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कविता

सोचो कितना अच्छा होता
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सोचो कितना अच्छा होता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बादल ने बूंदें बरसाता हो धरती अँगड़ाई ले देखकर शरमाकर ओढ़ ले झट से हरी चुनरिया फूलों वाली चहुँ ओर लहराए चूनर ये हर खेत तरु डाली डाली सोचो कितना अच्छा होता उखड़े कभी न साँसें धरा की प्राणवायु वायु से पूरित हो रक्षाकवच हरियाली का हो दरकती दरारें दूर हो सभी पौधारोपण चहुँ ओर हो जगतजननी खुशियाँ पाती सोचो कितना अच्छा होता देख हरे भरे वन जंगल रिमझिम बरखा आती हो धन धान्य फल फूलों से आँचल भू का भर देती हो जुही चमेली चम्पा नाचे मोर पपीहा कोयल गए सोचो कितना अच्छा होता एक ही छत बिन दीवारों के मात पिता व भाई बहन हो पड़ोसियों से गुफ़्तगू हो सब अच्छे सब अच्छा हो बैर ईर्ष्या स्वार्थ नहीं हो व्यसन की बात नहीं हो सोचो कितना अच्छा होता विश्वबन्धुता व भाईचारा वसुधैव कुटुम्बकम हो यूक्रेन रूस से झगड़े न हो हिरोशिमा नागास...
उत्तम राह दिखाते
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उत्तम राह दिखाते

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सब कुछ नहीं जानता कोई, इस दुनिया में आकर। ज्ञानवान विद्वान बनें सब, गुरु से शिक्षा पाकर। चरण शरण जो गुरु की जाते, शिक्षा दीक्षा पाते। बन जाते विद्वान वहीं नर, जीवन सफल बनाते। गुरुकुल हैं शिक्षा के मंदिर, विद्या बुद्धि प्रदाता। विद्या मंदिर में जो आता, वह विद्वान कहाता। पा आशीष ज्ञान निज गुरु से, आगे बढ़ता जाता। मिल जाती जब कृपा ईश की, पंगु शिखर चढ़ जाता। वेद पुराण उपनिषद गीता, सबको ज्ञान सिखाते। ज्ञानवान विद्वान सभी जन, उत्तम राह दिखाते। वाणी और नियम संयम से, जीवन को महकायें। विद्वानों की शरण प्राप्त कर, ज्ञानवान बन जायें। अहंकार ना रहे तनिक भी, मन मानस के अंदर। अहंकार से दूर रहे जो, बनता वही सिकंदर। सही समय पर समुचित बोले, वह विद्वान कहाता। जो उद्धार करे जन जन का, सारे जग को ...
मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए
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मर रहीं हैं जिंदगी जीने के लिए

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** साथ रहकर कर कुछ महिने मेरे, अब छोड़ दिया है तूने हाल पर मेरे, तन्हाइयों को तूने मेरी ज्यादा किया, दूर जाकर इस दिल से मेरे, बड़ा अहम रोल रहा घर का तेरे, जिसने झूठा अहम भरा मन में तेरे, तूने भी कुछ नहीं सोचा खुद के बारे, अब कैसे आऊं मैं दर पर तेरे, लेकर आया था संदेशा घर पर, उस थाने का थानेदार मेरे, कुछ उल्टा सीधा लिखा था उसमें, जो शिकायत खिलाफ दी मेरी तूने, बात यहां तक भी रहती सुलझ जाती, अब बुलाने लगी है कोर्ट भी मुझे, तूने एक बार अपना घर नहीं समझा, मां बाप तेरे भी तों हैं जैसें हैं मेरे, इल्ज़ाम लगाएं है बेतुके तुने, किस किस का जवाब दूं तूझे किस लिए, मैंने लगा दिया है सब कुछ दांव पर, घर की इज्ज़त अब बचाने के लिए, तू जीत रही है हर बार मुझसे, मैं तुझ से हार रहा हूं अपने घर के लिए, सामान तो उठवा ल...
बातें फूलो की
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बातें फूलो की

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** फूलों का ये कहना दिल की बातें दिल में ही रखना छीन ले जाता कोई खुशबू हमसे बस इसी बात का तो रोना । फूल बिन सेहरा गजरा के उदास हुए जाने क्या औंस ने कह दिया खुशबू उतनी ही बची फूलों की इतनी सी बात पर तितली-भोरे फूलों के अब खास हुए। उड़ा ना पवन खुशबुओं को इस तरह मोहब्बत रूठ जाएगी बेमौसम के पतझड़ की तरह कुछ याद रहेगी कुछ दिल से टकरायेगी बसेगी वो दिल में तुम्हारी यादों को महकायेगी| खुशबू भी रूठ जाती फूलों से जब कांटों की पहरेदारी बनती दगाबाज की तरह तोड़ लेता दिलबर खिले फूलों को मोहब्बत को मनाने की तरह। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाच...
मैंने  प्रेम  नही माँगा है
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मैंने प्रेम नही माँगा है

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** मैंने प्रेम नही माँगा है केवल पीड़ा माँगी है। देखो न करके तुम मुझसे मेरा ये अधिकार न छीनो। चाहे जिसको खुशियाँ दे दो चाहे जिस पर प्रेम लुटा दो। चाहे जिसकी राहों में तुम अपने सुंदर नयन बिछा दो। मेरी आँखें शुष्क हो गई इनमें कोई क्या ठहरेगा, चाहे जिसकी आँखों में तुम अपने सारे स्वप्न सजा दो। मै केवल पीड़ा का आदी मेरा ये संसार न छीनो। देखो न करके तुम मुझसे मेरा ये अधिकार न छीनो। जिनका हृदय कोमल होता उनको कब अनुरक्ति मिली है। दर्द मिला है घाव मिले हैं उनको सिर्फ विरक्ति मिली है। मौन साधना नित्य कर्म है चाहे जितनी पीड़ा हो, अधर खोल कर कहने की उनको कब अभिव्यक्ति मिली है। प्रेम के बदले पीड़ा लेना मेरा ये व्यापार न छीनो। देखो न करके तुम मुझसे मेरा ये अधिकार न छीनो। क्षणभंगुर न प्रीति मिल...
लिए दिए पर मिलता है भाई
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लिए दिए पर मिलता है भाई

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** सुशासन समागम में सीएम ने यह बात बिना हिचक के उठाई हकीकत धरातल पर आई योजनाओं का लाभ लिए दिए पर मिलता है भाई सीएम ने ब्यूरोक्रेसी को फिर आईनासूरत दिखाई अफसरों ने मुझे अच्छी पिक्चर दिखाई असलियत में वैसा नहीं है भाई योजनाओं का लाभ लिए दिए पर मिलता है भाई मोटिवेशनल स्पीकर की तरह बोले एक्शन ऑन द स्पॉट करता हूं भाई झूठे पिक्चर मत दिखाओ भाई योजनाओं का लाभ लिए दिए पर मिलता है भाई जनता जागृत है इलेक्शन आग्रत है छवि ईमानदार बनाना है भाई नहीं खाने दूंगा हरे गुलाबी की मलाई योजनाओं का लाभ लिए दिए पर मिलता है भाई अफसरों से पूछताछ करते रहता हूं भाई संतोष नहीं हुआ तो करता हूं कार्यवाही कर दो अब भ्रष्टाचार को सख़्त मनाई योजनाओं का लाभ लिए दिए पर मिलता है भाई परिचय :- किशन सनमुखदास भावनानी (अभिवक्ता) निव...
शीत ऋतु
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शीत ऋतु

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? जुताई खेती किसानी की जाती हैं। पूस की रात में कैसे नील गायें, हलकु की फसल चट कर जाती हैं। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? फसलों को ठंडी रातों में सींचते हैं। आशाओं पर तुहिन पाला पड़ कर, खेतों में लहलहाते सपने सूखते है। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? वादी के ठिकानों में अडिग खड़े है। मां भारती की सरहद पर खदानों में, वीर हिम शिखरों पर मौत से अडे़ है। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? जो राणा के रणवीर लौहा पीटते हैं। स्वच्छंद गगन के नीचे श्रम स्वेद से, भूखे शरद के पेट में घन ठोकते हैं। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? जिस श्रमिक की हड्डियां अकड़ती है। ईंट पत्थरों से भरी तगारि लेकर, आसन्न प्रसव मजदूरिन सीढ़ी चढ़ती है। शीत ऋतु के बारे में उनसे पूछिए? चौराहे पगडंडी पर ...
युवाओं का दर्द
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युवाओं का दर्द

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** इन नौजवानों को देख लो जरा समझ जाओ ना इनकी तकलीफ रहते हरदम परेशान बेचारे समझो ना इनकी बेचैनी तुम गहराई में छुपे अश्रुओं को देखो तुम खाम का ही बोलते हो दर्द नहीं होता इन्हें उतर जाओ नैनों में इनके एक बार दुख की परछाई को झांक लो जरा तुम इनकी हंसी के पीछे छुपे गम जानो तड़पते मन को मरहम लगा दो पूछकर जिम्मेदारियों का वजन इन पर बहुत कभी तो उठा लो तुम भार इनका संभले, सुलझे लगे भले ही तुम्हें ये गहराई में जा इनकी उलझ न जाना तुम वक्त से पहले हो जवां उठा लेते जिम्मेदारियां बेरोजगारी छीन लेती बचपन की हठखेलियां खंडूस बोल दे ताने ना वार करो तुम समझो गहराई, नरमी, मासूमियत इनकी बना लो पहचान संग इनके तुम समझ पीड़ा देख दर्द मिटा दो ना परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेख...
चिड़ियों की चहचहाहट
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चिड़ियों की चहचहाहट

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** बादलों की ओट में खिला छुपा चाँद पहाड़ों पर जाती पगडण्डी मन आकाश में चाँद के इंतजार में घुप्प अंधेरा रात स्याही विरहन सी पत्तों की सरसराहट उल्लू की कराहती आवाज लगता मृत्यु जीवन को गले लगाए बैठी चाँद निकला बादलों से सूखे दरख्तों सूखी नदियों ने ओढ रखा हो धवल चाँदनी का कफ़न जंगल कम हुए नदियाँ प्रदूषित हो सूख रही मानों ऐसा लगता मौत हो चुकी पर्यावरण की धरा से आँखे चुराता चाँद छुप जाता बादलों की ओट निंदिया टूटी स्वप्न छूटा भोर हुई नई उम्मीदों से जंगल सजाने नदियों की कलकल चिड़ियों की चहचहाहट ने दिया पर्यावरण को पुनर्जन्म। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्...
ओंस सदृश है जीवन
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ओंस सदृश है जीवन

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** पत्तों और घास के ऊपर, स्वर्णिम आभा पाता। बनकर बूँद कनक सा दमके, पानी ओंस कहाता। जब जल वाष्प संघनित होती, तभी ओंस बन जाती। कभी बर्फ में यही बदलती, तब पाला कहलाती। घास पत्तियों रेलिंग छत पर, ओस दिखाई देती। सूर्य रश्मियाँ इस पर पड़तीं, मोती आभा लेती। सूरज से आभा पाती है, नष्ट उसी से होती। तेज धूप पड़ने के कारण, अपना जीवन खोती। ड्रोसोमीटर मापन इसका, सही माप बतलाता। अधिक शीत से बर्फ बने यह, तब पाला कहलाता। होती है भयभीत ओंस जब, सूर्य रश्मियाँ आतीं। बनकर बूँद बिखर जाती है, ताप नहीं सहपाती। दमक रही पत्तों के तन पर, कुछ तारों पर झूले। मोती की लडियों से दिखती, पारिजात जयों फूले। ओंस बूँद सा सबका जीवन, लंबा कभी ना होता। अल्प समय बर्बाद करे जो, अपना जीवन खोता। कभी प्यास ना बुझी किसी क...
उषा का आगमन
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उषा का आगमन

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** उषा का आगमन नव चेतना का भाव है अरुणोदय की बेला फिर नया पड़ाव है गगन में गूंज रहा पंछी का कलरव शबनम शरमा कर हो रही है नीरव पुष्प खिल उठे अब हर गुलशन नाच रहा अलि नित होकर मगन दरबारी के सुर से सज्जित है धरती आभा तिमिर का हरण है करती हल धर की हलचल है खलिहानों में मलय पवन बह रही है मैदानों में दीप्त दिशाओं में मचा है शोर मिहिर की आभा से सज गया है भोर। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा स...
जब वो हमसे रुठ गए!
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जब वो हमसे रुठ गए!

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** मेरे सपने सब टूट गए! जब वो हमसे रुठ गए! दुनिया मे अब अपना, रहा न कोई सहारा! फंस गई भंवर में नैया, मिला न हमे किनारा! हम लहरों में डूब गए! जब वो हमसे रुठ गए! ... उदासियाँ भरे हैं दिन, तनहा-तनहा राते हैं! धुंधली शामों से सजे, गम अब हमे बुलाते हैं! हम खुद से ही टूट गए! जब वो हमसे रूठ गए!... आज भी हंसी नज़ारे, मुझको सपनो में आते, रंगीनियों में खोने को, फिर फिर पास बुलाते, हम बैरागी से हो गए! जब वो हमसे रुठ गए! ... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
सुरक्षा के संग करो सफ़र
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सुरक्षा के संग करो सफ़र

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** सुरक्षा के संग करो सफ़र, ये कर्तव्य सबका हो, सड़क सुरक्षा ही अपनी सुरक्षा का ध्येय सबका हो, छोटे- छोटे बच्चों को ना देना साधन अपने चलाने को, कुछ सब्र करो ए इन्सान, उम्र उसकी बढ़ जाने को, शराब पीकर ना कभी बाईक, कार, ट्रक चलाना तुम, हो जायेगी अनहोनी, उससे बचकर रहना तुम, अपनी सावधानी में ही अपना व दूसरों का बचाव है, नियम कायदों के साथ चलो, कहता ये संविधान है, बिन मौत ही मर जाते दुर्घटना में, हजारों-लाखों लोग यहां, सबक लेकर घर से निकलो, ए मेरे देश के लोग यहां, सिर पर हैल्मेट बाईक पर, सीट बैल्ट का गाड़ी में रखो ध्यान, मुसीबत पड़ने पर आएंगी, ये सब चीजें तेरे काम, रफ़्तार देख कर रखो, कुछ निकला नहीं जाता है, बेसब्री से जायेगी जान, हाथ फिर कुछ नहीं आता है, यदि रूकना रास्ते पर साईड में साधन लगाओ तुम, अपना ...
ऐतिहासिक वीर गाथा
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ऐतिहासिक वीर गाथा

कुंदन पांडेय रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** हो कर्म प्रखर और मन उज्जवल इतिहास तभी दोहराता है। ओजस्व पूर्ण बलिदानों का त्रेता युग तब गुण गाता है। हो धर्म निष्ठ तब रामायण सत मार्ग हमें दिखलाता है। करुणा मय कर्म प्रकांडो से जातक जीवन सिखलाता है। गौरी हारा उसे ना मारा परिणाम बुरा तब आता है। दुष्टों को माफ नहीं करना इतिहास हमें सिखाता है। कट गया शीश पर झुका नहीं वो पृथ्वीराज महान बड़ा। कर दिया उसे निज नेत्रहीन फिर भी गौरी के प्राण हरा। जहां वीरांगनाएँ जन्मी हो भय से खल ह्रदय भी छलनी हो। स्वाभिमान भरे निज अंतः में जिनके कर्मों से धरणी हो। वीरों की विजय गायकी में तलवारों की टंकार सुनो। जो धरा हमें दिखलाती है उस गाथा का गुण गान सुनो। जहां सरस्वती का वो तट हो जो इतिहासों का साक्षी है। अस्कनी, पुरूष्णी सी नदियां जहां स्वयं धारा की थाती हैं...
बोनसाई
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बोनसाई

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** स्वयं की मूल प्रकृति से द्वंद करने लगें जब मन, होने लगे जब यह स्मरण आकर, प्रकार वास्तविक सब बदला जा रहा हैं कही तब समझ लेना तुम इसे, कि कुछ यूं बदले जा रहे हो बोनसाई बनाएं जा रहे हो तुम।। जब कोई तुम्हारी जड़ों से, धीरे-धीरे काटे तुम्हीं को जब कोई तुम्हारी शाख से धीरे-धीरे टहनियों को छांटे, जब कोई संकुचित कर दे तुम्हारा जीवन, समझ लेना कुछ यूं बदले जा रहे हो तुम बोनसाई बनाएं जा रहे हो तुम।। जब अंदर ही अंदर तुम्हें खोखला किया जा रहा हो, तुम्हारी योग्यताओं का दोहन कर, तुमसे काम बस लिया जा रहा हो, छीन कर तुमसे योग्य होने का संबल अपनी ही छाप लगाकर तुम पर तुम्हें अजमा रहा हो, समझ लेना कुछ यूं बदले जा रहे हो तुम बोनसाई बनाएं जा रहे हो तुम।। जिसको ड्राइंग रूम में अपने कहीं कोने में सजाया गया ...
आओ दिव्यांगों का सम्मान करें
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आओ दिव्यांगों का सम्मान करें

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आओ दिव्यांगों का सम्मान करें उन्हें भी कुछ खुशियां प्रदान करें मन दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो बंजर भूमि में फूल खिलते जो‌ मिला, खुश हो स्वीकारें परिस्थितियों भी दास बनते उनके मनोबल को बढ़ाकर हम कुछ तो पुण्य करें।। एक द्वार बंद करता ईश्वर तो दूसरा अवश्य खोलता आंखों की रोशनी छीनता अन्तर्मन में रोशनी भरता।। नयन हीनों के कंठ सरस्वती मधुर गायनका सम्मानकरें।। गिरतों को जो सहारा देते सबसे बड़ी है मानव सेवा दिव्यांगों के भाव समझते सबसे बड़ी है अर्चन देवा।। दिव्यांगों की भावनाओं का तन मन से प्रणाम करें।। जहां उन्हें अंधियारा लगे हम रोशनी का जहां बनाएं जहां-जहां वे चढ़ना चाहे ऊंची-ऊंची सीढ़ी बनवाए।। नई प्रतियोगिताएं शुरू करके उनमें नव उत्साह भरेंगे। खेलकूद, पढ़ाई या संगीत सभी में पाई है अपूर्व जीत पर्वत पर चढ़ने ...
इंसान का इंसान
कविता

इंसान का इंसान

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** इंसान ही इंसान को लाता है। इंसान ही इंसान को पालता है। इंसान ही इंसानियत सिखाता है। इंसान ही इंसान को मिटाता है।। देखो कही धूप कही छाव है कही ख़ुशी कही गम है। फिर भी इंसान ही क्यों इस दुनियाँ में दुखी है। जबकि उसे सब कुछ विधाता से मिला है। फिर भी अपने लिए क्यों और की चाहत रखता है।। देखो बिकता है आज कल हर चीज बाजार में। सबसे सस्ता बिकता है इंसान का ईमान जो। जिसे खरीदने वाला होना चाहिए बाजार में। और उसे कमजोर का भी आभास होना चाहिए।। देखो इंसान जिंदगी भर पैसे के लिए भागता है। जितने की उसे जरूरत हो उसे ज्यादा की चाहत रखता है। इसलिए तो अपनी जिंदगी में कभी संतुष्ट नहीं हो पाता। और पैसे की खातिर वो खुदको भी बेच देता।। देखो लोगों पैसे से जिंदगी और दुनियाँ चलती है। पर सब की किस्मत में पैसा नहीं कुछ और होत...
समर्थन
कविता

समर्थन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** विधवा शब्द कहना कठिन उससे भी कठिन अँधेरी रात में श्रृंगार का त्याग श्रृंगारित रूप का विधवा में विलीन होना जीवन की गाड़ी के पहिये में एक का न होना चेहरे पर कोरी झूठी मुस्कान होना घर आँगन में पेड़ झड़ता सूखे पत्ते ये भी साथ छोड़ते जीवन चक्र की भाति सुना था पहाड़ भी गिरते स्त्री पर पहाड़ गिरना समझ आया कुछ समय बाद पेड़ पर पुष्प हुए पल्ल्वित जिन्हे बालो में लगाती थी कभी वो बेचारे गिर कर कहरा रहे और मानो कह रहे उन लोगो से जो शुभ कामों में तुम्हे धकेलते पीछे स्त्री का अधिकार न छीनो बिन स्त्री के संसार अधूरा हवा फूलों की सुगंध के साथ मानों कर रही हो गिरे पूष्प का समर्थन। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) ...
लाडो सुनो हमारी…
कविता

लाडो सुनो हमारी…

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** डेटिंग वाले एप्प पर मुलाकाते हो रही लड़कियों को फँसाने पैसों से सेटिंग हो रही...... झूठा प्यार का नाटक होता है सात जन्मों का वादा होता है...... माँ बाप से झगड़ते है घर छोड़ भाग आते है लिव इन मे ये रहते है इसे ही आजादी कहते है...... दिखावटी जो प्यार था अब सामने आता है....... हर रोज घुट-घुट कर मरना लेकिन जीना पड़ता है फिर वो दिन भी आता है जब प्यार में श्रद्धा मारी जाती है 35टुकड़ो में फ्रिज में रखी जाती है.... बहन बेटी अब किसी आफताब की बातों में नही आयेगी मां-बाप की बातें मानेंगे तो कोई अब श्रद्धा नहीं मारी जाएगी.... परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विध...
मैं तुझे भुला ना पाउँगा
कविता

मैं तुझे भुला ना पाउँगा

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तेरी यादो के सहारे ये जिंदगी बसर कर लेंगे जहाँ की सारी दुष्वारियां नजरे करम कर लेंगे तेरी याद आने से पहले, मैं तुझे याद आऊंगा तुम भुला देना मुझे, मैं तुझे भुला ना पाउँगा हम तुम एक ना हुये तो क्या हुआ सनम चाहतो के भी अपने ही होंगे नजरें करम चाहतों के किस्से सारे जहाँ को बताऊंगा तुम भुला देना मुझे मैं तुझे भुला ना पाउँगा पत्थर के शहर में चाहत के शीशे बेच लेंगे सामने ना सही अक्स हम दिल में देख लेंगे दिल में तेरे लिए एक छोटा सा घर बनाऊंगा तुम भुला देना मुझे, मैं तुझे भुला ना पाउँगा जो मिल ना सके हम तुम कोई बात नहीं सवेरे उजाले भी तो होंगे हमेशा रात नहीं खुशियों की महफ़िल में तुमको बुलाऊंगा तुम भुला देना मुझे,मैं तुझे भुला ना पाउँगा हम वादों इरादों संग जीवन सफर कर लेंगे बिछुड़कर यादों संग जीवन बसर कर लेंग...
नासमझ बेटा, समझ ना पाया बापू
कविता

नासमझ बेटा, समझ ना पाया बापू

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** काश समझ पाते कीमत वक्त की काश मान जाते बात मात-पिता की काश रहते ना उतावले हमेशा काश कभी तो शांति से करते बात काश झुक जाते फर्ज की खातिर काश भनक लग जाती तूफ़ा की हमें भी काश आंचल में संभलते रहते धीरे-धीरे काश पिता का साया पहले याद करते काश कुछ जिम्मेदारियां हम भी बांट लेते काश कुछ वजन हम भी कर देते कम काश उन्हें भी सोने देते बेफिक्र होकर काश कभी हम भी उठ जाते पहले उनसे काश जिन हाथों ने हमेशा रखा सिर पर हाथ काश हम भी लगा लेते हाथ उनके चरणों के काश हमारी तरह होता सीना चौड़ा उनका काश मैं भी कर लेता पिता संग काम कुछ काश घर ऐसो आराम के बजाय दिखता घर काश हम भी समझ पाते दर्द उनका का भी परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कव...
मैंने कहा था
कविता

मैंने कहा था

अनुराधा शर्मा रायगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मैंने कहा था, लड़का बड़ा होके सहारा होगा। बेटा समझ बैठा, पैसे से ही गुज़ारा होगा। अब सोने की छड़ी तो है, पर सहारा मिलता नहीं। मखमली बिस्तर तो है, नींद आंखों में बसती नहीं। खाने को लज़ीज़ पकवान है, भूख़ लगती नहीं पीने को मीठा पानी है, प्यास बुझती नहीं। टेहलने को बाग है, मगर दिल बेहलता नहीं। रहने को बंगला है, पर वीराना दिल से जाता नहीं। जी खुशियों का मंज़र चाहता है, पर परिवार का इंतजाम नहीं। मैंने कहा था, लड़का बड़ा होके सहारा होगा। बेटा समझ बैठा, पैसे से ही गुज़ारा होगा। परिचय : अनुराधा शर्मा निवासी : रायगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी र...
कोई पता नहीं
कविता

कोई पता नहीं

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** अपने थे या बेगाने कोई पता नहीं। गम देगे या खुशियां कोई पता नहीं। मुस्कुरा कर गए या रुलाकर गए कोई पता नहीं। हंसते हुए रुला गए या रुलाते हुए हंसा गए कोई पता नहीं। बेनाम का नाम कर गए या फिर बदनाम कर गए कोई पता नहीं। अपनापन दे गए या बेगाना कर गए कोई पता नहीं। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित क...
क्या हो गया ज़माने को
कविता

क्या हो गया ज़माने को

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** क्या हो गया है इस ज़माने को, होड़ लगी है ज़्यादा पाने को, क्या हो गया .... भूल गये हैं अपने पराये को यहाँ, ज़िद्द लगी है अब दूर जाने को, क्या हो गया .... खो गया है आदमी अपनी ही चाल में, समा कर खुद में, भूल गया है ज़माने को, क्या हो गया .... लालच में पड़कर, लालच की बात करता है यहांँ, अब भूल गया है आदमी साथ रहने के तरानों को, क्या हो गया .... धर्म के नाम पर बंटता ही जा रहा हैैं यहांँ, खून तो एक ही है, लगा दिया है पैमाने को, क्या हो गया .... परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाच...
नियमों कानूनों की धौंस बताता हूं
कविता

नियमों कानूनों की धौंस बताता हूं

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** चेयर पर बैठने के बाद अपनी स्यानपत्ती चलाता हूं जनता के कामों में रोड़े अटकाता हूं मलाई हरे गुलाबी का इशारा देता हूं नियमों कानूनों की धौंस बताता हूं ऊपर से मिली हिंट दिशा निर्देशों पर काम करता हूं अर्जियों को हवा में उड़ा देता हूं ऊपर से नीचे तक हिस्सेदारी पर काम करता हूं नियमों कानूनों की धौंस बताता हूं डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर को भी चलाता हूं बड़े हिसाब से खूंटी गढ़ाता हूं डिजिटल काम भी चालाकी से लटकाता हूं नियमों कानूनों की धौंस बताता हूं हम सभी कर्मचारी हमाम में वो हैं समझता हूं कोई किसी की पोलपट्टी नहीं खोलता जानता हूं निलंबित होकर फ़िर वापस आ जाता हूं नियमों कानूनों की धौंस बताता हूं पद पर लगे का ब्याज सहित वसूलता हूं छोटे-छोटे कामों का भी बड़ा बड़ा लेता हूं कंप्लेंट का डर नहीं क्योंकि...