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कविता

दशहरा
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दशहरा

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** असत्य पर सत्य की विजय का बुराई पर अच्छाई की जीत का असुरों पर सुरों की जय का पर्व है दशहरा।। नारी शक्ति की आराधना का, उसके नव रूपों की साधना का, शक्ति और भक्ति के संतुलन का, पर्व है दशहरा।। भीतर की बुराई के अंत का, खुद की शक्ति के संचार का, एक नई शुरुआत का, पर्व है दशहरा।। मन के अंधकार को मिटाने का, ज्ञान का दीप जलाने का, सुख शान्ति से जीवन का, पर्व है दशहरा।। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
दिल मेरा ही छला गया
कविता

दिल मेरा ही छला गया

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** क्यूँ शब्दों के जादूगर से, दिल मेरा ही छला गया। उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया।। तड़प रही थी एक बूंद को, सागर चलकर आया था, प्यासे मन से ये मत पूछो, कितना तुमको भाया था। सीने में इक आग धधकती, वो मेरे क्यूँ जला गया। उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया। तार जुड़े फिर टूट गये भी, गीत अधूरे मेरे हैं, साँसों की सरगम में मेरी, सुर सारे ही तेरे हैं। बिन रदीफ़ के भला काफ़िया, कैसे यूँ वो मिला गया। उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया। अक्सर ऐसा होते देखा, जो जाते कब आते हैं, इंतजार में दिन कट जाते, आँख बरसती रातें हैं। मीठी मीठी बातें करके, घूँट जहर का पिला गया उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो चला गया। परिचय :- शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' (विद्यावाचस्पति) जन्मदिन एवं जन्मस्थान : २६ ...
रावण है दुष्कृत्य
कविता

रावण है दुष्कृत्य

प्रकाश सिंह लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दशहरा का तात्पर्य, सदा सत्य की जीत। गढ़ टूटेगा झूठ का, करें सत्य से प्रीत।। सच्चाई की राह पर, लाख बिछे हों शूल। बिना रुके चलते रहें, शूल बनेंगे फूल।। राम चिरंतन चेतना, राम सनातन सत्य। रावण वैर-विकार है, रावण है दुष्कृत्य।। परिचय :-  प्रकाश सिंह निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) सम्प्रति : संयुक्त निर्देशक मैटेरियल्स मैनेजमेंट संजय गाँधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज लखनऊ घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कह...
मैं स्त्री हूँ…
कविता

मैं स्त्री हूँ…

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** स्त्री हूँ सब सह लुंगी बस इतना वचन दे देना डांट देना हजार दफा सुनो जी....... इतना कर देना उपकार लाल चुनरियां में तुम्हारे साथ मनाऊँ जीवन भर करवा चौथ का ये त्यौहार !! नही जाऊंगी देहरी लांघ बिना पूछे कही मेरे तुम ही हो हमसफर सुनो जी....... इतना कर देना उपकार लाल बिंदी मैं मनाऊँ जीवन भर करवा चौथ का ये त्यौहार !! दिन रात भाग दौड़ कर कर लुंगी मैं सब कार्य सुनो जी....... इतना कर देना उपकार मंगल सूत्र पहन मैं मनाऊँ जीवन भर करवा चौथ का ये त्यौहार !! भूखे प्यासे रहकर करूँगी मैं सारे व्रत और त्यौहार सुनो जी....... इतना कर देना उपकार लाल चूड़ियों में मनाऊँ मैं जीवन भर करवा चौथ का ये त्यौहार !! नही माँगूँगी नई साड़ी कभी स्त्री हूँ सब सह लुंगी सुनो जी....... इतना कर देना उपकार पायल बिछिया पहन मैं मनाऊँ ...
सावन
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सावन

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** रिमझिम-रिमझिम बरसे बादल। झिलमिल-झिलमिल दामिनी ये। सर-सर-सर-सर झोंका हवा का दर=दर नहा रही यामिनी ये। टपक=टपक कर टपका पानी। झन-झन झरनों की झनकार। टिटुर-टिटुर कर मेंढक बोले, आयी‌ सावन की बौछार।। गड-गड-गड-गड करता अम्बर, घिर-घिर-घिर-घिर जाते मेघ। दिखे दिशाऐ चांवर जैसी, मोर मगन है मोरनी देख। चहल-पहल कलियों मन में, छन-छन घुंघरू की छनकार। चूं-चूं-चूं-चूं बोली चिडिया, आयी सावन की बौछार।। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशि...
तुम्हारे दिये दर्द
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तुम्हारे दिये दर्द

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** तुम्हारे दिये दर्द तुम्हारी याद दिलाते हैं मेरे दिल के घावों को और ताजा कर जाते हैं जब दर्द ही देना था तो तुमने प्यार क्यों किया अपने साथ ही मेरा जीवन भी बर्बाद क्यों किया सच्चे प्रेमी प्यार मैं दर्द नहीं देते हैं वो तो हर दर्द को अपना समझ कर सहते हैं उफ़ भी नहीं करते दर्द पाकर रोते रहते हैं चेहरा छुपाकर ऐसी क्या मजबूरी थी कि मुझे धोका दिया प्यार की जगह दर्द ही दर्द दिया अब तुम्हारे दर्द ही अमानत है मेरे पास जिंदगी भर रहेगें वो मेरे खास तुम्हें कोई दर्द न दे मेरी यही दुआ है मत करना किसी से छल‌ जो मेरे साथ हुआ है परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
मां
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मां

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** तुमसे अलग हो कर, ये मन न रह पाता है मां कामों में उलझा रहता, और याद करता मां आंखों में सपने भरे, पर सपने तुमसे है तुम मुझमें कुछ यूं बसीं, सब अपने तुमसे है सपना पूरा करने में, तुम साथ देना मां तुमसे अलग हो कर, ये मन न रह पाता है मां रात को सर पे तेरी थापे, याद आती है आंगन की वो किलकारी, भी याद आती है जब भी भूखा सोया हूं, तुम याद आती मां तुमसे अलग हो कर ये मन न रह पाता है मां अंधियारा होने पर मां, तुम लोरी गाती थी राजा बेटा कह के, मेरा सर सहलाती थी उन लम्हों मैं में फिर से जीना चाहता हूं मां तुमसे अलग हो कर, ये मन न रह पाता है मां शाम को घर वापस आता, बस ताला मिलता है पूरा दिन तुमने क्या किया, न कोई कहता है तेरा चेहरा सोच कर, सब सह लेता हूं मां तुमसे अलग हो कर ये मन न रह पाता है मां पर...
बिटियाएँ ओझल
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बिटियाएँ ओझल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** एक तारा टुटा आँसमा से धरती पर आते ही हो गया ओझल ये वैसा ही लगा जेसे गर्भ से संसार में आने के पहले हो जाती है बिटियाँ ओझल । तारा स्वत:टूटता इसमे किसी का दोष नहीं मगर गर्भ में ही कन्या भ्रूण तोड़ने पर इन्सान होता ही है दोषी । भ्रूण हत्या होगी जब बंद तो बिटियाएँ भी धरती पर से हमें निहार पायेगी चाँद -तारों सा नाम पाकर संग जग को भी रोशन कर पायेगी । ये बात बाद में समझ में आई टुटा तारा लाया था एक संदेशा - भ्रूण हत्या रोकने का उससे नहीं देखी गई ऊपर से ये क्रूरता । वो अपने साथी तारों को भी ये कह कर आया- तुम भी एक -एक करके मेरी तरह भ्रूण हत्या रोकने का संदेशा लेते आओ । कब तक नहीं रोकेगें क्रूर इन्सान भ्रूण हत्याए संदेशा पहुँचे या न पहुँचे पर रोकने हेतु ये हमारा आत्मदाह है हमारा बलिदान है देख...
अंतर्मन का रावण जलाओ
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अंतर्मन का रावण जलाओ

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** घर-घर में रावण बन बैठा, तो राम कहाँ से आएगा, कुसंस्कारी दिशा गमन करें, तो राम कहाँ से पाएगा। मनुज चरित ही धर्म-कर्महीन है, तो राम कहाँ लाएगा... कामी, क्रोधी, लोभी, हिंसा, स्वार्थी असूरी गुणी समाया है, अहंकारी, चोरी, व्यभिचारी को दैत्य कारज बताया है। छोड़ो, त्यागो, दफन करो ये सब, तब तो राम मिल पाएगा.. सोकर सपना देखोगे तो सोना कहाँ से मिल पाता है, जाग कर अपने को देखो तो सोना हीरा बन जाता है। घट-घट में जो राम बसा है वहीं तो सबको जगाएगा... दशानन दसगुणी रहा इसलिए वेदों का ज्ञान पाया है, रावण ब्राह्मण कुल लंकेश अधिपति वह कहलाया है। विद्वान होकर भी पाखंडी बना तो राम कहाँ से आएगा .. ब्राह्मण रूप धर छल कपटकर परनारी सीता को लाये हैं, मंदोदरी सखी सहेली मिल, पति रावण को समझाये हैं। पर नारी हरण हिंसाकारी...
सबसे मुश्किल होता है
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सबसे मुश्किल होता है

प्रीति धामा दिल्ली ******************** सबसे मुश्किल होता है, हाँ बहुत मुश्किल होता है, उस सफलता को बस छूते-छूते रह जाना, जिसके लिए आपने जी तोड़ मेहनत की हो, जिसके सपने देखने के लिए, नींदों से बगावत की हो। जिसको पाने के न जाने कितने ख़्वाब देखे हो, जिसकी उम्मीद आपने अपने से, आपके अपनो ने तुमसे बांधी हो, सच में बड़ा मुश्किल होता है, सफलता के आखिरी पायदान पर जाकर नीचे लुढ़कना फिर से नई शुरुआत जब मैंने जीरो से सीखा था, सच में बहुत मुश्किल है, फिर से हिम्मत को बांधे रखना, कि अब फिर से कमर कस कर उस सफलता को एक बार फिर हासिल करना। बस इसी ज़द्दोज़हद में अब कट रही ज़िन्दगी है, कि आखिर कहां रह गयी वो कमी है। परिचय :-  प्रीति धामा निवासी :  दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
विजय दशमी
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विजय दशमी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मेरे लंका रूपी मन के, विषय विकारी रावण को। आप जीतने आना प्रभु, आश्विन शुक्ल दशमी को। अंधकार में दीप जलाने,सत्य विजय भव कहने को। शुद्ध चरित्र करने मेरा, मैं आहूत कर दशहरे को। लंका विजय की भांति, हरलो काम क्रोध मद लोभ को। मन है पापी कपटी वंचक, हे प्रभु दूर करों इस रोग को। धर्म पथ पर गमन करूं, नमन सीता के सम्मान को। मैं कलयुग का केवट करता, नित वंदन श्रीराम को। असत्य पर सत्य की जीत, प्रभु दोहरा दो इतिहास को। कलयुग कर दो त्रेता, अवध बना दो मेरे हिंदुस्तान को। घर-घर दीप जला दो, रावण भूल गए भगवान को। भारत को बधाई, वंदन अभिनंदन पावन त्योहार को। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षि...
विजयदशमी और नीलकंठ
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विजयदशमी और नीलकंठ

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हमारे बाबा महाबीर प्रसाद हमें अपने साथ ले जाकर विजय दशमी पर हमें बताया करते थे नीलकंठ पक्षी के दर्शन भी कराते थे, समुद्र मंथन से निकले विष का पान भोले शंकर ने किया था इसीलिए कंठ उनका नीला पड़ गया था तब से वे नीलकंठ भी कहलाने लगे। शायद तभी से विजयदशमी पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन की परंपरा बन गई, शुभता के विचार के साथ नीलकंठ में भोलेनाथ की मूर्ति लोगों में घर कर गई। इसीलिए विजयदशमी के दिन नीलकंठ पक्षी देखना शुभ माना जाता है, नीलकंठ तो बस एक बहाना है असल में भोलेनाथ के नीले कंठ का दर्शन पाना है अपना जीवन धन्य बनाना है। मगर अफसोस अब बाबा महाबीर भी नहीं रहे, हमारी कारस्तानियों से नीलकंठ भी जैसे रुठ गये हमारी आधुनिकता से जैसे वे भी खीझ से गये, या फिर तकनीक के बढ़ते दुष्प्रभाव की भेंट चढ़त...
माँ
कविता

माँ

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** एक अक्षर का शब्द है माँ, जिसमें समाया सारा जहाँ। जन्मदायनी बनके सबको, अस्तित्व में लाती वो। तभी तो वो माँ कहलाती, और वंश को आगे बढ़ाती। तभी वह अपने राजधर्म को, मां बनकर निभाती है।। माँ की लीला है न्यारी, जिसे न समझे दुनियाँ सारी। नौ माह तक कोख में रखती, हर पीड़ा को वो है सहती। सुनने को व्याकुल वो रहती, अपने बच्चे की किलकारी।। सर्दी गर्मी या हो बरसात, हर मौसम में लूटती प्यार। कभी न कम होने देती, अपनी ममता का एहसास। खुद भूखी रहती पर वो, आँचल से दूध पिलाती है। और अपने बच्चे का, पेट भर देती है।। बलिदानों की वो है जननी। जब भी आये कोई विपत्ति, बन जाती तब वो चण्डी। कभी नहीं वो पीछे हटती, चाहे घर हो या रण भूमि। पर बच्चों पर कभी भी, कोई आंच न आने देती।। माँ तेरे रूप अनेक, कभी सरस्वती कभी लक्ष्मी। माँ देती श...
मैं क्या हूँ …?
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मैं क्या हूँ …?

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं क्या हूँ ? स्वयं का अहम हूँ, कौन हूँ? पानी का एक बुलबुला हूँ, फिर भी इठला रहा हूँ । क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। अपने जीवन और अस्तित्व से भली भांति परिभाषित हूँ , किंतु अहम के आवरण से ढका हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। अस्तित्व में आने के लिए सदैव कसमसाता हूँ, किंतु काल के गाल में कब समा जाऊं ! यह जानने के लिए, नियति को प्रतिपल मनाता हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। सहसा क्या देखता हूं ! काल के सम्मुख स्वयं को पाता हूँ संभलना चाहता हूँ, नादानियों का प्रायश्चित करना चाहता हूँ, किंतु संभल ही नहीं पाता हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। फिर भी सौभाग्यशाली हूँ, अहम को छोड़कर पाप-पुण्य को त्याग कर, जीवन-चक्र को भूलकर, मुक्ति के आगोश में चला जाता हूँ। क्योंकि मैं अब "मैं" नहीं हूँ, पानी का बुलबुला हूँ। कर...
विजयदशमी
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विजयदशमी

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** हर साल की तरह इस साल भी रावण का पुतला जलाएंगे बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाएंगे। पर क्या इस तरह हम अपने भीतर के रावण को मार पाएंगे बुराइयों और समस्याओं को दफन कर पाएंगे। क्या मात्र रावण का पुतला जलाने से हमारी असुरी प्रवृत्तियां खत्म हो जाएंगी घटनाएं अपहरण हत्या बलात्कार की रुक जाएंगी? त्रेता युग के एक दशानन को तो मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने खत्म कर दिया था पर कलयुग में तो हमारे सामने समस्या रूपी दशाननों की फौज है क्या मात्र पुतला जलाकर हम इन दशाननों को खत्म कर पाएंगे या इनसे मुक्ति का कोई और रास्ता निकाल पाएंगे विजयदशमी पर्व की खुशियां मनाने से पहले हमें सोचना होगा रावण दहन का तरीका नया खोजना होगा। तभी देश की समृद्धि और विकास में बाधक समस्याओं और बुराइयों रूपी आधुनिक दशाननों को हम खत्म कर ...
स्वदेशी अपनाइए
कविता

स्वदेशी अपनाइए

निर्दोष लक्ष्य जैन धनबाद (झारखंड) ******************** स्वदेशी अपनाइए स्वदेशी अपनाइए देश की शान बढ़ाइए देश का मान बढ़ाइए राष्ट्र भक्ति जगाइए जन जन कॊ समझाइए स्वदेशी अपनाइए स्वदेशी अपनाइए ॥ स्वाभिमान दिखा इए स्वदेशी अपनाइए आत्म सम्मान बचाइए स्वदेशी अपनाइए देश का मान बढ़ाइए स्वदेशी अपनाइए आत्म निर्भर बनाइए स्वदेशी अपनाइए ॥ देश का विकाश होगा हर हाथ रोजगार होगा आर्थिक सुधार होगा देश खुशहाल होगा छोड़िए मेड इन फ्रांस इंग्लैड चाईना जापान मूँछें ऐंठीये और अपनाइये मेड इन हिंदुस्तान ॥ शान से तिरंगा फहराए दुनियाँ कॊ दिखलाइए जन जन कॊ समझाइए स्वदेशी अपनाइए शुद्ध स्वच्छ स्वस्थ रहिये स्वदेशी अपनाइए "लक्ष्य" यही बनाइए स्वदेशी अपनाइए ॥ परिचय :- राजीव निर्दोष लक्ष्य जैन निवासी - धनबाद (झारखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचन...
मेरे प्रभु
कविता

मेरे प्रभु

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं स्वर्ग में गमन करूं या फिर नर्क कुंड की अग्नि में भस्म होता रहू मगर फिर भी तुम मुझ में शेष रहना मेरे प्रभु। मैं सिंहासन पर बैठा हुआ राज्य करू या फिर रंक बन भिक्षा मांगू मगर फिर भी तुम मुझ में शेष रहना मेरे प्रभु। मैं जीवन के प्रारंभिक दौर में खड़ा हूं या फिर मृत्य के अंतिम छोर में खड़ा हूं मगर फिर भी तुम मुझ में शेष रहना मेरे प्रभु। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
संघर्ष लिखूं
कविता

संघर्ष लिखूं

आकाश सेमवाल ऋषिकेश (उत्तराखंड) ******************** मैं भाग्य नहीं संघर्ष लिखूं। जीवन का उत्कर्ष लिखूं। टप-टप बहता जिसमें श्रम है, जीवन का वो दर्श लिखूं। मैं भाग्य नहीं संघर्ष लिखूं। जहां पाऊं कांटों से छलनी। जहां बिखरी अमा की हो रजनी। जहां पग दो पग बढना दुष्कर, जहां दूर-दूर तक न हो पुष्कर।। जहां काल खड़ा हो अभिमुख प्रतिपल, उन पल पल का मैं वर्ष लिखूं। मैं भाग्य नहीं संघर्ष लिखूं। जहां पथिक एक हो, पथ अनेक। जहां पूंजी, उमंग,धीरज, विवेक। जहां हस के टाले मुश्किल को, जहां आंखें प्यासी मंजिल को। जहां भूख प्यास या थक नहीं, उस जीवन का निष्कर्ष लिखूं। मैं भाग्य नहीं संघर्ष लिखूं।। परिचय :- आकाश सेमवाल पिता : नत्थीलाल सेमवाल माता : हर्षपति देवी निवास : ऋषिकेश (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित ए...
बेटी और पिता
कविता

बेटी और पिता

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** एक बेटी के लिए दुनिया उसका पिता होता है पिता के लिए बेटी उसकी पूरी कायनात होती है बेटी के लिए पिता हिम्मत और गर्व होता है पिता के लिए बेटी उसकी जिन्दगी की साँसे होती है बेटे से अधिक प्यार पिता अपने बेटी से करता है कोई गलती हो बेटी से झूठी डाँट दिखाते पिता बेटी जब कुछ मांगे तो पिता आसमां से तारे तोड़ लाये बेटी घर में जब होती है पिता को बड़ा गुरुर होता है लूट जाए धन दौलत चाहे सारा जहांन बिक जाए बेटी की आंखों में आंसू भी ना देख सके वो पिता है विदा होती है बेटी घर से पिता बड़ी पीड़ा होती पिता को आंख में आंसू छिपाकर बेटी को कमजोर नही होने देता पिता कहीं किसी कोने में फूट-फूट कर रोता है वो पिता है बेटी के विदा होने से टूट-टूटकर बिखरने लगता है पिता पिता का साया जब होता सिर पर बेटी नही घबराती कभी ...
अपनी बस्ती में…
कविता

अपनी बस्ती में…

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** रहते थे जब अपनी बस्ती में हर पल गुजरता था मस्ती में दिल खोल कर हँसने का शोर आत्मविश्वास की थी मजबूत ड़ोर रोके से भी न रूकना,थकना सबको खुश करने से न चूकना पहचान थी चमकता सितारा तारीफें लुटाता ज़माना सारा सबका भरोसा ही था सच्ची सुलझन तो रिश्तों में न थी कोई भी उलझन डाँट में भी होती थी एक प्यारी परवाह तो भटकने पर भी मिल जाती एक राह बेवजह खुशियाँ मिलती थी सस्ती में रहते थे जब अपनी बस्ती में....... परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्र...
गंगा माँ और इजा
कविता, स्मृति

गंगा माँ और इजा

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** अविरल प्रवाहित जगत जननी की, अद्भुत धारा और गति आज देखी। इंदिरा एकादशी के अवसर इजा , जनसमूह अद्भुत भीड़ आज देखी।। पितर मुक्ति प्रदायिनी एकादशी, श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बतलाई। पितर मुक्ति और आत्म शांति की, इंदिरा एकादशी परम बतलाई।। कर नमन जगज्जननी गंगा को माँ, जन्म दात्री इजा चरणों का ध्यान किया। तेरी कृपा से ही तेरे निरमित्त इजा, पाँचवां गंगा स्नान किया।। किया था प्रथम जब हे इजा, तेरी अस्थि विसर्जन करवाने आया। किया था द्वितीय इजा हे जब, त्रिमासी केस समर्पित करने आया।। छमासी तृतीय स्नान इजा, वासंतिक अवसर पर तूने करवाया। बाज्यू की पुण्यतिथि पर इजू तूने, वर्षा का स्नान चतुर्थ करवाया।। इजा तेरे पुण्य प्रताप-प्रसाद की, फलश्रुति जो तूने पंचम भी करवाया। शब्द नहीं इजा तेरी कृपा के लिए, स्नान जो तूने पंचम भी करवा...
मैं पुस्तक हूँ
कविता

मैं पुस्तक हूँ

डोमन निषाद डेविल डुंडा, बेमेतरा (छत्तीसगढ़) ******************** कैसे बताऊँ क्या समझाऊँ। मैं कोई कागज नही, मैं पुस्तक हूँ। शब्दो में मिला हूँ, और इसी से खिला हूँ। मैं कोई कागज नहीं, मै पुस्तक हूँ। वाक्यों से समाहित हूँ, पर वर्तनी में विभाजित हूँ। मैं कोई कागज नहीं, मैं पुस्तक हूँ। सब से परिचित हूँ, फिर भी चिंतित हूँ। मैं कोई कागज नही, मैं पुस्तक हूँ। भावों से स्मरण हूँ, शब्दों में व्याकरण हूँ। मैं कोई कागज नही, मैं पुस्तक हूँ। परिचय :- डोमन निषाद डेविल निवासी : डुंडा जिला बेमेतरा (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कव...
ख्वाब
कविता

ख्वाब

सत्यम पांडेय राजीव नगर (गुरुग्राम) ******************** जिंदगी से तन्हा हूँ, ख्वाबो में जिये जा रहा हूँ, कुछ राज़ दिल के किये बयाँ, कुछ करने जा रहा हूँ, दे ताकत मेरे ईश्वर तु मुझको इतनी, जो कहने थे लफ्ज़ उससे सभी, उनको छोड़ और सब कुछ कहे जा रहा हूँ। कुछ बातें सिर्फ कही नही जाती, महसूस की जाती है, अक्सर ये बताती नहीं लेकिन फिक्र जताती है, शायद कदर उसको भी होगी मेरे इन अफसानों की, जुबां से न कहे फिर भी इशारों में बताती है। अगर जान भी माँगोगे तो मना फिर भी नही करेंगे, मगर जीने के बहाने हम ढूढ़ते जरूर रहेंगे, क्योंकि जुदा तुझसे तो रह न पाएँगे कही भी, "जा जीले उसके संग" मेरे रब भी मुझसे कहेंगे। की देख तेरा नूर, चमन में उतरा चांद है, काश तू मेरे साथ होता, बस इतनी सी फरियाद है, जैसे वो तारा रहता हैं चाँद संग हरदम, वैसे ही तेरे बिना, मेरी जिंदगी बर्बाद ह...
शाम की धूप
कविता

शाम की धूप

काजल स्वरूप नगर (नई दिल्ली) ******************** शाम की वो छलती धूप, दीप से थोड़ी कम लगती है पर कुछ अच्छी सी लगती हैं। छूती है जब तन को ठंडे पवन के साथ, शरारत सी करती है पर कुछ अच्छी सी लगती हैं। ढलते सूरज को देख ऐसा लगता है कोई किताब बस्ते में रखता है, छुट्टी होने की खुशी झलकती है इसलिए अच्छी सी लगती है। शाम की वो छलती धूप बड़ी प्यारी सी लगती है गलियों में सब निकल कर आते है बच्चे शोर मचाए चले जाते है उनपर वो छलती धूप, प्यार बरसाती है, इसीलिए सोने की छलनी सी लगती है, पर कुछ अच्छी सी लगती है। धूप के बिछड़ते ही चांद आता है रोशनी चांदनी में बदलती है, थोड़ी और शीतल होकर, जुबां पर हँसी सी खिलती है, पर कुछ अच्छी सी लगती है। पक्षियों का चहकना, हवाओं के साथ उड़ना बिना रुकावट के मन के पंखों को उड़ान देती है, इसीलिए अच्छा सी लगती है। परिचय :-  काजल पिता : सोहन सिं...
बाँटते जो रहे…
कविता

बाँटते जो रहे…

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** जो जेबों में छिपा, सूरज रखते रहे हैं- उन्हें क्या पता, स्वयं जलते रहे हैं । बाँटते जो रहे, उजालों को जितना- उनसे अंधेरे स्वयं दूर, चलते रहे हैं । अरे आंधियो, हमको धमकी नहीं दो- इस हृदय में कई, तूफां पालते रहे हैं । अपराध, क्यों ना करें, वह बताओ- सजा तो नहीं, सम्मान मिलते रहे हैं । होता राजा वही, रोक दे रुख हवा का- वरना मौसम यूँ ही चाल चलते रहे हैं । परीक्षाएँ, माना कठिन थी तुम्हारी- पर परिणाम भी अच्छे मिलते रहे हैं । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, व...