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कविता

इंदौर नगरी आलीशान
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इंदौर नगरी आलीशान

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** इंद्रावती से बनी नगरी इंदौर होलकरों ने इसे सजाया है शबे मालवा की रौनक यहां अहिल्या माता की छत्रछाया है राजवाड़ा में बिखरी राजसी शान गांधी हाॅल ने समय को जाना है शीशमहल की कारीगरी यहां भारत माता मंदिर पाया खजराना गणेश इसकी पहचान बड़ा गणेश आलीशान कैट और शिक्षालयों से शिक्षित औद्योगिक राजधानी भी कहलाती महाकाल बाबा है एक ओर दूसरी ओर ममलेश्वर का छोर रुपमती को आवाज देती नर्मदा मैया की यह आभारी है सामाजिक कार्यकलापों की भरमार धार्मिकता का भी है कारोबार लता, किशोर की यह नगरी हुकुमचंद सेठ को भाई थी स्वच्छता का पंच परचम लहराया अहिल्या माता इसकी शान इंदौर नगरी बन गयी आलीशान। परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
अमृतपान करातीं हैं मां
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अमृतपान करातीं हैं मां

  गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन देने वाली मां मर-मर कर तुम्हें जन्म देकर अपने खून अमृत बनाकर अमृतपान करातीं हैं मां। अपनी भूख प्यास मिटाकर हर परिस्थितियों में आत्मनिर्भरता और संघर्षपूर्ण जीवन में तुम्हें अमृतपान करातीं हैं मां। खूबसूरत विशालकाय इस सुंदर दुनिया में लाकर, अनमोल इस धरा पर जीना सिखाती हैं मां। ज्ञान का वह सागर जिसमें ढुबकर ईश्वर भी जन्म लेते हैं सांसारिक मर्यादा रहकर मां ने निसंकोच उन्हें भी गुणवान बनाया अमृतपान कराया मां ने। प्राकृतिक सौंदर्य की जननी भी हैं मां सृष्टिकर्ता ने अद्भुत प्रकाशमान बनाया मां को सूर्य का प्रकाश भी फिका ऐसा व्यक्तित्व से गगन रोशन किया हैं तभी तो मां ईश्वरीय शक्ति का प्रतीक है हमें जीवन दान दिया है अमृतपान कराया है मां ने। परिचय :- गगन खरे क्...
निर्गुण ब्रह्म धरूँ
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निर्गुण ब्रह्म धरूँ

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** गोपी-उद्धव संवाद संदेश है मोहन का निर्गुण ब्रह्म धरूँ अनुनय है मोहन का मथुरा से आए हैं बनि के इक योगी उद्धव कहलाएँ हैं कान्हा रस में डूबी ना जानूँ कुछ भी क्या खूबी मधुकर की उड़-उड़ के है बूमे गुन-गुन-गुन करते रस चूसे औ झूमे हम सगुण उपासक हैं हम तो ना माने यदुनंदन बाधक हैं वो नैनों का तारा कैसे हम भूलें? है वो ही उजियारा वाकी बंकिम चितवन चित को भरमाए है याही तो उलझन ये कैसे हम कह दें ? बैठा जो भीतर बाहर कैसे कर दें ? आती जब भी यादें रास रचाने की हैं करतीं फरियादें हे निष्ठुर आ जाते भूल गिले शिकवे करतीं जी भर बातें उद्धव का ज्ञान धरा कुछ भी ना समझे उनका सब राग हरा परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" निवासी : अमेठी (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र :...
माँ की दुआ
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माँ की दुआ

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** उस आँगन में रहे ना कभी सुख-समृद्धि का अभाव। फलीभूत रहता है जबतक माँ की दुआओं का प्रभाव। जन्मदात्री की आज्ञा का जिस घर अँगना में हो अनुपालन। नव पीढ़ी में वहाँ होता सदा संस्कारित गुणों का परिपालन। मातृशक्ति हमारी होती सदा कुटुंब समुदाय की आन। बढ़ाती मांगलिक कार्यों में खानदानी विरासत की शान। राह भटकते बच्चों को बीच जीवन में है टोकती। जो कर्तव्य पथ हो अडिग उन्हें बढ़ने से नहीं रोकती। देवें सदैव उन्हें सम्मान जीओं चाहे अपने उसूल। हृदय विह्वल हो उनका करें न कभी ऐसी भूल। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ...
जिंदादिल इंसान
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जिंदादिल इंसान

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** खुशनसीब है वो लोग जो खुशियां बांटते हैं। मोहब्बत का राग और मोहब्बत के गीत सब को सुनाते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता उनको कि लोग उनको हँसाते हैं या फिर रुलाते हैं। वो बस चेहरे पर हल्की-हल्की मुस्कान लिए जिंदगी बिताते हैं। वो नहीं देखते कि राह में फूल पड़े हैं या फिर चुभते कांटे, वो बस मस्ती के आलम में खोए, कांटों को भी फूल समझ निकल जाते हैं। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित कर...
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ये काश्मीर हमारा है

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** माँ वैष्णों का धाम यहाँ की शोभा और बढ़ाता है, खड़ा हिमालय इसकी महिमा, मूक स्वर में हीं गाता है। मैं कितना गुणगान करूँ प्रकृति ने रूप सँवारा है, बोले हिन्द के रखवाले ये काश्मीर हमारा है।। सोने की चिड़ियाँ कहते हैं, ये भी क्या कुछ कम है। जो आँख दिखाये इसको उसका, काल बन खड़े हम हैं।। इसी हिमालय से निकली गंगा की निर्मल धारा है। बोले हिन्द के रखवाले ये काश्मीर हमारा है।। हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई, चारो धर्म समान यहाँ। अनेकता में भी एकता है, होता नित है गान यहाँ।। धूल चटाया वीरों ने जिसने इसको ललकारा है। बोले हिन्द के रखवाले ये काश्मीर हमारा है।। संजीवनी सी कितनी जड़ी, बूटियों का ये संगम है। हिंदुस्तान से बाहर भी इसकी, महिमा का वर्णन है।। गीतकार आनंद ने अपना तनमन इसको वारा है। बोले हिन्द के रखवाले ...
पंख
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पंख

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दिए है जिसने पंख, उसने आस्मां बख्शा होगा। आज को देख मनुज, कल किसने देखा होगा। व्यर्थ न कर चिंता, चिंता! चिता का स्वरूप है, चिता जलाती मुर्दे को, चिंता जलाती जिंदा होगा। पंख फैलाए उन्मुक्त गगन में, उड़ान भरकर देख, आसमां के तारे तेरे, तू सितारों का आसमां होगा। कोशिश अगर करेगा, जमीं कदमों से नाप लेगा, हसरतों के शहर में, खुशियों का बाजार होगा। ख्वाहिशों के घोड़ों को, लगाम देना सीखिए, दुनिया उसी की है, बुलंद जिसका हौसला होगा। हर आंगन में दरार, यह स्वार्थ का रिवाज है, अपने हो गए पराएं, बस गैरों से परिवार होगा। पंख कतरनें को बैठे हैं, गगन की दहलीज पर, जीत उसी की होगी, जो अपनों से सावधान होगा। बेगैरत है दुनिया, दूध में चलती तलवार देखी है, खंजर पीठ में उतारने वाला, कोई अपना होगा। परिचय :- डॉ. भगवान सहा...
युद्ध की विभीषिका
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युद्ध की विभीषिका

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** युद्ध की विभीषिका का साक्षी इतिहास है क्या समर से हुआ कभी मानव का विकास है? वसुंधरा पर जब-जब गूंजा रणभेरी का नाद है मिटी सभ्यता, समूल नाश का हुआ शंखनाद है। क्या शक्ति से जीतकर बनता कोई महान है? युद्ध शोक से रोता हर पल मानव का अंतर प्राण है। अब तक इतने युद्ध हुए क्या भला किसी का होता है? बल हिंसा और शस्त्र प्रयोग से धरती का मन भी रोता है। अहं भाव जब मानव मन पर हावी होता जाएगा पर पीड़ा को भूल सदा वह रण में डूबा जाएगा। कब तक युद्ध सहेगी धरती सोचो और विचार करो विश्व बंधुत्व और शांति, अहिंसा का मिलकर सभी प्रचार करो। मन का द्वेष मिटाकर ही तो होगा नित सबका उत्थान युद्ध रोक कर लाना होगा फिर से नवजीवन का विहान।। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम....
नर्स दिवस
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नर्स दिवस

किशनू झा “तूफान” ग्राम बानौली, (दतिया) ******************** फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती। देखभाल को सदा मरीजों के, घर -घर तक जाती है। फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती। उपयोग सदा ही करती है, वह शारीरिक विज्ञान का। देखभाल में ध्यान रखे वह, रोगी के सम्मान का। कितनी मेहनत संघर्षो से, एक नर्स बन पाती है फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती है सदा बचाती है रोगी को, दुख, दर्दो, बीमारी से । भेदभाव को नहीं करे वह, नर रोगी और नारी से। देख बुलंदी को नर्सों की, बीमारी डर जाती है। फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती है। देती शिक्षा और सुरक्षा, बीमारी से बचने की। कला नर्स को आती है, रोगी का जीवन रचने की। असहाय मरीजों की केवल, परिचायक ही तो साथी है। फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती है। देखभाल का जिसके अंदर, एक अनोखा ग्यान ...
माँ
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माँ

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** सबने कहा माँ कि तू चली गई है, कभी ना लौटने के लिए। इस जहांँ से दूर उस दीनबंधु के पास तू चली गई है । पर मैं कैसे मान लूँ ? तू ही बता माँ इन बातों पर विश्वास मैं कैसे करूँ? जबकि मुझे पता है कि तू यहीं है। सामने जो तुमने पौधे लगाए थे, जो कभी तेरी ममता पाकर मुस्कुराए थे, वे अब लहलहा रहे हैं। जैसे तेरा स्नेहिल स्पर्श उन्हें आज भी मिल रहा है। फिर कैसे मान लूँ कि तू चली गई है? तेरे आँचल में जो स्नेह, दुलार और संस्कार मैंने भर-भर के पाए थे, मुझसे होते हुए वे बच्चों तक पहुंँच रहे हैं । तेरी दी हुई उन्हीं सीखों को अपनाकर वे पुष्पित, पल्लवित हो रहे हैं। ये सत्य दिख रहा हर पल मुझे। फिर कैसे स्वीकार लूँ कि तू चली गई है? मायके की हर एक दीवार को छूने से तेरे मृदुल स्पर्श का अहसास होता है। और वहा...
गीत तुम्हारे स्वर मेरे
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गीत तुम्हारे स्वर मेरे

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कभी गमो का साया भी नहीं पड़े तुम पर। खुशी की गीत गाओ उदासियों की महफ़िल में। बहुत सुकून मिलेगा मायूसो के चेहरे पर। महफ़िल में रोनक आ जायेगी तुम्हारे गीतों को सुनकर।। मिले गमो का साया भी, उसको भी गीत बना लेंगे। तेरी जुल्फों की साया में हम सारी रात बिता देंगे। क्योंकि सुनकर तुम्हारे गीत मै मोहित हो गया हूँ। भूल गया सारे गमो को और दिवाना हो गया हूँ। दिलकी धड़कनो में अब तुम ही तुम धड़क रही हो।। अब मुझे न नींद आ रही न ही मन मेरा लग रहा है। अब तेरी याद सता रही है और बेचैनी बड़ा रही है। मुझे अपना मीत बना लो होठों से मेरे गीत सजा लो। तुम्हारी बेचैनी मिट जायेगी जब दिलमें शमा जाओगी।। अब तुम्हें देखकर लिखता हूँ। और बस तुम्हें ही गाता हूँ। आवाज़ मेरी होती है पर दिलसे तुम गवाते हो। और मेरी वाह-२ करवाते हो।। ...
मातृ दिवस
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मातृ दिवस

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मां की छवि ईश्वर सम, मत खोजो तुम तोड़। सपने सच करती चले, व्यर्थ मां से होड़।। प्रेम हिफाजत ध्यान में, गुजरे सालों साल। बाल न बांका हो सके, हरदम ठोके ताल ।। रोटी टुकड़े चार जब, खाने वाले पांच। भूख नहीं है मां कहे, चरम स्नेह की आंच।। कष्टों में मां घिरी रहे, दब जाती है हूक। मुंह खुले आशीष में, अकसर दिखती मूक।। करे बच्चों की पैरवी , बनती रहती ढाल। बरसो बरस राज रहे, ये ममता की चाल।। मातृ दिवस याद सिर्फ, चल न सके परिवार। ममत्व छांव पले सदा, जल थल नभ संसार।। जनम जनम न उतर सके, मां का ऐसा कर्ज। भाग्य यदि मां देखती, कोख पले का फर्ज।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा ...
कविता क्या है
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कविता क्या है

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** कविताएं तो होती हैं एहसास मन के उड़ान दी गई हो जिन्हें पंछियों की जैसी चुन-चुन के कलियां बागों से पिरोया गया हो जिन्हे शब्दों के हार जैसे सुरों की मधुर सरगम देकर एक लय में डाला गया हो संगीत जैसे हृदय के कोमल स्पर्श से छू कर पानी की ठंडी छींटो से नहलाया हो जैसे कविताएं तो है दास्तां प्यार भरी नव विवाहित जोड़े की हंसी हो जैसे दिल के किसी कोने में पड़ी राह तलाशती हो मंजिल जैसे सकून मिलता हो जहां जीवन का प्रफुल्लित हो जाते बाग बगीचे जैसे लोरी सुनाकर कोई बचपन की मां ने गोदी में सुलाया हो जैसे परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी...
तुम अधीर ना होना
कविता

तुम अधीर ना होना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** दुख की धूप कभी भी सुत पर, जीवन में जब आती। आँचल की छाया देकर माँ, जीवन पाठ पढ़ाती। पनघट जैसी कठिन डगर है, जीवन मकड़ी जाला। नहीं उलझना मकड़जाल में, समझाती हूँ लाला। है जीवन तलवार दुधारी, इस पर कैसे चलना। हो प्रतिकूल परिस्थिति जैसी, उसमें कैसे ढ़लना। कठिन समय जब तुम्हें सताए, धीरज कभी न खोना। मन का अश्व रहे काबू में, तुम अधीर न होना। ऊँचाई पर चींटी चढ़ती, फिर फिर गिर जाती है। चढ़ती, गिरती गिरती, चढ़ती, आखिर चढ़ जाती है। बिना रुके तुम चढ़ते रहना, अगर शिखर हो पाना। सब के सहयोगी बनकर तुम, नाम अमर कर जाना। रंग चढ़ा दुनिया पर ऐसा, कोई काम न आता। मेरे प्यारे तुम बन जाना, सब के भाग्य विधाता। जीवन में पग-पग पर मिलते, हैं अपनों के ताने। फिर कैसे अपने हो सकते, जो हमसे अनजाने। अपनापन, अन...
शहर ऐक कोना सा‌‌
कविता

शहर ऐक कोना सा‌‌

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** शहर ऐक कोना सा। खो गया मैं मंजिलों की अट्टालिका मैं, बिछड़ गया मैं भीड़ भरी जिंदगी में।‌ ना पूछे कोई खैर खबर, ना मिले सगे संबंधी। ना मिली चौपाल की बैठक।।‌‌ शहर ऐक कोना सा‌‌ कहां खो गई आम, नीम, पीपल की छांव।‌‌ नहीं दिखता दूर-दूर परिंदा, ना मुझे मिली इतराती कोयल की कुहू कुहू की आवाज।। ना मिले नीम, पीपल की छांव में लहराते झूले। शहर ऐक कोना सा। शहर की अट्टालिका में ढूंढ रहा अपनों को, न मिले सगे संबंधी।‌‌ ना मुझसे कोई पूछे खैर खबर।‌ शहर ऐक कोना सा। ना बोले प्यार से, भैया जय राम जी, जय गोपाल जी। निकला वह बाजू से, बोला हाय गुड मॉर्निंग।।‌ शहर ऐक कोना सा। ना दिखता सुबह का सूर्य उदय, ना सुनता पक्षियों का कलरव, ना मीठी कोयल की कुहू कुहू। ना मिला भोंरौ का गुंजन। शहर ऐक कौना सा। ना मिली माटी की...
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आत्म निर्भरता

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** आत्म निर्भरता से हीं तेरा मनोरथ हो सफल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। विश्व में अपना पताका तुमको लहराना हीं होगा। जिंदगी की दौड़ में अव्वल तुम्हें आना हीं होगा। एक हो निर्णय तुम्हारा देश तब होगा प्रबल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। खुद बनों मालिक तु अपना कह रही माँ भारती। अपने जीवन रथ का खुद हीं बनना होगा सारथी।। सोंचने में मत बिताओ अपना सुनहरा आज-कल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। बेवजह की बात में अपना समय बर्बाद मत कर। कौन क्या कहता है इन बातों में घूंट-घूंट के न तु मर।। मेरी इन बातों को तु अपने जीवन में कर अमल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। कश्मकश जीवन में है इस कश्मकश से तु उबर। जिंदगी की राह में तुझको तो चलना है निडर।। कौन है अपना-पराया इस मुसीबत से निकल। बांध लो कस...
मेरे जीवन की आधार प्रिये
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मेरे जीवन की आधार प्रिये

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** गृहस्थी में ये वर्ष पच्चीस प्रिये, बनाये जग ने सुधामय हो | मिले जग को शतावृतसुधा, तन मन तुम्हारा निरामय हो || मेरे जीवन की आधार प्रिये, रजत वर्ष मंगलमय हो..... पंथी बन एकाकीपथ के हम, किया शिव ने प्रशस्तमय हो | रहे एकाकी दोनों साथ हम, किये सिद्धांत तो दृढमय हो ||मेरे जीवन.... नहीं स्पर्धा धनियों कोई, हैं आदर्श हमारे धनमय हो | बने रहे हैं हम परस्पर धन, इसीसे जीवन सुखमय हो ||मेरे जीवन.... सुता सुत तेरे शिवाशीष, लधूनाशीष उभयोंपर हो | देंगे हम दोनों इन्हें आशीष, लधूनाशीष हम दोनों पर हो ||मेरे जीवन..... दिखाए लधूनेश्वर वानप्रस्थ मार्ग, अब गृहस्थ मार्ग अमृतमय हो | बनी रहे महादेव लधून की अनुकम्पा, जीवन तुम्हारा शतायुमय हो || जीवन तुम्हारा शतायुमय हो, सौभाग्य तुम्हारा अखण्डमय हो | मेरे जीवन की आधार प्रिये, रजत व...
छांव मेरी मां
कविता

छांव मेरी मां

आशीष द्विवेदी समदरिया शहडोल (मध्यप्रदेश) ******************** छांव है मेरी तू मां जान मेरी है तू मां बिन तेरे ना देख पाते सुबह हम मां मेरे ख्वाबों का परिणाम तू है मां मुझे इस दुनिया में तूने ही तो लाया है सबसे लड़ कर तू मुझे बचाती सबसे तू मेरे लिए लड़ जाती हो मां तू धूप मैं तेरा तो छांव बनना चाहूं मां इस जग में सबसे ज्यादा तो तूम प्यार करती हो मां मैं ना तेरे मन की बात जानू, लेकिन तूम तो सब जानती हो मां मां सबसे प्यारा निर्मल तेरा तो प्यार है मां हम ना जाने तेरी भावों को, छुपाते तूम रहती हो मां तूम दुःख हो सहती मगर, अपने लाल को नहीं जातती हो मां तेरे बिना ना हम है, ना ही जानेंगे इस दुनिया को मां तू ही तू पहचान है मेरी मां तेरे नाम से है मेरी ये दुनिया मां छांव है तू मेरी मां मैं कैसे भूलूंगा मां हम सभी को मां का ख्याल, प्यार देना चाहिए अपनी ‌म...
शुक्ल पक्ष की चांदनी
कविता

शुक्ल पक्ष की चांदनी

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** माॅ, शुक्ल पक्ष की चांदनी तुम हमें देती रही स्वयं कृष्ण पक्ष की चांदनी सी ढलती रही चांदनी का यूं ढलते जाना क्यों हम गवारा करें अमावस की रात, जीवन में कभी तुम्हारे पग न धरे। परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 ...
माँ
कविता

माँ

रोहिणी नन्दन मिश्र गजाधरपुर गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** नौ दस माह लिये कुक्षि में जिसने सब भोग विलास बिसारा जाकर रूप अनूप दिखा सबसे पहले जब नैन उघारा पाँव उठा पहला जिसने तब हाथ बढ़ा कर अंक पसारा होंठ हिले पहले तब 'नंदन' माँ बस माँ यह शब्द उचारा जाकर पावन गोद सुहावन शीतल पीपल छाँव सरीखा पीकर दूध सनींद शिशू सुख देख लगे अमरावति फीका 'नंदन' हूक उठे उर माँ सिर देख बुखार खरोंच तनी सा वैद बुलाकर दीठि झराकर माँ भर माथ लगावय टीका आतप झेल सहे चुपचाप कहे न कभी सब भेद छुपावे माँ उपवास करे दिन रैन परन्तु हमे भरपेट खिलावे झूर पलंग हमें पउढ़ाकर सीलन में खुद रात बितावे माँ सम 'नंदन' को जग में अपना सुख देकर दुःख बुलावे अम्बर सागर बादल माँ अरु पर्वत नागरबेल विताना माँ अमरी शबरी जसुदा गिरिजेश सुता सिय वेद पुराना दान दया ममता बलिदान सनेह तपस्या अलौकिक ना...
माँ
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माँ

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** माँ जब तुम कसके चोटियां डालती थी बचपन में मेरी, गुस्से से आग बबुला हो जाती थी ये प्यारी सी गुड़िया तेरी! माँ जब तुम भगवान को प्रशाद चढ़ाने तक खाना नहीं देती, मुहँ फुलाकर कोने मे बैठ जाती थी ये प्यारी सी गुड़िया तेरी! माँ आज बिलकुल समय नहीं मिलता के खुद के बाल जरा सँवार लू, तू जैसी चाहती है वैसी कसके चोटी आ तेरे हाथों से डाल लू! और खाना तो अब सिर्फ तेरे ही हाथ का अजीज और लज़ीज़ लगता है, जिसके लिए मै दुनिया का फाईव स्टार होटल भी छोड़ दूँ! तुम्हारी गुड़िया, संगीता परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला महाविद्यालय, परभणी महाराष्ट्र घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
माँ
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माँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** "माँ" के लिए क्या लिखूं, आकाश सा व्याप्त वो शब्द, जिसे वेद व्यास भी परिभाषित ना कर पाए माँ सरस्वती भी कुछ समझा ना पाई! "माँ" के समक्ष हर सागर भी दरिया लगता है हर पर्वत हर गगन छोटा लगता है इंद्रधनुष के हर रंग समाए हैं इन नैनों में "माँ" है सृष्टि की जननी "माँ" से ही है ये जग जीवन, ब्रम्हांड समाया है "माँ " में हर पूजा प्रार्थना का आशीष है "माँ", खुद में ही सम्पूर्ण है जो, वो एक शब्द है "माँ" जन्नत है इनके चरणों में प्रकृति का रूप है "माँ" शक्ति का स्वरुप है "माँ" अखंड ज्योति की लौ है "माँ" क्यूँ हो एक दिन ही मातृ दिवस? नित क्यूँ ना करें हम "नमन" इन्हें? ईश्वर का प्रतिरूप है "माँ" नित शत-शत इनको नमन करें!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म ...
मातृदिवस पर तुझे नमन
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मातृदिवस पर तुझे नमन

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** यों तो हर दिन तेरा ही मां तुझ बिन कुछ न भाया था तुझसे है अखिल सृष्टि सब पर तेरी ममता का साया था मैं जब संसार में आया तब था मां ने ही गोदी उठाया था लोट पोट कर सरकने लगा तो मां ने उठना सिखाया था लड़खड़ाकर गिरता तो मां ने ही चलना सिखाया था मिट्टी में रेखाएं खींचता तब मां ने लिखना सिखाया था मैं पहाड़े रटने लगा तब मां ने ही गिनना सिखाया था मैं बस *मां* जानता था मां तूने ही गुरु से मिलवाया था गर्भ से जन्म दिया तूने फिर ज्ञान से द्विज बनवाया था मैं राह भटक रहा था तूने धर्म का मर्म बतलाया था मां तेरा उपकार न भूलूंगा मुझे पशु से इंसान बनाया था मातृदिवस पर तुझे नमन मां सृष्टि का नमन स्वीकार रहे जब तक सृष्टि बनी रहेगी मां तू ही जगत आधार रहे। परिचय :-  डॉ. भोला दत्त जोशी निवासी : पुणे (महाराष्ट्र) शिक्षा...
माॅं की महिमा निराली है
कविता

माॅं की महिमा निराली है

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** माॅं की ममता, माॅं की क्षमता महिमा गजब निराली है । ९ माह कोख में रखकर, सकल जगत को पाली है... माॅं न्यारी है , माॅं प्यारी है । माॅं कोमल-सी महतारी है । परिवार की खुद रक्षा कर, धरम करम करनेवाली है... माॅं बहू है , माॅं ही सास है । परिवार की अटूट विश्वास है । घरेलू कारज निर्वहन कर, माॅं गृह प्रमुख घरवाली है... माॅं ही अम्मा, माॅं ही मम्मा है । माॅं ही नींव-सी खम्भा है । अमृत-सी दूग्ध-पान कराकर, वात्सल्य सिंचती माली है ... माॅं वंदनीय है, माॅं पूजनीय है । जगत दायिनी आदरणीय है । घर गृहस्थी बीड़ा उठाकर, संस्कार देकर संभाली है ... माॅं करुणामयी, माॅं ममतामयी शीतल-सी छत्र छाया है । नित्य सद्गुण अपनाकर, दया दृष्टि वृक्ष-सी डाली है... माॅं की भक्ति, माॅं की शक्ति है । सद्गुणों से सजती सॅ...
जरा मुस्कुरा दो माँ
कविता

जरा मुस्कुरा दो माँ

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जरा मुस्कुरा दो माँ तेरा आँचल मेरे चेहरे पर डाल जब आँचल खींच बोलती "ता" खिलखिलाहट से गूंज उठता घर। गोदी में झूला सा अहसास मीठी लोरी माथे पर थपकी अपलक निहारने नींद को बुलाने आ जाने पर नरम स्पर्श से माथे को चूमना। आँगन में तुलसी सी मां मेरी तोतली जुबान पर मुस्कुराती माँ क्योकि मैने तुतलाती जुबान से पहला शब्द बोला "माँ" जैसे बछड़ा बिना सीखाये रम्भाता "माँ" दुआओं का अनुराग लिए रिश्ते-नातों का पाठ सिखाती माँ खाना खाने की पुकार लगाना जैसे माँ का रोज का कार्य हो। वर्तमान भले बदला माँ की जिम्मेदारी नहीं बदली अब भी मेरे लिए सदा खुश रहने की मांगती रहती ऊपर वाले से दुआ। रात हो गई अभी तक नहीं आया की माँ करती रहती फिक्र ऐसी पावन होती है माँ। खुद चुपके से रो कर हमें हँसाने वाली माँ पिता के डाटने पर मे...