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कविता

सेवानिवृति की सुहानी बेला
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सेवानिवृति की सुहानी बेला

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** सेवानिवृत्ति की सुहानी बेला आयी। मन में अपार खुशियां छायी। तरूणावस्था में शिक्षक-पद पाया। सतत शिक्षा दे कर्तव्य पथ निभाया। छात्र-छात्राओं के अंतस अज्ञान मिटाया। ज्ञान-दीप से ज्ञान-ज्योति जलायी। शिक्षक बन शिक्षक कहलाया। अपना कर्तव्य निष्ठा, ईमानदारी से निभाया। अपार खुशियों-सम मिठाई खायी। बाधाएं पार करते हुए विजय पायी। बच्चों की अठखेलियां याद आयी। बीमारी में भी कर्तव्य-गीत गायी। छात्र-छात्राओं के उर उच्च स्थान पायी। शिक्षक-रूप में बनी छात्राओं की माई। छात्र-छात्राओं के जीवन में प्रकाश फैलाया। छात्र-छात्राओं की नींव पक्की करवाई। अब स्वयं से बात करने का समय निकाल पाई। स्वास्थ्य के प्रति सचेत हो पाई। प्रभु से जुड़ने का समय निकाल पाई। खुद को योग से जोड़ पाई। परिचय :- श्रीमती संगीता स...
सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है
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सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जीवन के हर पथ पर मिलते है कांटे जाने कितने रंजो गम को इसमे बाँटे भूल ना जाना जीवन की ये कहानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है निश्चित ही आयेगा जग मे गम का मेला लड़ना ही पडता है सबको यहाँ अकेला क्या होगा आगे-2 किसने यहाँ जानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है क्या होगा आगे क्यों सोच रहा है बन्दे कर्म कर फल की इच्छा मत कर बन्दे बहती रग-रग मे जैसे खूँ की रवानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी जानी है आज को जी ले कल किसने देखा है कर्म से बदल जाती हाथो की रेखा है वर्तमान को जीना सिखाती जवानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी जानी है आओ मिलकर हम एक नया आयाम दे संघर्ष से जगत को एक नया पैगाम दे पग-पग पर लिखनी रोज नई कहानी है सुख-दुख तो जीवन मे आनी-जानी है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी ज...
रिश्तों के जज्बात
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रिश्तों के जज्बात

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ऐसा भी होता है या नहीं पर मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ है, आपको विश्वास हो या न हो क्या फर्क पड़ता है। आखिर ये कैसा रिश्ता है किस जन्म का संबंध है, संबंध है भी या नहीं ये मैं कह भी नहीं सकता। क्योंकि पूर्वजन्म के रिश्तों का मैं न हूं कोई ज्ञाता। पर आज रिश्ता है हमारा उससे जिसे देखा तक नहीं तो जान पहचान का तो प्रश्न ही नहीं। फिर भी वो जानी पहचानी लगती है इतनी छोटी होकर भी नानी दादी सी लगती है। वो चाहे जितनी दूर है हम आमने सामने मिलेंगे या नहीं ये तो कहना मुश्किल है। पर वो आसपास है घर के आंगन में फुदकती लगती है, हंसाती और रुलाती है, बेवजह सिर खाती है। अपने छोटे होने का लाभ उठाने का मौका भी वो कहाँ छोड़ती है, अपने अधिकारों का जी भरकर प्रयोग करती है। हमसे अपने रिश्ते बताती है जाने क...
बेटी की विदाई
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बेटी की विदाई

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** लड़वण प्यारी लाड़ली, निरख रही घर आंगन को। प्रणय विदा की वेला में, ढांढस बंधातीं बाबुल को। मां कैसे घर को भूलूंगी, और कैसे तेरे आंचल को। अनुज अंक में बिलखती, छाती भर कर भाभी को। विकल हृदय मयूरी सी, तोड़े अंसुवन बांधों को। क्रंदन करती याद में, रह रह आती यादों को। भरी अंजुरी अक्षत ले, बैठी देहरी पूजन को। झर- झर बरसी आंखें, नयन लजाते सावन को। मां भूल मत जाना प्रातः, पानी अर्पण तुलसी को। बिखेर देना छत पर, मुठ्ठी भर दाना चिड़िया को। मां दवा समय पर लेना, बस स्वस्थ रखना खुद को। भूल जाएं कोई काम धाम, तो लड़ना मत पापा को। भाभी मेरी ख़ास सहेली, संग रखना याद भूलाने को। कभी डांटना मत गुस्से से, बिगड़ा काम सिखाने को। भाभी खुशियों की चादर में, तू बांधे रखना सब को। अब अपना करने मैं चली, किसी ...
भक्त प्रेम
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भक्त प्रेम

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** भक्त "प्रेम" ये पूछ रहा है, अवधवासियों क्या कर डाला। मंदिर भव्य बनाया जिनमे, उनको क्यों पीड़ा दे डाला। भक्त प्रेम... मंदिर से पर्यटन बढ़ेगा, सीधा लाभ तुम्ही को होगा। सभी क्षेत्र व्यापार बढ़ेगा, बच्चो को घर द्वार मिलेगा। पर जब आत्मा कोसेगी तो, प्रतिपाल हृदय चुभेगा भाला। भक्त प्रेम... दस वर्षों का काम न देखा, नहीं दिखी तुझे ईमानदारी। कारसेवकों के दोषी ने फैला भ्रम मति है मारी। जिसदिन हनुमत कुपित हो गए, नहीं गले उतरेगा निवाला। भक्त प्रेम... दस सालों के सत्ता भूखे, तुम्हे नोचने को व्याकुल है। जो भारत की प्रगति कर रहा, उसे हटाने को एक जुट हैं। बच्चे, पोते जब पूछें तो, बतलाना क्यों किया घोटाला। भक्त प्रेम... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता ह...
प्रकृति
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प्रकृति

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** पत्थरों और भ्रम वाले मायाजालों की शरण से मुकम्मल निकल हम प्रकृति की शरण में जा सकते हैं, अवास्तविक को गंवा कर वास्तविक को पा सकते हैं, इसके लिए हमें जाना होगा नतमस्तक हो पर्यावरण की शरण में, हम लोग भुलाये बैठे हैं स्वर्ग नरक और जीवन मरण में, हमारे सांसों की आपूर्ति किसके भरोसे है, चमत्कारियों के एजेंट अब तक हमें सिर्फ नोचे हैं, हम किस कदर अंधविश्वास में डूबे हैं, पाखंडों से अभी तक नहीं ऊबे हैं, पेड़ हमारी जीवन रेखा है, पग पग पर उसी को देखा है, प्रकृति हमारी संस्कृति जीवन और सार है, हर जीव के प्राणों का आधार है, कौन है और क्या है जो हमें कुछ वापस देता है, सब कुछ सहकर भी हमें हमारा अमूल्य जीवन देता है, तो कृतज्ञता हमें किसी चमत्कारी पर नहीं पर्यावरण पर को देना है, वर्ना क्या किसी से छीने हैं और ...
आओ धरती का श्रृंगार करें
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आओ धरती का श्रृंगार करें

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** कब तक जंगल काटोगे? चंद सिक्कों के लालच में। कब तक जहर बाँटोगे? चंद रूपयों के लालच में।। काट रहे हो हरियाली, बना रहे हो बंजर धरती। अन्न कहाँ से पाओगे? बिन पानी खेती परती।। तुम्हारे घर भी जलेंगे, उस सूरज की तपिश में। तुम्हारे श्वांस भी रुकेंगे, जीवन की खलिश में।। क्या तेरे दर आँच न आएगी? तेरा मकां भी है इसी शहर में। ढह जाएगा तेरा भी घर, उस कुदरत के कहर में।। तप रही है सारी धरती, तप रहा सारा आकाश। समय रहते हों सचेत, वरना होगा महाविनाश।। जब तरु ही न रहेंगे भू पर, वर्षा कहाँ से आएगी ? बिन छाया, बिन पानी, धरती तब थर्रायेगी।। आओ धरती का श्रृंगार करें, मिलकर पेड़ लगाएँ हम। हरी-भरी हो धरा हमारी, जीवन सफल बनाएँ हम।। परिचय :-  महेन्द्र साहू "खलारीवाला" निवासी -...
यशोधरा
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यशोधरा

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बुद्ध को अमरत्व मिला, श्री विष्णु के अवतार बने, यशोधरा की बीथी बिसर गई विरह, वेदना, एकाकीपन, पीड़ा ही अर्जित कर पाईं!! प्रश्नो का अंबार लगा, क्यों तुम हमको छोड़ गए लिया था सात वचनों का बंधन इतनी आसानी से तोड़ गए! स्वयं पर विश्वास नहीं क्या बाधा मुझको समझ गए!! जब जूझ रहे थे अंतर्मन से कुछ तो बतलाया होता, इन प्राचीरों में, यूँ ही अकेला छोड़ गए!! नही विस्तृत कर पाई उन स्मृतियों को जो साथ तुम्हारे बीती थी उन सभी सुनहरे सपनों को अग्नि में सुलगते छोड़ गए!! देह का बोझ ढोना हुआ दुष्कर, सारी आशाएं कुम्हलाईं ! मृत्यु भी ना वर पाऊँ राहुल को पीछे छोड़ गए!! किस से बांटू वेदनाओं को कैसे उसको मैं बहलाऊं विरान, सिसकती इन दीवारों पर कोई संदेश छोड़ के नहीं गए!! मुक्ति पथ पर निकले थे, तुम समाधिस्थ हु...
चाय लेगे आप
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चाय लेगे आप

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** सुबह हो गई चाय लेंगे आप? मीठी या फीकी कड़क या नरम, सुस्ती को मिटा देगी यह चाय, छोटा बड़ा सभी को भाये सुबह-सुबह सुस्ती को मिटाए, चाय तो लगती है सुबह और शाम, अतिथि का सत्कार चाय से, आये का सम्मान चाय से, चाय की मनवार बड़ी है, मिलने जुलने पर पहचान बढ़ी हैं। किया अंग्रेजो ने इसका गुलाम, गरीबों की यह हे महारानी अमीरों की यह है महतारी, चुस्की-चुस्की में मजा है यार स्वास्थ्य को हानि इससे जान परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "साहित्य शिरो...
प्रतिद्वंदी
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प्रतिद्वंदी

डॉ. कांता मीना जयपुर (राजस्थान) ******************** अच्छा चलो कल से हम नहीं रहेंगे, तुम्हारे प्रतिद्वंदी, क्यों ना हम भी कर लें इसी बात पे रजामंदी बेवजह दिखाता नहीं कोई आजकल किसी से भी हमदर्दी एक अरसे से वैसे भी हम यही बात सुना करते हैं। सदा से ही चला करती है मानवता के द्वार पर मंदी फिर क्यों उलझे हम बेवजह एक दूजे से इस बात पर की कौन बाहर का है और कौन घर का बस विचार तुम्हारे हमारे बेमेल है। सब सिद्धांतों का ही तो खेल है। अच्छा चलो कल से हम नहीं रहेंगे तुम्हारे प्रतिद्वंदी। परिचय :- डॉ. कांता मीना (शिक्षाविद् एवं साहित्यकार) निवासी : जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के...
प्रकृति संरक्षण
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प्रकृति संरक्षण

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** प्रकृति का दोहन करते हो, और पर्यावरण दिवस मनाते हो, हम सबको मिलकर, प्रकृति संरक्षण करना है, पेड़-पौधे नित नव लगाना हैं, पेड़ काटने से रोकना हैं, वायु प्रदूषण रोकना हैं, व्यर्थ जल बहने से रोकना हैं, जल संरक्षण का संकल्प लेना हैं। अधिक से अधिक पेड़ लगाना हैं, जन्मदिन पर एक पेड़ अवशय लगाना हैं, यही नारा चहुंओर फैला कर, जन-जन को जागृत करना है, वैवाहिक वर्षगांठ पर, एक पौधा उपहार में भेट देना है, वायु प्रदूषण रोकना हैं, अपने मित्र के जन्मदिन पर, एक पौधा अवश्य भेंट करना है, जो भी फल खाएं, उसके बीज संभाल कर रखना हैं। जब कभी अपने शहर से बाहर जाएं, तो रास्ते में किनारे पर, फेंकते जाना है, अपनी कॉलोनी और पूरे मोहल्ले में संगठित हो, अधिक से अधिक को पौधे लगाना हैं। सारे भारतवासियों क...
भाव तो ह्रदय में
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भाव तो ह्रदय में

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** भाव तो ह्रदय में पुंज हे प्रकाश है, भाव तो ह्रदय से आत्मा की आवाज है। भाव कभी गलत नहीं भाव के हे शब्द नहीं, भाव तो गरीब अमीर एक सा विचार है। भाव की कोई दृष्टि नही भाव की कोई वृष्टि नहीं, भाव तो हर व्यक्ति में आत्मा की आवाज है। भाव के कोई शब्द नहीं भाव का कोई अन्त नही, भाव तो हर व्यक्ति में आत्मा की पहचान है। भाव एक प्रेम नही, ज्ञान नहीं विवेक नहीं, भाव तो ह्रदय की आह हे पुकार है। भाव में जो डूब जाए भाव विभोर हो जाए, प्रेम की झलक एक आत्मा तक जाए है। भाव में जो डूब जाए अश्रु बिंदु झलक जाए, भाव तो महान कार्य प्रेरणा प्रदान है। भाव पर प्रतिबंध नहीं भाव की कोई चोरी नहीं, भाव तो समान सबमे व्यक्ति ही प्रधान है। ना गरीब ना अमीर किरण समभाव रखें, दृष्टि सब में एक जैसी प्रभु की संतान है। ...
बुजुर्ग खंडहर
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बुजुर्ग खंडहर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** खड़ी इमारत के बुजुर्ग खंडहर की दृढ़ सोपान कहानी कहती हैं अतीत की मानों कह रही हो अरे नवयुवक तुम क्यों, तुम क्यों तन कर चलते हो बुजुर्गो के चरणों का स्पर्श तो मेरे तन पर है। वर्तमान की अटालिका में वह सुख कहां जो बुजुर्गो ने मुझपर बैठकर लुटा था। तुम्हारी हर पीढ़ी को इन आंखों ने देखा हैं इस अटालिका का ध्वस्त होना भी देखुगी मैं दृढ़ हूं, मजबूत हूं, नारी की भांति मूझे नहीं उकेरा तो मैं अटल हूं। क्योंकि मानव की नियति दुसरे को कुरेदना है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से ...
कैसे बचेगा पर्यावरण
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कैसे बचेगा पर्यावरण

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** फिर से, पर्यावरण दिवस आया है, पर्यावरण बचाने की मुहिम चली है। पेड़ लगाने की जैसे होड़ लगी है। सबने पेड़ लगाए हैं, फोटो भी खिंचवाए हैं। कर्मचारी भी शासन का आदेश बजाए हैं। स्टेटस लगा वाहवाही भी पाए हैं। सोशल मीडिया में पोस्ट तुम्हारे ही छाए हैं। पोस्ट तुम्हारी अमर रहेगी, पेड़ मर जायेगें । चार दिनों में ही इन्हें, जानवर चर जायेगें। पेड़ लगाकर पर्यावरण प्रेमी कहलाते हो। इन्हें बचाना भी जरूरी है, जान नहीं पाते हो। एक पेड़ की रक्षा, तुम कर नहीं पाते हो। जंगल बचाने की योजनाएँ बनाते हो। जिम्मेदार नागरिक का फर्ज निभाओ तुम, पेड़ लगाओ और इन्हें बचाओ तुम । वृक्षों के अनगिन फायदे, सबको गिनाओ तुम। पर्यावरण के प्रति वास्तविक जागरूकता लाओ तुम। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ...
खतरा किससे है
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खतरा किससे है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* दुनिया को खतरा है किससे धर्म से या विज्ञान से नहीं खतरा है आदमी के भीतर बैठे शैतान से जो दूषित कर देता है हर संस्थान, हर संगठन, हर धर्म आदमी को डर है किससे दुनिया से या भगवान से नहीं वो डरता है अपने भीतर के अज्ञान से जो उसे बना देती है भीड़ जाति का, धर्म का, विचारधारा और राजनीति का जीवन को बचाना चाहिए किससे जानवर से या इंसान से नहीं बचाना चाहिए अपने भीतर के झूठे गुमान से जो बना देती है इंसान को संकीर्ण, क्रूर और मतलबी. परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४" से सम्मानित घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पू...
पूर्वजन्म का नव अनुबंध
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पूर्वजन्म का नव अनुबंध

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** ऐसा भी हो सकता है बिल्कुल हो सकता है और यकीनन होता ही है। हमें खुद इसका अहसास भी होता है जीवन का कोई भी पहर हो जाति, धर्म, उम्र या लिंग कुछ हो बोध करा ही देता है हमें पूर्वजन्म के आत्मिक संबंधों का और जगा देता है भाव उसके साथ रिश्तों का। जाने कितने जन्मों बाद जोड़ देता है हमें उससे जिसे हम आप जानते पहचानते तक नहीं कभी मिले तक नहीं, शायद मिलेंगे भी नहीं न नाम का पता, न शक्ल सूरत का कोई चित्र न दूर दर तक कोई रिश्ता, न कोई संपर्क- संबंध। फिर भी अपनत्व का भाव अंकुरित हो जाता है और बन जाता है एक रिश्ता जिसे हम आप निभाते हैं बड़ी शिद्दत से और अटूट विश्वास करने लगते हैं पिछले किसी जन्म के रिश्ते से जोड़ संपूर्ण विश्वास के साथ निभाने लगी जाते हैं इस जन्म में भी पूर्व जन्म की तरह ...
गर्मी का हाहाकार
कविता

गर्मी का हाहाकार

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** नौतपा में सूरज उगल रहा आग अंगार। दुनिया में चारों तरफ मचा है हाहाकार।। गर्म हवाएँ बहती हैं, कहते हैं इसको लू। अब छाँव चाहे छाँव, रवि का है जादू।। व्याकुल हैं कर्म पुरुष मजदूर और किसान। रोटी के लिए मेहनत करते लगा जी-जान।। गाड़ियों के टायर में हो रहा बम विस्फोट। अग्नि की वर्षा से निरीह जन हुए अमोक।। झुलस गए पेड़-पौधे, सूखे सभी जल स्रोत। जलीय जीव दुखी, जो थे आनंद ओत-प्रोत।। गोरे जीव-जंतु हो गए काजल समान काले। रसहीन सबके कंठ, जीवन अमृत के लाले।। प्यास से तड़प रहे अमीर-गरीब राहगीर। भौतिक साधनों के पहने महंगी जंजीर।। पेड़ लगता नहीं कोई, छाया सभी चाहते हैं? एक वृक्ष है दस पुत्र समान सभी कहते हैं।। जागो! सभी को बनना है पर्यावरण मित्र। सुखद, शांतिपूर्ण होगा भविष्य का चित्र।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगे...
सदा इंसानियत जिंदा ऱखना
कविता

सदा इंसानियत जिंदा ऱखना

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** लाख सोचे कोई बुरा हमारा पर, भूलकर भी न अपशब्द बकना। इंसान की हो औलाद अगर, तुम तो सदा इंसानियत जिंदा रखना।। माना कि-दुनिया है मतलबी यह, फ़िर भी परमार्थ पथ कुछ चलना। खिलना बनक़े कुसुम करुणामयी, सदा सुवास-सा पल-पल पलना।। ऱखना निष्छल सदा अंतर्मन चंचल, जीवन यह धूप छांव-सा है। नही कोई अपना-पराया यहां पर, सब कुछ लगता ख़्वाब-सा है।। इस धरा का, इस धरा पर ही, सब कुछ ही धरा रह जाना है। आज यहां, कल होंगे कहां हम, नही पता कोई ठौर-ठिकाना है।। कहलाता श्रेष्ठ मानव-धर्म यह, करना सबका समादर सम्मान। बना मनुज भूतल पर ईश्वर वह, रोम-रोम रमे जिसके इंसान।। आता मनुज ख़ाली हाथ धरा पर, जायेगा भी लेकर खाली हाथ। जीते-जी के हैं यह कुटुंब-कबीले, श्मशान में जलता न कोई साथ।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा ...
हो जाता प्रभु को प्यारा
कविता

हो जाता प्रभु को प्यारा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** घर में पाला है तोता कब जगता है, कब सोता? जरा छेड़ दे गर कोई, क्रोधित पल भर में होता। मिर्च शौक से खाता है, राम-राम वह गाता है। कोई आ जाए घर में, दुल्हन-सा शर्माता है। पिंजरे में ही रहता है, मिट्ठू मिट्ठू कहता है। अम्मा गुस्सा हो जाती, बिन बोले सब सहता है। लंबी पूँछ, नहीं छोटी, खाता खूब दूध रोटी। पकड़ चोंच से लेता है, झट से गुड़िया की चोटी। पके आम जब घर आते, तोता राम खूब खाते। कोई अगर छीन ले तो, मिट्ठू जमकर चिल्लाते। पिंजरा ही जीवन सारा, धानी रंग लगता न्यारा। राम-राम रटते रटते, हो जाता प्रभु को प्यारा। जब तोता मर जाता है, सब घर शोक मनाता है, बच्चे रोते,तोते बिन, घर सूना हो जाता है। कभी न पिंजरे में पालें, छत पर ही दाना डालें। भरें सकोरों में पानी, देख-देख खुशियाँ पा ले...
कुछ कर गुजर
कविता

कुछ कर गुजर

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** आसमाँ नापना हो गर, तो कुछ कर गुजर। रसातल चीरना हो गर, तो कुछ कर गुजर।। पर्वत लाँघना हो गर, तो कुछ कर गुजर। सागर पार उतरना हो गर, तो कुछ कर गुजर।। मुकाम पाना हो गर, तो कुछ कर गुजर। अनवरत बढ़ना हो गर, तो कुछ कर गुजर।। प्रेम-सद्भाव लाना हो गर, तो कुछ कर गुजर। दुश्मनी मिटाना हो गर, तो कुछ कर गुजर।। समता लाना हो गर, तो कुछ कर गुजर। एकमत होना हो गर, तो कुछ कर गुजर।। मंजिल की चाहत में, कुछ कर गुजर। निपटना हो आफ़त से, तो कुछ कर गुजर।। आपस में दूरियाँ मिटाकर, कुछ कर गुजर। कंधे से कंधा मिलाकर, कुछ कर गुजर।। परिचय :-  महेन्द्र साहू "खलारीवाला" निवासी -  गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचि...
उड़ान
कविता

उड़ान

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** तोड़ सारी जंजीरों को मै एकदिन को उड़जाऊंगी सपनों से भरे है पंख मेरे, मै पंख अपने फैलाऊंगी रित-रिवाज कैसी है ये। कैदखाने जैसी है ये।। फिर-भी दूर आसमान में अपनी जगह बनाऊंगी परम्पराओं से बंधे है पैर मै फिर भी पंख फैलाऊंगी तोड़ सारी जंजीरों को मै एकदिन को उड़जाऊंगी सपनों से भरे है पंख मेरे, मैं पंख अपने फैलाऊंगी परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com...
जमाना आजकल
कविता

जमाना आजकल

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** जमाना जैसा था कल वैसा आज है। कभी नही बदलेगा in शायद हमसे नाराज हैं। ******* जमाना हम से मिलकर बनता है। जब हम सुधरेंगे तो जमाना बदलता है। ******* जमाने को दोष मत दीजिए झाकिए अपने गिरेवान में। सब कुछ पता लग जायेगा देखकर अपने गिरेबान में। ******* जमाने को किसी की परवाह नही है। यह बात सौ प्रतिशत सही है। ******** अगर बदलना चाहते हो जमाने को तो बदलाव स्वयं से करो। टांग खींचना लोगों की बंद कर अच्छे काम करो। ******* आजकल हर आदमी अपनी मस्ती में मस्त हैं। अपने दुख से नहीं बल्कि दूसरो की खुशी से ग्रस्त हैं। ******** परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी क...
गृहणियां
कविता

गृहणियां

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अजीब सी होती हैं गृहणियां, समाज शास्त्र पढ़े बिना संबन्धों को तिनके-तिनके जोड़ती है ये गृहणियां मनोविज्ञान पढ़े बिना ही सभी की उलझने सुलझाती हैं ये गृहणियां होम साइंस ना हो पढ़ा कभी ,फिर भी पाक कला में निपुण होती हैं गृहणियां, दूध में साइटृक एसिड डाल पनीर बनाती, सोडा बाइ कार्बोनेट से स्वादिष्ट, स्पंजी केक बनाती, नित नए प्रयोग कर कर, सोडियम क्लोराइड का सही नाप तोल समझाती, खुद को वैज्ञानिक कभी नहीं समझ पाती ये गृहणियां , मसालों के नाम पर आयुर्वेदिक ख़ज़ाना भी हैं रखती, गमला, मिट्टी में, तुलसी, गिलोय, पारिजात , बो बोकर रसोईघर में ही औषधि बनाती, फिर भी कुछ नहीं करती ये गृहणियां सुन्दर रंगोली बनाती, चित्रकारिता में निपुण, ढोलक की थाप पर नृत्य और संगीत के मीठे सुर छेड़ती खुद को केवल ह...
झूठ की आकुलता
कविता

झूठ की आकुलता

सूर्य कुमार बहराइच, (उत्तर प्रदेश) ******************** ज़ुबान लड़खडाने लगी झूठ बड़बडाने लगा बहुत दिया तुम्हारा साथ अब तो छोडो मेरा हाथ आजिज़ आ गया हूँ थू-थू हो रही है चहूँ ओर मेरी भी तुम्हारे साथ अब छोड़ दो मेरा हाथ छोड़ दो मेरा हाथ तुम्हारी हो न हो पर मेरी तो सीमा है करने की बर्दाश्त तुम्हारी तो जायेगी किन्तु मेरी तो ख़त्म हो जायेगी साख अब छोड़ दो मेरा हाथ अब छोड़ दो मेरा साथ नही छोड़ोगे तो मैं छोड़ दूँगा चला जाऊँगा साथ सच के खोल दूँगा तुम्हारी सारी पोल-पट्टी बचा लूँगा अपनी साख तुम्हारी हो न हो किन्तु मेरी तो कुछ इज़्ज़त है मेरी सच्चाई तो जानते हैं सब करेंगे यक़ीन मुझ पर और मेरी हर बात पर यह धमकी मत समझना बख़्श दो मेरी गरिमा और छोड़ दो मेरा हाथ छोड़ दो मेरा साथ अब बहुत हो चुका बस बहुत हो चुका अब छोड दो मेरा...
असो कसो बायरो चले है
आंचलिक बोली, कविता

असो कसो बायरो चले है

नेहा शर्मा "स्नेह" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** (मालवी कविता) मनक ना कांपे, पेड़ ठिठुराये, जन जनावर दुबका पड्या, हरा छोड़ और उम्बी सेके, कुल्फी के हाथ नी लगई रिया, असो कसो बायरो चले है। नेता राग नी सुनइ पई रिया है, चिल्लई के सबको गलो बैठी गयो, विपक्ष का साथ वि आग सेके, माहौल चुनाव को ठंडो पड़ी गयो, असो कसो बायरो चले है। प्रेमी छोरा भी धुप में निकले, डरे नी डुंडा घरवाला ना से, पण आवारा ढोर सेटर नी पेने, आग बले असा इतराना से, असो कसो बायरो चले है। बच्चा ना स्कूल नी जाये, ठण्ड में उठी ने कोण नहाये, उठाये बिठाये पाछा सोई जाये, जद स्कूल बी सरकार बंद कराये, असो कसो बायरो चले है। उनके जिनके रोज निकलनो, उनके मौसम से कई मतलब नी, बायरो चले के लू तापे, उनका जीवन में चेन कइ नी, जिनके जिम्मेदारी है सगळा दिन बराबर होये, माँ, मजदूर अने पिता...