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कविता

शिकायत
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शिकायत

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** क्या बादल इंसानों से बात नही करते बेचैन निगाहे ताकती बादलों को। मन ही मन दुआएं माँगती ऊपर वाले से बादलों से कहे की बरस जा काले घन को देख मयूर नाचता पीहू पीहू बोल मनाता। बादलअपना अभिमान दुनिया को दिखाता गर्जन कर बिजलियां चमकाता। ये देख रहवासी बरसने की अर्जियां वृक्षों -हवाओं से मौसम की कोर्ट में लगाने लगे। वृक्षो ने खिंचे बादलों को अपनी औऱ हवाएं टकराने लगी बादलों को आपस में। वृक्ष ,हवाओं ने छेड़ दिया युध्द बादलों से अभिमान हुआ खत्म झुकना ही पड़ा आखिर बादलो को। खेतों की फसलों का ग़ुस्सा हुआ थम। सब ने मिलकर की बादलों पर कार्यवाही जब भी घुमडो हमारे सर पर बरसना जरूर। अबकी बार ऐसा नही करोगे तो घन श्याम से करेंगे तुम्हारी शिकायत। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन...
काले-काले जामुन
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काले-काले जामुन

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** खट्टे मीठे काले जामुन, बच्चे बूढ़े सबको भाये जामुन, काले काले गोल मटोल, फायदे करते है भरपूर। ब्लड प्रेशर को कंट्रोल है करते, मोटापे को दूर है करते हैं, चेहरे को चमकाये जामुन, फाइबर से भरपूर हैं जामुन। कोई खट्टे कोई मीठे, खाते ही दाँत कटकटाये जामुन। खाते ही देखो आँख मिचते, आँख मारते हम हे जामुन। भला लगे चाहे बुरा लगे, बस जामुन तो बस होते है जामुन। देखो खट्टे खट्टे जामुन। मीठे जामुन गुटली कड़वी, चूस चुस कर खाते जामुन। मौसम का एक पल है जामुन, स्वास्थवर्धक होते हे जामुन। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय श...
गांव का पेड़
कविता

गांव का पेड़

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** रह गया गांव का पेड़ वहीं उसी जगह गांव में, बस, ट्रक, ट्रेन, नाव व जहाज की सफर कर फल पहुंच गए शहर गगनचुंबी कंक्रीटों के छांव में, गांव के पेड़ आज भी कर रहे अपने वादे पूरे, नहीं तोड़ा भरोसा, नहीं छोड़ रहे अधूरे, तोड़ रहा फल बच्चा, बुजुर्ग, किसान, मजदूर और पल-पल रखवाली करती महिलाएं, डंटे रह दूर करती वृक्ष की बलाएं, जो सिर्फ अकेले नहीं खाते कोई फल, मिलकर खा रहे आज व कल, जो लेकर चंद कागज के टुकड़े शहर वालों के जायका व तिजारत के लिए, जो महसूस नहीं कर पाते थोड़ा सा अपनत्व और लगाव, फिर पका डालते है रातों रात रासायनिक क्रिया या हत्या कर उस फल की, फिर इंतजार करते हैं तिजारती कल की, चिंता करते हुए खुद की, बीबी बच्चों व आलीशान महल की, जी हां पेंड़ कभी नहीं जाते शहर और भेज देते हैं अपने जि...
फुहारों के बीच
कविता

फुहारों के बीच

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रिमझिम, रिमझिम फुहारों के बीच मदमाती, इठलाती बयार बह रही हरीतिमा धरा को सहलाती नजर आती। पाखी पौधों, पौधों पर मंडराती। उमड़ते-घुमड़ते कजरारे बादलों के बीच विद्युलता चमक, चमक अंधकार मिटातीं मानो वह चमक कर धरा की हरीतिमा निहारतीं पितृ, पृण पर पड़ी बूंदें धरा का अभिषेक करती। नदियां कलकल कर बहती तट बन्धन तोड़ उछल जाती आगे सागर में संगम की आतुरता नदी पर्वत चढ़ झरना बन बहती। चट्टानों से आहत होकर भी किसी रमणी के चरण धोती कहीं धरा की क्षुधा बुझाकर बीजाकुरण कर फसलें लहलहाती। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक सं...
वृद्ध हो रहा हूं …
कविता

वृद्ध हो रहा हूं …

रोहताश वर्मा "मुसाफिर" हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** टूट रही है शाखें, झड़ रही है पत्तियां, धीरे धीरे; चेहरे पर उभरती झुर्रियां, आपस में लड़ रही है... होता शिथिल तन, पुनः बालक सा अब, समृद्ध हो रहा हूं। कांपने लगे हैं हाथ-पैर... हां! मैं वृद्ध हो रहा हूं।। कंघी केश बिखरने लगे हैं सफेद होना है नियम, धंसने लगी है आंखें भीतर, जड़ें मजबूती है छोड़ रही... उकेरे है जो साल मैंने जीवन की स्लेट पर, उनसे आज प्रसिद्ध हो रहा हूं। धीमी हुई चाल मेरी... हां! मैं वृद्ध हो रहा हूं।। धूंधला होने लगा है सवेरा, स्मृति अभी बदली नहीं, सावन सा योवन बीत रहा, आता जो बसंत की तरह... पल पल, लम्हा लम्हा बीते सूख रहा तना हरा, ठंडा मौसम सा घिरता... माह वो सर्द हो रहा हूं। झुकने लगी है भौंहें मेरी... हां! मैं वृद्ध हो रहा हूं।। परिचय :- रोहताश वर्मा "मुसाफिर" निवासी : गां...
राहु
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राहु

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** राहु हूँ नई राह दिखता हूँ। पथ पर अग्रसर कर अपार सफलता दिलवाता हूँ। कर्म बुरे करते तो रोग, शत्रुता और ऋण बढ़ाता हूँ। शुभ कर्मो पर धनार्जन के नये मौके दिखलाता हूँ। शुक्र, शनि, बुध मित्रों संग मिलकर राज पाठ का अधिकारी भी बनाता हूं। १८ साल की महादशा में सब के रंग दिखलाता हूँ। तभी तो अपने रंग में रंगा रह कर कैपुट कहलाता हूँ। जापता जो नाम मेरा महादशा में उसके बिगड़े हर काम बनाता हूँ। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हि...
चाँद
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चाँद

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** चौखट की ओट से जब तुम्हारी निगाहे निहारती लगता सांझ को इंतजार हो रोशनी का राह पर गुजरते अहसास दे जाते तुम्हारी आँखों मे एक अजीब सी प्रेम की चमक पूनम का चाँद देता तुम्हारे चेहरे पर चांद सी रोशनी तुम्हें देख लगता चांदनी भरा जीवन। चांद देखोगी तो मेरी याद आएगी जो जीवन और प्रेम का अदभुत समन्वय बन चांदनी की रोशनी में कर देगा तुम्हें मदहोश। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय ...
परिवर्तन का आगाज
कविता

परिवर्तन का आगाज

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** आओ सौपे तन-मन-धन और जीवन को नव प्रयत्न, नव सृजन और परिवर्तन को परिवर्तन ऐसा कि जिसमें असर हो प्रखर हो, परिवर्तन ऐसा कि जो यकिनन परिवर्तन हो परिवर्तन का आगाज हुआ वह हमसे दूर नहीं पर हमारे पास हुआ बालोद आयोजित समाजिक कार्यक्रम सफलता पूर्वक आगाज हुआ जहां विशाल जनसंख्या लिए सामाजिक बंधुओं का आगमन व जनहित सुकृत काज हुआ परिवर्तन जिसका आगाज़ हुआ जिस भांति विकट परिस्थितियों में भी राम दूत बनकर घर-घर जाकर समाजिक संगठन की महत्ता का संचार किया धीरे-धीरे लोगों में जागरूकता आई समाज को जागृत कर नई कीर्तिमान स्थापित करने का सर्वजन में आशा कि नई किरण छाई और फिर सबने मिलकर विचार किया समाज में क्रांति लाए कैसे ? संगठित समाज की महत्ता सब को बताए कैसे फिर मंनथन से निर्णय निकला जहां-तहां समाजिक बन्धु का निवास है ...
छाई हरियाली (सिहरी)
कविता

छाई हरियाली (सिहरी)

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** १ छाई हरियाली गाती गीत कोयल काली बरसे बदरा !! २ घिरी घटा लगती मोहक निर्झरिणी छटा उत्ताल तरंग !! ३ बहते निर्झर कली-कली मंडराए मधुकर महके प्रसून !! ४ रिमझिम-रिमझिम रही बरस बरखा रानी पानी-पानी !! ५ प्रकृति हरसाई दुल्हन बन धरा मुस्काई पल्लवित कानन !!! परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हम...
किसी का बसेरा होगा
कविता

किसी का बसेरा होगा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चहकने दो मुझे आंगन में झुलती बेलो के साथ बहने दो मुझे निर्बाध गति के साथ मत बांधो हमें बन्धनों में घेर कर चहकने दो दौड़ने दो आंगन सजेंगे कल, कल करता जल पृथ्वी को सिंचता हरित करेगा श्यामल थरा को हरियाली नाचेगी टेसू फुलेगे रवितामृ वर्ण में बिखरेंगे बसन्त बयार में फूलों से आंगन सजेंगे काटो मत शाखाओं को कहीं पन्छी का ठौर होगा कपिल, किल का कलरव होगा चुग्गा चुगने मुंह खुलता होगा चहक कर चिड़िया गाती होगी कोयल कूक सुनाती होगी काटो मत उसे वह किसी का बसेरा होगा। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जु...
भूतकाल का भूत
कविता

भूतकाल का भूत

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** भूतकाल के भूतों ने हमको बहुत सताया है, डरने के कारण अपने हिस्से ठेंगा आया है, आभासी कच्चे चिट्ठों पर आज भी करते भरोसा है, टूटता रहता यकीं अपना मिलता केवल धोखा है, किसी के लिए धंधा ये सब पर हमने बहुत गंवाया है, डर डर सब लुटाया हमने कोई थैली भर भर पाया है, भूतकाल के भूतों का शौक देखो मचल गया, देखने का भाव अब ऊंची नीची जाति में बदल गया, तब के समय के सारे नियम अब भी देखो लागू है, अश्पृश्यता, हिंसा, लिंचिंग करके ये बन जाते साधु है, अब भी मन में मैल भरा जिसे नहीं ये धोते हैं, आगे निकल गया दमित तो खून के आंसू रोते हैं, सदनीयत से जब भी कोई संविधान लागू कराएगा, भूतकाल का भूत फिर तो सरपट भागा जाएगा। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमा...
ननद बहन
कविता

ननद बहन

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** ननद को जीवन में क्या हम समझे? बहन समझे या ननद हम समझे, मायके का एक अंश ननद है। थोड़ा सा अधिकार ननद है, प्रेम भाव का राज ननद है, मेल मिलाप की जगह ननद है। प्यार की एक जगह ननद है। सहेली और बहन का संबंध ननद है भाई का तो प्यार ननद है। मानसिक दुख का इलाज ननद है, भाई की शक्ति तो ननद है, नहीं किसी से लेना देना बस बिगड़े काम बन जाए ननद है। "दीप से दीप जलाती ननद है, एक पंक्तिबद्ध का भाव ननद है" पीहर में खुशहाली ननद है, हल्ला गुल्ला शोर शराबा, देखो एक माहौल ननद है। काम सुधारे काम बनाये, भाई की उलझन का हल है । पिता के दिल का भाव ननद है माता का तो प्यार ननद है, पीहर की ढाका छाबी ननद है। भाई का तो भाव ननद है। मान अपमान का घुट ननद है। पीहर की तो लाज ननद है, अमीरी गरीबी का मान ननद है। सह लेती सब भार ननद है...
मेरा भी एक गांव है
कविता

मेरा भी एक गांव है

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** हार न होय मेहनत की हार होय ईमानदार सत्य की। गांव के चमकीले साथी उठाकर उत्संग में झूठ को फिरे। जय उसी की जय बोले जो विश्वास माने मिथ्या को। निंदिया बनी हरामी ग्रामीणों पर संकट बनी भविष्य पर। जाग्रत जीवनी उसकी लिखी सत्य पर निर्भर ज्ञान सिखी। दोषारोपण में बीज बोय झूठ का साथ चमकीले साथी उकसाने का। सचेत और ईमानदारी की ना जड़ें फिर भी हम गांव में हैं खड़े। यह कैसी पंक्ति है श्रेणी की यह हमारी संगति है श्रेणी की। ना सचेत ना जागरूक इसीलिए तो अंधकार है। जहां प्रकाश नहीं वहां उजाला कैसा मेरा भी एक गांव है यहां उजाला कैसा। गांव के चमकीले साथी उठाकर उत्संग में झूठ को फिरे। कहीं दाल पुरी तो कहीं खीर पुरी यह सब जगह होती है जरूरी। छोटा-सा क्षेत्र गांव का बड़े रास्ते कानाफूसी के। परिचय :- मानाराम राठौड़ निवासी : आखराड...
हरे भरे खेत
कविता

हरे भरे खेत

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** जब हो हरे भरे खेत तो किसान को तस्सली मिलती है। उसकी की गयी मेहनत फली भूत दिखती है। ****** हरे भरे खेत देखकर किसान खुश हो जाता हैं। और सपनों की दुनियां में खो जाता हैं। ******* हरे भरे खेत किसान की मेहनत का परिणाम है। अपनी जीविका को देता अंजाम है। ****** हरियाली आंखो को भाती हैं। प्रकृति में चारों ओर खुशी छा जाती है। ******* अगर खेत हरे भरे रहेंगे तो देश में खुशहाली आयेगी। और अन्नदाता किसान की जिंदगी बदल जायेगी। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा ...
आपको इश्क हो गया है …
कविता

आपको इश्क हो गया है …

रागिनी सिंह परिहार रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** जब किसी के पास अच्छा लगने लगे जब किसी का साथ अच्छा लगने लगे जब किसी की बाते अच्छी लगने लगे तो समझ लेना आपको इश्क हो गया। जब किसी की खामोशी खलने लगे जब किसी के अल्फाज सताने लगे जब नजर की नजर से बात होने लगे तो समझ लेना आपको इश्क हो गया। जब किसी के आने से फर्क पड़ने लगे जब किसी के जाने से डर लगने लगे जब किसी के ठहरने का इंतजार होने लगे तो समझ लेना आपको इश्क हो गया। जब किसी के पास आने से हलचल होने लगे जब किसी के छूने से जज्बात मचलने लगे जब किसी के होंठों से शबाब झलकने लगे तो समझ लेना आपको इश्क हो गया। जब किसी की बातें हंसाने लगे जब किसी की यादें रुलाने लगे जब किसी का ख्वाब आने लगे तो समझ लेना आपकों इश्क हो गया। जब अपने पराए लगने लगे जब पराए अपने लगने लगे जब मां-बाप की बातें चुभने लगे तो समझ ले...
उठो द्रोपदी अब अस्त्र उठाओ
कविता

उठो द्रोपदी अब अस्त्र उठाओ

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** उठो द्रोपदी अब अस्त्र उठाओ, कब तक जियोगी बनके बेचारी। क्यों लज्जित पग-पग स्वाभिमान, क्यों बढ़ाते नही चीर गिरधारी।। तुम स्वयं सृष्टि की हो सृजक, तुमसे ही कण-कण स्पंदित है। सीने में धधके ज्वालामुखी तेरे तुझसे ही नभ-भू आनन्दित है।। समझो न स्वंय को अब अबला, तुम तो पालक हो महाप्रलय की। तुम ही हो सुख-समृद्धि की दाता, तुम ही हो वर शाश्वत अभय की।। संभव नही मानव जीवन यह, बिन वामांगी के इस संसार में । करो नही मर्दन मान स्वंय का, छल-छदमी कामी व्यवहार में।। अब फिर न दुष्ट दुशासन कोई, केश खींचने का दुःसाहस करे। अब गली-गली दुर्योधन घूमते, सोच-समझकर ही व्यवहार करें।। अनुसुइया-सा तेरा जीवन पावन, फिर क्यों लगे तन पर लिवास भारी। तुम तो हो स्वंय प्रतिमूर्ति सौंदर्य की, तुमसे ही सुरभित यह धरा प...
कारे बदरा देख झूमे मनवा
कविता

कारे बदरा देख झूमे मनवा

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उमङ-घुमङ कर कारे बदरा छाए देखो-देखो कितना जल भर लाए रिमझिम-रिमझिम देख बरखा खिल-खिल जाए मुखड़ा सबका मतवाला मयूर घूम-घूम नाचता पीहू-पीहू पपीहा भी गाता दादुर टर्र-टर्र टर्राता किसना खेत देख हर्षाता मुनिया रानी नाव बना तैराती छप-छप कर मुन्ना छीटे उङाता गरमा-गरम भुट्टा सबको अति भाता पकोड़े की खुशबू जियरा ललचाता बचपन देखो होता कितना प्यारा मेंढक देख फुदकता मुन्ने का मनवा ताल-तलैया में पानी सुहावना अमुआ की डाल पर झूला मनभावना शीतल सोंधी-सोंधी माटी की खुशबू खुशहाली छा गई देखो-देखो हरसू कभी तितली सा मन रंगों से भरता कभी चिहू-चिहू चिड़ियों सा चहकता परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एव...
मैं बदल रहा हूं …
कविता

मैं बदल रहा हूं …

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे जाने या अंजाने में कोई गलतियां गर हुआ है उसका अफसोस है मैं उन गलतियों से बहुत कुछ सीख रहा हूं मैं हरदम परेशानी का कारण हुआ करता था अब ये गलतियां न हो पाये दोबारा इसका बेहतर विकल्प ढूंढ रहा हूं लाख आये राह में कांटे उन कांटों में भी सुंदर फूल ढूंढ रहा हूं जिम्मेदारी के बंधन में बंध जाऊ इस कदर कि मेरे अपने भी कभी न हो पाए तर-बतर मेरे उन सारी हरकतों को अब विराम कर रहा हूं दुनिया में इस प्रेम से बंधे रिश्ते का जो हमें दर्जा दिऐ हो मैं उसे बेहतर ढंग से निभा सकूं अब उसका मैं सूत्र ढूंढ रहा हूं मैं बदल रहा हूं ... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलि...
बदलते मौसम
कविता

बदलते मौसम

डॉ. कांता मीना जयपुर (राजस्थान) ******************** बदलते मौसम का हाल ही कुछ ऐसा है। सवाल हर बार नए से है। जवाबों का हाल ही कुछ ऐसा है। नन्ही चिरैया की चोच से गिर पड़ा है, तिनका फिर से, घरौंदे बनाने का भार ही कुछ ऐसा है। शाम को ढल जाने की फुर्सत ही कहां है। राहगीर को घर जाने की जल्दी है। घर का ख्याल ही कुछ ऐसा है। आप ही आप छाए हो ज़हन में, आपका किरदार ही कुछ ऐसा है। कागज की कश्तियां बना रहा है। अल्हड़मन फिर से, पानी का बहाव ही भी कुछ ऐसा है। दस्तूर नए से हैं, इस शहर के। हर एक मोड़ का सूरत-ए-हाल ही कुछ ऐसा है। बदलते मौसम का हाल कुछ ऐसा है। सवाल हर बार नए से हैं। जवाबों का हाल ही कुछ ऐसा है। परिचय :- डॉ. कांता मीना (शिक्षाविद् एवं साहित्यकार) निवासी : जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी ...
खामोशी सब कुछ कहती है
कविता

खामोशी सब कुछ कहती है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** बिन बोले मन की सब बातें, खामोशी कह देती। लंबे वक्त रहे खामोशी, प्राण हरण कर लेती। गलत बात को मन में रखकर, स्वतः मौन हो जाना। धीरे-धीरे खामोशी में, बिना वजह खो जाना। कभी जिंदगी में खामोशी, अजब रंग भरती है। पास बुलाती कभी किसी को, कभी दूर करती है। खामोशी के पल जीवन में, कभी रंग लाते हैं। कभी-कभी खामोशी के क्षण, सहे नहीं जाते हैं। समझदार खामोशी लख कर, सावधान हो जाते। क्यों ओढ़ी खामोशी उसका, कारण पता लगाते? मन विरुद्ध जब कुछ भी होता, रोक नहीं हम पाते। खामोशी छा जाती मन पर, शब्दहीन हो जाते। खामोशी सब कुछ कह देती, जो सुविज्ञ वह जाने। बिना कहे जो बात समझ ले, गुणी उसी को माने। बहुत बोलती है खामोशी, जाने क्या-क्या कहती? खामोशी भी अपने भीतर, दर्द छुपाये रहती। परिचय :- अंज...
विमाता (कैकेयी)
कविता

विमाता (कैकेयी)

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** विधाता के संदेश को जानती थीं नियति थी ये भी ज्ञात था ! अवांछनीय कर दी जायेंगी ममता की परिभाषा से विमुख कर दी जाएंगी! मातृत्व प्रेम से नहीं अपितु कुमाता रूप मे जानी जाएंगी! उन्हें दुत्कारा जाएगा तमाम दोषारोपण लगाए जाएंगे, राज काज से बेदखल कर दी जायेंगी! आत्मविश्वास की धनी, कर्तव्य पर अडिग, ममता की मूरत थीं, कुशल योद्धा, उत्कृष्ट राजनीतिज्ञ थीं!! दो वाचनों का वरदान ले जिद पर अडी, राम को मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम बना गईं!! नारायण के पुनीत कार्य का आरम्भ बनीं, युगपत में व्याप्त घोर असंतोष का अंत कर रामराज्य लाने का स्त्रोत बनीं! राम के वनवास का कारक बनीं सम्पूर्ण जगत को राम नाम का बीज मंत्र दे गईं! अधर्म पर धर्म की विजय हो स्वयं का जीवन प्राण विहीन बना गईं!! कितने क...
पत्थर हुआ इंसान
कविता

पत्थर हुआ इंसान

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** आजकल इंसान नही रहा इंसान । हो गया है पत्थर समान। ******* प्रत्येक इंसान अपनी दुनियां में खो गया है। इसलिये शायद भावना शून्य हो गया है। ****** समाज में होनी वाली घटना का उस पर कोई असर नहीं होता है। वह तो केवल अपनी मस्ती में मस्त होता है। ****** चाहे हो जाय हत्या चाहे हो जाय बलात्कार उसके कानों पर जूं नही रेंगती। उसको तो केवल अपनी पड़ी रहती हैं। ******* दया,करुणा और सहनुभूति आजकल इंसानों में नहीं मिलती इसलिये दुनियां में अब खुशहाली नही दिखती। ****** अब इंसानियत खो चुका है इंसान। इसलिये पत्थर दिल हुआ है इंसान। ******* परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
जमीर
कविता

जमीर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मानव सभी प्राणियों में श्रेष्ठ माना गया है, पर उनका वो हिस्सा जहां दया होता है, जहां करुणा पाया जाता है, जो अच्छे बुरे का अनुभव करता है, जहां नैतिकता को धरता है, लाख मुसीबतें आने पर नहीं बिखरता है, जहां प्राणी मात्र के लिए प्यार होता है, सोच समझ कर आपा नहीं खोता है, जहां से सहयोग की भावनाएं निकलती है, जब मर जाती है, तब जाति, धर्म, सम्प्रदाय, ऊंच नीच की भावना, सिर्फ पाने की कामना, दूसरों से उच्च होने का घमंड, नफरत लिए हुए प्रचंड, चिकनी चुपड़ी बातों से छलने की काया, लाखों वसूल कर बताए सब कुछ है मोहमाया, तब समझिये उसे जिंदा लाश, अंदर से हो चुका है बदहवाश, कितनों भी हो वो अमीर, निश्चित ही मर चुका है उनका जमीर ... परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोष...
सीढ़ी
कविता

सीढ़ी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** सीढ़ी पर चढ़कर ढूंढ़ता हूँ बादलों में छुपे चाँद को पकड़ना चाहता हूँ चंदा मामा को बचपन में दिलों दिमाग में समाया था। लोरियों, कहानियों में रचा बसा था माँ से पूछा की चंदा मामा अपने घर कब आएंगे ये तो बस तारों के संग ही रहते है ये स्कूल भी जाते या नहीं अमावस्या को इनके स्कूल की छुट्टी होगी। तभी तो ये दिखते नहीं माँ ने आज खीर बनाई इसलिए मामा को खाने पर बुलाने के लिए सीढ़ियों पर चढ़ कर देखा मामा का घर तो बहुत दूर है। इसलिए माँ सच कहती थी चंदा मामा दूर के पोहे पकाए ..... बड़ा हो के रॉकेट से चन्द्रमा पर जाऊंगा जैसे गए थे निल आर्मस्ट्रांग तब माँ के हाथो की बनी खीर का न्यौता अवश्य दूंगा। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी...
बेटियां
कविता

बेटियां

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** जमीं-ओ-आस्मां का प्यार हैं, बेटियां, चांद-ओ-सूरज का निखार हैं, बेटियां ! कण-कण में व्यापत सांसों का दिगंत, करती रहती सतत विस्तार हैं, बेटियां !! सुख-ओ-दुःख की साथी हैं, बेटियां, योग-ओ-वियोग भी पाती हैं, बेटियां ! जन्म से मृत्योपरान्त हैं अनेक रूप, भार्या-बहिन ओ माँ कहाती हैं, बेटियां !! अपने-ओ-पराये की प्रिय हैं, बेटियां घर-आंगन की लाज व दिये हैं, बेटियां ! जाती जब लांघकर एक देहरी से दूजी बाबुल की दुआओं को जिए हैं, बेटियां !! सीता-ओ-राधा-सी निर्मल हैं, बेटियां, अनुसूइया, सावित्री-सी प्रबल हैं, बेटियां ! कूद पड़े रणभूमि में, बनके दुर्गा-काली, मीरा, संवरी-सी उज्जवल हैं, बेटियां !! युगों-युगों से सृष्टि का श्रृंगार हैं, बेटियां, धरती की हर हलचल-झंकार हैं, बेटियां ! मिट जाएगा भूमंडल, ब...