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कविता

नया साल
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नया साल

वीणा मुजुमदार इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैं क्यूं अलविदा कहूं बीते साल को वही कल नया साल दिखलायेगा लम्हा-लम्हा करके वक्त गुजरता जायेगा इक वक्त बाद बीता साल कहलायेगा। जो मेरे संग संग हैं उन्हें मुबारक नया साल जिन्हें खो दिया गत में रहेगा उनका मलाल। कुछ मिश्रित यादों भरा याद रहेगा गुजरा साल कुछ ने खींची टांगे और निकाली बाल की खाल। कुछ अनुभव तीखे मीठे थे कुछ थे खट्टे कड़वे नये वर्ष के नये अनुभव हों सारे मीठे मीठे। कुछ प्यारे पल मिले औ कुछ ग़म भरी यादें कुछ पलों ने किये नये साल में मिलने के वादे। गलती हुई हमसे ग़र कान पकड़कर माफ़ी दे दो कान न पकड़ेंगे हम दोबारा हमसे तुम वादा ले लो। इस ठंडे मौसम में चलो कुछ गर्मी लायें रिश्तों की गर्माहट में नया साल मनायें। परिचय : वीणा मुजुमदार निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करत...
अलविदा
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अलविदा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** बीत गया जो, बीत गया वह, आगत का सत्कार करो। नूतन का करके अभिनंदन, जाते से भी प्यार करो।। कहीं तिमिर, तो कहीं उजाला, सूरज है तो रातें हैं। सुख,विलास है, तो बेहद ही, दुक्खों की बरसातें हैं जीवन फूलों का गुलदस्ता, हर पल को उपहार करो। नूतन का करके अभिनंदन, जाते से भी प्यार करो।। एक साल जो रहा साथ में, वह भी तो अपना ही था। हमने जो खुशहाली सोची, वह भी तो सपना ही था।। दुख, तकलीफें, व्यथा, वेदना, कांटों का संहार करो। नूतन का करके अभिनंदन, जाते से भी प्यार करो।। यही हक़ीक़त यही ज़िन्दगी, है बहार तो वीराना। कभी लगे मौसम अपना-सा, कभी यही है अंजाना।। आशाओं का दामन थामो, अवसादों पर वार करो। नूतन का करके अभिनंदन, जाते से भी प्यार करो।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मं...
महात्मा गांधी
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महात्मा गांधी

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** हे राम जीने की जीवनशैली को परिपूर्ण कर समाज राष्ट्र को नई दिशा देकर, राम जो ईष्ट है हम सबके अन्तर आत्मा से उनकी अंतिम सांसों से निकला, बापू महात्मा गांधी से अमर वाणी बनकर हे राम, हे राम, हे राम भारत की अन्तरात्मा में बस गए है। एकता, अखंडता, धर्मनिरपेक्षता सनातनधर्म की पहचान बनें इंसानियत को सर्वोपरि रखा चल पड़े सबको जोड़ने, जुड़ने स्वतंत्र भारत के लिए जनहित में, देशहित में, हिंसा के खिलाफ थे अंहिसा से जीत लिया भारत को प्रगतिशील भारत की नींव रखी इसलिए आज भी भारत की अन्तरात्मा में बस गए। मां का स्वरूप लिए उनका पूरा साथ दिया पत्नी ने सारथी बन अग्रणीय रही मां कस्तूरबा गांधी उन्हें कभी अपने पथ से विचलित नहीं होने दिया गगन मातृभूमि के लिए, स्वतंत्र भारत के लिए अपनी जिम्मेदारियों कभी पिछे नहीं ...
दर्प दलन
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दर्प दलन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत भू पर खिली ज्योत्सना बन यामिनी की रानी मंद-मंद पवन इतराती भारत मां की बन दासी। पाकर वीर जवान निराले वसुंधरा है मदमाती मस्ताने वीरों से सजी है भारत भाल की थाली। निकली यहां से वीरांगनाएं लेकर ढाल कटार गद्दारों को मार मार कर हुईं स्वयं निढ़ाल झुका नहीं पर मस्तक इनका बैरियो के दर्प में दर्प दलन कर दम लिया भारत मां के वीरों ने। राणा झांसी के चेतक उछले उछाल दिए भीम बनकर बैरियों के शस्त्र खोटे चंद्र, दास, रवि की रचना वितरित हुईविश्व विस्तार में गांधी, बोस, भगत सिंह का बलिदान अपार था संसार में। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ ...
आओ संकल्प करें
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आओ संकल्प करें

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अद्वितीय संस्कृति अनुपम नववर्ष वंदन अभिनंदन करें हम अतिहर्ष सहज प्रेम मानवता का हो उत्कर्ष घृणा-द्वेष दानवता का हो अपकर्ष मानव मानव का बने सच्चा मित्र नैतिक मूल्यों से महके सबका चरित्र खुशियों के घर-घर गूंजे मंगल गीत अपनों के अपनेपन भरी हो रिश्तो में प्रीत सेवा- सत्कार करें हम पूर्ण मनोयोग एक-दूजे संग हो सामंजस्य - सहयोग शुभ मंगल से हो नित- नित संयोग कर्मशील श्रमसाधक बन करें कर्मयोग दिनचर्या में सम्मिलित हो प्राणायाम योग स्वस्थ निरोगी काया हो सताए न कोई रोग परिष्कृत विचारों से भरा हो मन व्योम शुद्ध सात्विक आहार का हो उपयोग परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
मना लेते है…
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मना लेते है…

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** नजारा देखकर यहाँ का दिल रुकने को कहता है। फूलो के बाग में देखो भंवरा कुछ कहता है। तभी तो झूलते फूलों से महक बहुत आती है। जो मोहब्बत करने वालों को बहुत ही लूभाती है।। फूलों की किस्मत को देखो मोहब्बत हम करते है। पर देखो होठों का स्पर्श मिलता है इन फूलों को। तभी तो दिल में हमारे एक हलचल सी होती है। जो मोहब्बत का प्रतीक इन फूलों में दिखता है।। खिलते फूल डोलते भंवरे मोहब्बत को खोजते है। और मोहब्बत करने को फूलों के बाग चुनते है। बड़े ही किस्मत वाले है ये बगीचे के फूल देखो। मोहब्बत हम करते है पर श्रेय फूल ले जाते है।। फूलों की किस्मत का हम अंदाज लगा नहीं सकते। बहुत कोमल होकर भी कभी ये खिलने से नहीं रोकते। और अपना फर्ज निभाने से कभी भी पीछे नहीं हटते। इसलिए देकर फूलों को मना लेते है रूठों को।। ...
नूतन वर्ष मंगलमय हो
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नूतन वर्ष मंगलमय हो

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** नूतन वर्ष मंगलमय हो, सारा जहां रोशन रहे। दिन दुनी रात चौगुनी हो, खुशियों की सौगात रहे। पुलकित मन सबका हो, ऐसा मन में विश्वास रहे। खुशियों भरा जीवन हो, भाईचारे का विस्तार रहे। इच्छाओं की पूर्ति हो, शतबुद्धि हमारे पास रहे। धन संपदा घर में हो, सुख समृद्धि का वास रहे। फूलों की तरह महक हो, गुलिस्तां का बागवान रहे। प्रेमभाव और समागम हो, सदा ईश्वर का वरदान रहे। मूलमंत्र है सहज जीवन हो, सद्द्विचारों का सम्मान रहे। नववर्ष की पावन बेला हो, अनुपम रिश्तों में सुधार रहे। परिचय :-  हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" निवासी : गंजबासौदा, जिला- विदिशा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
नववर्ष का उपहार
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नववर्ष का उपहार

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** कोहरे की चादर फैली थी जीवन में हो गया विहान सूरज आया चौबारे में आनन विहँसा कमल समान। हौले-हौले किरणें बिखरीं छँटी धुंध था स्वर्णिम काल उजला-उजला लगा दीखने रक्तिम पुष्प खिला ज्यों ताल। मादक सुगंध के प्रसरण से महक उठे गृह के कोने गौरीसुत ने आशीष दिया तन-मन के कष्ट लगे खोने। पुष्पमाल गज कण्ठ विलग ज्यों गिरे धरा पर अभयदान ऐसे ही तन-मन शून्य हुआ मिल गया तोष जीवन समान। अरुण अरुणिमा तन पर धारे गोदी में था अति प्रिय लाल मैं नेत्रांभूषित वात्सल्य भरे निरख रही ज्यों विजय माल। उपहार भरा मेरा जीवन तू वत्स! प्रफुल्लित पुष्पित हो आशीष मातृ का तुझको है सूरज-सा हर पल गौरव हो। परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुर...
नववर्ष
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नववर्ष

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** दो हजार बाईस के, कुछ ही दिन है शेष। आया है नववर्ष यह, ले पावन अनिमेष।। (१) शुचि संदल नववर्ष है, दो हजार बाईस। खुशियों की दस्तक रहे, प्रति घंटे चौबीस।। (२) अंतस से शुभकामना, जनमानस मन भाव। आगंतुक नव वर्ष में, संचित प्रीति लगाव।। (३) स्वागत करते है सभी, आनन खिलता हर्ष। मनुज भाव नववर्ष में, हृदय रुचिर उत्कर्ष।। (४) पथ कंटक सब दूर हो, हटे तमस का जाल। संदल शुचि नववर्ष में, खुशियाँ मालामाल।। (५) आया है नव वर्ष शुभ, हर्षित मन के तार। संकल्पित मन भावना, जनहित मन आधार।। (६) सत्य नेक शुचि हो डगर, राग द्वेष छल त्याग। रिश्तों की मनुहार ले, हृदय रहें अनुराग।। (७) शिथिल उदर की तृप्तता, जन मानस की चाह। तन पर सबके हो वसन, आलय अन्न अथाह।। (८) प्रण कर नूतन वर्ष में, अधर मृदुल हो बोल। करुणा दया निदा...
बसंत बहार
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बसंत बहार

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** वसुंधरा में फिर से नव बहार आ गयी है। जन जीवन में नवीन खुशियां छा गयी है।। शिशिर ऋतु में हरित धरती वीरान थी। जीर्ण-शीर्ण तरुओं से दुनिया मसान थी।। बूढ़े पत्ते और फूलों का दर्द कौन समझे? प्रकृति के प्राणी पुनर्जन्म चक्र में उलझे।। हवाएं गीत गाती, लहराती, नाच रही है। अपनी प्रेम और वेदना को भांप रही है।। अमृतफल के डालियों में कोयल कुहूकी। पुष्प पल्लव के खुशबू से वादियां महकी।। हर्षित प्राणीजन कर रहे उत्सव की तैयारी। पंख फैलाकर उड़ रही है तितलियां प्यारी।। प्रणय की धुन बजा रहे हैं मतवाले मधुकर। हवा में नाच रही है कलियां झूम-झूम कर।। हरित आभा को देखकर चकित है संसार। देखो चहूंओर फैली है खुशियों का अंबार।। करो सहृदय कविराज बसंत का गुणगान। भरलो मन में भव्य कल्पनाओं की उड़ान।। उल्लासित हो स्वागत करो बसं...
नमन नववर्ष का
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नमन नववर्ष का

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** आओ! करें नमन नववर्ष का भूल पुरानी यादों के समंदर को मना ले नवल का त्यौहार मिलझूल झूमे गीत गाए। भूले दुःख-दर्द बीते वर्ष के माफ करे दिए कष्ट जिन्होंने इस नववर्ष की बेला पर बना लेते हैं शत्रु को भी मित्र। चलेंगे संग में पुराने सखा भुला देंगे दुःख भरी यादों को अपनों का आशीर्वाद साथ में नववर्ष को लगा लो गले। शीत-ऋतु की ठंड में करें आगाज मन के मतवाले बन छा जा जग में एक-दूजे का साथ निभा ले दोस्ती आलस त्याग संघर्ष को लगाओ गले। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से प्रशंसा पत्र, दैनिक भास्...
सर्द भरे इस मौसम में
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सर्द भरे इस मौसम में

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** सूनी सड़कें, सूनी गलियांँ, हो जाती हैं इस मौसम में, ठंड कड़ाके की पड़ती है, सर्द भरे इस मौसम में, पहाड़ों पर बर्फ की चादर, सुहानी लगती है इस मौसम में, सफेद रंग में रंगे हैं पर्वत, मानो शान्ति चाहते इस मौसम में, गांँव शहर सब में ठंडक, आग जलाते इस मौसम में, सर्द हवाओं का जो चलना, बड़ा सताता इस मौसम में, खेतों में जो खड़ी फसल हैं, दाना लेती इस मौसम में, लहलाती हैं पीली सरसों, मन भा जाती इस मौसम में, गर्म रजाई ओढ़े मैया, दुबकी रहती इस मौसम में, छत पर जाकर धूप सेकते, लोग लुगाई इस मौसम में, सूर्य देव भी रूठे रहते हैं , कोहरे में खो जाते इस मौसम में, इंतजार सभी किरणों का करते, कब निकले सूरज इस मौसम में, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
बचपन सुहाना
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बचपन सुहाना

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** बीता हुआ वो गुजरा जमाना, दिल चाहे वहाँ लौटकर जाना। होता था जहाँ नित नया फसाना, याद आता है वो बचपन सुहाना। बगीचे से अमरूद चुराना, कागज की कश्ती तैराना। दोस्ती के लिए हद से गुजर जाना, याद आता है वो बचपन सुहाना। बेफिक्री का वो अफसाना, गूंजता हुआ खूबसूरत तराना। नासमझी में कुछ भी कर जाना, याद आता है वो बचपन सुहाना। माँ का लाड लडाना, पापा की डाँट से बचाना। दोस्तों संग मौज मनाना, याद आता है बचपन सुहाना। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्री...
सुधियों की कस्तूरी
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सुधियों की कस्तूरी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** पिय की सुधियों की कस्तूरी, महकाती मन का मधुवन। मन-मृग वन-वन विचरण करता, नित पाने को कस्तूरी। हाय सुहाती नहीं हमें अब, प्रियतम से किंचित दूरी।। ज्यों सागर से मिलने आतुर, सरिता की धड़कन-धड़कन। पिय की सुधियों की कस्तूरी, महकाती मन का मधुवन।। मृग-मरीचिका में हम उलझे, मिली ठोकरें हुए विकल। अंतर्मन में है कस्तूरी, फिर भी आडम्बर का छल।। समझ न पाये हाय मर्म हम, तोड़ गुत्थियों के बंधन।। पिय की सुधियों की कस्तूरी, महकाती मन का मधुवन।। मुश्किल है कस्तूरी मिलना, उसकी चाहत को पाना। इच्छाएँ जब रहीं अधूरी, तब महत्व हमने जाना।। साँसें बनकर दिल में धड़कें, जीना दूभर दुखी नयन। पिय की सुधियों की कस्तूरी, महकाती मन का मधुवन।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पु...
सुबह उठते ही
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सुबह उठते ही

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सुबह उठते ही चाय का छाया रहता खुमार है मौसम कोई भी हो चाय तो सदाबहार है सुबह उठते ही चाय की तलब होती है चाय के साथ ही नमस्कार अदब होती है सुबह उठते ही करते हम उसका दीदार है चाय पर तो शौक़ीनों का ही इकतरफा अधिकार है गजब का सुर्ख रंग और स्वाद लगता है हर एक चुस्की पर दिल को सुकून सा मिलता है सर्दियों में वह एक प्रेमिका सी लगती है हर बार उससे मिलने की तलब जाग उठती है उसकी छुअन से लबों पर एक सरसरी सी उठती है उफ्फ! इस चाय से तन मन में ताजगी भर उठती है। परिचय :- दीप्ता मनोज नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प...
बुलाते भी हो…
कविता

बुलाते भी हो…

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कसम देकर बुलाती हो फिर मिलने से कतराती हो। दिल की धड़कनों को तुम क्यों छुपा रही हो। और अपने मन की बात क्यों कह नहीं पा रही हो। पर मोहब्बत तुम दिल से और आँखों से निभा रही हो।। मोहब्बत दूर रहकर भी क्या निभाई जा सकती है। तमन्ना उनके दिल की दूर से सुन सकती हो। और उन्हें अपने नजदीक तुम बुला सकती हो। या बस देखकर ही तुम मोहब्बत निभाती हो।। मोहब्बत करने वाले कभी अंजाम से नहीं डरते। क्योंकि मोहब्बत में दर्द और भावनाओं का समावेश होता है। चोंट किसी को भी लगे पर दर्द दोनों को होता है। और मोहब्बत की परिभाषा इससे अच्छी हो नहीं सकती।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन ...
अटल इरादे वाली बात
कविता

अटल इरादे वाली बात

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** अटल नीति पे चले तो ये समस्या समाप्त हो जाएगी। मृत्युंजय महाकाल के कपाल पर जब भी बल पड़ेंगे। सप्तसागरो की तो बात क्या ये हिमगिरी ढल पड़ेंगे। यह न समझना दिशाएं भी तुम्हारा रास्ता रोक लेगी एक दीप तो क्या यारों यहां हजारों सूरज जल पड़ेंगे। अटल इरादे वाली बात अटल जी ने जहां को बताई है पोखरण का विस्फोट सुन सारे दुश्मन भी दहल पड़ेंगे। कारगिल हो या कश्मीर हमने ये जीत के तिरंगे गाड़े हैं चलना मुश्किल होगा हिमालय से दुश्मन फिसल पड़ेंगे। दिल्ली से लाहौर बस चला इरादा अपना जताया था अटल इरादे देख हमारे शायद यह दुश्मन उछल पड़ेंगे। भारतरत्न अटल यहां सुरमाओ के सुरमा माने जाते थे आज भी उनकी रचनाएं पढ़ हमारे दिल मचल पड़ेंगे। अटल नीति पे चले तो ये समस्या समाप्त हो जाएगी इस नीति से भारत की समस्याओं के हल निकल पड़ेंगे। ...
कन्याभ्रूण हत्या
कविता

कन्याभ्रूण हत्या

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। जहां आंगन तेरे खेलती, ले फूल सी अंगड़ाई। पापा देख देख मुस्काती, मैं सहती नहीं जुदाई। मैं अंगुली पकड़े चलती मां, जग तेरी करें बढ़ाई। तात-मात से दुनिया कहती, बेटी ही घर महकाई। मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। देख जगत की यह करतूतें, आंखें मेरी भर आई। गर्भ से जब किए निष्पादन, बोटी-बोटी घबराई। मखमल सी मेरी काया को, यूं खंड-खंड कटवाई। चीखें मेरी निकली होगी, मां गर्भाशय मरवाई। मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। कैसे होगा मंगल गायन, कहां बजेगी शहनाई। पाप किया बेटे के खातिर, बेटी जिसने कटवाई। जब बहू ढूंढते ज...
जीत
कविता

जीत

अमित डोगरा कांगड़ा, (हिमाचल प्रदेश) ******************** तू सोच अच्छा तू कर अच्छा तू देख अच्छा तू सुन अच्छा। तू विचार अच्छा तू शांत बन तू धैर्य रख तू तर्क कर तू विवेकशील बन तू मननशील बन तू सत्य पर चल तू खुद पर विश्वास रख तू ईश्वर को सुन फिर तेरी जीत निश्चित है परिचय :- अमित डोगरा निवासी : जनयानकड़ कांगड़ा, (हिमाचल प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचि...
गर्वित अटल बिहारी
कविता

गर्वित अटल बिहारी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** पैतृक गाँव बटेश्वर में ही, जन्म आपने पाया। कृष्ण बिहारी, कृष्णा देवी, का घर धन्य बनाया। पच्चीस दिसंबर सन चौविस में, जन्मे अटल बिहारी। मात-पिता परिजन हर्षित थे, छाई खुशियाँ भारी। सरस्वती शिक्षा मंदिर सँग, वे कॉलेज पढ़े थे। शिक्षा अरु कौशल के दम पर, ऊँचे शिखर चढ़े थे। नमिता और नंदिता दोंनों, गोद लिए बेटी थीं। लाड प्यार से पाला उनको, दोनों परम चहेतीं। जनमानस की सेवा करना, ध्येय बनाया अपना। निर्बल, निर्धन सभी सुखी हों, मन में देखा सपना। राजनीति में पहुँच आपने, जनसंघ को अपनाया। प्रथम सांसद बन दुनिया में, यश सम्मान कमाया। अपनी वाणी पर संयम रख, सबका मन हर्षाया। देश विदेशों में भारत का, था परचम लहराया। रहे सांसद और मंत्री, प्रखर अग्रणी वक्ता। राजनीति में जगह आपकी, कोई नहीं ले सकता। ...
सृजन
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सृजन

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** शीतल-शीतल चंदा की किरण है। महकी-महकी आज पशन है। तरल-तरंग मनमें उमडे है उमड-उमड मन गीत है गाता। सुख है, दु:ख है समझ ना पाये मन भी बडा चपल चंचल है। डाल-डाल पर भँवरा मंडराये कली-कली को फूल बनाये। दूर कही बांसुरी बजाए राधा-राधा किशन बुलाए। मनवा महके, तनवा दहके सृष्टी का कैसा सृजन है। परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके ...
हिम जैसे अटल
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हिम जैसे अटल

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अटलजी सचमुच थे तुम हिम जैसे अटल। भारतमाँ के सच्चे सपूत थे अद्भुत विरल।। शरीर दिव्य हो गया आवाज मौन हो गई, अटलजी की आत्मा आज अमर हो गई। बात कहते थे सटीक शांत मन निर्मल, अटलजी सचमुच थे तुम हिम जैसे अटल। मौन है आज आस्मां मौन है सारी जमीं, मौन है शीतल पवन मोहन है मां भारती। देश- प्रेम अलख जगाई थे हृदय निश्छल, अटलजी सचमुच थे तुम हम जैसे अटल। शब्दों का भंडार, भावनाओं का ज्वार थे कुशल राजनीतिज्ञ, भाषण धुआंधार थे। आरोप-प्रत्यारोप से विरोधी हो जाते तरल, अटलजी सचमुच थे तुम हिम जैसे अटल। समुद्र सम गंभीर थे, स्पष्टवादी धीर थे, प्रेम-शांति के मसीहा, सच्चे कर्मवीर थे। सत्यनिष्ठ, स्वाभिमानी, थे मन के सरल, अटलजी सचमुच थे तुम हिम जैसे अटल। जीवन-युद्ध विजेता कष्टों में भी हंसते, बाधाओं को परे हटा राह स्वयं चुनते। थे संघर्षर...
मेरा सफर…
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मेरा सफर…

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** सफर पर निकले पीछे कदम ना करना जो आये मुश्किल रफ्तार तेज करना।। कांटे बहुत है मंजिल में मेरे चल रहे है मगर साथ है कोई अपना।। दुश्मन अंधेरा क्या करेंगे पग-पग पर मेरे दिए की रोशनी में चलना सीखा है मैने।। थक कर जब मैं बैठा चलना बहुत था दिख रही थी मंजिल हाथ थामा औऱ चल दी अम्मा।। बहुत मिली रुकावटे राह टेढ़ी-मेढ़ी थी चल रहे थे हम क्योकि साथ थी अम्मा।। पहुँचना मुश्किल लगा सफर में जब भी याद किया माँ को तो हिम्मत मिली हमे।। आराम करेंगे फुर्सत से अभी चलना बहुत है मिले जो लोग राह में भटकाया बहुत है।। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विधुत विभाग अम्बाह...
भारत की आब पंजाब
कविता

भारत की आब पंजाब

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** पंच और आब से बना पंजाब यह पांच नदी का उद्गम है इसी धरा ने जनधन पाला, महां स्तंभ भारत का है। प्यारे देशवासियों ऋग्युग के, ना ऐसी बात करें जिससे टुकड़े हों भारत के अखंडता को खतरा‌ हो। भारत की सीमाएं उत्तर में, यूरोप की निकटवर्ती थीं दक्षिण में हिंदमहासागर‌की, अंतिम सीमा भी अपनी थी उन द्वीपों में बसी आज भी भारत की संस्कृति है आर्यों की प्राचीन कथाएं, वहां आज भी‌ प्रचलित हैं गुरु तेग बहादुर, गुरु नानक की वाणी को याद करें अखंडता और रहे एकता गुरवाणी को याद करें भारत के वीरों की भूमि, यह वीरों की आंखों का पानी ‌है इन वीरों की गाथाएं धरती पर लासानी हैं तोड़फोड़ की बात करें ना, ना भाई से भाई बिछुडें कोई विदेशी तोड़ न पाए, हम सब भारत के बेटे हम अपने ऊपर हावी नहीं किसी को होने देंगे हम भारतवासी ...
मत वहन करो
कविता

मत वहन करो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मत वहन करो मेरे विचार को मुझे भी नहीं चाहिए तुमसे अलंकार के भूषण। मत वहन करो मेरी वाणी को मुझे भी नहीं चाहिए तुमसे छंदों के बंधन। मत वहन करो मेरे अंतर्द्वंद को मुझे भी नहीं चाहिए तुमसे परिछंदों के द्वंद। मत वहन करो मेरे अंत:वेगों को मुझे भी नहीं चाहिए तुमसे रागों की रागनी। मत वहन करो मेरे हृदय तल की असवादों को मुझे भी नहीं चाहिए तुम्हारे रसों से उत्पन्न रसायन। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित...