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कविता

श्वास की निर्मल छाया
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श्वास की निर्मल छाया

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** नित्य करो तुम योग, निरोगी नियमित काया। तन-मन दोनों स्वस्थ, श्वास की निर्मल छाया।। प्रात: प्राणायाम, भ्रामरी शीतल बोधक। नित अनुलोम विलोम, कहाए नाड़ी शोधक।। योगासन शुभ लाभ, विश्व में ख्याति जमाए। भोर काल में योग, रक्त संचरण बढ़ाए।। नियमित कपालभाति, शांति तन-मन में भरता। मुख आभामय ओज, पाच्य उत्तेजन करता।। आसन योग अनेंक, भिन्न मुद्रा से निर्मित। न्यून करे तन भार, वसा को करे नियंत्रित।। चिंता तनाव नष्ट, क्रोध छू-मंतर करता। काया ऊर्जावान, बढ़े प्रतिरोधक क्षमता।। योग लाभ अतिरेक, रखे मानव अनुशासन। प्रात: संध्याकाल, नियम से हो सब आसन।। योगासन पश्चात, स्नान मत तुरंत करना। सर्दी खाँसी शीत, जकड़ लेती है वरना।। परिचय :- रेखा कापसे "होशंगाबादी" निवासी - होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
इंद्रधनुष की छटा निराली
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इंद्रधनुष की छटा निराली

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** आया है बरसा का मौसम, हरियाली छाई है। प्रकृति मनोहर लगती प्यारी, सबके मन भाई है। धूप निकलती, वर्षा होती, इंद्रधनुष तब बनता। सूर्य रश्मियाँ जब बिखेरता, तब प्रकाश है छनता। शुरू बैगनी रँग से होकर, लाल रंग तक जाता। शेष बचे हिस्से में देखो, रँग प्रत्येक समाता। सातों रँग आपस में मिलकर, प्यारा धनुष बनाते। बालक, युवा, वृद्धजन इसको, देख देख हर्षाते। इंद्रधनुष की छटा निराली, सब को मोहित करती। सतरंगी यह दृश्य मनोहर, अनुपम छटा उभरती। यह अनुपम उपहार प्रकृति का, मानव बना न पाया। बारिश के मौसम में अद्भुत, एक नजारा छाया। कभी-कभी घर के पिछवाड़े, इंद्रधनुष बन जाता। लगता वह नयनाभिराम है, रंग बिरंगा छाता। जब भी बनता आसमान में, लगता बड़ा सुहाना। बच्चे गा-गा कर कहते हैं, मेरे घर आ जाना। परिचय...
एक बार फ़िर से पापा के लिए
कविता

एक बार फ़िर से पापा के लिए

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक बार फ़िर से पापा के लिए नन्हीं गुड़िया बन जाऊँ चाह मुझे फ़िर एक बार बन जाऊँ सात साल की वह नन्हीं गुड़िया घर आँगन में खूब फिरू नाचती पैरों में पायल रुनझुन छनकाऊँ छोटा लाल बस्ता बगल दबाए सखियों संग पढने को जाऊँ सुनाऊँ पहाड़े मटक मटक कर बाल गीत भी सारे मैं गुनगुनाऊँ सावन में झूला पीपल पर डालूँ संजा गीत मौज में गाकर सुनाऊँ राखी भैया के हाथ में बाँधूँ मैं गुलाबी चूनर ओढ़कर इतराऊँ मैं मम्मा जैसी मीठी लोरी गाकर छोटे भैया को प्यार से सुलाऊँ मैं पापा थके जब आते ऑफिस से कड़क गरम चाय पिलाऊँ मैं गुड्डा गुड्डी खेलते सीख ही जाऊँ गोल गोल रोटी बनाना माँ जैसी घर बाहर के सारे काम मैं करके राजा बेटी बनकर तारीफ़ पाऊँ कुश्ती कराटे लड़कों वाले मैं सीखूँ बाइक पापा की भी चला पाऊँ मैं माँ जब भी चिंता में हो गमगीन भैया को ...
पिता
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पिता

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** पिता पालक है, जनक है पुत्र का सहारा है, सर्जक है। पिता निर्माणक है, साधक है पुत्र के लिए मार्गदर्शक है। पिता पथ है, आधारशिला है पुत्र के लिए, कवच किला है। इसका साया जिसे मिला है वही फूल की तरह खिला है। पिता तरु है, शीतल छाँव है पुत्र का नही कोई अभाव है। पिता मन की भाषा भाव है पुत्र पिता का आविर्भाव है। पिता पुत्र के लिए पतवार है पिता पुत्र का, पालनहार है। पिता पुत्र का सर्जनहार है पिता पुत्र का घर संसार है। पिता ही तो भाग्यविधाता है पिता पुत्र का अटूट नाता है। पिता घर को स्वर्ग बनाता है पिता पूत को सपूत बनाता है। पिता मंजिल को दिखाता है पिता ही चलना सिखाता है। पिता अपना धर्म निभाता है पिता पुत्र को कर्मठ बनाता है। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्य...
मेरे प्यारे पापा
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मेरे प्यारे पापा

डॉ. अर्चना मिश्रा दिल्ली ******************** एक अनंत अंतहीन यात्रा पर निकले छोड़ गए पूरा संसार। माँ की आँखे हे अश्रूपूरित, भैया करें गुहार। पापा तुम बिन पग कैसे रखूँ, जीवन नैय्या बहुत कठिन। स्मृतियों में हे चित्र अंकित, पर वास्तविकता में कहीं नहीं। पग-पग जिसने होसला बढ़ाया, दी हरदम ही सींख। आँखे मेरी हरदम भीगी, करती रहती एक ही मनुहार। जो होते तुम पापा, यूँ ना बिखरता माँ का संसार। कदम कदम मुझको ज़रूरत अब कौन करायेगा नैय्या पार। जीवन की राह बहुत कठिन इन संघर्षों में कौन थामेगा मेरा हाथ। करती रहती थी शैतानी, बात कभी भी ना मानी। अब बहुत याद आते हो पापा, अब किसको बोलूँ में पापा, लौट के आ जाओ ना पापा। पापा तुम हो गए छोड़ के अपना संसार, जीवन जैसे थम ही गया है, नहीं होता अब रक्त संचार। मन बहुत व्यथित है, करुणा करता बारमबार। पापा ही तो सब कुछ थे, पापा ही थे ...
काव्यमय सार
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काव्यमय सार

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मर्दों में मर्दानी थी वो झांसी वाली रानी थी नाम मणिकर्णिका था मनु बेटी वो कहलाती थी भाले कटार खिलौने थे संग नाना के वो खेली थी सबकी ही लाडली थी वो झाँसी वाली रानी थी वीर मनु महलों में आई लक्ष्मी गंगाधर राव बनी विधान विधि का था कैसा सूनी रानी की मांग हुई वो ना थी अबला नारी वो झाँसी वाली रानी थी ऐसे में फिरंगी आ पहुँचे डलहौज़ी वॉकर व स्मिथ व्यापारी बन पासे फ़ेंके भारत में धाक जमा बैठे हड़प नीति भी काम न आई वो झाँसी वाली रानी थी रानी नाना व साथियों ने बिगुल युद्ध का था बजाया छक्के छूटे फिरंगियों के रणभूमि में दम दिखलाया रणचंडी का रूप धारती वो झाँसी वाली रानी थी काना मंदरा सखियाँ लेकर दोनों हाथों तलवारें चली स्वामिभक्त घायल घोड़े ने रानी को अलविदा कहा घावों की परवाह किसे थी वो झाँसी वाली रानी थी...
अग्निपथ
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अग्निपथ

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** अग्नि का तांडव मचा है, जंग का ये हाल क्यों है। देश के अंदर बिछा, आतंक जैसा जाल क्यों है।। देश के रक्षक बनेंगे, स्वप्न हैं दिल में संजोए। फिर क्यों ऐसी अग्नि भड़की, क्यों ये नफरत बीज बोए।। अग्निपथ के मार्ग में, बाधक बनें ये बाल क्यों हैं। अग्नि का तांडव मचा है, जंग का ये हाल क्यों है। देश के अंदर बिछा, आतंक जैसा जाल क्यों है।। रो रही माॅ भारती अब, कह रही ऑचल पसारे। मेरी रक्षा कब करोगे, जब हो तू खुद से हीं हारे।। अपने हीं लोगों पर चल, तलवार होता लाल क्यों है। अग्नि का तांडव मचा है, जंग का ये हाल क्यों है। देश के अंदर बिछा, आतंक जैसा जाल क्यों है।। रो पड़ी है कलम मेरी, लिखते हुए इस वेदना को। क्यों सुलाए हैं ये मेरे, वीर अपनी चेतना को।। आनन्द तेरे देश में, ये आ रहा भूचाल क्यों है। अग्नि का तांड...
पिता ही भगवान हैं
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पिता ही भगवान हैं

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** वो बच्चे बहुत ही खुशनसीब हैं। जिनके सर पर पिता का साया है। वो बच्चे बहुत सौभाग्यशाली हैं। जिसने पिता के प्यार को पाया है। पिता हैं तो बच्चे को कोई गम नही। पिता हैं तो पुत्र नवाब से कम नही। पिता खुशियों से ही भरा सागर हैं। पिता आशीषों का महासागर हैं। पिता पुत्र के लिए ही अभिमान हैं। पिता पुत्र के लिए स्वाभिमान हैं। पिता पुत्र के लिए ही भगवान हैं। पिता पुत्र के लिए बड़ा वरदान हैं। पिता में पुत्र के लिए, अपनापन है। पिता बिना, पुत्र का जीवन सूनापन है। पिता बिना, पुत्र का सुना बचपन है। पिता पुत्र का प्रेरक, मार्गदर्शक है। पिता से ही पुत्र का जीवन सार्थक है। पिता ही सब कुछ हैं, अभिभावक है। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्र...
जीवन का यह गीत निराला
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जीवन का यह गीत निराला

दिति सिंह कुशवाहा मैहर जिला सतना (मध्य प्रदेश) ******************** क्या खोया क्या पाया ! जीवन यह अमूल्य पाया कभी छाँव है कभी धूप जीवन पथ पर परिवर्तन आया। कभी पवन चलती है सर-सर कभी मंद हिलकोरों के संग-संग घन की उन घनघोर घटाओं के तट चम -चम बिजली चमक रही नभ पर पवन तरंगनी उन्मादों के स्वर से जीवन का यह गीत निराला।। पवन वेग आवेगों से अवनि पर लाती है घन से किसानों की अब सफल साधना लहराती अमृत की बरखा वसुधा नवल -धवल यह मिट्टी कूप सरोवर बावली जल परिपूरित हरित खेत खलिहानों का जीवन का यह गीत निराला।। परिचय : दिति सिंह कुशवाहा जन्मतिथि : ०१/०७/१९८७ शिक्षा : एम.ए. हिंदी साहित्य पिता : रामविशाल कुशवाहा पति : सत्य प्रकाश कुशवाहा निवासी : मैहर जिला सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
झूठी यारी
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झूठी यारी

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मोहब्बत न सही नफरत ही किया करो, खुशी न सही गम ही दिया करो, दिल से न सही दिमाग से ही सोच लिया करो, अपनापन न सही परायपन ही दिखा दिया करो, मुस्कान न सही गम के आंसू ही दे दिया करो, बातचीत न सही खामोशी का आलम ही मेरे नाम कर दिया करो परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहा...
हमसफर
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हमसफर

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** मैं अपने हिसाब से गजल लिख रहां हूॅ॑, तुम्हे देख कर एक कवल लिख रहां हूॅ॑ । सलामत रहें तेरी मांथे की बिंदी, सलामत रहें तेरी हाथों की मेहदी । सलामत रहें तेरी प्यारी सी मुस्कान, सलामत रहें तेरी दिल की धड़कन ।। तुम्हारी यादों का हर पल लिख रहां हूॅ॑, मैं अपने हिसाब से गजल लिख रहां हूॅ॑ । सलामत रहें तेरी काजल की लकीर, सलामत रहें तेरी खुबसुरत स तस्वीर । सलामत रहें तेरी होठों की लाली, सलामत रहें तेरी कानों की बाली ।। फूलों में कमल लिख रहां हूॅ॑, मै अपने हिसाब से गजल लिख रहां हूॅ॑ । सलामत रहें तुम्हारी तकदीर, बरसे धरती पे जैसें अम्बर से नीर । सलामत रहें तुम्हारी हर मंजिल, बस यही दुआं देता है मेरा दिल ।। सुबह-शाम का पल-पल लिख रहां हूॅ॑, मैं अपने हिसाब से गजल लिख रहां हूॅ॑ । सलामत रहें तेरी हर सुबह-...
आईना
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आईना

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जिंदगी की हकीकत दिखाती हैं आईना। पल-पल बदलती जीवन सिखलाती आईना।। आईना के प्रतिबिम्ब से बदलती हैं जिंदगी। आईना सा पाक,निष्पक्ष हो हमारी जिंदगीII हकीकत से वास्ता कराती है आईना- २ जिंदगी की.......................आईना II१II आईना वही रहता है, चेहरे बदलते है I समय की हर जख्म दिखाती है आईना II कभी हंसाती, तो कभी रुलाती है आईना- २ जिंदगी की.......................आईना।।२।। हकीकत का अक्स दिखती है आईना । बदलते परिवेश मे बदलना सीखाती है आईना।। ये सच है, झूठ नही बोलता आईना- २ जिंदगी की ...................आईना ।।३।। मानव को मानवता का बोध कराती है आईना। कर्तव्य परायणता का बोध कराती है आईना।। मानव मे देवत्व जागाती है आईना- २ जिंदगी की ................आईना ।।४।। परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मा...
शीतल किया
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शीतल किया

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** देखो बदल छा रहे बरसने के लिए। बदल गरजने लगे सतर्क करने ले लिए। मेघ मलारह गाने लगे अब वर्षा के लिए। भूमि जो प्यासी है पानी के लिए।। आस लगाये पानी की बैठे नदी तलाब और जमीन। कब होगी अब वर्षा बतला दो इंद्रदेव तुम। जैसे ही गिरती है बूंदे पानी की। सेन्धी सेन्धी खूशबू आने लगती है।। चारों तरफ छाने लगी हरियाली और ठंडक। पेड़ पौधे फूल पत्तीयां सब खिल उठे। गाँव शहर का भी माहौल बदल गया। अमल कमल से चेहरे सब के खिल उठे।। एक पानी की बूंद से क्या क्या देखो बदला। बिन पानी के जैसे कितने वो शून्य थे। पानी की बूंदों ने कितनो का जीवन बदला। गर्मी से देखो सबको शीतल शीतल कर दिया।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी मे...
धरती का बढ़ता तापमान
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धरती का बढ़ता तापमान

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राजस्थान) ******************** तवे सी जलती है धरती बढ़ रहा तापमान है। इंसान ने मतलबपरस्ती में काटे वृक्ष अनेक हैं।। भूमंडलीकरण के कारण पृथ्वी गर्म हो रही है। ग्लेशियर पिघल रहे व चट्टाने खिसक रही है।। हरियाली धरती की खत्म होती जा रही दोस्तों। वन संपदा जल सम्पदा सारी खत्म हो रही है।। जंगली जीव जंतु अब गिनती के ही दिखते हैं। पक्षियों की प्रजातियां लुप्त होती जा रही है।। खग कलरव अब सुनाई नही देता आसपास। बागों में कोयल व चिड़ियों की चहचहाहट।। मोर का नृत्य करना दादुर के बोलने के स्वर। अब कहीं कहीं सुनाई देता है बाग बगीचो में।। धरती के बढ़ते तापमान का कारण औधोगिकरण। बढ़ते वाहन प्रदूषण पेड़ों का लगातार कम होना।। हरियाली के स्थान पर बंजर भूमि के ऊसर मैदान। सूखे दरख्तों की संख्या बढ़ते जाना वर्षा कम होना।। वातावरण में जहरीली गैसों क...
संत कबीर
कविता

संत कबीर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सधुक्खड़ी़ थी भाषा उनकी, थी उनकी कविता गंभीर। महा सुधारक थे आजीवन, कहलाए वे संत कबीर। हुआ अवतरण जब काशी में, स्वप्न हुआ कोई साकार। सुखी हुआ उनका पालन कर, नीरू-नीमा का परिवार। हुई कुटी सुखप्रद दोनों की, दर्शन करने उमड़ी भीर। महा सुधारक थे आजीवन, कहलाए वे संत कबीर। वही लिखा जो देखा जग में, पढ़कर विस्मित है संसार। महामना की सोच-समझ का, जन-जन माने नित आभार। सबद-रमैनी में, साखी में, व्यक्त हुई है उनकी पीर। महा सुधारक थे आजीवन, कहलाए वे संत कबीर। परंपराओं को झकझोरा, आडंबर पर साधा वार। कहा "मनुज हैं एक जगत के, एक सभी का है करतार।" "लहू सभी का एक धरा पर, गोरे, काले, दीन, अमीर।" महा सुधारक थे आजीवन, कहलाए वे संत कबीर। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५...
वो मज़ा कहां ..
कविता

वो मज़ा कहां ..

साक्षी उपाध्याय इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** इस शहरी परिपाटी में उस माटी सा मज़ा कहांॽ गैस पर सिकी रोटियों में कंडो की बाटी सा मजा कहांॽ "कहां मजा है उन गांव के कच्चे कच्चे रास्तों का इन चौड़ी-चौड़ी सड़कों पर वो पगडंडी सा मज़ा कहां कहां मज़ा है यहां वो नारंगी कुल्फी खाने में, यहां गर्मियों में वैसा वो लस्सी की हांडी सा मज़ा कहां उन पेड़ों की धूप-छांव सा इन इमारतों में मज़ा कहां वहां के मंदिर-मस्जिद यहां इबादतो में मज़ा कहांॽ "कहां मजा है यहां वैसी शरारतें करने में यहां के लोगों में वैसी चुलबुली आदतों सा मज़ कहांॽ गाय के बछड़े केसर को चूमने सा मजा कहांॽ फ़सल निकलने के बाद काले खेतों में घूमने सा मज़ कहांॽ "कहां मजा है बहती नदी में यहां पैदल-पैदल चलने का, मस्त हवा में रोज़ रात को आंगन में घूमने का मज़ा कहांॽ इस शहरी परिपाटी में उस ...
चांदनी
कविता

चांदनी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** चौखट की ओट से जब तुम्हारी निगाहे निहारती लगता सांझ को इंतजार हो रोशनी का राह पर गुजरते अहसास दे जाते तुम्हारी आँखों मे एक अजीब सी चमक पूनम का चाँद देता तुम्हारे चेहरे पर चांदी सी रोशनी तुम्हें देख लगता चांदनी शायद इसी को तो कहते दरवाजे बंद हो तो लग जाता चंद्रग्रहण लोग कहाँ समझते चांदनी का महत्व करवा चौथ शरद पूर्णिमा तीज, ईद चाँदनी बिना अधूरे वैसे तुम भी हो रातों में चाँद की चाँदनी का खिलने का इंतजार फूल भी करते जैसे उपासक करते तुम्हारे चौखट पर खड़े रहने का इंतजार ही कुछ ऐसा जो चांदनी की रोशनी में कर देगा मदहोश। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न ...
समर्पण
कविता

समर्पण

डॉ. अर्चना मिश्रा दिल्ली ******************** थी कोमलांगी बन कर आइ प्रेम की अभिमूरत सींचा पूरे घर को बड़े प्रेम से मेने हृदयपटल पर वास तुम्हारा अब क्या मांगू रब से छूटा मायका, छूटे सपने तेरे साथ चले जब छोड़ कर हम अपने पग पग प्रीत निभाऊँ में प्रेम की अविरल धार बहाऊँ में निस्वार्थ भाव से साथ निभाऊ करूँ ना कामना कुछ भी संग में तेरे खुश हो जाऊँ संग में तेरे दुःख मनाऊँ भूल गई अपने को में तो जबसे तेरे रंग में रंगी पिया कदम कदम पर दी क़ुर्बानी बात तेरी हरदम मानी कितनो को नाराज़ किया साथ तेरा जब से किया निश्छल हे प्रेम मेरा आगे ही बढ़ती जाऊँगी प्रेम की अमृत वर्षा से घर अपना स्वर्ग बनाऊँगी पग-पग राह में तेरे पुष्प बिछाऊँ में काँटों से कँटीली भरे जहान में धंसती जाऊँ में भूल गई सपने अपने भूल गई खुद को ही में तुझको अपने में ही एकाकार किया प्रेम में बाती बन कर म...
भेड़िये
कविता

भेड़िये

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हवसी भेड़िये कहीं बाहर नहीं हमारे अंदर हमारे आस पास ही रहते है। कभी हमारे गंदे विचारों में, कभी हमारी गंदी निगाहों में। कभी हमारी गंदी सोच में ताकते रहता है वो ओरों की बहू बेटियों को। कभी-कभी अपनी सोच से लाचार होकर ये भेड़िये नोचते है अपनी ही बहू बेटियों को भी। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प...
नारी तू नारायणी
कविता

नारी तू नारायणी

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तूफा हो कितने जीवन मे सब सह लेती हो असहय वेदना सह नव सृजन कर देती हो जीवन भर सब पर केवल प्यार लुटाती हो बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो कैसे हो सफर? हर सफर हंस कर लेती हो नया अंदाज दे सफर आसान कर देती हो जीवन के पड़ाव सहजता से अपना लेती हो बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो नवसृजन के कर्ता और खुद ही साक्षी भी नवविधान तुमसे ही, तुम ही कामाक्षी भी जाने कितने रूप मे जग कल्याण कर देती हो बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो नारी तू नारायणी, तूझसे ही हर नार तू चम्पा, तू चमेली, तू ही है कचनार बागो को सुमन से सुवासित कर देती हो बदले मे कभी कुछ भीं तो नहीं लेती हो किन-२ रूपों मे पूजन करू समझ नहीं आता है तेरा हर रूप प्रकृति सा सबका भाग्य विधाता है हर रूप मे तूम तो, जीवन का वर देती हो बदले मे कभी कुछ भी...
भोला आतंकी
कविता

भोला आतंकी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** भोला दिखने वाला मानुष, दिल से सच्चा नहीं होता। सीधेपन की आड़ में देखा, खुलासा तक नहीं होता। वो दुनिया भर की नजरों में, गौ जैसा बन जाता है। रहस्य भरे तार खुल जाए, आतंकी कहलाता है। मासूमियत ओढ़े चेहरा, भीतर बहुत दरिंदा है रखे हैं आतंकी संबंध, जांच काज पेचीदा है तार जुड़े हुए विदेशों से, फड़कता भी परिंदा है सत्ता सुरक्षा ढिलाई पाकर, सिद्धू जान गंवाता है वो दुनिया भर की नजरों में, गौ जैसा बन जाता है रहस्य भरे तार खुल जाए, आतंकी कहलाता है। भोला दिखने वाला मानुष, दिल से सच्चा नहीं होता। सीधेपन की आड़ में देखा, खुलासा तक नही होता। छापों का भी डर नहीं तनिक, मनुज बनता है सत्कर्मी राजनीति के दांवपेंच में, बनता धूर्त हठधर्मी माफिया गैंग के राजदार, जो हत्यारे और कुकर्मी शासन कानूनों की जकड़न, चोला बाहर आता है वो दुन...
साहस
कविता

साहस

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** अब ठान लिया, साहस से उस पथ को चुनना है। जिस पथ को बागों ने फूलों से संवारा है। साहस ही मुझको, सपनों से होकर मंजिल तक ले जाएगी। साहस ही मुझे सूरज सा चमकायेगा।। अब चुनता हूं, उस पथ को, ऊंचे नीचे पहाड़ी रास्ते। टेढ़े-मेढ़े रास्ते,‌ पथरीली रास्ते। साहस से ही रास्ता बनाऊं। रास्ते भी नऐ हैं, नये अरमानों के बीच चौराहों को देखूं।। रास्ता अपना खोजूं साहस से ही नये, लक्ष्यों तक पहुंचूं।। अट्टहास करूं, जोर-जोर से शोर मचाऊं।। अपने निर्णय से लोहे को ही झुकाऊं। चमकीले पत्थरों से हमेशा दूर हो जाऊं। अब साहस से ही चलना है।। दिन-रात खपना है, लक्ष्य अब लंबा लगता नहीं। सपनों से ही हौसलों को बढ़ाऊं। मुश्किलें मुझे झुका ना सकीं।। सफलता की कोई तारीख तय नहीं। साहस ही तो मुझे, नई सोच, कार्य उत्कृष्टता से, सफलता की सीढ़ियां चढ़व...
कैसा जीवन बिना जल ?
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कैसा जीवन बिना जल ?

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** पीने लायक जल, कितना बचा है धरा पर? फ़िकर करे हर पल, अब इसी अहम मुद्दे पर! लोगों की चाल-ढाल, और बदले है सबके आसार बहा रहे हैं जल, मानो है जल निर्माण का आधार। आबादी ने किया बेहाल, बढ़ रही है बडी तेज रफ्तार प्रकृति का वरदान जल, बिक रहा है सरेआम बाजार। वसुन्धरा का दिया जल, बनाकर रख दिया है व्यापार मिल नहीं रहा जल, गरीब हो गए सब लाचार। उसका हो गया जल, जिसका बल है तेजतर्रार निर्बल को नहीं जल, दया की कोशिश है बरकरार। कैसा जीवन बिना जल? मानव करो प्रकृति का ऐतबार बचाते रहो जल, एक बूंद भी न जाए बेकार। भावी पीढ़ी का उज्ज्वल, चलो कर ले हम बेड़ा पार 'जलजला' बन गया जल, सुन लो माँ प्रकृति की गुहार।। परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग...
कभी खिलाफ थे…
कविता

कभी खिलाफ थे…

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** कभी खिलाफ थे, इश्क में जुदाई के हम ! आज दर्द जुदाई के, गुलाम हो गए हम..!! ना जी सकते है, न मर सकते है हम ! दर्द जुदाई का, बया न कर सकते है हम..!! देखे थे सपने बनाने को उन्हें हम-दम ! सपने तो आज भी है, पर टूट गए हम..!! साथ मिलकर पेड़ो में लिखे थे जो नाम ! वो नाम आज भी है, पर छूट गए हम..!! ना अपना, ना पराया कह सकते है उन्हें ! साथ जीने मरने की कसमें खाए थे हम..!! कभी पास थे उनके, अब दूर हो गए हम इश्क की गलियों में, मशहूर हो गए हम..!! साथ मिलकर बिताये है हमने जो लम्हें याद कर उन्हें अश्क में डूब जाते है हम..!! इश्क से पहले रंगीन थी जिंदगी हमारी ! अब जिंदगी तो है, पर रंगहीन हो गए हम..!!! कैसे कह दूँ उनसे हमारा वास्ता ना रहा कुछ पल सही साथ तो चलें थे हम…!!! परिचय :- प्रीतम कुमार स...
पेड़ लगायें-धरा बचायें
कविता

पेड़ लगायें-धरा बचायें

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सवा लाख वर्षों में अब तक, हुई न इतनी गरमी। ताप बड़ा धरती पर इतना, हुई विलोपित नरमी। दिन दिन बढ़ता तापमान पर, कारण भी हम सब हैं। बेकरार क्यों मौसम करता, साधन भी जब सब हैं। अपनी खुशियों की खातिर ही, वृक्ष धरा से काटे। वसुधा के सारे हिस्से ही, कंक्रीट से पाटे। वृक्ष हमारे सहयोगी हैं, हमने समझ न पाया। वृक्ष काट धरती खाली की, अब जलती है काया। चोली दामन जैसा ही है, सदाबृक्ष से नाता। सहजीवन है बहुत जरूरी, नहीं निभाना आता। गरल युक्त वायु लेकर भी, प्राणवायु हैं देते। राहगीर को छाया देकर, हैं थकान हर लेते। वन संपदा वृक्ष देते हैं, फल प्रसून देते हैं। आँखों को हरियाली देकर, ताप सोख लेते हैं। वृक्षों के सँग नमक हरामी, हम सब ने ही की है। गर्मी पड़ी जानलेवा जब, भूल सभी ने की है। अड़तालिस ...