Wednesday, January 15राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

प्राण
कविता

प्राण

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** जीवन की वास्तविकता है प्राण, पंछी सा उड़ जाएगा एक दिन यह प्राण जीवन की हंसने-रोने की ध्वनि ना सुन पाएगा सुख-दुख के संवाद कभी ना सह पाएगा, जब जीवन से मुक्त हो जाएगा यह प्राण ! पग-पग ये जीवन उलझी हुई किताब आदि अंत ना सुलझा पाया ये इंसान, समय के चक्षु में शुष्क नीर जैसा थम जाता है यह प्राण, उत्कृष्ट पाने की अभिलाषा, हर पल खुश रह कर जीने की ललक, असंतुष्ट इच्छाओं को पूर्ण करने की पराकाष्ठा, समझते समझाते क्षण भंगुर सा सृष्टि में विलीन हो जाता है यह प्राण ! मोहपाश में ना बाँध सका इसे कोइ, स्वतंत्र विचरण करने को व्याकुल, कोलाहल की ध्वनि से दूर, शांत वन में लुप्त होने को आतुर है यह प्राण ! नित नए जीवन का ग्रंथ बनाते, आशा को विश्वास का संगीत सुनाते, धीरज धर परमात्मा का संदेश सुनाते, जीवन का अखंड सत्य...
जीवन का सफर
कविता

जीवन का सफर

निधि गुप्ता (निधि भारतीय) बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश) ******************** जिंदगी का सफर जहां है, रहस्यमई, वहीं है रोमांचकारी भी, कभी है गम, इसमें तो, कभी है असीम खुशी... एक गुत्थी है यह, जो कभी किसी से ना सुलझी, किस पल में क्या होगा? है पहेली उलझी उलझी... जिंदगी का सफर, अनवरत चलता रहता है, क्या है?, उद्देश्य इसका, कभी पता नहीं चलता है... अनुभव जीवन के सफर में, कुछ खट्टे, कुछ मीठे होते हैं, सुख-दुख, लाभ-हानि, आशा-निराशा सभी साथ होते हैं... किसी के लिए, बुरा होना कर्मफल है, किसी के लिए, बुरा करना राजनीति.... किसी के लिए, क्षमा करना मानव धर्म है, किसी के लिए, अपराध करना, अपनी नीति.... कोई पैसे के लालच में ईमान बेच दे, कोई सेवाभाव में समर्पण कर दे, किसी के लिए सबका, भला सोचना मानव धर्म है, किसी के लिए, सबको नीचा दिखाना राजधर्म है.... कभी-कभी, सफर में जीवन के, अ...
नादान जीवन
कविता

नादान जीवन

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कुछ नादानियां कुछ अठखेलियां बाकी है मुझ में। क्षण-क्षण घूमती मृत्यु के बीच में जीवांत जीवन बाकी है मुझ में। झूठ के चलते बवंडर में सत्य का जलता हुआ दीपक बाकी है मुझ में। जीवन मृत्यु के बोध में हे! ईश्वर तेरा ध्यान बाकी है मुझ में। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहा...
शराब एक सामाजिक बुराई
कविता

शराब एक सामाजिक बुराई

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** शराब पीना है बहुत खराब, टूटे हैं इनसे बहुतों के ख़्वाब। शराब उन्हें पी जाते हैं, जो पीते हैं बहुत शराब।। शराब से जिन्दगियां हुई बर्बाद, घर परिवार में होती है रूसवाई। अनेक वारदातों का जड़ है शराब शराब है एक सामाजिक बुराई। गर शराब छूट जाए भाई, दाम्पत्य जीवन हो सुखदाई। जो नित शराब की लत लगाई, घर में नित कलह,आफ़त आई।। शराब नैतिकता का करता पतन है, शराबी तो अपने में रहता मगन है। दारा,वत्स का हो रहा जीवन स्याह, शराबी को नहीं किसी की परवाह।। बच्चों के क़िस्मत फूटे हैं, माताओं के सुहाग लूटे हैं। अपनों से अपने छूटे हैं, शराब से कितने घर टूटे हैं।। शराब कभी न पीना तुम, सादा जीवन जीना तुम। शराबियों से सदा रहना दूर, सुसंगत सर्वदा करना तुम।। परिचय :-  महेन्द्र साहू "खलारीवाला" ...
भारत अभिलाषित हिंदी
कविता

भारत अभिलाषित हिंदी

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी भाषा से मिली, हिंद देश पहचान। तनया संस्कृत की कहे, बढ़े जगत में शान।। बढ़े जगत में शान, मनुज मुख सदा विराजे। मिले विश्व सम्मान, हिंद का डंका बाजे।। कुमुद कहे ज्यों होत, सुसज्जित माथे बिंदी। भारत का अभिमान, सरल अभिलाषित हिंदी।। हिंदी भाषा है सरल, कठिन इसे मत मान। मौखिक वाचिक व्याकरण, कथन करें आसान।। कथन करें आसान, छंद साधित अभिलाषा। अलंकार रस छंद, विशेषण युत परिभाषा।। कहे कुमुद शुचि श्रेष्ठ, स्वच्छ तटिनी कालिंदी। जग जीवन आधार, कहे निज भाषा हिंदी।। हिंदी व्यापक रूप में, धरे विश्व में पाँव। अनुपम स्थापित कूप है, विद्वानों की छाँव।। विद्वानों की छाँव, वृहद शाखा विन्यासित। विविध सुत्र आधार, बनें साहित्य सुशासित।। कुमुद लिखे शुभ ग्रंथ, करें शोभित नित बिंदी। सुखद राष्ट्र अभिमान, हृदय में बसती ...
मेडिटेशन
कविता

मेडिटेशन

प्रभजोत कौर "जोत" मोहाली (पंजाब) ******************** अगर कोई पूछे तुझसे मेडिटेशन करते हो क्या खुद को वक्त देते हो क्या बङे फख्र से कहना तुम साहिबा, हाँ, खुद का बहुत ध्यान रखता हूँ खुद से बातें भी करता हूँ सुकून बहुत मिलता है जब उस पगली की बकबक सुनता हूँ लफ्ज़ों में पिरो देती है खामोशी मेरी सुन लेती है मीलों से धङकन मेरी पल भर रूठ भी नही सकती मुहब्बत करती है हर खता को मेरी वो है तो मेडिटेशन भी हो जाती है इश्क में उसके रब से मुलाकात हो जाती है सबसे ज्यादा प्यार किया है उससे वो भी मीरा सी मग्न हो जाती है परिचय :- प्रभजोत कौर "जोत" निवासी : मोहाली (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाय...
चला आऊं शहर में तेरे
कविता

चला आऊं शहर में तेरे

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** तु कह दे तो मैं चला आऊं शहर में तेरे, बुला तो सही एक बार मुझे शहर में तेरे, मैं भी देखूं शान-ओ-शौकत शहर की तेरे, मैं भी घुमू लूं गली-गली शहर की तेरे, छोटा सा गांँव है मेरा बसता है दिल में मेरे, निकल कर गांँव से अपने देख लूं शहर को तेरे, चकाचौंध की जिंदगी सुनी है मैंने शहर की, वो सब देख लूं आकर एक बार शहर में तेरे, डर मुझे है लगता कहीं खो ना जाऊं भीड़ में, तूं भी कहीं ना पहचाने मुझ को शहर में तेरे, है रोशनाई मेरे गांँव के प्यार में ज्यादा, देख लूं आकर आबोहवा शहर में तेरे, यों ना कहना आया नहीं गांँव को छोड़ कर, मिलने तुम से आ रहा हूंँ अब शहर मेेंं तेरे, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है...
उस हसीं को मरते हजार बार देखता हूँ
कविता

उस हसीं को मरते हजार बार देखता हूँ

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** कभी खुशियों की बौछार देखा था आज उन आँखों में आंसुओं की अम्बार देखता हूँ। न जाने कितनी ठोकरे खाई है, आज उस हसीं को मरते हजार बार देखता हूँ।। पूछा-वो तुम्हारा मुस्कराता चेहरा कहाँ गया? हँसता-खेलता और हरा-भरा घर कहाँ गया? छन-छन करती पायल की झनकार कहाँ गई? वो मीठी नोक-झोंक वाला प्यार कहाँ गया? वो खिलखिलाती हँसी, जीने की नए अंदाज को आज गुमसुम और उदास देखता हूँ। न जाने कितनी ठोकरे खाई है, आज उस हसीं को मरते हजार बार देखता हूँ।। पलकें झुकाए सुना गौर से फिर बोली यार। क्या कहें इश्क़बाजी का छाया था खुमार।। पाल रखी थी उम्मीदें एक छोटी सी दुनियां बसाने की। हमदम साथ मिल कर एक नई पहचान बनाने की।। वो हरदम जुल्म ढाता रहा मैं सहती रही। वो धोखे का और मैं प्रेम का बीज बोती रही। उनके हर सितम का घूंट पीती रही। ...
वक्त सीखा रहा है
कविता

वक्त सीखा रहा है

गरिमा खंडेलवाल उदयपुर (राजस्थान) ******************** एक सुकून है जो मुझे तबाह कर रहा है तू मुझे कितनों से बेवफा कर रहा है। कर रहा हूं मैं मुहब्बत हर पल जिससे वो मुझसे कतरा कतरा छल कर रहा है। कभी मैंने पाने की कोशिश न की तुझे क्यों दूर हो जाने के जतन कर रहा है। मुझसे ज्यादा प्यार वो करते है मुझे दूर हो कर क्यूं मेरी फिकर कर रहा है। इश्क में रुलाया जिन्होंने हमें , मुहब्बत मुझे उन्हीं से फिर करने को जी चाह रहा है । रहता हूं जब प्यार में बिना यार के साथ मैं प्यार के साथ रहना प्यार से वक्त सीखा रहा है। परिचय :- गरिमा खंडेलवाल निवासी : उदयपुर (राजस्थान) संप्रति : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच प...
कलमकार
कविता

कलमकार

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** मृत हुए जन दिल को जिंदा कर देता, लौकिक जीवन रंगमंच का जादूगर हूं। प्रबल निराशा में मैं आशा की किरण, प्रेरक और मार्गदर्शक कलमकार हूं।। जननी की आंसुओं को लेकर हथेली, चंदन तिलक बना लगा लेता मस्तक। जब-जब पुकारती है नारी दुःखी स्वर, रक्षक वीर योद्धा बन देता हूं दस्तक।। सरहद पर डटे सिपाहियों के हृदय में, राष्ट्रप्रेम और विजय का भाव जगाता। मातृभूमि के लिए प्राण न्यौछावर करो, उनके नस-नस में लोहित लहू दौड़ाता।। किसान की दशा, मजदूर की मजबूरी, बदन से निकलता रात-दिन ज्वालाएं। मन की पीड़ा सुनता नहीं सत्ता राजन, मेहनत का हक देकर दूर करो बाधाएं।। देख दीन-हीन बेगार की करुणा दशा, खून के आंसू पी लेता समझ गंगाजल। दिवस जगाता मुक बधिर को बैगा रुप, पाठ पढ़ाता अधिकार का करने मंगल।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली,...
तीज त्योहार
कविता

तीज त्योहार

संगीता पाठक धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** हस्तनक्षत्र की बेला में भाद्रपद की तीज आयी है, भाई को बहन के मायके आने की प्रतीक्षा है, बहन भी डेहरी पर खड़ी हो बाट जोह रही है। उदास घर की रौनक बरस बाद लौट आयी है। सखी संग बहनों की खिलखिलाहट गूँज रही है, हँसती खिलखिलाती सखियाँ कुशल पूछ रही हैं। अपने हाथों में हरी-हरी मेंहदी से बेल बूटे बनायेंगी, ठेठरी, खुरमी, गुझिया पकवान मिल जुल कर बनायेंगी। सोलह श्रृंगार करके बहनें सारी फूली ना समायेंगी, एक दूसरे को अपनी-अपनी साड़ी गर्व से दिखायेंगी। पति के आयुष्य की मंगल कामना में निर्जल व्रत रखेंगी, सखी सहेलियों संग शिव पूजन करके रतजगा करेंगी। ढोलक की थाप पर सभी बहनें भजन गीत गायेंगी, शिव पूजन करके अखंड सौभाग्य का वरदान पायेंगी। परिचय :  संगीता पाठक निवासी : धमतरी (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करत...
दीवार
कविता

दीवार

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** ईंट और चूने की दीवार घरों को बनाती दीवार रिश्तों को जोड़ती दीवार सजावट का केंद्र दीवार, अनेक रंगों की दीवार आधुनिक समय की पहचान कभी लाल कभी नीली दीवार फोटो फ्रेमों से सज्जित दीवार, पर ये ही दीवार जकड़ लेती है हमें, कुंठित कर लेती है चहारदीवारी में बंध जाते हैं, कैद हो जाते हैं दीवार में, उससे आजाद होने के लिए तरसते हैं उहापोह में फंसे, मात्र एक सूर्य की किरण के लिए होते हैं व्याकुल। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित्य में योगदान के लिए लोकमत द्वारा पुरस्कृत हैं। आप "मैं हूं भोपाल' के खिताब से भी सुशोभित हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द...
नमन गजानन देवा
कविता

नमन गजानन देवा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** प्रथम पूज्य मंगल करते हैं, श्री गणपति महाराज। गौरी पुत्र गजानन स्वामी, देवों के सरताज। महादेव के पुत्र कहाते, और षडानन भ्राता। जो भी शरण तुम्हारी आता, जन्म सफल हो जाता। ऋद्धि सिद्धि प्राणों से प्यारीं, मंगल ही करतीं हैं। दीन दुखी सबके जीवन में, खुशियाँ ही भरतीं हैं। मूषक पर तुम सदा विराजित, सदा सुमंगल करते। ऋद्धि सिद्धि सबके जीवन में, श्री गणेश जी भरते। विद्या के सागर गणेश जी, बुद्धि प्रदाता स्वामी। सबके, मन की आप जानते, तुम हो अंतर्यामी। दूब फूल मेवा चढ़ता है, रोली अक्षत न्यारा। पार्वती, शिव, कार्तिकेय सँग, है दरबार प्यारा। मोदक का प्रसाद चढ़ता है, चढ़े देव को मेवा। सारे काम सफल होते हैं, जो जन करते सेवा। मोदक से मधुमेह उपजता, श्री गणेश जी जानें। चढ़ता है कपित्थ अरु जंबू, है ...
हक़ीक़तनामा
कविता

हक़ीक़तनामा

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** कैसा दुनियादारी का बाज़ार सजा कर रक्खा है। मौत का, गरीब की मज़ाक बना कर रक्खा है।। जो रहा करते थे....... ख़्वाबों की अंजुमन में। उन्हें हक़ीक़त का आईना दिखा कर रक्खा है।। हम मरीज़ ए इश्क़ हैं, .....ये अब पता चला है। हमने हक़ीमों को भी घर पर बुला कर रक्खा है।। उनको मिले ख़ुशियाँ, ......चैन ओ सुकूं जहाँ में। इसलिये ग़मों को अपने अब तक सुला कर रक्खा है।। "काज़ी" उनकी मुस्कान बहुत महंगी है इसलिये। उन्होंने तबस्सुम को भी लबों पर दबा कर रक्खा है।। परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर" निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र क...
मेरी परी
कविता

मेरी परी

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज अभी-अभी तो दुनिया में आई थी मेरी दुनिया में खुशियां लाई थी छोटी सी मुस्कान उसके मुख पर आई थी मेरे दिल में उसने ममता जगाई थी। छोटी-छोटी उंगलियों ने मेरी उंगली को कसा था उसका यह प्यारा नन्ना सा चेहरा मेरे दिल में बसा था उसकी तोतली बोली मेरे होश उड़ा गई नन्हे कदमों में पायल की छम-छम से मेरा मन हॅंसा था कभी नाराज, तो कभी उसकी ढेर सारी बातें पूरी दिनचर्या की, कभी न खत्म होने वाली बातें दिल को प्यारी लगती है उसकी मुझे ये सारी बातें उसे देख कर ही बीत जाती है मेरी प्यारी रातें हर पल हर लम्हा उसे देखकर मैंने जिया है हद से ज्यादा मैंने उसे प्यार किया है जिंदगी की हर खुशी मिले आपको सूरज की तरह नाम मिले आपको प्रभु भी अपनी कृपा बनाए रखें और आप पर आशीर्वाद बनाए रखें सफलता कदम चूमे आपके बड़ों का आशीर्वाद रहे सदा साथ आ...
लगता नहीं
कविता

लगता नहीं

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** आदत स्वभाव पसंद नापसंद तो बड़ा सबब है, हाले दिल बयान कहे साथ रहा हुआ लगता नहीं। हवा पानी आवेश भावमय गुजरता ये जीवन, जाने क्यूं नए दौर की धार बहा हुआ लगता नहीं। जी तोड़ कमरतोड़ संयोग बनता रहा काम का, मगर प्रेम पगा मन, प्रेम में गहा हुआ लगता नहीं। मनुज रूप जनम में अनेक कमियां होती जरूर, गुण दोष वाला जीवन दूध नहा हुआ लगता नहीं। सहनशक्ति जाने अंजाने में समझना आसां नहीं, आंच में तपा इंसान भी तो सहा हुआ लगता नहीं। हौसला भरोसा भी तो किसी चिड़िया का नाम है, चौथेपन उड़ान संग स्वभाव ढहा हुआ लगता नहीं। मानने सोचने समझने की ताकत कम हुई विजय, तरकश तीरों सा लहजा भी कहा हुआ लगता नहीं। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्...
गणपति वंदना
कविता

गणपति वंदना

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** भादो मास तिथि चतुर्थी, प्रभु विराजते पृथ्वी पर। भक्तजन उनकी सेवा करें, विनायक सबके कष्ट हरें। बुद्धि ज्ञान के तुम हो दाता, प्रथम पूज्य देवेश्वरा। मेरी तुमसे याचना, विघ्न हरो विघ्नेश्वरा। महादेव के तुम हो नंदन, कार्तिकेय के भ्राता। रिद्धी-सिद्धी के तुम हो स्वामी, लाभ शुभ प्रदाता। मूसक को वाहन बनाया, हे! वक्रतुण्ड महाकाय। मोदक का तुम्हें भोग लगे, हे! अष्टसिद्धी के दाता। मैं बालक नादान हूँ स्वामी, निशदिन करूँ आराधना। सबके विघ्नों का नाश करो, स्वीकार करो मेरी प्रार्थना। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
घर एक मंदिर
आलेख, कविता

घर एक मंदिर

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "घर" शब्द में जितनी मिठास भरी है, वह "मकान" में कहाँ। लोगों को अक्सर कहते सुना है, "अरे, बस अब घर पहुँच ही रहे हैं। आराम से घर पर ही सब सुकून से करेंगे।" जहाँ तक घर के संदर्भ में मेरे संस्मरण हैं, कुछ हट कर हैं। बचपन बीता हवेली में। पढ़ाई हेतु देवास में दो कमरों का किराए का मकान। रहने वाले माँ और हम पाँच भाई बहन। ऊपर से आने वाले मेहमान अलग से। पढ़ाई के साथ सबका खाना व घर के अन्य काम। बड़ी बहन तो होती ही है जिम्मेदार। सामान बहुत कम, पंखा भी नहीं। सजावट के नाम को सबकी किताबें। ब्याह के पश्चात सरकारी क्वार्टर्स मिलते रहे। एक ईमानदार पुलिसवाले के यहाँ सोफ़ा वगैरह के लिए सामान पैक करने के खोखों का उपयोग होता। उन्हें कपड़ो के कव्हर से सजा दिया जाता। एक दो साल हुए नहीं कि स्थानान्तर झेलो। बंजारों के माफ़िक़ सामान बाँध एक डेरे से दूसरे डेरे...
जीवन
कविता

जीवन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** डर वही चलना साथी जो होकंटक विहीन जीवन सर्व में होती है राह बड़ी कठिन। कठिन, कठोर, कंटक फैले इन राहों के तल में संभाल-संभल पग धरना साथी इस डगमग जीवन में। पथ नेक पथिक अनेक गुजर गए पथ से पाया सच्चा प्यार उसी ने जिसने कर ली भेट प्रभु से। विकट, विकल राहेे हैं तेरी अगम पंथ है अन्ध कूप इस भव में शांति देने एकनाथ है वैभव भूप। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तम...
मौजूदगी दिखाना जरूरी है
कविता

मौजूदगी दिखाना जरूरी है

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** बहरो को सुनाना जरूरी है मौजूदगी दिखाना जरूरी है रखवाले हम बताना जरूरी है हिम बन खड़े जताना जरूरी है जिन्हें अपना मानना जरूरी है उन्हें दिखाना भी जरूरी है घूम रहे उन्हें दिखलाना जरूरी है उनका नहीं वतन बतलाना जरूरी है मिटाने आए उन्हें भगाना जरूरी है यहां एक हजारों से मिलाना जरूरी है विभिनता में भी हंसना जरूरी है गद्दारों को रुलाना जरूरी है इश्क मोहब्बत से जताना जरूरी है नफरत को भगाना जरूरी है ना माने उन्हें उखाड़ना जरूरी है उन्हें मिट्टी में दबाना जरूरी है गर कमजोर को ताकना जरूरी है फौलादी बन फटना जरूर है परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, र...
मैं उसी शास्वत की वंशज
कविता

मैं उसी शास्वत की वंशज

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** जो काल चक्र का दास नहीं जो समय बनाने वाला है जो है अक्षुण्ण सनातन से जो कभी ना मिटने वाला है.... जिसने प्रतिपल संसार समर में धैर्य ज्ञान को बरसाया जिसने रेवा के जल सा निर्मल वेद तत्व है बिखराया.... जो उपमानों की उपमा है जो सर्प्रथम जग में आया जिसने रागों की रचना की जिसने तानों को झनकाया.... जो वनस्पति में परिणित हो हर पात हरि बन बैठ गए जो भाव भक्त की विनती पर चिर-क्षीर सिंधु में लेट गए.... जो योग ज्ञान से नर को भी नारायण करने वाला है. जो सात रंग में स्वयं विवर्जित सृष्टि सजाने वाला है... जो बार-बार संसार बनाकर उसे मिटाने वाला है मैं उसी शास्वत की वंशज जो अविचल रहने वाला है.... जो जल का है जो थल का है जो गगन भूमि सरिता का है जो शशि-कांत की ज्योत्स्ना जो सूर्य प्रभा ललिता का है..... जो प्रलय सिंधु की गो...
युद्ध
कविता

युद्ध

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** गुलामी की दास्तां को हमसे है कोई पूछें कितने जुल्म को सहना यह भारत से वह पूछे नहीं कोई साथ है देता नहीं कोई साथ ही रहता, अपने मुल्क की आजादी यही स्वाभिमान है अपना, किसी कमजोर से लड़ना यह ताकत नहीं उसकी सहारा दे उठाकर फिर चलना मर्दागी है उसकी गुलामी की जंजीरों में जकड़ कर इस तरह रहना, इससे तो यही बेहतर की थोडे मै है खुश रहना, किसी भी मुल्क पर हमला तबाही और मंजर है, सकुन तुम को नहीं मिलता, सुकून किस को नहीं मिलता, कितने घर तो हे उजड़े, कितने बेघर को वह समझे किसी ने बाप खोया है किसी का सिंदूर है उजड़े एक दौलत के है खातिर हजारों लाश देखी है, इन्हें इतिहास के पन्ने किस निगाहों से देखेगा, एक देश भक्ति से हे पूजे, एक अत्याचार से जाने, किरण ! हम उस शक्ति से पहचाने, जिसे संसार है पूजे, भारत श...
तुलसी के राम
कविता

तुलसी के राम

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** तुलसी के राम ही शक्ति के दाता दर्शन मात्र से सारे सुख पाता। जब ध्यान लगाएं हरदम तुझमें पुनीत विचार सब समाए मुझमे। तुलसी के राम की छवि बड़ी निराली कण-कण में समाई खुशहाली। सारा जग होता तुझसे ही रोशन प्राणी पाते धन धान्य और पोषण। सांस सांस में है बसा नाम तुम्हारा तुलसी जे राम ही तो है बस मेरा सहारा। हे तुलसी के राम सारा जग तो है तुम्हारा जग में तुम बिन कोई नही है हमारा। पूजन करो और बोलो जय श्रीराम दुःख सारे दूर होंगे मिलेगा सुख आराम। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरव...
पिता
कविता

पिता

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** बरगद की विशाल शाखाओं जैसी, अपनी बाँहे फैलाए। ख़ड़े रहकर धूप और छाँव में, हर मौसम की मार झेल जाये।। कोई और नहीं, एक पिता ही हो सकता है। कठोर भाव, पर अव्यक्त प्रेम का आसन। सख्ती से चलनें वाला परिवार का अनुशासन।। संबल, शक्ति, संस्कारों की मूर्ति। परिवार के सभी इच्छाओं की पूर्ति।। कोई और नही, एक पिता ही हो सकता है। बिन कहे जो बच्चों का अरमान भांप ले। बाँहे फैलाये तो सारा आसमान नाप ले।। थरथराते, काँपते, नन्हे पँखों को। उड़ान का हौसला देनें वाला।। कोई और नही, एक पिता ही हो सकता है। न जानें अपने अंदर कितनें मर्म छुपाये। दिल में आह हो, तो भी मुस्कुराये।। अपनी ख्वाहिशों की चिता से, घर को रौशन करनें वाला। कोई और नहीं, एक पिता ही हो सकता है। ईश्वर की अद्भुत रचना, जो ईश्वर का ही रुप लगता है। गढ़ता है जो अप...
चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दें …
कविता

चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दें …

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दें ... कलियाँ ही खिल कर बनती है सुमन सुवासित होता है जिससे सदा चमन चलो फिर से कलियों को नया बाग दे चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दे गुल मे खिलते ही रहेंगे सुमन सदा बादलो की बदलती रहे नित अदा अब हर मौसम को नया सुर साज दे चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दे बहारो मे कलरव करती है पंछीया गूंजती है जिससे प्रतिदिन वादिया चलो वादियों को नया आगाज दे चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दे अब तो हर दिन एक नई बात हो अंधेरों के शहर मे कभी प्रभात हो हर सुबह को एक नया आज दे चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दे अब हर शहर मे अमन का हो बसर खुशियो का जहाँ मे होता रहे असर अमन का सदा जग को पैगाम दे चलो जिंदगी को नया अंदाज़ दे परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस...