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कविता

अडिग चांद
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अडिग चांद

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आते हैं आकर चले जाते हैं तूफानों के सैलाब अंबर के सीने पर बादलों का घूमडना चांद का छुपना बदली मेंढके चांद के तले किसी के दिल का सिमटना शून्य सा, निर्विकार, निर्बाध, असीम आगोश पाने भागना बादल का। वलय को चांद समझ कतरे-कतरे दिल बादलों के वे जाते हैं देख अडिगता उस चांद की। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मै...
समझो द्वारे पर है बसन्त
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समझो द्वारे पर है बसन्त

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** मद्धिम कोहरे की छटा चीर पूरब से आते रश्मिरथी के स्वागत में जब गगनभेद कलरव करती खगवृन्द पंँक्ति के उच्चारण खुद अर्थ बदलते लगते हों, जब मौन तोड़ कोयलें बताने लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। उनमुक्त प्रकृति की हरियाली सर्वथा नवीना कली-कली कदली जैसी उल्लासमई सुषमा बिखेरती नई-नई विटपों से लिपटी लतिकाएँ आलिंगन करती लगतीं हों, शाखें शरमाईंं लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। जब सघन वनों के बीच हवन में सन्तों की आहुतियों से उठ रहे धुएँ को मन्द-मन्द मन्थर गति से ले उड़े पवन फिर बिखरा दे तरुणाई पर ताजगीभरी कुछ मंत्र शक्ति शुचिताएँ छाईं लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। जब रंग बिरंगे फूलों की मदमाती झूमा झटकी लख खिलखिला उठे सौन्दर्य स्वयं हो जाए मनोहारी पी पल हर दृष्टि सुहानी स...
कई रुप है नारी के
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कई रुप है नारी के

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** कई रुप है नारी के, हर रुप में नारी महान। पुत्री भगिनी पत्नी, जननी है देवी समान।। बेटी बनकर आती, स॑ग में है खुशी लाती । बाप की ऑंखो में, ममता ये बरसाती।। गुंजती घर ऑंगन में, किलकारी मधुर मुस्कान कई रुप है नारी के हर रुप में नारी महान।। भैया की प्यारी है, बहना ये दुलारी है। इसकी मिठी बातें, इस जग से न्यारी है।। मिलकर खेलें कूदें, लगते हैं बड़े नादान कई रुप है नारी के हर रुप में नारी महान फिर ये पत्नी बनतीं, जीवन भर संग रहती। सुख हो या दुख जो भी, मिलकर है सब सहती।। बहू रुप में पाती है, ससुराल में ये सम्मान कई रुप है नारी के हर रुप में नारी महान।। माता का रुप महान, दूजा नहीं इसके समान। ममता की ये मूर्ति, करुॅणा की है ये खान।। ऑचल की छांव तले, पाते सुख है भगवान कई रुप है नारी के ...
इस देश की माटी चंदन है
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इस देश की माटी चंदन है

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** जीतूंगा मै हर बाजी ऐसा अपने आप से वादा करो जितना तुम सोचते हो कोशिश उससे भी ज्यादा करो। किस्मत चाहे रूठे हिम्मत और हौसला कभी ना टूटे फौलाद से भी मजबूत तुम अपना इरादा करो इस माटी में हम भी जन्मे हैं इसका कर्ज हमें चुकाना है जिसका तुमने खाया है उसका तुम फर्ज अदा करो। इस दुनिया में हम आए हैं तो मोहब्बत से जीना सीख लो दिल मैं अगर मोहब्बत है तो नफरत को अपने से जुदा करो। नेक नियत और इमान से ही इंसानियत यहां बसती है जीवन अगर जीना है फिर इस बुराई से पर्दा करो। इस देश की माटी चंदन है जर्रे जर्रे में-रब भी बसता है हो गए कई कुर्बान वतन पर तुम भी तन मन फिदा करो देश के दुश्मनों को तो हमने रन में उनकी औकात दिखाई है इनका हमको डर नहीं मगर ये गद्दारों को इस घर से विदा करो। परिचय :- सीताराम पवार ...
यूँ ही नही मिलती मंजिल
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यूँ ही नही मिलती मंजिल

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** यूँ ही नही मिलती मंजिल, सतत चलना पढ़ता है कोशिशे बार-बार हमें अनवरत करना पढ़ता है. मेहनत दिन-रात कर, लक्ष्य के मार्ग पर, लोगों से लड़ कर, राहें अपनी गड़ कर. चलना पढ़ता है........!! सपने को साथ लिए, जोश और जुनून. लिए, जीत का लक्ष्य लिए, हार कर भी जीत के लिए. चलना पढ़ता है........!! कांटों भरी इन राहों में संघर्ष की इन मैदानों में सुखों का त्याग कर, लक्ष्य अपनी साध कर, चलना पढ़ता है.......!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाश...
वजह
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वजह

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मुस्कुराहट की वजह बनो क्यों दर्द की वजह बनते हो? मोहब्बत की वजह बनो क्यों नफरत की वजह बनते हो? जीने की वजह बनो क्यों मृत्यु की वजह बनते हो? निभाने की वजह बनो क्यों बिखरने की वजह बनते हो? हंसने की वजह बनो क्यों रुलाने की वजह बनते हो? दोस्ती की वजह बनो क्यों दुश्मनी की वजह बनते हो? सम्मान की वजह बनो क्यों अपमान की वजह बनते हो? आशा की वजह बनो क्यों निराशा की वजह बनते हो? जीताने की वजह बनो क्यों हराने की वजह बनते हो? परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
दिल का गुलाब हो
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दिल का गुलाब हो

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** गुलाब हो या मेरा या उसका तुम हो दिल। तुम ही बतला दो अब ये खिलते गुलाब जी।। दिल में अंकुरित हो तुम। इसलिए दिल की डालियों, पर खिलाते हो तुम। गुलाब की पंखड़ियों कि, तरह खुलते हो तुम। कोई दूसरा छू न ले, इसलिए कांटो के बीच रहते हो तुम। पर प्यार का भंवरा कांटों, के बीच आकर छू जाता है। जिसके कारण तेरा रूप, और भी निखार आता है।। माना कि शुरू में कांटो से, तकलीफ होती हैं। जब भी छूने की कौशिश, करो तो चुभ जाते हो। और दर्द हमें दे जाते हो। पर तुम्हें पाने की, जिद को बड़ा देते हो। और अपने दिल के करीब, हमें ले आते हो।। देखकर गुलाब और, उसका खिला रूप। दिल में बेचैनियां बड़ा देता हैं और मुझे पास ले आता है। और रात के सपनो से निकालकर। सुबह सबसे पहले, अपने पास बुलाता है। और अपना हंसता खिल खिलाता रूप दिखता है।। मोहब्बत...
कलयुग के पाप
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कलयुग के पाप

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** नशा पान करके-करते घर को बदनाम, घर कि बहु बेटी इज्ज़त को करते निलाम.! घर कि लक्ष्मी बना कर लाते बइमान, पैसो कि चाह मे गलत करते बलवान.! कब तक सहन करोगे गलत व्यवहार, दुर्गा काली बन कर करो संघार.! गलत आचरण गलत व्यवहार है मनुष्य के कलयुग के पाप, बेटी बहु कि इज्ज़त सम्मान करो असहाय दिनहिन कि मदद करो बन लो अच्छा इंसान..!! परिचय :-परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
उस वक़्त
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उस वक़्त

गुरुदीन वर्मा "आज़ाद" बारां (राजस्थान) ******************** उस वक़्त तुम्हें फिर कैसा लगेगा। जब वक़्त तुम्हारे संग नहीं चलेगा।। नहीं साथ देगी, जब किस्मत तुम्हारी। दगा कर कोई जब, तुमसे करेगा।। उस वक़्त तुम्हें ...।। औरों पे हँसना, तुम छोड़ दो। खुद पे घमण्ड यह, तुम छोड़ दो।। बिगड़ेगा जब कोई, खेल तुम्हारा। चेहरा यह नकली, जब तुम्हारा हटेगा।। उस वक़्त तुम्हें ...।। किसी की राह में, मत कांटें बिछाओ। किसी की मुसीबत, नहीं ज्यादा बढ़ाओ।। पड़ेगी कभी तुमको, इनकी भी जरूरत। मगर जब मदद तेरी, कोई नहीं करेगा।। उस वक़्त तुम्हें ...।। अपनी बुराई को, पहले मिटाओ। आत्मा अपनी पवित्र, पहले बनाओ।। गलत काम किसने, यहाँ नहीं किया है। तुम्हारा भी सच जब, मालूम चलेगा।। उस वक़्त तुम्हें ...।। परिचय :- गुरुदीन वर्मा "आज़ाद" निवासी : बारां (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वा...
श्रद्धा सुमन
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श्रद्धा सुमन

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** महान विभूति की भारत भूईयां से विदा हो गई। सद्कर्म कर लता जी पंचतत्व में विलीन हो गई।। सुरों की खान थी, फिल्मी जगत में पहचान थी। सुरों की ताज़ थी, सुमधुर सुरीली आवाज़ थी।। लता मंगेशकर देश की मशहूर गायिका हो गई... दुनिया का एक अनमोल सितारा, वह प्राणों से प्यारा है। पार्श्वगायिका का देख नज़ारा, मेहनत से गीत संवारा है।। भारतीयों की जिंदगी का वह एक संगीत हो गई... स्वर कोकिला उपाधि मिली, स्वर साम्राज्ञी कहलाई। नाइटिंगल ऑफ इंडिया ना जाने और कई उपाधियां पाई।। भारत रत्न से विभूषित वह लोकप्रिय हो गई.. ९२ वर्ष तक आभा बिखेरीं, गीत-संगीत ही दुनिया रही। फिल्मों को दी नई परिभाषा, सम्मान उन्हें मिलती रही।। श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं, दुनिया को अलविदा कह गई... परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी...
मित्र बनकर मित्र ही …
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मित्र बनकर मित्र ही …

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मित्र बनकर मित्र को ही मित्र है छलने लगा खास ही अब राह का रोड़ा यहाँ बनने लगा पूर्ति पिपासा की ही अब आदमी का ध्येय है आजकल अनुचित उचित का भेद ही मिटने लगा बढ़ रहा है जाति मज़हब का बहुत उन्माद है आदमी इस दृष्टि से हर व्याख्या करने लगा सत्य औ आदर्श को लगने लगा है अब ग्रहण द्वेष दोहन दम्भ हिंसा का चलन बढ़ने लगा तौलते संबंध हैं भौतिक तुला से आजकल निष्ठा होती स्वप्न पारा स्वार्थ का चढ़ने लगा आदमियत और अब उपकार लगता व्यर्थ सा झूठ की बुनियाद पर ही है महल तनने लगा शांति औ सद्भावना का लोप होता जा रहा पाशविकता बढ़ रही सौहार्द है घटने लगा हर तरफ संशय का है सम्प्रति यहाँ वातावरण आदमी खुलकरके बातें करने में डरने लगा आस्तीनों में छिपे होते हैं विषधर हैसही हम समझते थे जिसे साहिल वही डसने लगा ...
मेहनत
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मेहनत

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** चल चलें करने को मेहनत खुन पसीना बहाकर करें मेहनत न करें भेदभाव न करें जलन द्वेष करें अपने दम पर मेहनत न झुकें किसी के आगे रोटी के लिए करें ज़मीर में तबाड़ तोड़ मेहनत पाए हीरा मोती सा अन्न ज़मीर पर तृप्त होकर करें मेहनत अपनें ज़मीर ही आय विआय हम हैं इस जहान का भगवान जो करें मिट्टी का दोहन और पाये हीरा मोती दुःख के पल गए मेहनत से सुख के पल आए मेहनत से गरीब से अमीर बने मेहनत से चल चलें करने को मेहनत खुन पसीना बहाकर करें मेहनत। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रक...
श्रद्धांजलि
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श्रद्धांजलि

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  भारत की स्वर कोकिला हुई मौन कूच कर गई वह हरि के भौन सुर संगीत सरगम सब रूठे भजन नवगीत गजल गम में डूबे मां वीणा पाणि की वीणा के झंकृत तार मानो मूक शोक संतप्त होकर गए हार सप्त सुरों से रुठे सुर सुरो की मलिका हुई जो हमसे दूर अपनी आवाज से मंत्रमुग्ध करता हुआ वह सितारा स्वयं टूटकर बन गया नीलगगन का चमकता तारा मधुर आवाज से किया जिसने सब के दिलों पर राज अलविदा कहते हुए दिल भी सबका रोया आज रंक हो या राजा रहा ना सदा कोई इस जहान देह किराये का घर मत करना मानव तू अभिमान काया छोड़ इस जग में करना पड़ता है सबको महाप्रयाण परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...
स्वर कोकिला
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स्वर कोकिला

गुरुदीन वर्मा "आज़ाद" बारां (राजस्थान) ******************** ऐ स्वर कोकिला, लता मंगेशकर। दुनिया से तुम्हारे विदा होने पर।। हर आँख नम है, हर चेहरा मायूस। बेसुर हो गए, तेरे बिना स्वर।। ऐ स्वर कोकिला ....।। स्वरों की तू सरस्वती थी। अधूरी थी सरगम तेरे बिना।। नई पहचान संगीत को दी तुमने। नहीं ज्योति थी गीतों में तेरे बिना।। बेदम हो गए गीत संगीत सब। यह जमीं छोड़ तेरे जाने पर।। ऐ स्वर कोकिला ....।। इस धरा पर वह सूरज थी तू। जिसने रोशन किया, देश के नाम को।। तेरे गीतों में था जादू। जिसने जगमग जिंदा किया शाम को।। नहीं रही अब वह रोशनी, आवाज। वीणा के तारों में, तेरे जाने पर ।। ऐ स्वर कोकिला ....।। रहेगा अमर तेरा नाम जमीं पर। हर दिल में जिंदा तू, हमेशा रहेगी।। तू प्रेरणा और सूरज रहेगी सबकी। गीत-संगीत में जिंदा तू हमेशा रहेगी।। हो गई पूरी दुनिया, बेरौनक अब। यह संसार तेरे छो...
आशियाने जले कैसे
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आशियाने जले कैसे

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** पता नहीं वो अब अपने ही जमीरो से हिले कैसे नफरत कैद में उनके ये मोहब्बत सबको मिले कैसे गम की रात में चांद डूबा है ये चांदनी भी खिले कैसे। खामोश रहता हूं मगर मुँह में जुबान तो है यारो कहे कैसे हमने अपनी मजबूरी में ये होंठ सिले कैसे। हमने तो सच्चाई ही बयान की थी उनकी फितरत की पता नहीं वो भी अब अपने ही जमीरो से हिले कैसे। मंजिल पाने वाले को सफर का अंजाम नहीं मालूम सफर से अनजान है फिर वो उस मंजिल तक चले कैसे। बिन कायनात के भी क्या वजूद है उस इंसान का यारो चिराग तो जलाया था फिर ये आशियाने जले कैसे। कोई भी काम मुश्किल नहीं हौसले बुलंद होना चाहिए गर इरादे मजबूत हो तो फिर तकदीर से गिले कैसे। जिनको याद करके हमने सारी जिंदगी गुजार दी फिर बेखुदी में अपनी जिंदगी में उनको भूले कैसे। परिचय :- सीताराम पवा...
बापू की पगड़ी
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बापू की पगड़ी

राजीव आचार्य लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मां कहती मैं बापू की पगड़ी, बापू की आन, बान, शान, मैं ही घर का अभिमान। मां कहती, ये कपड़ा नही, सिर का ताज है, गर्व का आभास है, बापू की पगड़ी। दरवाजे पर जो, दहलीज बनी है, वही रेखा है, सीमा की, घर के बाहर जाते, कुछ ऐसा न करना, धूल धुसारित हो जाये, बापू की पगड़ी। बापू होते घर, न होते, पर पगड़ी साथ मेरे होती, रात में मेरे साथ ही सोती, आखिर मैं ही तो थी, बापू की पगड़ी। पर एक दिन, भूचाल आ गया, भाई जुए की फड़ में, हवालात खा गया, मां तपती रही, अंगार में, लोगो ने, पगड़ी, उछाल दी बाजार में। पर, मां तो कहती थी, मैं हूँ, बापू की पगड़ी ?? परिचय :- राजीव आचार्य निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
भाव में छिपें हैं भगवान
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भाव में छिपें हैं भगवान

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** भाव में छिपें हैं भगवान, और कण कण में विराजमान हैं भगवान, मन मंदिर में ध्यान लगावोंगे अपने पास ही पाओगे भगवान। निस्वार्थ उनका मार्गदर्शन जिस पर तुम चलोंगे अगर भटक भी जाओगे स्मर्णकर ईष्ट को तुरंत दिशा दिखायेंगे प्रभु जो कण कण में विराजमान हैं वहीं तो मार्ग दिखायेंगे। हम स्वार्थ वश अपना ही अहित कर बैठते हैं जबकि प्राकृतिक ने निस्वार्थ भाव से हमें सब कुछ दिया है गगन खूबसूरत दुनिया के मालिक बना दिया हम अपनी ही सृष्टि को उजाड़ने में लगे हैं जहां जीवन नहीं चांद और मंगल पर कृत्रिम जीवनशैली के लिए अपनी धरा को विरान बना रहा है आधुनिक आदमी नहीं सूझता उसे अब कोई मार्ग ईश्वर की आस्था सेबी भाग रहा है कैसे सुलझायेंगे बारूद ढेर परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश...
नियति ही प्रारब्ध है
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नियति ही प्रारब्ध है

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मत गुमान कर ऐ चाँद अपनी खूबसूरती पर। मत भूल कुछ दाग तो हैं, तेरे भी चेहरे पर। माना कि तेरी चांदनी की बराबरी किसी से नहीं, तेरे मुखमण्डल की आभा किसी से छिपी नहीं, पूर्णिमा की रात- चाँद की शीतलता किसी से सिमटी नहीं। कैसा विधि का विधान है महाकाल के ललाट पर गंगा की भांति मिला सम्मान है। किंतु यह भी सत्य है, प्रति-पल मानो अस्तित्व तेरा घटने लगता है, खूबसूरती का खुमार (रंग) प्रति क्षण उतरने लगता है। तिमिर अमावस्या की रात का, चंद्र की चांदनी को आगोश में ले लेता है, देखकर व्यथा तेरी हृदय सिहर उठता है। यह नियति ही है शून्य की गोद में समाने तक निरंतर घटना, किंतु हार न मानना, फिर प्रति पल संपूर्णता (यौवन) की ओर निरंतर आगे बढना। सुख-दुख, उतार-चढ़ाव यश-अपयश मानो जीवन चक्र है, सुर, जीव, मनुज सब नियति ...
नमन उनकी शहादत को…
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नमन उनकी शहादत को…

आर.सी. यादव नांगलोई (दिल्ली) ******************** लहू से सींचकर धरती वतन की लाज जो रख ली। नमन उनकी शहादत को तिरंगे को बुलंदी दी।। सीमा पर बन सजग प्रहरी वतन की नित हिफाजत की। वतन की आन की खातिर प्राणों की आहुति दे दी।। तिरंगे की चमक फीकी कभी जिसने न होने दी। चढ़ाए शीश वेदी पर तिरंगे को न झुकने दी।। यश गान धरती पर सदा ही गूंजता रहता। शहीदों की अमर गाथा वतन यह पूजता रहता।। निडर निर्भीक बन तुमने विपक्षी दल को संहारा। मुख से तेरे निकला सदा जय हिन्द का नारा।। भेदना है लक्ष्य बस यह एक ही संकल्प था। मां भारती की गोद में तन त्यागना विकल्प था।। सो गए दिष्टांत तुम करके हिफाजत राष्ट्र की। है गर्व तुम पर वीर पुत्रों तुम ही निधि हो राष्ट्र की।। ओढ़ तिरंगे का कफ़न तुम चल दिए अवसान पर। राष्ट्र यह कृतज्ञ है तेरे महा बलिदान पर।। परिचय :- राम चंद्र यादव (आर....
माँ का पल्लू
कविता

माँ का पल्लू

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** माँ पहनती थी सूती साड़ी उसे धोती कहा जाता था माँ की रंगबिरंगी साड़ी का वह प्यारा सा लम्बा पल्लू उसकी सर की शोभा बन काँधे से उतर कर हमेशा सामने लटका रहता था मानो खूँटी पर टँगा हुआ मुलायम तौलिया ही हो आँखे मलते जब उठता माँ के मुलायम पल्लू में सुहाना सवेरा होता मेरा कभी कुछ खाऊँ-पीयू पल्लू रुमाल बन जाता बिजली जाने पर पंखा धूप से बचाने को छाता ट्रेन बस की खिड़की पर वह पल्लू ही काम आता आज भी भुला न पाया उस तमाम मसालों की महक से भरे पल्लू को बाबा व मास्टर जी की डाँट पर ढाल बन जाता ढुलकते आँसुओं को पोछ गुलाबी गालों को सहलाता अपना लहराता पल्लू भी माँ ले गई अपने साथ याद में आँखें भर आती दिल ढूंढता उसे बारम्बार परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
सजगता ही सुरक्षा
कविता

सजगता ही सुरक्षा

निधि गुप्ता (निधि भारतीय) बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश) ******************** एक तरफ़ माता-पिता के मन में अपनी बेटियों को पढ़ाने की चाह, उन्हें आगे बढ़ाने की चाह, उन्हें ‌आत्मनिर्भर बनाने की चाह होती है, वहीं दूसरी ओर उनके समक्ष अपनी बेटियों की सुरक्षा का बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह होता है। मुझे लगता है कि वर्तमान परिवेश में बेटियों के कैरियर बनाने में, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में, सबसे बड़ी बाधा महिला सुरक्षा ही है, तो क्यों ना बेटियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्हें ही सौंप दी जाए, उन्हें समझा कर, उन्हें समझदार बनाकर, उन्हें विभिन्न परिस्थितियों से अवगत कराकर, जिससे कि प्रतिकूल परिस्थितियों को पहले ही भांप कर, वे अपनी सुरक्षा स्वयं कर पाने में सक्षम हों। इस विषय पर परामर्श सत्र के दौरान मेरा, मेरी छात्राओं के साथ वार्तालाप होता है, मैं उन्हें, उन्हीं की‌ गलतियों से उत्पन्न कुछ परिस्थितियों क...
स्वर कोकिला
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स्वर कोकिला

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** ऋतुराज बसंत आये तुम, स्वर कोकिला छीन ले गए | रेवती पंचक में आए तुम, स्वर कोकिला छीन ले गए || गायन बत्तीस भाषाओं की, अद्भुत उपलब्धि छीन ले गए | धरा रत्ना भारत रत्ना हमारी, स्वर कोकिला छीन ले गए || अपरिहार्य पार्श्व गायन की, सुरम्य आवाज छीन ले गए | शारदा प्रतिमूर्ति संगीत की, स्वर कोकिला छीन ले गए || "आएगा आने वाला" महल का गीत, चित्रपट का गीत छीन ले गए | "पाँव लागू कर जोरी" पहले गीत की, स्वर कोकिला छीन ले गए || नग्न पैर संगीत परोसती थी जो, दृष्टांता संगीत की छीन ले गए | आत्मा संप्रति संगीत की जो, स्वर कोकिला छीन ले गए || भक्ति संगीत की महाशक्ति, देशभक्ति स्वरा छीन ले गए | राष्ट्र वंदिता मंगेशकर लता, स्वर कोकिला छीन ले गए || स्वर कोकिला छीन ले गए, स्वर कोकिला ...... परिचय :- सुरेश चन्द्र जोशी शिक्षा : आच...
देशरत्न लता दीदी
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देशरत्न लता दीदी

रामकेश यादव काजूपाड़ा, मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** लता जैसा कहाँ बन पाता है कोई, स्वर- साम्राज्ञी न बन पाता है कोई। युगों-युगों में किसी वरदान के जैसा, ऐसा अवतार विरला पाता है कोई। कागज की फुलवारी में रहते बहुत, रातरानी के जैसा गमकता कोई। जाने को लोग रोज जाते ही हैं, ऐसे कहाँ विश्व को रुलाता कोई। जीवन का अंत तो सभी का है तय, सूरज-चंदा के जैसा चमकता कोई। त्याग भरा जीवन जीते हैं कम, यादगार पल कहाँ जीता कोई। गाई हैं जो नग्में लता दीदी ने, ऐसा हुनर कहाँ पाता है कोई। वक्त देखो उड़ता हवा की पीठ पे, अदब का फनकार मिलता कोई। हीरे की कीमत जौहरी ही जानता, ऐसा पारखी जहां में होता कोई। वक्त के झरोखे से ही देख पाओगे, स्वर-कोकिला बन के आता कोई। परिचय :- रामकेश यादव निवासी : काजूपाड़ा, कुर्ला पश्चिम, मुंबई (महाराष्ट्र) शिक्षा : (एम.ए., बी. एड) लेखन विधा : कव...
सिलसिले
कविता

सिलसिले

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सिलसिला यूं ही चलते रहेंगे जिंदगी भर माला पिरोते रहेंगे तारों के कोणों पर कोई मिले ना मिले गम ना कर जिंदगी सोनी राहों में तुझे चलना है अकेले। अपनी पदचाप सुनते हुए झुरमुटो से आतीं पाखी का गीत सुनते हुए वृक्ष लताओं के साथ गुनगुनाते हुए आसमा को दामन से बांधते हुए। जमी को आगोश में रखते हुए देंगे धीरज तुझे इनके विस्तृत आकार। चमकते चांद तारे झुरमुट हरियाली गिरी गव्हर इन्हीं में शांति का अन्वेषण कर। क्योंकि~ क्योंकि यह मूक हैं स्वार्थी नहीं। छाया फल की आशा मनु से नहीं तरु पल्लव से कर। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के ले...
चांद उतरा जमीं पर
कविता

चांद उतरा जमीं पर

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** मौसम की ये कैसी फिदरत हैं। कभी बेरूखी तो कभी शिद्दत हैं। हमें कोई गम नहीं कही पर ना होने का अकेले ही हर्ष हैं अपनों के बीच रहने का। समय की रफ्तार में वक्त भी यूं ही ढल जाएगा। जिंदगी की इबारत में एक नाम और जुड़ जाएगा। कभी अनजाने हैं हम पास रहते भी इस जहां में। आज वे शुमार हैं हो गये शब्दों से तीर चलाने में। देख कर तस्वीर हमारी आज वे शब्द बुन रहें। कोई शिकवा नहीं हमें शब्दों से कि वे क्या लिख रहें। चाहत भरी जन्नत में सबको कुछ कहना चाहिए। ये किस्मत हमारी कि उन्हें तस्वीर समझना चाहिए। भावों के सागर में शब्दों का ये कैसा जाल हैं। अनकहें शब्दों से जो कह दें वही उनका हाल हैं। चांद बता रोशनी से उन्होंने दीदार किया हैं। ना कहते हुए भी बहुत कुछ शब्दों में इजहार किया हैं। चेहरें के भावों को पढ़ना सबकी आदत नहीं हैं।...