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कविता

विजया दशमी
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विजया दशमी

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** सनातन-संस्कृति की रक्षक, यह अखंड धर्म की कहानी है। यह अधर्म पर धर्म की विजय गाथा, यह विजयदशमी पर्व की कहानी है।। नारी का मान है अनमोल, रावण के अहंकार का क्या है तोल। मान-मर्यादा से है जीवन, तभी तो मारा गया दुष्ट रावण।। यह बुराई पर अच्छाई की है जीत, यह अज्ञान पर ज्ञान की है जीत। श्री राम ने अहंकारी रावण को मारा, जैसे सत्य ने असत्य को मारा।। शौर्य-साहस का है गुंजन, युद्ध भूमि में होता है क्रूंदन। नाभि में भी अमृत छुप ना सका, शक्ति से दानव बच न सका।। है रघुवर के वंदन का दिवस, शौर्य-तिलक और शस्त्र पूजन का दिवस। निश्चल प्रीत और सेवा का है दिवस, विजयदशमी है, रावण दहन का दिवस।। परिचय : रतन खंगारोत निवासी : कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुर...
अजनबी तन्हाई
कविता

अजनबी तन्हाई

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कौन सा दर्द अपने सीने में छुपाए रखते हो? मुस्कुराहट के पीछे कौन सा गम अपने ह्रदय में दबाए रखते हो? कहते हो तुम लोगों से अक्सर कि मुझे कोई गम नहीं ? फिर इस तन्हाई के आलम में किस से गुफ्तगू का माहौल बनाए रखते हो? सुना है लोगों से कि तुम बहुत बातें करते हो पर आता है नाम मेरा तो क्यों अपने लबों पर खामोशी और आंखों में मुस्कुराहट रखते हो? परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाया...
ददा के कदर कर लव
आंचलिक बोली, कविता

ददा के कदर कर लव

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी रचना) जइसे मैं हर थोरकुन रिसहा गोठ कहेंव मोर लइका फुस ले रिसागे, ओखर अक्कल के कोनो तिर घिसागे, दिन भर घर म आबे नइ करय, घर के चुरे भात साग खाबे नइ करय, दिन भर ऐती ओती छुछवावय, मोला देख मुंह अंइठ रिस देखावय, मैं अड़बड़ परेसान, का होही सोच सोच हलकान, के ए हर कब तक बइठ के खाही, अपन जिनगी चलाय बर कब कमाही, अभी के संगी संगवारी ल देखत हे, आघु चल के का होही नइ सरेखत हे, ओखर कइ झन संगी मन घर चलात हे, बिहान होत बुता म लग जात हे, रात दिन के पइसा उड़ाइ ओ दिन सटक गे, जब दु सौ रूपिया कमाय खातिर दिन भर के मेहनत म संहस अटक गे, एके दिन के बुता म कुछु समझ नइ आही, पइसा बचाय अउ उड़ाय के फरक चार महीना कमाय के बाद जान पाही, ददा के जिंयत ले सगरो सुख संसार हे, बाप के सीख ल मान लौ बेटा होव...
अपभ्रंश…
कविता

अपभ्रंश…

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रेम- अद्भुत भ्रम है हम दूर रहकर भी साथ रहते हैं और हम साथ रहते हुए भी अलग रहते हैं। तुम्हारे साथ रहकर भी मैंने अपने भीतर एक अज्ञात शून्य पाया। स्मृतियों की परतों में न जाने कितनी बार हमने संग-साथ रचा- पर समय की कलम ने हर अध्याय को अधूरा ही छोड़ा।। तुम मेरे समीप थे, फिर भी मेरे स्पर्श तक कभी नहीं पहुँचे।। मानो एक पारदर्शी दीवार हमारे मध्य खड़ी थी, जो किसी अक्षर की तरह देखी जाती रही, पढ़ी कभी नहीं। विचित्र है- जीवन की व्याख्या हमने मिलकर लिखी, पर अर्थ अलग- अलग निकाले। और मैं आज सोचता हूँ- क्या प्रेम सचमुच दो आत्माओं का एकाकार होना है? या फिर अलग-अलग आत्माओं का अपने-अपने एकांत को जी भरकर जीने का अवसर? क्योंकि मैंने जाना है, तुम्हारे साथ रहकर भी मैं अप...
जगत पालनहार माँ
कविता

जगत पालनहार माँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** शक्ति का स्वरूप हैं माँ हम सब की भक्ति का रूप हैं माँ मुक्ति का धाम हैं माँ हर जीव के जीवन का आधार है माँ !! माँ के नौ रूप निराले करुणा, ममता, मिले अपार दया-प्रेम से सुशोभित है रूप सभी रूप अद्भुत साकार!! विध्वंस किया सब असुरों का ज़न-ज़न का कल्याण किया धरा, गगन, नदियां, उपवन अद्भुत अनुपम उपहार दिया, निज स्वार्थ वश अंधे होकर हमने इनका तिरस्कार किया!! माता की सवारी है सिंह, मयूर, गर्दभ, गजराज, हंस और मृग गजराज, वृषभ और गौ माता सारे जीवो से सजा स्वरूप!! सारे जीवों में जब वास है इनका तब क्यों होता इनका दोहन, इनका भक्षण इनका शोषण?? कैसे हम भक्त कहलाते हैं, कैसी भक्ति, कैसा पूजन??? चहुँ ओर मचा है हाहाकार हर घर मे आया है काल हे माँ तुम ही हो पालनहार करो दया दृ...
इंतजार
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इंतजार

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** अंधेरों को जैसे रोशनी का इंतजार है। नफरत को जैसे मोहब्बत का इंतजार है। बादलों को जैसे बरसने का इंतजार है। राहों को जैसे हमराही का इंतजार है। वृक्षों को जैसे खिलते हुए पत्तों का इंतजार है। सूखी भूमि को जैसे वर्षा का इंतजार है। सावन को जैसे बहारों का इंतजार है। वैसे मुझे तुम्हारा मेरे जीवन में इंतजार है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, र...
जान कर भी क्या कर लोगे
कविता

जान कर भी क्या कर लोगे

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हकीकत जान कर भी क्या कर लोगे, उन्हें ही गरियाओगे और उन्हीं को सेवा दोगे, यह वो तबका है जो गाली सुन सकता है, मालिक कभी भी धुन सकता है, ताज्जुब की बात यह है कि मार खाने वाला इस पर नहीं गुन सकता है, सेवा स्वीकार है सत्ता के बदले, उन्हें याद नहीं सब कुछ निहत्थों ने बदले, सेवा स्वीकार है दरी बिछाने के एवज, असंवैधानिक शब्दों से पुकारे जाने के एवज, सेवा स्वीकार है चंद सिक्कों के बदले सामाजिक दलाल कहलाना, अपमानों को सह-सह खुद को बहलाना, मगर अपने समाज को दे क्या रहे हो? उसी घिसी पिटी व्यवस्था की परिपाटी, अपनों से ऊंचा दिखने की चाह संग ख्याति? कुछ मेहनतकशों के बनाये रास्ते मिल जाने से दे सकते हो मूछों को ताव, बढ़ सकते हो आगे अपनों को देकर घाव, तुम्हारे जैसे चंद चमचे देंगे तुम्हें भाव, ...
दशकंधर
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दशकंधर

डॉ. राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** प्रश्न खड़ा था दशकंधर पर, मान और अभिमान का। रक्ष संस्कृति शान से जिए, झुके न आत्म सम्मान का। आशुतोष का भक्त निराला, कालो के महाकाल का। शिव तांडव स्त्रोत सृजन , और वेदों के शृंगार का।। शीश चढ़ाया शिव शंभू को, और वरदान विजय का। रक्ष संस्कृति के मुक्ति को, श्री हरि से द्वेष का।। आत्मज्ञान द्वीज कुल भूषण, और रावण संहिता का। सागर की लहरों से खेले, युद्ध रण हर कौशल का।। अस्त्र शस्त्र से हुए सुसज्जित, वरदानों के भंडार का। दृढ़ संकल्पित हो जीवन में, संभव हर काम का।। गंगाधर को शीश उठाया, लै भुज स्कन्ध हाथों से। सिगिरिया के कनक महल, लै कुबेर के हाथों से।। तीन लोक चौदह भुवन, प्रबल प्रताप प्रकंपित से। एक छत्र अंबर सम हो, दशग्रीव के शासन से।। माना दंभी मैं रावण हूँ, सम्राज्य के विस्तार का। कौन नहीं चा...
अनमोल भाव
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अनमोल भाव

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** कवि की कविता को जाने, कवि की भावना पहचाने, चिन्तन की गहराई जाने, मनन की एक सोच पहचाने। आकाश सी ऊँचाई जाने, पंछी सी उडा़न है उसकी। एकाग्रता का ध्यान है उसमे, ज्ञान और विज्ञान है उसमें, धर्म और समाज का बोध है उसमे, ज्वालामुखी सा विस्फोट है उसमें। नदी सा बहाव है उसमें, चक्रव्यू सी रचना है उसमें। तोलमोल के तराजू मे तोल, आग मै तपकर सोना बनता अनमोल। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "साहित्य शिरोमणि अंतर्राष्ट...
द्वेष
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द्वेष

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** देवता बनकर हमारे आँगनों में द्वेष बैठा। ले विकारों की कलाएँ गृद्ध सा अनिमेष बैठा।। नित्य होती अर्चनाएँ आरती के थाल सजते, दीप जलते पुष्प चढ़ते किन्तु दोष विशेष बैठा।। द्वेष के कारण समस्या राग की ज्यादा बड़ी है। चाहते हैं शान्ति लेकिन भ्रान्ति कुछ ऐसी जड़ी है।। चैन से सोने न देती साथ बेचैनी पड़ी है। भाव मय थी भावना दुर्भावना लेकर खड़ी है।। अट्टहासों की जगह पर हैं अधर पर रुष्ट ताले। छीन कर मुस्कान तक को कर दिया मद के हवाले।। क्लेश थमता ही नहीं है शान्ति के हैं आज लाले। शत्रुता तक आ गए हैं हो रहे सम्बन्ध काले।। लोग कुण्ठाग्रस्त होकर मन मसोसे चल रहे हैं। लग रहे मौनी तपस्वी किन्तु सबको छल रहे हैं।। हम दुखी हैं वह सुखी है इस जलन में जल रहे हैं। इस जलन की डाह पर हम दूसरों को खल रहे हैं।...
प्रणाम है मां भारती
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प्रणाम है मां भारती

डॉ. रीना सिंह गहरवार रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** नव पुष्पित, नव पल्लवित नवज्योति पुंज, जगतसुखदायनी पूजित रघुराज कर, तम विनाशिनी पूजित अखंड दीप, जौ, पुष्प से शक्ति संचारक नवनिधि दायिनी कर प्रयोग संपूर्ण शक्ति का हो तम को विनाशती दसशीष धारी को धूल-धूसरित धारती। कर क्षत-विक्षत दसानन मारती हे जगत देवी प्रणाम है मां भारती। परिचय :- डॉ. रीना सिंह पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर, रीवा (मध्य प्रदेश) शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रक...
गाँधी जी
कविता

गाँधी जी

प्रीतम कुमार साहू 'गुरुजी' लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** सत्य अहिंसा के पुजारी हिंसा के वो खिलाफ थे अपनी बात मनवाने का उनका अलग अंदाज थे..!! वकालत की नौकरी छोड़ विदेश से वतन को आए गुलामी की जंजीर तोड़ने संघर्ष का मार्ग अपनाए..!! तन मन धन,समर्पण कर, जीवन अपना,अर्पण कर.. नमक कानून तोड़ दिए, गाँधी जी नमक बनाकर…!! विदेशी वस्त्र को जलाकर, खादी वस्त्र को अपनाकर. अंग्रेजों को विवश कर दिया, आमरण अनशन चलाकर.!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू, गुरुजी (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, रा...
खुद से एक मुलाकात  करो
कविता

खुद से एक मुलाकात करो

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** सफर तो बस ऐसे ही चलते रहता है हवाओं का रुख भी बदलते रहता है कभी अपनों की अपनों से बात करो कभी खुद से भी एक मुलाकात करो खुद को भूले है केवल जगत के लिए जी रहे हैं केवल अब अपनों के लिए कभी खुद की भी बयाने हालत करो कभी खुद से भी एक मुलाकात करो वक्त कट न जाए केवल लाचारी में जैसे कट ही रहा है दुनियादारी में कभी खुद की बयाने जज्बात करो कभी खुद से भी एक मुलाकात करो ख्वाब तोड़े हैं हमने स्वयं के कितने जुल्म सहे है जहां के हमने कितने टूटे ख्वाबों की भी तो ख्यालात करो कभी खुद से भी एक मुलाकात करो आज मे ही जीवन को खुशहाल करो भविष्य खातिर,आज ना बदहाल करो बदलते वक्त से वक्त की भी बात करो कभी खुद से भी एक मुलाकात करो परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचा...
मैं और मेरा “मैं”
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मैं और मेरा “मैं”

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** मैं और सामने अडिग खड़ी सुदृढ़ लाल किले की सी तनी प्राचीर मेरी "मैं" की बैठे हैं इस पर अनेकों उल्लू भांति भांति के रूप धरे क्रोध... मान... माया... लोभ... विकसित हैं गहरे काम तंतु सोने पे सुहागा पालती है इन सब को शक्तिमान ये "मैं".... अनचाहे इन उल्लूओं की जमी है गिद्ध दृष्टि मेरी इस " मैं " पर उलझ कर भ्रमित करती हवाओं से मन उड़ने लगता है पवन वेग से चढ कर लिप्सा के हवाई घोड़े पर बढती जाती है असीमित कामनाएँ उद्वेग उठता महत्वाकांक्षाओं का मन गिरने लगता है वासना के अंधकूप में और सच्चाई घुल बह गई नयनों के काजल में अच्छाई दब गई दर्प की झीनी चादर में मति भ्रष्ट हो गई विषय विकार के दलदल में गुम गया मन भौतिकता की चकाचौंध में फिर हो गया लौटना नामुमकिन वापस मन का कल्याण कहाँ पथभ्...
किसने कब सोचा था
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किसने कब सोचा था

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था। घर से लेकर शाला तक सड़क नियम बताना लोचा था। कितनी शिद्दत चाहत से नव-पीढ़ी आती है सड़कों पर। करते अरमान सुरक्षित भविष्य भी अति सुंदर चलकर। घर शाला से सत्ता शासन सब नियम से लेता लोहा था। सुनने सीखने मिली उमर में जीवन से मानो सौदा था। फजीहत राह घटित आंसू हरेक छोटे बड़े ने पोंछा था। नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था। घर से लेकर शाला तक सड़क नियम बताना लोचा था। ये भारत देश यहां बाएं से ही चलना प्रथम जरूरी हो। उल्टे चलते बूढों बच्चों बड़ों की लत क्यों मजबूरी हो। खुद की जान मिटेगी और बेकसूर अकारण खोना था। राष्ट्र विकास की राह चले मगर गलतियों का रोना था। वाहन चालन वक्त भटके प्रसंग में दिमाग ही ढोना था। नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था। घर से लेकर शाल...
चिड़िया
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चिड़िया

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** उड़ती चिड़िया आसमान में दोनों पंख फैलाए। छोटी सी अपनी चोंच से दाना-दाना चुग खाएं। अपने पंख फैलाए उड़ती पूर्व से पश्चिम उत्तर से दक्षिण हर कोने पर अपना हक़ जमाती। डाल-डाल पर पात-पात पर बैठ अपना मधुर गीत सबको सुनाती। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी क...
आंख मूंद न अपना कहो
कविता

आंख मूंद न अपना कहो

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कौन हितैषी, दुश्मन कौन ये हम को पहचानना होगा, किसी की झूठी बातों को आंख मूंद नहीं मानना होगा, बनके आएंगे बहुत हितैषी, मंशा पाले वो कैसी कैसी, हो सकता है वो बड़ा दलाल, कहेंगे खुद को बहुजन लाल, चढ़ा लोगे जब उसे नजर में, निकल पड़ेगा सौदे की सफर में, अच्छे से पहचानो उसको, मान रहे हो अपना जिसको, जो करता है संग रह अय्यारी, पड़ेगा समाज पर वो तो भारी, सरल राह यूं ही न मिलेंगे, छुप रिपुओं से गले मिलेंगे, बढ़ जाता जब प्रभाव व दौलत, फिर दुश्मन से मिलेगा उसी बदौलत, महापुरुषों का पहले लेगा नाम, गड्ढे खोदने खातिर समाज में करेगा वो हर काम तमाम, एन वक्त पर धोखा देकर बन सकता है वो दरीबाज, बहुतों में हम देख चुके हैं दलाली वाला ये अंदाज, तर्क करो व सतर्क रहो, बारीकी से पहचानो सबको आंख मूंद न अपना कहो। ...
मैं जब भी जाऊंगी
कविता

मैं जब भी जाऊंगी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** जब भी जाऊंगी, कोई प्रश्न अधूरा नहीं छोड़ूगीं, पूर्ण विराम लगा कर जाऊँगी! अर्धविराम रिश्तों को जीवित नहीं रहने देता है, जीवन मे समर्पण होना चाहिए! प्रेम जीवन का आदि और अंत दोनों होता है! प्रेम में अधूरेपन की कोई जगह नहीं होती उसमे पूर्ण समर्पण होना चाहिए, अपने आराध्य के प्रति संपूर्ण समर्पण! दिल मे कोई दुविधा नहीं, मन मे कोई प्रश्न नहीं, प्रेम स्पष्ट निर्णय होना चाहिए! शांत भाव से भीतर ही मिट जाना, फिर शब्दों मे कोई ठहराव नहीं होता! कोई अपूर्णता नहीं छोड़कर जाऊँगी, प्रेम की परिभाषा पूर्ण करके विदा होऊँगी!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवा...
तर्पण की हकीकत
कविता

तर्पण की हकीकत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मात-पिता प्यासे मरे, अब कर रहे हैं तर्पण। यह तो ढोंग ही दिखता है, दिखावा है अर्पण।। जब जीवित थे मात-पिता तब ही सब ज़रूरत थी। आज तो यह सारी दिखावे से भरी हुई वसीयत है।। जीवित की सेवा का ही तो होता सच्चा मोल है। बाद में दिखती कर्मों में लम्बी, गहरी पोल है।। अब मात-पिता जल कैसे पी सकेंगे, सोचो। अब मात-पिता कैसे भोजन कर सकेंगे, बाल नोचो।। अब तो श्राद्ध करना पूरी तरह से मिथ्या, बेमानी है। यह तो पाखंड भरी हुई एक निरर्थक कहानी है।। सेवा, सु‌श्रूषा जीवित अवस्था की ही बस सच्ची है। नहीं तो सब कुछ बेकार, झूठी और कच्ची है।। जीवन में तो मात-पिता होते हैं देव समान। इसलिए उनके जीवित रहते में ही करो उनकी सेवा-सम्मान।। मात-पिता प्यासे मरे, अब कर रहे तर्पण। ज़रा देखो संतानो तुम आज तो सच का दर्पण।। परिचय :- प्...
सवाल
कविता

सवाल

माधवी तारे लंदन ******************** आज जागृत मंच ने किया खड़ा एक सत् सवाल साहित्य जगत में क्या जल सकेगी कृत्रिम बुद्धिमत्ता की मशाल स्मरण रहे इसे मत भूलना जहां सच्चाई ही खपाना नहीं होता इतना आसान वहां कैसे चमक सकेगी कृत्रिम बुद्धिमत्ता की शान भूल गए क्या गीत पुराना खुशबू आ नहीं सकती है कागज के फूलों से सिखा गए हैं राजेश खन्ना अद्भुतता से भरा रहता है विज्ञान क्षेत्र का सदा खजाना फिर भी असंभव सा होता है दैवी आपदाएं रोकना साहित्य जगत के प्रांगण में अनिवार्य है मानव संवेदना कैसे बाधित कर सकती उसे फिर कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भावना परिचय :-  माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) अध्यक्ष : अंतर्राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (लन्दन शाखा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
मिथ्या गर्व
कविता

मिथ्या गर्व

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सरिता के सगंमो से सिखो मिलजुल कर आगे बढना सागर की उतुग उठती लहरो से सिखो उचे उठना। निर्झर के जल से सिखो नम्रता से नीचे झुकना आमर् वृक्ष से सिखो कोई प्रहार करे, पत्थर मारे फिर भी फल देना, फल गिराना। झुक कर पथिक को छाया देती वृक्ष की टहनी से कुछ सिखो गुनगुनाते भवंरे, पाखी से सिखो धैर्य धारण करना ह। पर्वत पर खडे वृक्षो से सिखो जल मे अपने प्रतिबिम्ब का निरन्तर अन्वेषण करना प्रकृति यह सब मौन मे करती है मानव के लिये और मानव हाँ मानव ऊंची आवाज कर कहता है मैने दान दिया, मैने दान किया यह मिथ्या गर्व है मानव का मिथ्या गर्व है मानव का। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ वि...
मेरे अनकहे अल्फ़ाज़
कविता

मेरे अनकहे अल्फ़ाज़

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** एक ख़त जो मैंने कभी नहीं लिखा, पर दिल ने उसे हर रोज़ पढ़ा। हर पन्ना मेरे दिल की धड़कनों का आईना था, हर लफ़्ज़ मेरी अधूरी चाहत की गूँज। कितनी बार मैंने उसे अपने दिल में संभाला, कितनी बार अपनी साँसों में छुपा लिया। हर मुस्कान तुम्हारे लिए थी, हर आँसू मेरे भीतर दबा रहा। कभी सपनों में तुम्हें पाया, कभी यादों में तुम्हें खोया। मेरे शब्द अधूरे, मेरे ख्वाब अधूरे, पर इन खामोशियों में मेरा प्यार पूरा था। गुज़रती हवाओं में तुम्हारी खुशबू थी, गुज़रते पलों में तुम्हारी मुस्कान थी। फिर भी मैं लिख न पाया, क्योंकि डर था- शायद तुम नहीं समझ पाओ। कितनी रातें जागकर तुम्हें सोचता रहा, कितनी सुबहें तुम्हारे बिना टूटी। मेरे हाथों में अधूरे खत, मेरे दिल में अधूरी बातें, मेरी आत्मा में अधूरा प्यार। कितन...
हिंदी से लगाव
कविता

हिंदी से लगाव

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** मैं रोज हिंदी में बोलता हूँ रोज हिंदी के नए शब्द ही लिखता हूँ रोज में हिंदी ही रुचि से पढ़ता हूँ अनुवाद सिर्फ हिंदी में करता हूँ गद्य पद्य हिंदी में रोज लिखता हूँ हिंदी भाषा का ज्ञान लिखने पढ़ने में रोज व्यवहारित करता हूँ लेखकों कवियों रचनाकारो की रोज नवीन पुरानी अनमोल पुस्तकें सुबह से शाम फुर्सत में रोज संग्रह करता हूँ फुर्सत में रुचिकर रचित ज्ञान अन्तर्मन से पढ़ लेता हूँ रोज नए नए रोचक ज्ञान की खुराक पढ़कर लिखकर अनमोल ज्ञान से तृप्त हो लेता हूँ हिंदी की पुस्तकों का भरपूर खजाना उनका एक-एक पन्ना मन मस्तिष्क में भर लेता हूँ हिंदी की पुस्तकों से रोज असीमित ज्ञान के भंडार को रोज प्रेम से भर लेता हूँ यही है पूंजी सँजोकर रोज सुरक्षित रखता हूँ हिंदी की गहराई में खुशियों को ही नहीं सबके बीच हिंदी ज...
नवरात्रि कलश स्थापना
कविता

नवरात्रि कलश स्थापना

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सबसे पहले साफ स्थान से मिट्टी लायें, अब गंगाजल छिड़कर उसे पवित्र बनायें। मिट्टी को चौड़े मुंह वाले बर्तन में रखें, तत्पश्चात उसमें जौ या सप्तधान्य बोएं। उसके ऊपर कलश में जल भरकर रखें, कलश के ऊपरी भाग में कलावा बांधें। कलश जल में लौंग, हल्दी व सुपारी डालें, दूर्वा और रुपए का सिक्का डालना न भूलें। कलश के ऊपर आम या अशोक के पल्लव को रखें, अब एक नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर रखें। नारियल को कलश के ऊपर श्रद्धाभाव से रखें, इस पर माता की चुन्नी और कलावा जरूर बांधे। मातारानी की कृपा से कलश स्थापना सफलतापूर्वक हो गई, फूल, कपूर, अगरबत्ती, ज्योत के साथ पूजा की बारी आ गई। नौ दिनों तक मां दुर्गा से संबंधित मंत्रों का जाप करना है, श्रध्दा-भक्ति के साथ उनकी विधि-विधान से पूजा करना है।...
विजयादशमी
कविता

विजयादशमी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मेरे लंका रूपी मन के, विषय विकारी रावण को। आप जीतने आना प्रभु, आश्विन शुक्ल दशमी को। अन्तर्मन में दीप जला, सत्य विजयभव कहने को। आना सद् चरित्र करने, मैं आहुत करूं दशहरे को। असुरों सा संहार करें, काम,क्रोध,मद, लोभ को। वंचक कपटी मन से, प्रभु दूर करें मनोरोग को। धर्म पथिक रहूं सदा, नमन सीता के सम्मान को। कलयुग का केवट करता, नित वंदन श्रीराम को। असत्य पर सत्य की जीत, दोहराना इतिहास को। कलयुग कर दो त्रेता को, अवध मेरे हिंदुस्तान को। हर घर याद दिला दो, इंसा भूल गए भगवान को। मन मंदिर में मानव देखो, क्यूं पूजता लंकेश को। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रच...