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कविता

अटल मेरा विश्वास है
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अटल मेरा विश्वास है

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** मिटे गरीबी हिन्दुस्तां से, अटल मेरा विश्वास है। हँसता चेहरा देखें सबका, लक्ष्य यही बस खास है।। शिक्षा, स्वास्थ्य ब्रम्हास्त्र बना, बस ऋण देना इक ध्येय नहीं । हो भले अनेकों ऋण दाता, कोई मुझ सा अजेय नहीं ।। हम उनको हीं लक्षित करते, जिनका न किसी पर आस है। हँसता चेहरा देखें सबका, लक्ष्य यही बस खास है।। नई विकास की रणनीती, है मिली सभी की सहमती। बस एक वाक्य हीं याद रहे, है ब्रह्म गांठ यह यूनिटी।। घर से लेकर सामानों तक, हो वो सब जो न पास है। हँसता चेहरा देखें सबका, लक्ष्य यही बस खास है।। बस एक हमारा कहना है, जितनी भी मेरी बहना है। चलो एक वचन मुझको दे दो, न जुल्म किसी का सहना है।। हम पग-पग साथ तुम्हारे हैं, हाँ तबतक जबतक सांस है। हँसता चेहरा देखें सबका, लक्ष्य यही बस खास है।। जब न था कोई हम थे, सबके...
प्यार
कविता

प्यार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** प्यार एक सीमित रेखा तरुणाई उम्र का आकर्षण तपस्या प्रेम की भंग ना हो सब अपनी-अपनी जगह सही हौसला न हो तो प्रेम टूटा जैसे टूटता है तारा और उसी तारे को गवाह बनाते प्रेम के सपने का उदाहरण प्रेम झूल जाता वर्षो की हाँ नहीं में मगर प्रेम होता अमर क्योकि प्यार का वाउचर जो डलवा रखा दिल की चिप में उम्र भर के लिए। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में...
समय-रिश्ते-दोस्ती
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समय-रिश्ते-दोस्ती

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** समय समय पवन का झोंका-सा, पल-पल बदले रूख़, साथ अग़र समय का मिले, हर क्षण सुख ही सुख। समय साथ जब छोड़ता है, पार्थ पत्थर बन जाता, जिसने समझा समय को, बन चांद वह मुस्कराता।। रिश्ते होते रिश्ते फूल से कोमल ऱखना सदा संभालकर, तोड़ न देना बिन समझे, वहम का कीच उछालकर। रिश्तों से ही धरती पर, अमन चैन सदभाव जीवंत , जो होते न ग़र रिश्ते-नाते, पशुता पसरी होती दिगंत।। दोस्ती है अगर दोस्ती सच्ची, रिश्ता भाई-भाई का फीका, मुहं न मोड़े मुश्किलों में, बताता हितकारी सलीका। श्रीकृष्ण-सुदामा-सी दोस्ती, मुमकिन कहां जग में, मुहँ पर तो मिश्री-सी वाणी, छल-छदम भरा रग में।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स...
हां मैंने खुद को
कविता

हां मैंने खुद को

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** घर-घर रहे, हर सदस्य प्रखर रहे, यही सोच सब कुछ संभाला है, परिवार के लक्ष्यों को पाने खातिर मैंने खुद को घर से निकाला है, झिड़कने काट खाने को आतुर रिश्ते, हो चुके एक दूजे के लिए फरिश्ते, अब कौन समझाये इनको इनके खातिर ही जान संकट में डाला है, हां मैंने खुद को घर से निकाला है जी है हिस्से मेरे नफरतों का अंबार, गलत न होकर भी करना पड़ता है स्वीकार, ऐसा नहीं है कि मैं दूध का धुला हूं, जैसा भी हूं सबके सामने खुला हूं, इनके लिए हर दुख दर्द भुला हूं, किस-किस को बताऊं कि कब कब फांसी के फंदे पर मुस्कुरा कर झूला हूं, रहा होऊंगा कभी उजले तन वाला जिम्मेदारियों ने थूथन कर डाला काला है, हां मैंने खुद को घर से निकाला है त्राहिमाम हिस्से मेरे, उनके हिस्से जिंगालाला है, हां मैंने खुद को घर ...
सत्य-न्याय पग-पग प्रखर हो
कविता

सत्य-न्याय पग-पग प्रखर हो

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** सत्य-न्याय से पग-पग प्रखर हो दुआओं में मेरी खुदा ये असर हो। महके चमन प्रेम औऱ भाईचारे के छल-छदम भरा न कोई पहर हो। रखें भाव मिलजुल जीने का सभी जीवन एक-दूजे के लिये ही बसर हो। नही बड़ा कोई धर्म मानवता से यारो बन जाये अब खुदा हर बशर हो। कर न सके कैद दुनिया मे वक़्त को चलता रहा अविरल बेखौफ दहर हो। हो न कोई आंख भूलकर भी ग़मगीन छलका अश्क़ जो फूटेगा कहर हो। ये जमीं-आसमां औऱ चाँद-तारे सभी करना सदा "गोविमी" पर तुम मेहर हो। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के...
रोशनी
कविता

रोशनी

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** अपना सूरज खुद बन जाओ। अपने मन-मंदिर में रोशनी, फैलाते चलो दिव्य रोशनी, जगमग करते चलो। अपने कर्म श्रेष्ठ करते चलो। मन सुंदर स्वच्छ बनाओ। फिर स्वत: ही मन उजाला, ही उजाला फैला जाएगा। सेवा भाव रख कर श्रेष्ठ, कर्म करते चलो जिससे, दूसरों के जीवन को सुमन, सा महका कर खुशबू फैला दें। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें ...
फादर्स डे
कविता

फादर्स डे

डॉ. सोनू चौधरी करनाल जिला- झुंझुनूं (राजस्थान) ******************** आओ सखी अंधेरे में पड़े तुमको दादाजी दिखलाऊ मैं, छत है पापा तो “नींव का पत्थर” दादाजी को बतलाऊ मैं ! आवाज़ होती पापा घर की तो दादाजी सिंह की दहाड़ हैं, रक्षक होते पापा घर के, तो दादाजी हिमालय पहाड़ हैं ! पापा घर की चार दिवारी, तो दादाजी काटों वाली बाड़ हैं, दुःख दर्दों को खाने वाली ये दोनों ऊपर नीचे की जाड़ है, इन दोनों के होते क्यों घर में सी.सी. टीवी लगवाऊ मैं! आओ सखी अंधेरे में पड़े तुमको दादाजी दिखलाऊ मैं, छत है पापा तो “नींव का पत्थर” दादाजी को बतलाऊ मैं ! खुद बिक के भी अरमां पुरे करू ऐसा इनका इरादा है, अजब रिश्ते ये गलती पर मारे कम और गिनते ज्यादा हैं ! दिल मानु पापा को तो सांसो की डोरी मेरी अमृत दादा हैं, सारे तीर्थ इनमें हैं मेरे चाहे काशी, मथुरा और काबा हैं, फिर इन दोनों को छोड़ क्यों ति...
महूं जाहूं स्कूल
आंचलिक बोली, कविता

महूं जाहूं स्कूल

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी रचना) सुन ना दाई ओ, सुन गा मोर ददा। महूं जाहूं स्कूल, ले दव ना बस्ता।। पेन, कापी हा, मोर संगी-साथी ए। पुस्तक मनी हा, जिनगी के थाती ए।। पढ़-लिख के चलहूं गियान के रद्दा। महूं जाहूं स्कूल, ले दव ना बस्ता।। गुरु जी हा सुनाही, बब्बर शेर के कहानी। पढ़बो हमन कबिता, मछली जल के रानी।। हिन्दी हवय मोर महतारी के भाखा। महूं जाहूं स्कूल, ले दव ना बस्ता।। जोड़-घटाव बर खुलही गणित के पिटारा। गुणा-भाग बर गिनबो पहाड़ा गिनतारा।। आकृति नापबो ता आहय खूब मजा। महूं जाहूं स्कूल, ले दव ना बस्ता।। जम्मों जिनिस के नाव ला अंग्रेजी म बोलबो। सतरंगी इंद्रधनुष के निसैनी बनाके चढ़बो।। सीखबो पोयम जॉनी-जॉनी यस पापा। महूं जाहूं स्कूल, ले दव ना बस्ता।। खेलबो खेलगढ़िया के हमन खेल। कभू कबड्डी, खो-खो, कभू रेलमरेल।। नाचा अऊ गाना म...
मीठी मनवार
कविता

मीठी मनवार

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** माँ की देखो मीठी मनहार बचपन से करती वह प्यार। पुचकार पुचकार माँ दुध पिलाती, जिद्दी पर माँ उसे सहलाती, अपने हाथ माँ सीर पर घुमाती, मीठा मीठा लाड़ लडाती, रोने पर माँ दुखी होजाती, कही नजर ना इसे लग जाये, अपने आँचल से उसे छुपाती, राई लून से नजर उतारे, काला टीका उसे लगावे, मीठी मनवार करे देखो लाड़। पलना झुले देखो लाल। पैरो पर माँ उसे लेटाती बडी हिफाजत से उसे नहलाती, नैनो मे कही नीर ना ढल जाये देखो कैसे उसे बचाती। माँ तो बस माँ होती हैं, मीठी मनहार से उसे सुलाती। मीठी मीठी लोरी गाती, पलने मै माँ उसे सुलाती। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जब...
ओ मेघ अब तो बरस जा
कविता

ओ मेघ अब तो बरस जा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** सूखी धरा तरसे हरियाली जाती आबिया लाएगी संदेशा माटी की गंध का होगा कब अहसास हमें गर्म पत्थरों की दिल कब होंगे ठंडे घनघोर घटाओं को देख नाचते मोर के पग भी अब थक चुके मेंढक को हो रहा टर्राने का भ्रम ओ मेघ अब तो बरस जा। छतरियां ,बरसाती भूली गांव -शहर का रास्ता उन्होंने घरों में जैसे रख लिया हो व्रत नदियाँ झरनो के हो गये कंठ सूखे कलकल के वे गीत भूले नेह में भर गया अब तो पानी ओ मेघ अब तो बरस जा। हले खेत हो जैसे अनशन पर बादलों की गड़गड़ाहट बिजलियों की चमक से डर जाता था कभी प्रेयसी का दिल ठंडी हवाओं से उठ जाता था घुंघट मुस्कुराते चेहरे होने लगे अब मायूस ओ मेघ अब तो बरस जा। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य...
थोड़ा अलग हूँ
कविता

थोड़ा अलग हूँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हाँ मैं थोड़ा हट कर हूँ, क्युकी थोड़ा अलग हूँ! अंदर से टूटे होकर भी चेहरे पर मुस्कान लिए फिरती हूँ, लाखों अनसुलझे सवाल हैं पर मौन हो सब गुनती हूं थोड़ा तो सबसे अलग हूँ!! थोड़ा उलझी सी हूँ, सपनों की उमंग आज भी लिए फिरती हूँ उनको पूरा करने की जिद की तमन्ना रखती हूँ थोड़ा अलग हूँ!! बेपरवाह लोगों की परवाह करती हूँ आज तक जो ना समझ पाए लोग उनको समझने की कोशिश करती हूँ अपमान बार बार किए लोगों का भी सम्मान करती हूँ, रिश्तों में श्रद्धा रखती हूँ शायद इसीलिये थोड़ा तो अलग हूँ!! जीवों से प्यार करती हूँ उनकी परवाह करती हूँ , लोग अक्सर पूछते हैं ये बोलते तो नहीं फिर कैसे इनकी जरूरतें पूरा कर पाती हूँ?? इनकी मासूमियत में लाखों सवाल जवाब छिपे हैं इनके प्रति दुत्कार और तिरस्कार के, जिनको ...
मैं भी कभी ज़ुबान थी
कविता

मैं भी कभी ज़ुबान थी

सूर्य कुमार बहराइच, (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं भी कभी ज़ुबान थी ज़बान की ज़ुबान थी मैं भी कभी ज़ुबान थी सच बोलने को तरस गयी सच का कभी विधान थी उसूलों का मैं ही बयान थी मैं भी कभी ज़ुबान थी क्या आज ये सब हो गया माया में मोह फँस गया छल-कपट में धँस गयी मैं मैं बेशक़ीमत गुमान थी मैं भी कभी ज़ुबान थी हर यक़ीन की जान थी पुरखों की आन-बान थी अद्भुत ही मेरी शान थी गूँगों की मैं पहचान थी मैं भी कभी ज़ुबान थी दिमाग़ की तरंग थी दिलों की मैं उमंग थी जज़्बों का मैं ही रंग थी जवानी की अनंग थी जिह्वा की भाषा थी ग़रीब की आशा थी नेताओं का सम्मान थी विश्वास और मान थी मैं भी कभी ज़ुबान थी ज़बान मेरी मात थी वो ही सही सौग़ात थी इज़्ज़त उसी से थी मेरी उसकी भी इज़्ज़त मैं ही थी मैं भी कभी ज़ुबान थी इन्सान का ईमान थी मुझसे जुड़ा समाज था मुहब्बत का पैग़ाम थी मुझसे बदल...
हर मुश्किल से हाथ मिलाता है पिता
कविता

हर मुश्किल से हाथ मिलाता है पिता

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** भुला जमाने भर के ज़ख्म मुस्काता है पिता खुद के लिए कब कुछ यहां बनाता है पिता रह न जाये ख्बाब अधूरे पूरा करने के लिए देखो हर मुश्किल से हाथ मिलाता है पिता लगाना न इल्जाम निस्वार्थ त्याग पर उसके दाना-दाना घर-परिवार हित कमाता है पिता भीड़ भरी दुनियां में जाए न भटक संतति कदम -कदम हरपल खुद को जगाता है पिता मचलता कहां मन नित नये शौक के लिए जरूरतों की खातिर हस-हस मिटाता है पिता लादे हुए है बोझ बेसुमार जबाबदेहियों का भाई--मित्र--पुत्र-पति भी कहलाता है पिता मान लूं भगवान भी तो मान कम पड़ जायेगा "गोविमी" बन बरगद शीतल इठलाता है पिता परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
सरकार मज़े में है ….!
कविता, हास्य

सरकार मज़े में है ….!

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** फूल मज़े में है खार मज़े में है झुठ्ठों का कारोबार मज़े में है। जिसे पहन कर भागे थे वह बाबा की सलवार मज़े में है । बढ़े हैं चोर उचक्के जबसे रहता थानेदार मज़े में है। औने-पौने फसल खरीदी कर व्यापारी व व्यापार मज़े में है सौ का ठर्रा पी के सो जाता है रहता पल्लेदार मज़े में है। मध्यम वर्ग का लहू पी कर रहती है ये सरकार मज़े में है। जनता को चूना लगाकर नेताओं का रोजगार मज़े में है। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मा...
पिता
कविता

पिता

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** परिवार का आधार स्तंभ हैं पिता, परिवार का मुखिया हैं पिता, पिता हैं परिवार की बरगद-सी छांव, पिता ढाल हैं, पिता आदर्श हैं। पिता हैं दिये की बाती, जब तक हैं पिता तब तक, जगमगाता हैं परिवार, घर की रौनक हैं पिता, पिता हो चाहे बीमार, परिवार-जनों की खुशी-खातिर, अपने दुख-दर्द छुपाता हैं। कभी-कभी गम के घूंट, अकेले ही पीता हैं। अंतस में हो चाहे तिमिर, अधरों पर लिए मुस्कान, सुगंधित पुष्प-सी महक, महकाता हैं पिता, पिता परिवार का मान हैं। स्वाभिमान हैं। परिवार का ताज-सरताज हैं। पिता हैं परिवार का दिव्य-प्रकाश, अपने कर्तव्य पूर्ण कर, पिता दिये की बाती सम प्रज्ज्वलित हो, प्रकाश फैलाता। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित...
पिता होना आसान नहीं होता
कविता

पिता होना आसान नहीं होता

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गगन चूमती इमारत का, नींव का पत्थर होना आसान नहीं होता।। कि अपने मुस्कुराते अधरों से, हलाहल पीना आसान नहीं होता।। रात को शीतल चांद, दिन को सूरज सा तपना आसान नहीं होता। कि इस मायावी जग में, निस्वार्थ प्रेम करना आसान नहीं होता ।। अपने खून पसीने से एक कोरी किताब लिखना आसान नहीं होता।। कि साध कर भागते समय को, गीता बाँचना आसान नहीं होता।। निर्मल कोमल हृदय को सक्ता का, आवरण ओढ़ना आसान नहीं होता। कि घर बाहर की जिम्मेदारियों को, कांधे ढोना आसान नहीं होता।। नर्म नर्म कलियों को सहेज, ओक में भरना आसान नहीं होता । कि लड़खड़ाते कदमों को, एक सही दिशा देना आसान नहीं होता।। जीवन के खेल में, जीतकर भी हारना आसान नहीं होता। बैठ कर जमीन पर दिन में तारे देखना आसान नहीं होता।। फटे हाल घिसे जूते लिए, कड़ी धूप में चलना...
साजन कब आओगे?
कविता

साजन कब आओगे?

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** कब आओगे साजन मेरे, तुमको प्यार बुलाता? बिना तुम्हारे मेरे जी में, पलभर चैन न आता। बारिश में आने की कह कर, मुझको समझाया था। नहीं भूलता प्यार तुम्हारा, जो तुमसे पाया था। पेड़ों पर झूलों में सखियाँ, साथ पिया के झूलें। मुझको तो तेरी बाहों के, झूले कभी न भूलें। बारिश बीती, जाड़ा आया, पर तू लौट न आया। विरह व्यथा में डूबे मन को, मैंने यह समझाया। तेरे इंतजार में साजन, आँखें भी पथराईं। जाड़ा बीता बिना तुम्हारे, पलकें झपक न पाईं। पवन बसंती चली सुहानी, मेरा मन हर्षाया। तेरे बिना मोर, कोयल का, स्वर संगीत न भाया। ज्येष्ठ मास के लंबे दिन भी, मेरी पीर बढ़ाते। विरह अग्नि पर, गर्मी के दिन, लगता बदन जलाते। कब आओगे सजन मेंरे, पाती लिख बतला दो? अब बारिश आने वाली है, प्यार मेघ बरसा दो। परिचय :- अंजनी कुमार ...
ये महकती खुशबू
कविता

ये महकती खुशबू

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सिर्फ फूल ही नहीं देते खुशबू फल भी देते, आज भी देते हैं कल भी देते हैं, यहीं नहीं रिश्ते भी महकते हैं, संत, गुरू, पीर, फरिश्ते महकते हैं, आचार व्यवहार महकते हैं, सबसे ज्यादा विचार महकते हैं, पता नहीं किसी को महसूस होता है या नहीं पर हर वो संत, गुरू, महापुरुष, जिन्होंने गरीब, प्रताड़ित, वंचितों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाने का प्रयास किया, समता,समानता, बंधुता का विचार लाया, सबके मन मस्तिष्क में गहरा छाया, बुद्ध की महक पूरे विश्व में छाया है, जिसने सत्य अहिंसा शांति का मार्ग बताया है, वहीं खुशबू हमने महसूस किया महामना ज्योति बा फुले में, शिक्षा की देवी सावित्री बाई फुले में, तभी आज झूल पा रहे शिक्षा के झूले में, कबीर, रैदास, नानक, पेरियार, गुरू घासीदास, नारायणा गुरू, और भीम न...
मिटे बालश्रम
कविता

मिटे बालश्रम

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** बचपन बका जीवन पढ़ने खेलने कुदने खानेपीने मौजमस्त हंसी खुशी का जीवन बाॅंध पीठ पर पोथी विद्यालय का सुनहरा पढ़ने का प्यारा दिन शिक्षा अर्जित के दिन मजबूरी में बच्चों का बीत रहा सुहावना दिन वंचित विद्या से मासूम मेहनत में जुटा बचपन अथकपरिश्रम में बचपन शिक्षा के बिन उदासीन मेहनत में इन बच्चों का बीत रहा सुनहरा बचपन बालश्रम है देखो नबचपन क्यों है जबकि आंखे बंद श्राप गरीबी का ऐसा लगा बाल मजदूरी बढ़ता बचपन चूल्हा जलाने, रोटी कमाने भूख पेट की सबकी मिटाने सर्दी गर्मी आंधी तूफानों में कमाता बोझ उठाता बचपन परिवार की दीन दशा पर सुधार का सपना है बनता शिक्षादीक्षा करता है दफ़न पढ़ाईलिखाई बिन बीतता मासूम बच्चों का बचपन बेबस भी और लाचार भी जाने कितने मासूम बचपन जन-जन जागरूकता लाये बचपनसे शिक्षित हो जीवन मिटाओ बच...
राजनीति
कविता

राजनीति

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** चमचों ने कहा चमचे से कुछ चमक-दमक दमकी ही नहीं? पीतल को घिसा खूब मगर ! सोना बनकर वह उभरा ही नहीं। लोहे मे लोहा मिलने से सोना नहीं बनता है भाई। सोने की परख जौहरी जाने, नकली जौहरी नहीं पहचाने। कंचन की परख तुम कर लेते, लोहा भी सोना बन जाता, गंगाजल में जल मिलकर के, पवित्र गंगाजल वह हो जाता। कोई नहीं पहचान सका उसको, गंगा की तरह वह पूज्य हुआ। राजनीति की भाषा तुम समझो, सोचो समझो तुम पहचानो, समय को जिसने पहचाना, हुआ समय भी देखो बलिहारी। रंग से राजा बन बैठा, कसौटी पर खड़ा उतरा भाई। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मा...
थोड़ा खुश हो लेते हैं
कविता

थोड़ा खुश हो लेते हैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** चलो आज से थोड़ा थोड़ा खुश होते हैं, मन की दहलीज पर नई उम्मीदें सजाते हैं! बाहरी दुनिया से क्यूँ आस लगाना खुद से खुद में उमंग भरते हैं!! जितने भी घाव मिले अब तक मरहम बन दवा उनकी ढूंढते हैं , सूकून मिले अब दिल को दर्द का दामन छोड़ देते हैं!! कल तक झुठलाया था जिन राहों को पथरीली समझ कर, आज उन्हीं राहों से रूबरू होते हैं!! दुःस्वप्न था जो दुःखद था, अब मुस्कराहटों से नाता जोड़ लेते हैं !! हर एक जीव में रब है, खुदा है, ईश् और ईश्वर भी है, इंसान बन, इनकी तकलीफों को कुछ कम करते हैं इनके मासूम, निःस्वार्थ प्रेम में अपने आप को सराबोर करते हैं प्रभु की अनमोल भेट है ये प्रकृति ये जीव, ये जीवन इनमे खुशियां बांट स्वयं में बसे परमात्मा से मुलाकात करते हैं! चलो आज थोड़ा खुश होते हैं!! ...
पिता का प्यार
कविता

पिता का प्यार

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** जिंदगी का तजुर्बा एक पिता समझते बेटे उनके हम पिता कहते हाथ पकड़कर स्कूल ले जाते घर आते वो साथ ले आते भटक न जाय बचपन अनुशासन की डोर बांधकर बचपन में नियंत्रण पिता रखते गोद में बैठे हम हंसते या रोते पिता अपने प्यार में सन्तान को हँसते हंसते दुःख भरी जिंदगी बिल्कुल नहीं कहते धैर्य संयम की डोर बांधकर सशक्त करते पिता हंसते हंसते मस्त रहने के तजुर्बे में पिरोते पिता सुनाते खट्टे मीठे अनुभव हम दुबले या मोटे उपदेश पिता के नही लगते खोटे एक पिता ही है दुखी रहकर चाहत पूरी करते हम उन्हें पिता कहते परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
सेवानिवृति की सुहानी बेला
कविता

सेवानिवृति की सुहानी बेला

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** सेवानिवृत्ति की सुहानी बेला आयी। मन में अपार खुशियां छायी। तरूणावस्था में शिक्षक-पद पाया। सतत शिक्षा दे कर्तव्य पथ निभाया। छात्र-छात्राओं के अंतस अज्ञान मिटाया। ज्ञान-दीप से ज्ञान-ज्योति जलायी। शिक्षक बन शिक्षक कहलाया। अपना कर्तव्य निष्ठा, ईमानदारी से निभाया। अपार खुशियों-सम मिठाई खायी। बाधाएं पार करते हुए विजय पायी। बच्चों की अठखेलियां याद आयी। बीमारी में भी कर्तव्य-गीत गायी। छात्र-छात्राओं के उर उच्च स्थान पायी। शिक्षक-रूप में बनी छात्राओं की माई। छात्र-छात्राओं के जीवन में प्रकाश फैलाया। छात्र-छात्राओं की नींव पक्की करवाई। अब स्वयं से बात करने का समय निकाल पाई। स्वास्थ्य के प्रति सचेत हो पाई। प्रभु से जुड़ने का समय निकाल पाई। खुद को योग से जोड़ पाई। परिचय :- श्रीमती संगीता स...
सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है
कविता

सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जीवन के हर पथ पर मिलते है कांटे जाने कितने रंजो गम को इसमे बाँटे भूल ना जाना जीवन की ये कहानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है निश्चित ही आयेगा जग मे गम का मेला लड़ना ही पडता है सबको यहाँ अकेला क्या होगा आगे-2 किसने यहाँ जानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है क्या होगा आगे क्यों सोच रहा है बन्दे कर्म कर फल की इच्छा मत कर बन्दे बहती रग-रग मे जैसे खूँ की रवानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी जानी है आज को जी ले कल किसने देखा है कर्म से बदल जाती हाथो की रेखा है वर्तमान को जीना सिखाती जवानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी जानी है आओ मिलकर हम एक नया आयाम दे संघर्ष से जगत को एक नया पैगाम दे पग-पग पर लिखनी रोज नई कहानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी ज...
रिश्तों के जज्बात
कविता

रिश्तों के जज्बात

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ऐसा भी होता है या नहीं पर मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ है, आपको विश्वास हो या न हो क्या फर्क पड़ता है। आखिर ये कैसा रिश्ता है किस जन्म का संबंध है, संबंध है भी या नहीं ये मैं कह भी नहीं सकता। क्योंकि पूर्वजन्म के रिश्तों का मैं न हूं कोई ज्ञाता। पर आज रिश्ता है हमारा उससे जिसे देखा तक नहीं तो जान पहचान का तो प्रश्न ही नहीं। फिर भी वो जानी पहचानी लगती है इतनी छोटी होकर भी नानी दादी सी लगती है। वो चाहे जितनी दूर है हम आमने सामने मिलेंगे या नहीं ये तो कहना मुश्किल है। पर वो आसपास है घर के आंगन में फुदकती लगती है, हंसाती और रुलाती है, बेवजह सिर खाती है। अपने छोटे होने का लाभ उठाने का मौका भी वो कहाँ छोड़ती है, अपने अधिकारों का जी भरकर प्रयोग करती है। हमसे अपने रिश्ते बताती है जाने क...