सुरभि मुखरित पर्यावरण
संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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हमारा प्यारा प्यारा सुरभित मुखरित पर्यावरण।
संरक्षण करना कर्तव्य हमारा , सृष्टि कर्ता प्रकृति।
अमूल्य खजाना , मानव को मिली अनमोल भेंट।
प्रकृति का पाया प्रथम उपहार भू धारण करती,
पालकी मानव को धरा धारण किए, हरे-हरे पत्र,
पल्लव, लता, वृक्ष, पुष्प फसलों से लहलहाती।
हर्षित मंत्रमुग्ध अंतस अनुभूत आनंद दाता पत्र-दल
पुष्पदल सुवास बरसा सुगंधित बयार बही उर।
आनंद संचार हुआ, सुरभित मुखरित पर्यावरण किया,
पुष्प दलों पर तितलियां और भौंरे मंडरा-मंडरा रसपान।
कर लुभाते, बसंत ऋतु नवअंकुर का अभिनंदन कर,
प्रकृति का पाया द्वितीय उपहार सुंदर नभ-मंडल।
सूर्य, शशि और तारे जहां स्थित धरा पर नदी, ताल,
झरने कल-कल करती उर में अपनी अमित छाप छोड़ती,
प्रकृति का पाया तृतीय उपहार शुद्ध पवित्र समीर, मानव।
जीवों पशुओं को जीवनद...