंशी की सबको, महका दो जीवन फुलवारी। पात -पात पर प्रीति पल्लवित, स्वर्णमयी आभा फैलाती। पावन धुन मुरली की बजती, राधे ललिता प्रीति निभाती।। कटुता की बेलें कटतीं हैं, श्याम शरण पाते सुखकारी। कण-कण में मनमोहन बसते, नित उर नूतन आस जगाते। वंशी धुन पर गोपी झूमे, कान्हा जब भी रास रचाते।। मंजुल नैना रूप मनोहर, छवि कान्हा शुभ मंगलकारी। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्...
हिंदुस्तान हमारा
गीत

हिंदुस्तान हमारा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गंगा-यमुना-सी नदियों की, बहे जहाँ शुचि धारा। वन, उपवन, हिमगिरि से शोभित, हिन्दुस्तान हमारा।। होली-दीवाली मनती है, जहाँ खुशी के मेले। जहाँ तीज-त्यौहार सभी ही, सचमुच हैं अलबेले। ईदों में हिन्दू शामिल हैं, मुस्लिम नवरातों में। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई मिलकर उल्लासों में।। रातें उजली होतीं जहँ पर, दूर भगे अँधियारा। वन, उपवन, हिमगिरि से शोभित, हिन्दुस्तान हमारा।। ताजमहल में भाव भरे हैं, मीनारों में गुरुता। धर्म सिखाता है हम सबको, विनत भाव अरु लघुता। गीता की वाणी में देखो, भरी अनोखी क्षमता। संत-महत्मा सिखलाते हैं, पाना कैसे प्रभुता।। सूरज वंदन करे हमारा, देता नित उजियारा। वन, उपवन, हिमगिरि से शोभित, हिन्दुस्तान हमारा।। गीत सुहाने गायक गाते, खुशबू रोज़ बिखरती। सुनकर भजनों,आज़ानों को, बस्ती रोज़ निखरती। ख...
विनती
गीत

विनती

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रिय नेताजी, तुमसे विनती करती जनता, बातें हैं सब सच्ची। काश ! ग़रीबी मिट जाए यह, कर भी लो कुछ वादा। मरें सड़क पर हम सब भूखे, ज्यों बिसात के प्यादा।। तरस रहे मिल जाए हमको, चाहे रोटी कच्ची।। सोते रहते हो महलों में, मखमली बिछौने पर। फुटपाथों पे हम रह खाते, भी पत्तल-दौने पर जीवन अब तो नर्क हुआ है, खाते हरदम गच्ची। करो निदान समस्याओं का, पा जाएँ संरक्षण। मिल जाए हमको भी थोड़ा, सेवा में आरक्षण।। अच्छे दिन कब तक आएँगे, पूछे घर की बच्ची।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाध...