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गीत

विद्या की माता शारदे
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विद्या की माता शारदे

संजय जैन मुंबई ******************** वो ज्ञान की माता है सरस्वती नाम है उनका-२। वो विद्या की माता है। शारदा माता नाम उनका। वो ज्ञान की माता है।। हाय रे मनका पागलपन मुझ से लिखवाता है। क्या मुझे लिखना क्या वो लिखवता ये तो वो ही जाने-२। मन में मेरे वो आकर लिखवाते है मुझसे।। वो ज्ञान की माता है..।। इधर जिंदगी झूम रही है उधर मौत खड़ी। कोई क्या जाने कब आ जाये मेरा बुलावा जी-२। और क्या लिखना मुझको रह गया है अब बाकी। वो ज्ञान की माता है...।। मेरे दिल और ध्यान में सदा रहती है माता जी। जो कुछ भी मैं लिखता और गाता उनके कृपा दृष्टि से-२। मैं उनके चरणो में वंदन बराम्बार करता। वो ज्ञान की माता है..।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और...
हुआ दर्द से प्यार
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हुआ दर्द से प्यार

महेश चंद जैन 'ज्योति' महोली ‌रोड़, मथुरा ******************** तुम्हीं बताओ कैसे तोड़ूँ किये हुए अनुबंध? आँखें खोलीं, मिली पाॅव को दलदल की सौगात, सीख लिया तब से नयनों ने जगना सारी रात, पीर महकने लगी उठी आँसू से मधुर सुगंध। पथरीली राहें पाॅवों में पड़ी अनेकों ठेक, संघर्षों का साॅझा चूल्हा रहा उन्हें था सेक, जुड़ा पसीने का पीड़ा से मिसरी सा संबंध। साथ चले फिर गये छोड़कर नदिया के मॅझधार, जैसे-तैसे बाहर आये बैठे हैं इस पार, अब कुछ झुके हुए से लगते तने-तने स्कंध। और वज़न कुछ बढ़ा शीश पर लेता दर्द हिलोर, कितनी दूर और रजनी से होगी सुंदर भोर, साॅसें थोड़ी इनी-गिनी सी टूटेगा फिर बंध। साथ पुराना दर्द लगे अब अपना मुझको यार, टीस उठे तो लगता उसने जतलाया है प्यार, अंत समय तक साथ निभेगा अनुपम किया प्रबंध। परिचय :- महेश चंद जैन 'ज्योति' ...
मैं सुगन्ध हूँ
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मैं सुगन्ध हूँ

महेश चंद जैन 'ज्योति' महोली ‌रोड़, मथुरा ******************** मैं सुगन्ध के झोंके जैसा, महक रहा हूँ गुलशन में। बसा हुआ हूँ मैं पुष्पों में, खिलती कलियों के मन में।। कैसे आया मैं फूलों में इसका मुझको ज्ञान नहीं, महकाता केवल दुनियाँ को और न जाता ध्यान कहीं, मैं बचपन के भीतर चहकूँ दहकूँ उफने यौवन में।.... भोर हुए नवजीवन पाता साँझ ढले मुरझाता हूँ, झरता है जब पुष्प डाल से कहाँ किधर खो जाता हूँ, रंगों से क्या लेना मुझको देना सीखा जीवन में।..... मेरे रूप हजारों महकें विदुर गुणी इन्सानों में, नहीं भूलकर रह पाता हूँ हैवानों शैतानों में, पाँखुरियों में घर है मेरा नहीं मिलूंगा कंचन में।.... मुझसे प्यार करो तो आओ अपना मुझे बना लेना, थोड़ी देकर जगह मुझे तुम अपने हृदय बसा देना, महका दूंगा अंतर्मन को गंध उठे ज्यों चन्दन में।... परिचय :-महेश चंद जैन 'ज्योति' निवासी : महोली ‌रोड़, मथुरा घोषणा पत्र : मैं ...
सोच समझकर वोट किया तो
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सोच समझकर वोट किया तो

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** अपने मत से तुम्हें बनानी, है कल की सरकार प्रिये। सोच समझकर वोट किया तो, हों सपने साकार प्रिये।। लिए पोटली अब वादों की, नेताजी द्वारे द्वारे। जाकर बांट रहे गारंटी, कर देंगे वारे न्यारे।। कहते हैं कल नहीं रहेगा, है जो हाहाकार प्रिये। सोच समझकर वोट किया तो.... भूखे को हम खाना देंगे, बेघर को हम घर देंगे। शिक्षा बिजली गैस विवाह का, इंतजाम भी कर देंगे।। बिन मेहनत कैसा होगा सुख, सपनों का संसार प्रिये। सोच समझकर वोट किया तो... हरे लाल भगवा नीले सब, सेवा की ही .बात करें। सेवा के पर्दे के पीछे, देखा अक्सर घात करें।। कहते चाय पकौड़ी बेचो, अच्छा है व्यापार प्रिये। सोच समझकर वोट किया तो... धनवानों को बेच न दें ये, देश अमन के रखवाले। जरा गौर से देखो इनके, जीवन के चिट्ठे काले।। है अडानी अंबानी इनके, सचमुच खेवनहार प्रिये। सोच समझकर वोट किया तो......
ध्वज-गीत
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ध्वज-गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** अपने प्यारे ध्वज पर हर पल, गर्वित हिन्दुस्तान है। भारत की पहचान तिरंगा, वीरों का अभिमान है। केसरिया है त्याग प्रदर्शक, श्वेत शांति दिखलाए। हरा रंग है समृध्दि सूचक, चक्र उन्नति गुण गाए। मातृ भूमि का अपना यह ध्वज, गौरव का गुणगान है। भारत की पहचान तिरंगा, वीरों का अभिमान है। यह निशान अपने भारत का, यह तो अपना मान है। यही हमारा सच्चा सुख है, यह अपनी मुस्कान है। प्राणों से प्रिय सतत तिरंगा, आन-बान है, शान है। भारत की पहचान तिरंगा, वीरों का अभिमान है। सदा जिएँगे और मरेंगे, इस झण्डे के वास्ते। आँच न आने देंगे इस पर, कभी किसी भी रास्ते। नर-नारी, बच्चा या बूढ़ा, हर कोई क़ुरबान है। भारत की पहचान तिरंगा, वीरों का अभिमान है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाष...
इंतजार
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इंतजार

संजय जैन मुंबई ******************** मेरा दिल खाली खाली है किसी दिल वाली के लिए। लवो पर जिसके रहता हो सदा ही संजय संजय। बना कर रखूँगा उसको अपने दिल की रानी। तो आ जाओ मेरे दिलमें खुला है मेरे दिल का द्वार।। अभी तक न जाने कितनो ने पुकारा है। तभी तो हिचकियाँ मुझे आ रही है बार बार । जो भी हो तुम दिलरुबा सामने तो आ जाओं। और झलक अपनी तुम मुझे जरा दिखा जाओं।। मेरे दिल की धड़कने नहीं है अब मेरे बस में। न जाने कौन है वो जो इन्हें तेजी से धड़का रहा। और अपनी धड़कनो को मेरे दिलसे मिला रहा। न खुद सो रहा है और न मुझे सोने दे रहा।। बीस की उम्र से लेकर बहुत मुझे वो सता रहा। पर अपने चेहरे को वो अभी तक छुपा रहा है। कसम से पता नहीं मुझको क्यों वो इतना सता रहा। शायद कोई पूर्व जन्म का बंधन हमसे निभा रहा है। इसलिए मैं भी उसका इंतजार कर रहा हूँ।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान म...
बड़ा आसान था गिरिधर
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बड़ा आसान था गिरिधर

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बड़ा आसान था गिरिधर, बता दिल तोड़ कर जाना! मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? दर्द यमुना का तो सुनते, कदम के शूल तो चुनते। तजा पनघट तजी राधा, तजा सारा वो याराना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? बजी वंशी बहुत प्यारी, लगे चितवन बड़ी न्यारी। उसे भी छोड़ बैठे तुम, किसे दूँगी मैं अब ताना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? तड़प कर गोपियाँ रहतीं, विरह कैसे भला सहतीं? चमन के पुष्प हैं सूखे, कहें तितली नहीं आना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? कुँआ भी प्यास का मारा, हृदय मेरा रहा खारा। नयन से मोतियाँ बिखरीं, धरा पहने तरल बाना। मिलन की रात में ही क्यों मिला यह घोर नजराना? बिछायी द्यूत की क्रीड़ा, सही जाये न यह पीड़ा। कहूँ कैसे बनी धीरा, यही तुमको है समझाना। मिलन की रात में ही क्यों मिला ...
बेबस पंछी ना कट जाएं
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बेबस पंछी ना कट जाएं

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** चीनी मांझे हत्यारे हैं, उन्हें कदापि ना अपनाएं। याद रखें चीनी मांझों से, बेबस पंछी ना कट जाएं।। आज मकर संक्रांति है तो, तिल गुड़ के हम लड्डूखाएं। गुल्ली दंडा खेलें या फिर, मनचाही हम पतंग उड़ाएं।। ध्यान रखें पर दाना लाने, पंछी जो आकाश में जाएं। उनके जीवन की हम रक्षा, करें अपाहिज नहीं बनाएं।। जो मांझे विपदा बरसाते, घर बच्चे भूखे मर जाते। क्यों गुणगान करें उनका हम, क्यों खरीद के हम ले आएं।। चीनी मांझे हत्यारे हैं, उन्हें कदापि ना अपनाएं। याद रखें चीनी मांझों से, बेबस पंछी ना कट जाएं।। पौष मास में मकर राशि में, जब सूरज आ जाता लोगों। फसलों का त्योहार पर्व ये, घर-घर रंग दिखाता लोगों।। खिचड़ी पोंगल ये कहलाता, लोहड़ी नाम सुहाता लोगों। पूजा की जाती प्रकाश की, जीवन गीत सुनाता लोगों।। देसी मांझे अपने मांझे, उनपे ही विश्वास जताकर। रंग बिरंगी उड़...
युवा शक्ति जागो रे
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युवा शक्ति जागो रे

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** जागो-जागो, जागो रे जागो सेवा का हथियार हाथ में "मुझको नही तुझको" के नारे से दुखियों के दुःख-दर्द को मिटाना है ........ जागो ....! पर, पीड़ा को मिल मिटाएंगे एक दूजै के सहारे से आगे बढ़ना है कष्ट ना पाए कोई दुखियारा आओ अपने हाथों से देश बनाना है। जागो रे....! बच्चा-बच्चा समझे अपनी जिम्मेदारी गाँव-गली में अनपढ़ रहे न कोई शिक्षा की अलख जगाने को आओ मिलकर ज्योत से ज्योत जलाना है। जागो रे ...! जन-जन को राष्ट्र हित में आना है कुरीतियों को मिल जड़ से मिटाना है विकाश की गंगा बहाने की खातिर बस्ती-बस्ती सेवा की अलख जगाना है। जागो रे ...! अपनी ताकत को तुम पहचानों आओ सेवा की मशाल जलाएं युवा-शक्ति के हाथों देश बदलने "नाचीज़" युवा-युवतियों को जगाना है। जागो रे ....!!! "मुझको नही तुझको" के नारे से दुखियों के दुःख-दर्द को मिटाना है जागो रे ....!!! परिचय :-...
राष्ट्रभाषा बने एक दिन
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राष्ट्रभाषा बने एक दिन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** सारी जनता भारत की जब, इसको गले लगाएगी। विश्वगगन में हिंदी ऊँचा. तब परचम लहराएंगी।। हिंदी के पहरेदारों से, मेरी सतत यही आशा। राष्ट्रभाषा बने एक दिन, हिंदी ये है अभिलाषा।। हिंदी में साहित्य सृजन ही, नई भोर को लाएगी। विश्व गगन में हिंदी ऊँचा, तब परचम लहराएंगी हिंदी को मां समझने वालों, हिंदी में व्यवहार करो। लिखना पढ़ना हिंदी में हो, मत इससे इनकार करो।। गौरवमयी राष्ट्रभाषा की, पदवी जब मिल जाएगी। विश्वगगन में हिंदी ऊँचा, तमिल तेलुगू मलयालम हो, भले मराठी गुजराती। सब हिंदी की छोटी बहनें, कोई नहीं खुराफाती।। बड़ी बहन का साथ दिया तो, शिखर नए छू पाएगी। विश्व गगन में हिंदी ऊँचा, तब परचम लहराएगी।। चाहे जितनी भाषा सीखें, हिंदी का सम्मान करें। ममता सदा मातृभाषा ही, दे सकती है ध्यान करें।। अनंत पहुंची दूर तलक तो, हिंदी यह रंग लाएगी। विश्वगगन में ...
अभी अधूरा अभिनन्दन है
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अभी अधूरा अभिनन्दन है

महेश चंद जैन 'ज्योति' महोली ‌रोड़, मथुरा ******************** दीपक अभी नहीं जल पाया, माँ के मन की आशा का। अभी अधूरा अभिनन्दन है, अपनी प्यारी भाषा का।। यों तो सिंहासन पर हमने, लाकर इसे बिठाया है, पर अपने ही हाथों से, विष प्याला इसे पिलाया है, टूट गया है कच्चा धागा, इसकी मन अभिलाषा का। अभी अधूरा अभिनंदन है, अपनी प्यारी भाषा का।।(१) बड़े अनूठे अक्षर अनुपम, अद्भुत शक्ति भरे प्यारे, अनुस्वार लगते ही करते, ब्रह्मनाद मिलकर सारे, हर अक्षर है एक योगिनी, अंत न ज्ञान पिपासा का। अभी अधूरा अभिनंदन है, अपनी प्यारी भाषा का।।(२) अब तक मान दिया है थोथा, फिर भी तो मुस्काते हैं, देख रहे दुर्दशा मौन हम, मन में नहीं लजाते हैं, दूर करो अँधियार आवरण, तोड़ो धुंध कुहासा का। अभी अधूरा अभिनंदन है, अपनी प्यारी भाषा का।।(३) छंद गीत कविता मल्हार का, नीर अमिय सम पिलवायें, रसिया राग रागिनी के फल, मेवा व्यंजन खिलवायें,...
तिरंगा
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तिरंगा

प्रतिभा त्रिपाठी भिलाई "छत्तीसगढ़" ******************** जियें भारत देश मेरा, जियें भारत देश मेरा। तीन रंगों से सजा तिरंगा मेरा। सारे जग से न्यारा है, यह तिरंगा प्यारा है। देश के वीर जवानों ने, तिरंगे की शान बढ़ाई है।। जियें भारत देश... वीरों ने बलिदान दिया, अंग्रेजों को मार भगाया। तब जाकर हमनें, यह तिरंगा फहराया है।। जियें भारत देश... गली-गली फहराऍं तिरंगा, भारत की शान बढ़ाएंगे। झंडा ऊंचा रहे हमारा, यही गीत दोहराएंगे।। जियें भारत देश.... तिरंगे में तीन रंग को, अपने जीवन में भरना है। केसरिया रंग साहस का, श्वेत रंग सच्चाई का।। जियें भारत देश... हरा रंग हरियाली लाता, जन-जन में खुशहाली भरता। नील गगन में फहराओं तिरंगा, लहर-लहर लहराओं तिरंगा।। जियें‌ भारत देश मेरा, जियें भारत देश मेरा तीन रंगों से सजा तिरंगा मेरा।। परिचय :- प्रतिभा त्रिपाठी निवासी : भिलाई "छत्तीसगढ़" घोषणा पत्र : मैं यह प्...
सुख के नगमे ही गाए हैं
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सुख के नगमे ही गाए हैं

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस, इसीलिए सुख के नगमे ही गाए हैं। वक्त चाल से अपनी ही चलता हरपल, हमको तो बस अपने फर्ज निभाने थे। जैसा आया मौसम भोग लिया हमने, आलस ने पर ढूंढे कई बहाने थे।। अपने मन का होतो सुख ना हो तो दुख, मन पर अंकुश ने ही सुख बरसाए हैं। जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस, इसीलिए सुख के नगमे ही गए हैं।। अलविदा बीस, इक्कीस विदाई देता है, नहीं शिकायत तुमसे तुम इतिहास बने। याद करेंगे लोग तुम्हें ना भूलेंगे, वे सारे तुम जिनके खातिर खास बने।। कुछ व्यक्ति भगवान बने जीवन देकर, कुछ ने सेवा कर जीवन उजलाए हैं। जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस, इसीलिए सुख के नगमे ही गए हैं।। घर में रहकर जीने का आनंद लिया, छोड़ी भागम भाग तो राहत पाई है। काम "अनंत" दूसरों के आए तब ही, दूर गई दु:ख दर्दो की परछाई है।। जनहित से जो भटक गए रहबर अपने,...
प्रेम दीप
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प्रेम दीप

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में। दंभ द्वेष छल तम मिट जाये, नय अभिनंदन में।। दीप्त देह से, फिर उजियारा, कर्मों का फैले। धुल जाये आबद्ध चित्त जो, भ्रम में है मैले।। ज्योतित हो फिर करुण प्रेमरस, उर के दर्पण में।। प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में।। (१) आलोकित पुरुषार्थ पुंज से, भू परिमंडल हो। चिर प्रदीप से, दिग दिगंत तक कणकण उज्ज्वल हो।। कुटिल वृत्तियों, के चंचल पग, जकड़े बन्धन में।। प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में।। (२) विषम तटों के, तट बन्धों से, दीवारें जोड़े। कलुष भेद के, निंदित बंधन आओ हम तोड़े।। रुचिर प्रेम की, सघन उर्मियाँ, थिरके चिंतन में।। प्रेम दीप हम, चलो जलाये, निज अन्तर्मन में।। (३) परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचन...
जलियांवाला बाग सुनाता
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जलियांवाला बाग सुनाता

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** अमर शहीदों ने खूं से जो, लिख दी उसी कहानी को। जलियांवाला बाग सुनाता, डायर की मनमानी को।। ब्रिटिश हुकूमत ने जब हम पर, रौलट एक्ट लगाया था। स्वतंत्रता के मतवालों को, नहीं एक्ट वो भाया था।। उसका ही विरोध करने को, सभा एक बुलवाई थी। जनरल डायर को लेकिन वो, फूटी आंख न भाई थी।। महंगा पड़ा मगर उसको भी, करना इस नादानी को। जलियांवाला बाग सुनाता, डायर की मनमानी को।। शांत सभा पर चली गोलियां, कत्लेआम हजारों का। भला नहीं यह काम विश्व ने, माना था हत्यारों का।। तब चूलें अंग्रेजी शासन, की डोली तम छाया था। आजादी के सूर्योदय का, समय निकट यूँ आया था।। और अंततः हुए स्वतंत्र हम, हरा के दुश्मन जानी को। जलियांवाला बाग सुनाता, डायर की मनमानी को।। वाहक "अनंत" समरसता का, था उधमसिंह निर्भीकमना। तीनों धर्म जोड़ने को ही, राम, मोहम्मद, सिंह बना।। उसने ही तब दो गोली...
अगर प्रधानमंत्री मैं होता
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अगर प्रधानमंत्री मैं होता

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** जरूरतें सब पूरी करता, नहीं भीख को कर फैलाता। अगर प्रधानमंत्री मैं होता, सबको अपने हक दिलवाता।। लक्ष्य आर्थिक आजादी का, रखते मेरे साथी रहबर। पक्के भवन खड़े इठलाते, नहीं दीखते कच्चे छप्पर।। शहरों की निर्भरता होती, कमतो कृषक सभी सुख पाते। नहीं पलायन होता मिलकर, गांवों को ही स्वर्ग बनाते।। दूध दही की नदियां बहती, भारत जग में गौरव पाता। अगर प्रधानमंत्री मैं होता, सबको अपने हक दिलवाता।। घर-घर में उद्योग चलाता, गांव-गांव कलपुर्जे ढलते। विकेंद्रित करता उत्पादन, कम पूंजी में काम निकलते।। श्रमको मिलता पूरा प्रतिफल, बेकारी का नाम ना होता। साहूकारों के चक्कर में, घर आंगन नीलाम ना होता।। धन पर पूरा अंकुश होता, खुदपर निर्भर देश बनाता। अगर प्रधानमंत्री मैं होता, सबको अपने हक दिलवाता।। हर तरह की स्वतंत्रता का, भोग यहां पर जनता करती। समानता जन-जन मे...
मानव से मानव को जोड़े
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मानव से मानव को जोड़े

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** नफरत की दीवारें तोड़ें। मानव से मानव को जोड़ें।। यकसांखून बनाया सबका, यकसां जान बनाई है। स्वीकारें ये इसमें लोगों, सबकी छिपी भलाई है।। हमको जन्म मिला यूं प्यारा, जन-जन को दें सदा सहारा। जितने भी प्राणी हैं जग में, दर्जा सबसे अलग हमारा।। कोई भी हम मजहब माने। मानवता के सभी खजाने।। कभी किसी में वैर भाव की, दिखी नहीं परछाई है। स्वीकारें ये इसमें लोगों, सबकी छिपी भलाई है।। प्यार सिखाते हैं सब मजहब, नफरत किसने सिखलाई कब। किसने दर्द नहीं समझा है, पैरोंकार दया के हैं सब।। पर पीडा को कौन बढ़ाता। हिंसा से किसका है नाता।। धरती पे दुख कैसे कम हों, सबने अलख जगाई है। स्वीकारें ये इसमें लोगों, सबकी छिपी भलाई है।। हम मजहब के लिए नहीं हैं, कहो नही क्या बात सही है। हमें जरूरत मजहब की तो , अपने हित के लिए रही है।। कैसे जीवन अपना तारें। दीनो दुनिया यहां...
मैं तो चला सफर पर
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मैं तो चला सफर पर

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** अनदेखी, अनजान डगर पर, तुमसे बिना बताये, बोले, मैं तो चला सफर पर अपने मेरे यार! सदा खुश रहना... ध्यान रहे कितनी सर्दी, गर्मी झेली गुलशन लहकाया, खून-पसीने से, मिलजुलकर कलियों का आँचल महकाया; कभी न मेरी याद, उदासी का साया इनको छू पाये, इन पर इतना प्यार लुटाना, मेरे प्यार! सदा खुश रहना... एक दूसरे में घुलमिलकर कितने सपन सलोने सींचे, आसमान के तारे तोड़े, कितने चाँद उतारे नीचे; इन्हें कभी एहसास न होने पाये कोई चाँद सपन है, अब सब भार तुम्हारे काँधे, मेरे यार! सदा खुश रहना.... कितनी मुसकानें मुसकाईं, कितना हँसे हँसी के मेले, इतराते, इठलाते गुजरे कितनी मनुहारों के रेले; अब मुझको भी खुद में पाना, खुद से ही हँसना, बतियाना, पूरनकाम समझना खुद को, मेरे यार! सदा खुश रहना.... यद्यपि अपने वादे थे हम साथ जियेंगे, साथ मरेंगे, सदा सामना हर मुश्कि...
भारत की कुर्बानी को
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भारत की कुर्बानी को

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** मानवता के महायज्ञ से, उपजी अमिट निशानी को। नहीं भुला पाएगी दुनिया, भरत की कुर्बानी को।। करी तेरहवी, तेरह दिन में, बंगलादेश बनाया है। हमने पाकिस्तानी सेना, को घुटनों पर लाया है।। 'विजय दिवस' सोलह दिसंबर, को यूँ देश मनाता है। भारत की सेना के आगे, कौन भला टिक पाया है।। सजा मिली है इस दुनिया में, हर हरकत शैतानी को। नहीं भुला पाएगी दुनिया, भारत की कुर्बानी को।। इंदिरा की आँधी ने उसको, दो टुकड़ों में बांट दिया। बंगलादेश अलग करके धड़, पाकिस्तानी काट दिया।। दुनिया ने इंदिरा को समझा, था नाजुक अबला नारी। उसने ही दुनिया को अपना, दिखला रूप विराट दिया।। हमने लोगों बेमतलब की, कुचल दिया मनमानी को। नहीं भुला पाएगी दुनिया, भरत की कुर्बानी को।। सैनिक तानाशाह याहिया, खां का सपना तोड़ दिया। दुनिया के नक्शे में बंगला, देश नया एक जोड़ दिया।। तिराणवे...
पीड़ा की हांडी
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पीड़ा की हांडी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** उबल रही पीड़ा की हांडी, घर के कोने में। मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा, हमको दोने में।। फटी हुई किस्मत की पत्तल, पर चावल पसरे। दाल मित्रता करके जल से, दिखलाती नखरे।। नमक मिर्च ने हाथ बटाया, जादू टोने में। मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा, हमको दोने में।।१ चिन्ता के उपलों ने धुआँ, ठूँस दिया घर में। रोगी चूल्हा खाँस खाँस कर, दुबका बिस्तर में।। घात लगाकर बैठा है घुन, स्वर्ण भगोने में। मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा, हमको दोने में।।२ सुख की सँकरी पगडंडी पर, है भव के बंधन। दूध दही घी से तर पत्थर, घर भूखें नंदन।। सुख मिलता ढोंगी संतों को, दुखड़े बोने में। मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा, हमको दोने में ।।३ माल मुफ़्त का खा पघराये, कुर्सी एसी में। हम तो अपनी जान लुटाते, सस्ते देशी में।। 'जीवन' उल्टा सुख दोनों का, मन भर सोने में। मिला दर्द का हिस्सा ...
बहिष्कार
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बहिष्कार

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सत्य, अहिंसा और प्रेम का परिष्कार करना है सब को। नकारात्मक दृष्टिकोण का बहिष्कार करना है सब को। जीवन शैली सरस सरल हो। सुधा सुलभ हो लुप्त गरल हो। नहीं विकल हो मानव कोई,। स्नेह-शान्ति धारा अविरल हो। कुटिल तामसिकता का जग में तिरस्कार करना है सब को। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। रोटी, कपड़ा और निकेतन। प्राप्त करें जगती पर जन-जन। न हों अभावों की बाधाएँ, सुख-सुविधा पूरित हों जीवन। छोड़ स्वार्थ सब परहित पर भी अब विचार करना है सबको। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। निर्मित करने हैं विद्यालय। अधिक बढ़ाने हैं सेवालय। जहाँ विषमता की खाई है, वहाँ बनें उपकार हिमालय। मानव हितकारी शुभ उपक्रम बार-बार करना है सबको। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। जन-जन का उत्थान ज़रूरी। जन हित के अभियान ज़रूरी। हो व्...
किसको दर्पण दिखा रहा हूं
गीत

किसको दर्पण दिखा रहा हूं

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** कहता हूं नाचीज स्वयं को, रुतबा कितना जता रहा हूँ। किस पर करता हूँ घमंड मैं, किसको दर्पण दिखा रहा हूँ।। मैं किस खेतकी मूली हूं जो, अपना भाव बढ़ाया मैंने। कोल्हू का हूँ बैल फकत मैं, पका पकाया खाया मैंने।। क्यों हजार का नोट बना मैं, भार बदन का बढ़ा रहा हूँ। किस पर करता हूँ घमंड मैं, किसको दर्पण दिखा रहा हूँ।। अपनी मर्जी से ना जन्मा, नहीं मरण हाथों में मेरे। क्यों अंगारे उगल रहा हूँ, हैं अंधियारे मुझको घेरे।। क्यों घमंड है इतना मुझको, क्या सूरज का सगा रहा हूँ। किस पर करता हूँ घमंड मैं, किसको दर्पण दिखारहा हूँ।। खुद अपनीतारीफ करूं क्यों, क्या चरने को अकल गई है। गंदे कतरे से यह जीवन, है लोगों क्या बात नई है।। क्यो आकाश उठाके सिर पे सबको उल्लू बना रहा हूँ। किस पर करता हूँ घमंड मैं, किसको दर्पण दिखा रहा हूँ।। उंगली पकड़ेबिना चला कब, कंध...
दंभ करना छोड़ दे
गीत

दंभ करना छोड़ दे

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** देश के विपरीत विषयों पर अकड़ना छोड़ दे। तू हवाओं में जहर की गंध भरना छोड़ दे।।१ जोड़ सबको प्रेरणा दे रख बुराई पर नजर, तू अगर चारण गुणी तो आज लिखना छोड़ दे।।२ नेकियाँ कर बाँट खुशियाँ मात्र बन इंसान तू, भेद करते धर्म के पथ, पाँव रखना छोड़ दे।।३ स्वार्थ की सीमा बना तू, बाँट मत इंसान को, मत मियां मिट्ठू बने अब व्यर्थ बकना छोड़ दे।।४ है व्यवस्था दोगली ये सच नहीं क्या बात यह, तू विरासत का धनी तो अब बहकना छोड़ दे।।५ ज्ञान है अपनत्व भी पर वास्तविकता है नहीं, मात्र आभासी जगत में तू विचरना छोड़ दे।।६ मिल गये जल वायु नभ भू अग्नि सब उपहार में, बाँट तू सौहार्द 'जीवन', दंभ करना छोड़ दे।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवि...
आशावादी गीत
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आशावादी गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, बांधे सबको स्नेहिल डोरी। साथ मनाते मिलजुल कर सब, ईद-दिवाली, क्रिसमस-होरी। अभी आस्था का सागर है, अभी भरोसा मरा नहीं है। सकल विश्व में कोरोना है, फिर भी मानव डरा नहीं है। गीत अभी हैं आशावादी, गेय अभी है घर-घर लोरी। साथ मनाते मिलजुल कर सब, ईद-दिवाली, क्रिसमस-होरी। नित्य बांसुरी की तानों से, जंगल में मंगल होता है। चंदन चाचा के बाड़े में, मल्लों का दंगल होता है। जीवन सिर पर ले जाती है, गाँवों में पनघट से गोरी। साथ मनाते मिलजुल कर सब, ईद-दिवाली, क्रिसमस-होरी। राखी लेकर कमली काकी, चाँदू चाचा के घर आती। सलमा आपा दीवाली पर, दीपू से सौग़ातें पाती। पीपल नीचे चर्चा करते, हर दिन हस्सू एवम् होरी। साध मनाते मिलजुल कर सब, ईद-दिवाली, क्रिसमस-होरी। संचालित हैं पुण्य कर्म कुछ, चलते हैं सहयोग निरन्तर। जीवित हैं कुछ परम्परा...
सुखप्रदायिनी सूर्य-प्रभा
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सुखप्रदायिनी सूर्य-प्रभा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सुखप्रदायिनी सूर्य-प्रभा का, स्वागत करता आँगन है। हल्की-हल्की ठंड लिए ऋतु, आई शरद सुहावन है। चाह बढ़ी ऊनी वस्त्रों की, भूले बरसाती-छतरी। शांत हो गए कूलर-ए• सी•, पंखों पर आलस ठहरी! गीज़र का जल अच्छा लगता, हीटर अब मनभावन है। हल्की-हल्की ठंड लिए ऋतु, आई शरद सुहावन है। पारे का नित पतन हो रहा, शिष्टाचारी ताप हुआ । काले-काले मेघों का दल, लुप्त कहीं चुपचाप हुआ। अधिक आवरण का अभिलाषी, हुआ आजकल हर तन है। हल्की-हल्की ठंड लिए ऋतु, आई शरद सुहावन है। बर्फ़-मलाई कुल्फी शर्बत, घर-घर से निर्वासित हैं। कपड़ों की तो बात करें क्या, बिस्तर भी परिवर्तित हैं। शीतकाल के स्वागत में अब, आतुर बचपन-यौवन है। हल्की-हल्की ठंड लिए ऋतु, आई शरद सुहावन है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म...