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कविता

सुरभि मुखरित पर्यावरण
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सुरभि मुखरित पर्यावरण

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** हमारा प्यारा प्यारा सुरभित मुखरित पर्यावरण। संरक्षण करना कर्तव्य हमारा , सृष्टि कर्ता प्रकृति। अमूल्य खजाना , मानव को मिली अनमोल भेंट। प्रकृति का पाया प्रथम उपहार भू धारण करती, पालकी मानव को धरा धारण किए, हरे-हरे पत्र, पल्लव, लता, वृक्ष, पुष्प फसलों से लहलहाती। हर्षित मंत्रमुग्ध अंतस अनुभूत आनंद दाता पत्र-दल पुष्पदल सुवास बरसा सुगंधित बयार बही उर। आनंद संचार हुआ, सुरभित मुखरित पर्यावरण किया, पुष्प दलों पर तितलियां और भौंरे मंडरा-मंडरा रसपान। कर लुभाते, बसंत ऋतु नवअंकुर का अभिनंदन कर, प्रकृति का पाया द्वितीय उपहार सुंदर नभ-मंडल। सूर्य, शशि और तारे जहां स्थित धरा पर नदी, ताल, झरने कल-कल करती उर में अपनी अमित छाप छोड़ती, प्रकृति का पाया तृतीय उपहार शुद्ध पवित्र समीर, मानव। जीवों पशुओं को जीवनद...
छड़ी
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छड़ी

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** कोने में रखी दुबकी हुई सी, उपेक्षित नजर आती, बाप दादाओं से विरासत में मिली, अमूल्य धरोहर एक छड़ी , छड़ी शब्द से कुछ यादें ताजा होती हैं। मास्टर जी की दिल दहलाने वाली छड़ी जो हाथ पे निशान छोड़ जाती थी, बाबूजी की सैर पर जाने वाली छड़ी जिसके साथ वे रौबदार दिखते थे, अपना दबदबा बनाए रखते थे, एक फौजी अधिकारी की घुमाती छड़ी जो अपनी शानदार मूंछों को सहलाते युद्ध के कारनामे बतलाते थे, कमर झुकी शरीर का बोझ ढोती छड़ी, बीमार को सचेत करने वाली छड़ी, एक अंंधे लाचार का सहारा जो बिना छड़ी के रास्ता नहीं कर सकता पार, मुन्ने के खिलोनों की शोभा बढ़ाने वाली छड़ी, पतली, कड़क, सीधी, सर्पाकार डिजाइन वाली, मूठ वाली, भूरी, काली, सफेद, कई रंग की, लकड़ी की, प्लास्टिक की कई किस्म की, अनोखी, जादुगर छड़...
पिता
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पिता

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** धरती पर जीवन संबल और शक्ति है पिता। बच्चों के लिए पूंजी और पहचान है पिता। स्नेह, प्यार और आशीर्वाद से छलकता, रिश्तों के सागर में गहरा पानी है पिता। रोटी, कपड़ा और मकान है, बच्चों की किस्मत और शौहरत है पिता। एक परिवार का अनुशासन, घर की छत और बच्चों का अभिमान है पिता। बिना पिता के संतान होती अनाथ, घर परिवार की सुरक्षा और संस्कार है पिता। फूलों के बाग़, बच्चों के खिलौने, घर के भगवान, पालन और पोषण है पिता। सारे रिश्ते नाते उनके दम से, बच्चों की मां की बिंदी और सिंदूर है पिता। महकते चमन के पहरेदार तो, परिवार की धरती और आसमान है पिता। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मे...
कैसे-कैसे रिश्ते
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कैसे-कैसे रिश्ते

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** छिन लिया आसरा पेड़ को कटते देख दूसरे पौधे रो रहे थे कौन समझे इनकी पीड़ा नेक इंसान ही समझते उसे लगा होगा जैसे, माता-पिता के मरने पर रोते है कैसे रिश्ते यह जानते हुए भी खोने दे रहा है खुद के जीने की प्राण वायु पेड़ की खोल के रहवासी उड़े भागे थे ऐसे जैसे भूकंप आने पर लोग छोड़ देते है मकान थरथरा कर गिर पड़ा था पेड़ पेड़ के रिश्तेदार, मूक पशु-पक्षी खड़े सड़क पर, बैठे मुंडेरों पर आँखों में आँसू लिए विचलित अस्मित भाव से कर रहे संवेदना प्रकट और मन ही मन में सोच रहे क्यों छिन लिया आसरा हमसे क्रूर इंसान ने। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार ...
मेरी आवाज
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मेरी आवाज

श्रीमती गार्गी राय सतना (मध्य प्रदेश) ******************** मैं मेरा आज और मेरा समाज इन तीनों में कभी सामंजस्य नहीं बैठा पाइ मेरी आवाज आवाजों के रूपों में परिवर्तन करके देखा- करुणा से भरी आवाज ने लोगों के हृदय को द्रवित करने के बजाए शंकित किया खुशी की आवाज ने लोगों की नींद उड़ा दी और मेरी क्रांतिकारी आवाज ने मुझे असहाय बना दिया। परिचय :- श्रीमती गार्गी राय निवासी : सतना (मध्य प्रदेश) शिक्षा : स्नातकोत्तर (हिंदी ) बी.एड. अभिरुचि : साहित्य एवं लेखन फेसबुक पर विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित, पत्रिका एवं अखबार में रचनाऍं प्रकाशित, साझा संग्रह प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करव...
खुद से लड़ना नहीं आता
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खुद से लड़ना नहीं आता

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** अजब कशमकश में हूँ कुछ समझ में नहीं आता मेरे यार समझते हैं मैं समझना नहीं चाहता जानता हूँ मेरे ग़म से परेशान है हर कोई खुश रहना चाहता हूँ पर ग़म छुपाना नहीं आता चाहत को मेरी उसने मज़ाक बनाकर रख दिया फिर भी बेवफा को दिल से मिटाना नहीं आता घुट-घुट कर जी रहा हूँ हर पल ज़िन्दगी का मर भी जाएँ प्यार में, लेकिन बहाना नहीं आता सोचते हो तुम कि डरता हूँ मुसीबतों से कमज़ोर नहीं हूँ, लेकिन खुद से लड़ना नहीं आता बहा देता ग़म को कब का अपने दिल से तेरी तरह अफसोस, लेकिन लिखना नहीं आता परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
ग्लोबल वार्मिंग
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ग्लोबल वार्मिंग

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** मानव विज्ञान से खेल गया, कार्बनडाई ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड और मेथेन में वृद्धि कर अब तक गर्मी झेल गया।। बडा खुश हैं मानव अपने कारनामों से, आविष्कारों जैसे सुई से वायुयानो से।। झेल न सकेगा गर्मी और अब मानव, भविष्य में बनेगी जब यह दानव।। दानव लेगा अनेक रुप, मानव हो जायेगा कुरूप।। प्रथम होगा ऑक्सीजन की कमी, लगेगा उसको कि साँस अभी थमी।। द्वितीय होगा ओजोन छिद्र, पराबैंगनी करेंगी मानव को दरिद्र।। होंगे कैंसर और त्वचा रोग, मिलेगा अपने कर्मों का भोग।। तृतीय होगा फसल उत्पादन गिरावट, कैसे करेगा मानव अन्न में मिलावट।। मिलावट का फल एक दिन पाएगा, बिन अनाज भूखा ही मर जाएगा।। चतुर्थ होगा हिमखंड पिघलाव, जम जायेगे पृथ्वी पर बाढ़ के पद पॉंव।। पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी, मानवता पछता भी ना पाएगी।। जब ये मु...
अंकुरण का जश्न
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अंकुरण का जश्न

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन की सुंदरता वन से, करो रक्षा धरती की मन से। धरा हरित और शोभित वन हो, पोषण का संकल्प सघन हो। भर दो धरती का कोष अपार, पुनः करो एक बार विचार। यदि नहीं होगी हरीतिमा धरा पर, संकट होगा बड़ा जीवन पर। बंजर भूमि और दूषित वायु, काया रोगी और अल्पायु। मत भूलो जीवन का मूल, लालच को सब जाओ भूल। चहुँ ओर सब वृक्ष लगाओ, अंकुरण का जश्न मनाओ। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
अब मिटे मेंरे पद निशान है
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अब मिटे मेंरे पद निशान है

संदीप पाटीदार कोदरिया महू (मध्य प्रदेश) ******************** बहुत हो गया अब न सहूगी अब मिटे मेंरे पद निशान हैं क्यो घटी योगी पुण्य आत्माये अब जन्मे क्यो रावण से बडे़ जो हैवान है क्यो मनुष्य स्वार्थी हुआ क्यो हो रहा मानवता का कत्लेआम है और क्यो माँ आज एक गाली बनीं क्यो बेटियों के होने पर भी विराम है आज बनी क्यो हर माँ जो अंधिका माई है जिसने बेटियों को बनाई पराई है क्यो उन माओ ने कि अपने बेटो कि बढाई है जिन्होने माया रुपी रावण कि लंका में सिर्फ अपनी भीड़ बढाई है याद करो माओ क्यो ऐसी विपदा आई है क्यो बनी माँ रामायण में सीता क्यो भागवत गीता में माँ द्रोपदी का बखान है क्यो ज्ञानी अंर्तध्यान हुये क्यो बने कोई आसाराम है क्या अंधकार और अत्याचारियों के सारे ग्रह बलवान है अब मिटे मेरे पद निशान है परिचय :- संदीप पाटीदार निवासी : कोदरिया महू जिला इन्द...
तुमने कोशिश की
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तुमने कोशिश की

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** तुमने तो पूरी कोशिश की हमारी खिल्ली उड़ाने की हर जगह हरा तरफ, हम फिर भी खिलखिलाते रहे इस मतबली जमाने में। तुमने तो पूरी कोशिश की कि हम जीते जी मर जाए। हम फिर भी हंसते रहे मुस्कुराते रहे, और जीवन की डगर में जिजीविषा लिए जीते रहे। तुमने तो पूरी कोशिश की कि हम जीवन के पथ पर टूट कर बिखर जाए, हम फिर भी खुद को एकत्र किए जीवन के आकाश में हौसलों की उड़ान से उड़ते रहे, हर जगह हरा तरफ। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
सच ही कहता है ये आईना सदा 
कविता

सच ही कहता है ये आईना सदा 

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** सच ही कहता है ये आईना सदा कोई चेहरा नहीं रहता इसमें सदा  २ याद करके तो देखो, वो बीते हुये दिन गुजरे हुए अपने, वो पल क्षिण -क्षिण याद आयेगी वो झूठी-मुठी अदा कोई चेहरा नहीं रहता इसमें सदा  २ ज़िन्दगी आईने का ही प्रतिरुप है प्रतिपल बदलती जिसका स्वरूप है दिखाती है हर पल, नई -२ ये फ़िज़ा कोई चेहरा नहीं रहता इसमें सदा  २ ज़िन्दगी की ये सबसे बड़ी सत है ज़िन्दगी मौत की ही अमानत है कोई टिकता नहीं है यहाँ पर सदा कोई चेहरा नहीं रहता इसमें सदा  २ याद आयेगी, तुमको उमर ढलने पर बोझ ढोयेंगे जब-जब, अपने कांधे पर सच ही कहता था प्रमेशदीप ही सदा कोई चेहरा नहीं रहता इसमें सदा  २ परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक...
एक मिसाल
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एक मिसाल

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** तपती है ये बदन धुप में कोयला की आस है मिली सोन की खान कर कर्म तु यूं ही सदा बढ़कर ना कर तु ये लचार मन, तन को करता चल यूं ही पल पल मंजिल मिलती है मेहनत से थके ना कभी ये हैसला आपकी होगी फिर ओ आहट कल की कांटे बिछे पड़े हैं राहों में बना तू इसे मखमली गुलाब सा बनो तुम भी एक मिशाल देखकर हंसते ये दुनिया तुम पर हंसकर रह जाएं ये वो पल ऐसी कर तु नित्यनया सवेरा जो हो सभी के लिए दया की सागर सागर सा अथाह है जीवन में यूं ही तुम करो साहिल सा पकेरा तपती है ये बदन धुप में यूं ही सदा पल पल। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन...
अब वक्त के आगे वक्त बनों
कविता

अब वक्त के आगे वक्त बनों

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** है वक्त नहीं तुम शख्त बनों, अब वक्त के आगे वक्त बनों। होगा जो भी हम देखेंगे, हम सब मिलकर ये प्रण लेंगे।। ये दुनिया तुमको याद करे, खुद में तुम ऐसे शक्स बनों।। है वक्त नहीं तुम शख्त बनों, अब वक्त के आगे वक्त बनों। किश्मत के भरोसे मत रहना, तुम कर्म करो आजादी है। आगे-पीछे की सोच न कर, ये जीवन की बर्बादी है।। बेशक मुसीबत आन पड़ी, नर धैर्य न छोड़ सशक्त बनो। है वक्त नहीं तुम शख्त बनों, अब वक्त के आगे वक्त बनों।। गतिशील बनो धारा की तरह, नर जीवन यूं ना व्यर्थ करो। जज्बा रखो मांझी की तरह, असंभव में नव अर्थ भरो।। आनन्द सफर हो कठिन भले, माने न हार वो रक्त बनो। है वक्त नहीं तुम शख्त बनों, अब वक्त के आगे वक्त बनों।। परिचय :- आनंद कुमार पांडेय पिता : स्व. वशिष्ठ मुनि पांडेय माता : श्रीमती राजक...
दो जून की रोटी
कविता

दो जून की रोटी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** दो जून की रोटी, थोड़ा खुश थोड़ा सहमी, थोड़ा पसीने से लथफत, कभी अम्मा के हाथों में गोल घूमती नरम स्वाद वाली रोटी कभी पिता के पसीने में मोतियों सी चमकती रोटी! कभी बिटिया की चांद जैसी मुस्कराहट वाली रोटी.! ना जाने किन-किन पथरीले रास्तों से गुज़रती-जूझती, कभी राजनीति के दल-दल में फंसती हुई रोटी! धर्म कर्म, चाटुकारिता की भेंट चढ़ती रोटी, "वक़्त" और " दौलत" के बीच फंसती सिसकती हुई रोटी, रिश्तों में दूरियों का एहसास, करवाती रोटी कहीं फेंकी-मसली, चीखती चिल्लाती रोटी, कहीं किसी "जीव" की क्षुधा शांत करती रोटी, बहुत लंबी और असीमित है मेरी कहानी, क्योंकि, "मैं हूँ दो जून की रोटी" .... परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा...
प्रेम का इजहार
कविता

प्रेम का इजहार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पेड़ पर मौसम आने पर लगते फूल और फल पेड़ प्रेम का प्रतीक बन जाते जब बांधी जाती प्रेम के संकल्प की धागे की गठान पेड़ की टहनी पकड़े करती प्रेम का इजहार या पेड़ के तने से सटकर खड़ी रहती पेड़ एक दिन बीमारी से सूख गया प्यार भी कही खो गया चाहत भी गम में हुआ बीमार एक दिन चला गया मृत्यु की आगोश में संयोग वो जब जला दाहसंस्कार में लकड़ियाँ उसी पेड़ की थी अधूरा इश्क रहा जीवन मे रूह तृप्त हुई इश्क़ की चाहत ने कभी टहनियों को छुआ तो था कभी। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "द...
नशा छा जाता
कविता

नशा छा जाता

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जिसके सेवन से मानव पर, त्वरित नशा छा जाता। ऐसा मादक द्रव्य देह को, ही समूह खा जाता। नशा नाश की जड़ है प्यारे, नशा नर्क का द्वार है। डूबा रहता जो व्यसनों में, नष्ट हुआ घर-बार है। बुद्धि भ्रष्ट हो जाती इससे, पतन आत्मा का होता। जैसे नाव डुबो देता है, हुआ तली में जो सोता। सभी मान मर्यादा खोता, व्यसन चाहने वाला। आयँ-बायँ बकने लगता है, गई हलक में हाला। बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू या, चरस अफीम औ गाँजा। करता है जो व्यसन हमेशा, उसका बजता बाजा। गाँजा, चरस, भांग, हेरोइन, ब्राउन शुगर जो लेता। सुरासुंदरी के घेरे में, तन- धन ही खो देता। नशा माफ न करे किसी को, व्यसन यही सिखलाता। नशा रक्त में मिलकर अपना, रौद्र रूप दिखलाता। व्यसनी अपना हित अनहित भी, कभी देख न पाता। अपने अवगुण के कारण ही, घर का खोज ...
मेवाड़ के महाराणा
कविता

मेवाड़ के महाराणा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** 'आओ सुनाए आज तुम्हें इक गाथा राजपूताने की अकबर की चतुरंगी सेना पीठ दिखाकर भागी थी 'राजपूताने की धरती पे महाराणा प्रताप जन्मे थे वीर प्रताप,मेवाड़ राज्य मुगलों के गढ़ भी डोले थे कफ़न बाँधके केसरिया ये राणा की जय जय बोले थे 'मातृभूमि मुगलों ने छीनी जंगल में सेना बनाई थी छापामारी सिखलाते थे छुप करके तीर चलाते थे अंधियारों को चीर चीरके मशालें जीत की जलाते थे 'लोहपुरुष राजा थे उनके शौर्य वीरता का दम भरते कंदमूल और घास रोटियाँ खा खाकर जिंदा रहते थे ठंड ग्रीष्म बारिशों को भी जयकारों में ये भुलाते थे 'अकबर के अनुबंध नकारे राणा भिड़ गए मुगलों से धारदार भाले की ताकत चेतक की सवारी करते थे मुट्ठीभर सैनिक ले राणा विजय तिलक लगाते थे 'तजे प्राण घायल राणा ने मुगलों को ना पीठ दिखाई रण छोड़ते सैनिकों को लोहे के चने चबा ...
मधुमय प्याला छलका दो
कविता

मधुमय प्याला छलका दो

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे हृदय का आँगन है सुना-सुना सुरभित प्यार की बगिया खिला दो। सदियों से हूँ मैं तेरे प्यार का प्यासा तू बनके बरखा मेरी प्यास बुझा दो।। बन जाओ तुम मेरी मधुमय साकी प्यार का मधुमय प्याला छलका दो। हो जाऊँ मैं भी तेरा मदमस्त दीवाना बस मुझको थोड़ा-थोड़ा बहका दो।। बनके होठों का प्याला तुम जरा सा मुझको मधुमय रस का पान करा दो। हो जाऊँ मैं मगन मदहोश भम्रर सा हृदय से मुझको आलिंगन करा दो।। प्यार में छा जाए कुछ ऐसी मदहोशी ऐसी होश न मुझको कभी भी आए। प्यार का ऐसा जाम पीला दे तू साकी कि उमर भर फिर चाहत न रह जाए।। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी...
कभी-कभी मेरे दिल में…
कविता

कभी-कभी मेरे दिल में…

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** कभी-कभी मेरे दिल मे ख्याल आता है क्यों कर बैठा इश्क ये सवाल आता है..!! अकेला था मैं ना कोई साथ था मेरा अब उनकी याद क्यों हर वक्त आता है..!! ना तालुक था कभी इन आँसुओं से मेरी अब आँसुओं की क्यों शैलाब आता है..!! कही डूब न जाऊँ आँसुओं की दरिया में तैराक हूँ पर आँसुओं में तैरना नहीं आता है..!! ना याद करता हूँ ना यादों में समाया है फिर यादें उनकी क्यों बेहिसाब आता है..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्...
इसकी खुशबू भी सोंधी है
कविता

इसकी खुशबू भी सोंधी है

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** बिंदी लगाने से नारी का यहां स्वाभिमान जगने लगता है हमारी ये जुबान पर हर पल हिंदी है और हमारे माथे पर बिंदी है| दोनों अगर है तो फिर हमारी भारतीयता भी जिंदी है। हिंदी और बिंदी दोनों का मान दुनिया में हमें रखना होगा दोनों अगर नहीं है तो फिर हमारी सोच बिल्कुल गंदी है। हिंदी और बिंदी से हम इस संसार में जाने और पहचाने जाते हैं हम भारतीय हैं कोई नहीं कहता, यहां ये पंजाबी है या सिंधी है। इतिहास रचा है हिंदी और बिंदी ने याद हमें रखना होगा दोनों है तो हम मुक्त है वर्ना हम भी संसार में बंदी है। बिंदी और हिंदी ने हम भारतीयों का विश्व में गौरव बढ़ाया है पश्चिमी सभ्यता अपनाकर सारी दुनिया भी अंधी है। आजादी पाकर अभी तक हम ये अंग्रेजों की गुलामी में जकड़े हैं। याद करो अपनी मिट्टी को इसकी खुशबू भी सौंधी है। बिंदी ल...
कानन
कविता

कानन

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** सुरभित कानन कुंज है, सुमन खिले चहुॅं ओर। हर्षित सारे जीव हैं, देख चकित मन मोर।। कानन में तरु झूमते, पक्षी बैठे डाल। देख देख खुश हो रहे, युवा वृद्ध सब बाल।। कानन मन भावन लगे, वृक्षों की है छाॅंव। सूरज की गर्मी नहीं, सुंदर है यह ठाॅंव।। वृक्षों से कानन सजे, फूलों से है बाग। खुश हो पक्षी गा रहे, सुंदर मीठी राग।। लदे फलों से वृक्ष हैं, कानन में भरमार। गुण वर्धक पौष्टिक सभी, खूब अनेक प्रकार।। फल फूलों को देखकर, भ्रमर करें गुंजार। चहक रहें वन जीव हैं, पाकर गंध अपार।। सुंदरता वन बाग की, मनमोहन अभिराम। कुदरत ने अनुपम रचा, बिना लिए कुछ दाम।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र :...
अबोला आकाश
कविता

अबोला आकाश

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कोई नहीं देखता इस खुले आकाश को यह अबोला नहीं है रंग का चितेरा है रक्तिम स्वर्णिम नीलाभ वर्ण में सजाता है पेड़ों पहाड़ों नदियों को हल्की कपसिली आकृतियां बनाता दूर बहुत दूर से धरा को नित्य नये रूप दिखाता है, जिसे देखने की दृष्टि अलग होती है जिसे सभी मानव नहीं देख सकते क्योंकि मानव को अपने स्वार्थ के आगे वक्त कहां है ऐसा अबोले आकाश को देखने के लिए। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचना...
ग्रीष्म
कविता

ग्रीष्म

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ताप ही की हर दिशा में, हो रही नित जीत है। ग्रीष्म यौवन है शिखर पर, भूमिगत अब शीत है। चढ़ रहा पारा निरन्तर, बढ़ रहीं कठिनाइयाँ। कष्टप्रद है धूप रवि की, हैं सुखद परछाइयाँ। वृक्ष की शीतल सुहानी, छाँव मोहक मीत है। ग्रीष्म यौवन है शिखर पर, भूमिगत अब शीत है। थम गईं नदियाँ धरा पर, ताल भी सूखे सभी। अब कहाँ जलचर गए वे, धूम थी जिनकी कभी। अब नहीं गुंजित तटों पर, गीत या संगीत है। ग्रीष्म यौवन है शिखर पर, भूमिगत अब शीत है। श्रम बिना ही स्वेद कण अब, देह पर आसीन हैं। हैं धनी लस्सी व शर्बत, चाय-काफ़ी दीन हैं। चाह शीतल पेय की अब, नित्य आशातीत है। ग्रीष्म यौवन है शिखर पर, भूमिगत अब शीत है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्...
कविता

आजादी है आजाद रहो

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** आजादी है आजाद रहो, जो मन में है वो बात कहो। तू फक्र करो भारत में हो, भारत माॅ से ना घात करो।। जज्बातों में कुछ ऐसा ना, अपने लोगों से कर जाना। पुरानी रीति-रिवाजों को ना, चूर चूर कर दफनाना।। चंचलता में जीवन तेरा, ये ध्यान रहे बर्बाद न हो। आजादी है आजाद रहो, जो मन में है वो बात कहो। तू किश्मत अपनी चाहो तो, इक पल में बदल सकते हो उसे। फिर हार जीत का प्रश्न कहाँ , मिली हार किसे और जीत किसे। आपस में लड़ना क्या लड़ना, आनंद विहार कुछ प्राप्त न हो।। आजादी है आजाद रहो, जो मन में है वह बात कहो। परिचय :- आनंद कुमार पांडेय पिता : स्व. वशिष्ठ मुनि पांडेय माता : श्रीमती राजकिशोरी देवी जन्मतिथि : ३०/१०/१९९४ निवासी : जनपद- बलिया (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
शर्ट
कविता

शर्ट

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** शर्ट-शर्ट नहीं हुयी मानो एक प्यार का इज़हार बन गयी, कभी लिपस्टिक लगाकर प्रेयसी की अमानत, तो कभी रफू कर मां का दुलार, बटन निकलने पर उसकी पुचकार कर मरम्मत, फटने पर, उसके सिलने का पत्नी का प्रयास नजदीकियों का आगाज, शर्ट को प्रेस करने के लिए धोबी को समझाना बेरंग या फटने पर बेटी की अनावश्यक चिंता और नया शर्ट लाने की चुहलता मानो शर्ट नहीं शर्ट के एवज में बहुत सारा प्यार, अनुकंपा और जद्दोजहद, और जब श्रीमान घर से बाहर निकले तो ये सोचें कि चलो मैं नहीं तो क्या मेरी शर्ट की है इतनी महत्ता। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित्य में योगदान के लिए लोकमत ...