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कविता

प्यासा
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प्यासा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहीं कोई मिलता है बिछड़ जाने के लिए क्यों हूक सी उठती है, फिर मिलने के लिए तमाम शबखोया रहा खयाल में उसके जो खो जाता है चांद घटाओं में न जाने कब तक रोती रहीं, आंखें बेदर्द। हाल मेरा देखकर दीवारें भी शिकवे करने लगी उसके। कहीं कोई बिता लम्हा, बीता अरसा, सावन बीता, भादो बिता हर कोई था यहां सब का अपना-अपना नदी किनारे मैं ही था, सिर्फ, प्यासा, प्यासा। कई-कोई मिलता है बिछड़ जाने के लिए। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत ...
सबको सबका अधिकार मिला
कविता

सबको सबका अधिकार मिला

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** लागु हुआ जब संविधान हमारा, हुआ गणतंत्र भारत देश हमारा, लिखा जब बाबा आंबेडकर ने संविधान, जिससे देश को प्रगति का आगाज़ मिला, जीने का एक नया उत्साह हुआ, सबको वोट का अधिकार मिला, एक सूत्र में बंधा देश हमारा, चैन से जीने का रास्ता मिला, बंटी हुकुमतों से छुटकारा हुआ, मार-काट लुट-पाट से निजात मिला, इन्सानों के अधिकार सुरक्षित हुए, महिलाओं को देश में सम्मान मिला, गरीब मजलूमों का जीवन सुधरा, पढ़ने- लिखने में उनको स्थान मिला, गणतंत्र हुआ जब देश हमारा, सबको सबका अधिकार मिला, देश गणतंत्र होने के बाद ही, भारत को नया स्थान मिला परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
मुझे याद आता
कविता

मुझे याद आता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वो बचपन की बातें हैं सपनों सी लगती नींदों में जैसे वो मुझको सुलाती वो रूहानी बचपन मुझे याद आता... वो माँ का आँचल और लोरी सुनाना बाबा के कांधों को अपना घोडा बनाना वो ममतालु बचपन मुझे याद आता... गुनगुनाता सावन वो बिलखती बिदाई वो राखी का उत्सव खिलखिलाती सखियाँ वो सुहाना बचपन मुझे याद आता... पचपन में दादी नानी बनना वो ही बातें व अठखेलियाँ नन्हे मुन्नों को गोदी खिलाना यादों का ऐसे लौट के आना इस बुढ़ापे में बचपन मुझे याद आता... परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
क्या तुम जागा करते हो
कविता

क्या तुम जागा करते हो

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** क्या तुम जागा करते हो, भारत माता के रखवाले, क्या तुम कभी सोते हो?, तुम तो जागा करते हो कोई दुश्मन ना आने पाए, अडिग खड़े तुम रहते हो, आंधी तूफान हो या बारिश, हिमपात या हो विपदा, कभी नहीं तुम डिगते हो, अपना हौसला बुलंद तुम रखते, वीर योद्धा तुम भारत के हो, क्या तुम जागा करते हो, भारत भूमि की शान तुम्ही से, आन बान और स्वाभिमान तुम्ही से, निंद्रा पर विजय हे पाकर, तुम सदैव जागा करते हो, तुम पर नाज हमें हे भाई, तन मन धन न्योछावर करके, तुम तो जागा करते हो, देश के नौजवानों जागो, बहुत सोए अब तो जागो, समय बीतता जाता है, अपने जीवन को अभी सँवारों समय गुजरता जाता है, कुछ पाने के हे खातिर, कुछ तो खोना पड़ता है, कुछ करने की राह पकड़ लो, संघर्षों से भरा ये जीवन है, रोडे भाटे और कठिनाई, सब ...
विवेकानंद
कविता

विवेकानंद

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** धर्म ध्वजा फहराए जग में, युवा एक संन्यासी है। नाम विवेकानंद है उसका, वह तो भारत वासी हैं।। बचपन में थे मातु पिता ने, नाम नरेंद्र दिया प्यारा। बालक पन में ही पाया है, उसने ज्ञान बहुत सारा।। जो आनंद विवेक पूर्ण हो, माया उसकी दासी है नाम विवेकानंद है उसका, वह तो भारत वासी है रामकृष्ण को गुरु बनाकर, उनसे ही शिक्षा पाई। जली ज्ञान की ज्योति हृदय में, मिटी अंधेरी परछाई।। तेज पुंज था मुख पर जैसे, चंदा पूरण मासी है नाम विवेकानंद है उसका, वह तो भारत वासी हैं हिन्दू सभ्यता संस्कारों का, उनने ही उत्थान किया। जाकर सागर पार धर्म का, सुंदर वह व्याख्यान दिया।। धर्म और अध्यात्म जहाॅं में, अमर यही अविनाशी है नाम विवेकानंद है उसका, वह तो भारत वासी है बाद युगों के इस धरती पर, एक कोई मानव आता। सुप्त...
गणतन्त्र-दिवस
कविता

गणतन्त्र-दिवस

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** गणतंत्र है पाठ पढ़ाता इक अनुशासन का । जनता का, जनता पर, जनता द्वारा शासन का ।। व्यवस्थापिका नियम बनाती, कार्यपालिका लागू करती न्यायपालिका दोनों के संग सामंजस्य स्थापित करती कितना सुंदर पावन दिखता रूप प्रशासन का ।। जनता का.... बिना भेद के नागरिकों को मूल-अधिकार मिले हुए हैं प्रतिमानों को पूरा करने नियमों संग सब सधे हुए हैं संविधान नियमों का संग्रह संशय नहीं कुशासन का ।। जनता का.... लोक भलाई के कामों में सरकारें सब लगी हुई हैं बेहतर से बेहतर सुविधाएं जनमानस में रमी हुई हैं कमजोरों को कोटा सिस्टम टोटा न अन्नप्राशन का ।। जनता का.... है अनेकता में भी एकता सब आपस में भाई-भाई फिरका परस्ती में कुछ भटके जाने क्यूँ कर रहे बुराई भलमनसाहत भेंट चढ़ गई सिक्का चले दुशासन का ।। जनता का.... मन में बस...
सत्य कभी ना हारा
कविता

सत्य कभी ना हारा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** दुनिया में 'हे राम' आपकी, क्या है होने वाला। घर बाहर सारी धरती पर, नहीं सुरक्षित बाला। मन में सोच बना दी प्रभु ने, भरी प्यार से दुनिया। असुरक्षित लाचार गेह में, क्यों प्यारी सी मुनिया। भोग, भोग चौरासी पाया, तन अनमोल खजाना। धन वैभव शोहरत पाकर तू, प्रभु को ना पहचाना। मर्यादा पुरुषोत्तम बन कर, रखा मान नारी का। लाज बचाई थी कृष्णा की, धरा रूप सारी का। भूल गए अपनी मर्यादा, तुम्हें लाज ना आती। व्यभिचारी बन घूम रहे हो, है विदीर्ण माँ छाती। माँ का दूध लजाते हो तुम, बनकर नमक हरामी। तेरे सारे कर्म देखते, हैं प्रभु अंतर्यामी। वैष्णव जन तो तेने कहिए, राष्ट्रपिता थे गाते। जो जन जाने पीर पराई, उसको राम बताते। गोली खाई जब सीने पर, तब 'हे राम' पुकारा। दिखा दिया बापू ने जग को, सत्य कभी ना हारा।...
आंसू
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आंसू

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** आँखो के फुलवारी में आंसू महकते हैं दुनिया के दामन को प्यार से भिगोते हैं अस्थाओंका विश्वास छलकाते हुये अरमानों की माला पिरोते हैं अश्को की नमी से दिल को सिंचते हैं प्यार के गुलशन में फूलों को खिलाते हैं ममता के आँचल में कारवाँ चलते हैं दिल की बात जूबातक लाते हैं कभी दर्दे दिल की दवा बन जाते हैं कभी प्यार की दुवा बन जाते हैं कभी खामोशी की जबा बन जाते हैं अक्सर दिल का हाल बया कर जाते हैं परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
ले वसंत आया
कविता

ले वसंत आया

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** विकल नव कोंपले, नव कली की चित्कार, मुरझाए फूलों का रूदन, ले वसंत आया। गरीब दीनहीन की दुर्दशा, महंगाई की मार, भ्रष्टाचार का विकट जाल, ले वसंत आया। जाति धर्म के नाम रचित, चक्रव्यूह कितने, नित नए षड्यंत्र मनुज के, ले वसंत आया। हर दहलीज पर, मां बहन बेटी का अपमान, बगिया में भंवरों की क्रुरता, ले वसंत आया। अब रिश्ते ही, रिश्तों के काटते गले बेरहम, मां के दूध में चलती तलवार, ले वसंत आया। स्वार्थ की मिठास में, खून से तरबतर दामन, तो कहीं दरारों से भरा आंगन, ले वसंत आया। संबंधों में, अपनों के लिए बदल गये अपने, बाजार से झूठ बोलते आईने, ले वसंत आया। अदली - बदली सरकारें, बिन बदले मतदाता, भोर सुहावनी मृग मरीचिका, ले वसंत आया। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम प...
इंसान
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इंसान

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर शख्स डूबता जा रहा है आज अपनी मजबूरी, मुसीबत मोहलत, मुलाहजे की गहराई में कोई उसका वास्ता नहीं देता कोई सहेजता नहीं कोई सहलाता नहीं। वास्तव में सब डूब उबर रहे हैं अपनी कठिनाइयों में ढलते सूरज और संध्या का संगम पक्षियों का निड तक लौटना। श्रम से विश्राम की ओर प्रत्येक को अग्रसर करता है। परंतु ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति किसी के लिए कुछ भी करने के लिए तत्पर नहीं उसे अपने कारनामों से फुर्सत कहां।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के स...
मन की सोच बदलो
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मन की सोच बदलो

काजल कुमारी आसनसोल (पश्चिम बंगाल) ******************** ये अच्छा है ये खराब है, ये ऐसा क्यों है? ये वैसा क्यों है? ये क्या हो रहा है? ऐसा होना चाहिए ऐसा नहीं होना चाहिए, इसे ऐसा करना चाहिए इसे ऐसा नहीं करना चाहिए, मुझे कोई समझता नहीं, कैसा समय आ गया ? जो बातें रह गई दबी मन में, मन को व्याकुल कर सदा वो तनाव पैदा करती है। लोग शायद बदल गए हैं, परस्थिति सही नहीं है, स्थिति बिगड़ रही है, सारी जिंदगी इंसान इन्हीं सवालों के, जवाब ढूंढने की कोशिश में उलझा रहता है। खुशी की चाह में हमेशा दुःखी रहता है, अगर सच में खुशी चाहते हो तो, परस्थिति बदलने की बजाय अपनी मन की स्थिति बदलो ।। बस दुःख सुख में बदल जाएगा। सुख दुख आख़िर दोनों हमारे अपने मन की ही तो समीकरण है। बस आपका दृष्टिकोण सकारात्मक होना चाहिए।। परिचय :- काजल कुमारी निवासी : आसनसोल (पश्चिम बंगाल) ...
संग तु और नदी का किनारा है
कविता

संग तु और नदी का किनारा है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** ये दिल कैसे प्यार में आवारा है तेरे बिन जिंदगी कैसे गुजारा है क्या हंसी ये रुत और नजारा है संग तु और नदी का किनारा है रेत पर हम आशियाना बना लेंगे फूल पौधो से इसको सजा लेंगे बचपन की यादों का सहारा है संग तु और नदी का किनारा है उंगलिया अटखेलीया करते रहे नाम को आगे पीछे उकरते रहे रेत का घर ये कितना सुहाना है संग तु और नदी का किनारा है हम नाम लिखते और मिटाते रहे एक दूजे को जैसे आजमाते रहे एक दूजे की यादें ही सहारा है संग तु और नदी का किनारा है आओ मिलकर के घरौंदा बनाये सजिले सपनो से उसको सजाये कितना सुन्दर ये सब नजारा है संग तु और नदी का किनारा है परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचानी पोस्ट- भोथीडीह जिला- धमतरी (छतीसगढ़) संप्रति : शिक्षक शिक...
उड़ान
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उड़ान

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सुन मेरे मन के परिंदे आगे ही तू बढ़ता चल। न सोच तू इन राहों का बस आगे ही निकलता चल। न सोच तू राहगीरों का वो भी खुद पंथ पे मिल जाएंगे। न सोच तू इन हवाओं का ये भी एक दिन बह जाएंगी। न सोच तू इन तूफानों का ये भी एक दिन थम जाएंगे। न सोच तू इस अंनत व्योम को इसको भी एक दिन तुम छू जाओगे। न डर तू अनजान राहों से ये भी एक दिन परिचित हो जाएंगे। सुन मेरे मन के परिंदे बस तू आगे बढ़ता चल अपनी उड़ान यूँ ही तू भरता चल। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ...
तुम आओ चाहे चुपचाप
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तुम आओ चाहे चुपचाप

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप मैं सुनती हूं कण कण में तुम्हारी पदचाप बीत गया पतझड़, खिलखिला रहे पलाश बीता सबका कल ,अब क्यों हो कोई उदास कल ‌का यह बीतना सुनाता तुम्हारी पदचाप हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप वासंती बयार फैल रही चंहु ओर मेरी धानी चुनरिया उड़ उड़ जाती पी की ओर पवन सुनाती तुम्हारी पदचाप हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप खेतों की पीली सरसों ज्यों खिल रही खिन्न उदासी की छाया भी दूर हो रही सरसों की खुशहाली सुना रही तुम्हारी पदचाप हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप आम्र तरु यूं लदा मोरों से नाच उठा मन मेरा जोरों से आम्र आने की यह सुवास महका रही मेरी हर सांस हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप कोयल कूक कूक कर घोल रही मिठास कोयल का यह अमृत रस छलक रहा आसपास हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप भंवरे की गुनगुन जगा रही मीठी आस दिग्...
राष्ट्रीय प्रतीक
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राष्ट्रीय प्रतीक

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत के राष्ट्रीय पहचान प्रतीकों में राष्ट्रीय ध्वज हमारा शान तिरंगा में तीन रंगों से सजा हमारा तिरंगा है शोभित केसरिया,सफेद और हरा में केसरिया त्याग-बलिदान सिखाता है सफेद सत्य-शांति-पवित्रता द्योतक है मध्य भाग में चक्र सदैव प्रगति चिन्ह हरा रंग देश की समृद्धि का प्रदर्शक है भारत का राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ है "जन गण मन" हमारा राष्ट्रगान प्यारा है "वंदे मातरम" हमारे भारत का राष्ट्रगीत राष्ट्रीय पंचांग "शक संवत्" आधारित है भारतीय बाघ हमारा राष्ट्रीय पशु है भारतीय मयूर हमारा राष्ट्रीय पक्षी है पवित्रता का प्रतीक राष्ट्रीय पुष्प कमल राष्ट्रीय फल मनभावन रसीला आम है हाथी हमारे विरासत की निशानी है गंगा डॉल्फिन राष्ट्रीय जलीय जीव है हमको गर्व हमारे राष्ट्रीय प्रतीक पर यह प्रतीक हमारे भारत की शान ह...
गणतंत्र दिवस
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गणतंत्र दिवस

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** आजादी को हासिल करके, आज के दिन, भारत को गणराज्य बनाया था। २६ जनवरी १९५० को, देश भारत ने, संविधान पारित कर संविधान लागू करवाया था।। आजादी को हासिल करके, भारत को गणराज्य बनाया था। राष्ट्र का यह पर्व, राष्ट्र के साथ भाईचारे से, हर हिंदुस्तानी ने मनाया था।। संविधान के सम्मान में, खड़े हर नागरिक, जन-गण का मान बढ़ाया था। आजादी को हासिल करके, भारत को गणराज्य बनाया था। विश्व का, सबसे बड़ा संविधान जिसे भीमराव अंबेडकर ने, २ साल ११ महीने १८ दिन में बनाया था।। नेहरू, प्रसाद, पटेल, कलाम ने जिसे बड़ी रूपरेखा से सजाया था । आजादी को हासिल करके आज के दिन , भारत को गणराज्य बनाया था।। आज के दिन, भारत के झंडे की शपथ ले। भारत का जन-जन यह प्रण उठाएगा। गणतंत्र की रक्षा के लिए हर हिंदुस्तानी कदम बढ़ाएगा। ...
समय का पहरा
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समय का पहरा

डाॅ. मिनाक्षी अनुराग डालके मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** माटी के पुतले पर समय का पहरा है ना तेरा है ना मेरा है यह मन के भावो से भी गहरा है मानो यह घावों पर लगे मरहम की तरह है ये समय का पहरा है सूरज की किरणों पर ग्रहण सा ठहरा है चांद की शीतलता पर भी कभी कहरा है यह समुद्र की लहरों की तरह झकोरा है यह हर पल बढ़ता वृक्षों का सहरा है ये समय का पहरा है मन की आकांक्षाओं में, पीड़ाओं मे, प्रतिक्षण जिसका बसेरा है यह ना कल था तेरा ना आज मेरा है फिर भी हर भोर नया सवेरा है ये समय का पहरा है परिचय : डाॅ. मिनाक्षी अनुराग डालके निवासी : मनावर जिला धार मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
संवारना भी चाहा किस्मत वही रही
कविता

संवारना भी चाहा किस्मत वही रही

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** सोचा था पुरी होगी, वो बात पुरी ना हो सकी, मन की बात अपने, मन में ही रही, कोशिशों में रहा हूँ, पूरी कर पाऊं उसे, उम्र जैसे बढ़ती गई, वो हौंसले तोड़ती रही, सोचा था पाने का उसको, स्कूलों के दौर से, वो अब तलक भी हमसे, दूर ही रही, कभी लगता था आसान, पा लेंगे उसको हम, करीब भी पहुंचे, वो और आगे चलती रही, जुड़े थे बहुत सारे ख्वाब, ज़िंदगी के उससे, संवारना भी चाहा, मेरी किस्मत वहीं रही, उठ गया हैं यकीन, अब तो उसको पाने का, दिन बीतते गए और उम्र निकलती रही, जी लेंगे अब तो जिंदगी, समझौतों के साथ अपनी, जो सोचा था खुद के लिए, वो सोच अब जाती रही परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
श्रम का प्रकाश
कविता

श्रम का प्रकाश

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** श्रम का प्रकाश था मनुष्य का अहंकार था इस धुंध जगत में श्रम का आलोक था काल बीत जाएंगे जन उदीसी रह जाएंगे फुर्सत को किसी ने नहीं पहचाना फुर्सत किसी को नहीं पहचानता जो रेख़्ता सोते रहे वह उडीसी ही रह गए जो जन नींद के पीछे नहीं दौड़े वह आगे बढ़ गए परिश्रम है मनुज का अर्थ परिश्रम को कौन जाने पहचाने यह ही है। श्रम का प्रकाश तन मन के उजियारे में परिचय :- मानाराम राठौड़ निवासी : आखराड रानीवाड़ा जालौर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशि...
सुभाष चंद्र बोस
कविता

सुभाष चंद्र बोस

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** आज राष्ट्रीय पराक्रम दिवस आया। संग अपने सुभाष चंद्र बोस जयंती लाया। हम सबको नेता सुभाष चंद्र बोस याद दिलाया। ऐसा भारत मां का वीर सपूत महान देशभक्त कहलाया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम महानायक। बनके आया जिसको हम सब भारतीय। करें शत-शत नमन जिसने नारा लगाया। तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा। भारत के युवाओं के रक्त में जोश। जंग का जज्बा संग ऊर्जा भर। देशभक्ति को जन-जन में जगाया। उसने ही आजाद हिंद फौज बनाया। उसने अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने। दृढ़ संकल्प दिखाया। वह कोई साधारण मानव नहीं था। वह तो असाधारण कोई देवआत्मा बन आया था। भारत मां सुभाषचंद्र बोस जैसे वीर सपूत। आज भी अपनी धरा पर चाहती है। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह ...
मज़हब
कविता

मज़हब

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** रार मचा रखा जाता है करके बजबज, सभी को लगता है सबसे अच्छा है हमारा मज़हब, लोगों को उकसाया जाता है, लाठियां, तलवारें घुमाया जाता है, मुल्क़ का माहौल बिगाड़ अपना माहौल बनाया जाता है, भड़काता है, उकसाता है, अपनी उस्तादी दिखाता है पचपन, जिसमें पिस जाता है उमंगों से, रंगों से भरा निःस्वार्थ बचपन, लाभ ये ठेकेदार उठा ले जाते हैं देश भर में फैला के खचपच, सभी कहते हैं सबसे अच्छा है हमारा मज़हब, वे भूल जाते हैं कि जरूरतों, परिस्थितियों के हिसाब से तय होता है सबका मजहब, दुख का मज़हब खुशी होता है, घायल का मज़हब इलाज होता है, इंसान का मज़हब इंसानियत होता है, भूखे पेट का मज़हब रोटी होता है, खिलाड़ी का मज़हब खेल होता है, उच्चलशृंखता का मज़हब नकेल होता है, अब बताओ कहां है तुम्हारा मज़हब, बात करने आ जाते है...
सहज़ता में संस्कार उगते हैं
कविता

सहज़ता में संस्कार उगते हैं

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** अपने आपको सहज़ता से जोड़ो सहज़ता में संस्कार उगते हैं सौद्राहता प्रेम वात्सल्य पनपता है लक्ष्मी सरस्वती का आशीर्वाद बरसता है जिंदगी की दुर्गति की शुरुवात अहंकार रूपी विकार से होती है अहंकार दिख़ाने को छोड़ो, परिणाम मानसिक असंतुलन की शुरुआत होती है क्रोध अहंकार दिखावा छोड़ सहज़ता जोड़ो क्रोध के उफ़ान में अपराध हिंसा हो जाती है घर बार जिंदगी तबाह हो जाती है जिंदगी को वात्सल्य रूपी सुयोग्य मंत्रों से जोड़ो क्रोध रूपी विकार को छोड़ो अपने, आपको विनम्रता से जोड़ो इस मंत्र से भारत के हर व्यक्ति को जोड़ो परिचय :- किशन सनमुखदास भावनानी (अभिवक्ता) निवासी : गोंदिया (महाराष्ट्र) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं। आप भी अप...
अमर रहे गणतंत्र हमर
आंचलिक बोली, कविता

अमर रहे गणतंत्र हमर

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** कतिक सुग्घर हे दिन आज, सुनो-सुनो ग संगवारी। नाचो कुदों गीत गावव, देश के सब्बों नर-नारी।। सुग्घर अमर रहे गणतंत्र हमर, आगे सुग्घर देश भक्ती के तिहार। आन बान अऊ शान तिरंगा, नमन् करन धरती अऊ आसमान।। आज हमन आजादी पाऐन, जेमन लढ़िन अड़बड़ लड़ाई। देश के रक्षा खातिर अपन, प्राण ल घलो गवाईन।। हिन्दू मुस्लिम सिख अऊ ईसाई, आपस म सब्बों भाई-भाई। भाई चारा एकता के हाबें संदेश, जन-जन ल सुग्घर मिलिस आदेश।। नमन हे महापुरुष तोला, सुभाष, नेहरु अऊ गांधी जी। आजादी के अलख जगईस, जेन लइस क्रांति के आंधी जी।। वंदेमातरम्, जय हिन्द, जय भारत, जय छत्तीसगढ़ के नारा ल बुलाना हे। आजादी के अमृत महोत्सव म घरों-घरों तिरंगा अब फहराना हे।। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छ...
ऐसा भी होता है
कविता

ऐसा भी होता है

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** सहसा नम हो जाती हैं आंखें, बिखर जाते हैं सपने सारे। देखते हैं जो रात में अक्सर, दिख जाते हैं दिन में तारे।। अंतर्मन की गहराई में, दिल बेचारा रोता है। तन्हाई के आलम में सुन लो, ऐसा भी होता है।। कुछ अदृश्य घटनाएं घटती, दुख की बदली नहीं है छटती। खुशियों के पीछे गम दिखता, हर कुछ है पैसे पर बिकता।। बढ़ती जाए तड़प इंसा की, लगता पिंजरे का तोता है। तन्हाई के आलम में सुन लो, ऐसा भी होता है।। झूठ व सच का पता ना चलता, बिन बाती का दीप है जलता। यह इक कोरा सच है समझो, बैठे सज्जन हाथ है मलता।। मुश्किल में इंसान लगे हर, काटता कुछ और कुछ बोता है। तन्हाई के आलम में सुन लो, ऐसा भी होता है।। अरमानों का गला घोलते, अक्सर अपने लोग यहाॅ। जिसको एक जगह था रहना, बिखरा पड़ा है जहां-तहां।। है "आनंद" यही जीवन का सच, बोझ ...
दस्तक है बसंत की
कविता

दस्तक है बसंत की

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** शिशिर की चादर ओढ़े सूरज को रही धरा निहार हरी दूब पर तड़के देखो मुस्काती सी रखी निहार। नव अरुण की आभा से निखर रहा किसलय है शीतल पवन में घोल रहा मधुरस की सौरभ मलय है। सुसज्जित होकर बोर से लहरा रही अमराई है ऋतुराज के आगाज से वसुधा भी मुस्काई है। बिदाई की बेला में पहुँच रही अब शीत है परिवर्तन और परिवर्द्धन तो कुदरत की ही रीत है। सुकुमार प्रकृति में देखो दस्तक है बसंत की लौटने वाली हैं खुशियाँ जीवन के अनंत की।। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...