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कविता

महामना पंडित मदन मोहन मालवीय
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महामना पंडित मदन मोहन मालवीय

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** माँ भारती की महान सन्तान महामना पंडित मदन मोहन मां मुन्नी देवी, पिता ब्रजनाथ उनके चरण शत-शत नमन शिक्षा के थे वह अनुपम प्रेमी ५ वर्ष आयु से विद्यारंभ किया बाधाएं आई, पढना नही छोडा अध्यापन किया और पढ़ाई की महात्मा गांधी जी के बहुुत प्रिय युग के आदर्श पुरुष कहलाते पंडित मदनमोहन को महामना इस उपाधि से सम्मानित किया बसंत पंचमी को स्थापना की बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की विश्वविद्यालय के कहलाए प्रणेता एनी बेसेंट ने भी दिया सहयोग प्राचीन सभ्यता-संस्कृति के साथ आधुनिक ज्ञान का किया समर्थन शिक्षा की समृद्धि के लिए किया पूरा जीवन देेश उत्कर्ष समर्पण बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में ज्ञान का अनुपम दीप जलाया भारत ही नहीं सम्पूर्ण जगत में कण-कण प्रकाशित कराया।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शि...
वीर सैनिक वंदना
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वीर सैनिक वंदना

राम स्वरूप राव "गम्भीर" सिरोंज- विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** धुन - बाबुल की दुआएँ लेती जा... हे सैनिक देश की सेना के, है सौ- सौ बार प्रणाम तुम्हें| है गर्व हमें तुम पर वीरों, अभिनन्दन, नमन प्रणाम तुम्हें। ... हे सैनिक देश... तुम को भी खुशियाँ दीं प्रभु ने, वह रास न आईं तुम्हारे लिए | परिजन ने तुमको समझाया, था वतन से प्रेम तुम्हारे लिए। साहस से खड़े सीना ताने, है आशिष, प्रीत प्रणाम तुम्हें। ... हे सैनिक देश.... जब-जब दुश्मन ने फुंकारा, फन कुचला उसका पावों से। ऐसा मारा इतना मारा, छू भागा हमरे गांवों से। हे काल हमारे शत्रु के, जग विजयी वीर प्रणाम तुम्हें।.. हे सैनिक देश की... सीने पे लगती है गोली, जय हिन्द के घोष निकलते हैं। जब तक न गिरा दें शत्रु को, नहीं तन से प्राण निकलते हैं। है विजयी तिरंगा हाथों में, या तन पे कफ़न प्रणाम तुम्हें। ह...
सैलाब
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सैलाब

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यादों के सैलाब में घूम गया कोई हवा के झोंकों सा छू गया कोई आया कोई तनहाई सा छा गया मंत्र सुमन सौरभ सा मन बहला गया कोई। सोचा यथार्थ है या स्वप्न कुछ समझ नहीं पाई कभी आभास होता बहुत करीब है कोई बहुत होता कभी आभास दूर बहुत दुर। चला गया कोई, चला गया कोई। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
गणतंत्र दिवस
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गणतंत्र दिवस

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** गणतंत्र दिवस हम मना रहे, लहर लहर लहराए तिरंगा देशप्रेम की अलख जगी है, भारत की हर साँस तिरंगा। भारत की सीमाएँ, रक्षित बनी रहें सदा, भारत की सेना के बल, लहराए तिरंगा सदा सदा। चाहे बम हो या मिसाइल, या चाहे हनुमान-गदा भारत की दसों दिशाएं रक्षित रहें सदा सदा। भारत की सीमाओं का, होता जाए विस्तार सदा वैदिक युग का, हिंद महासागर, जो आर्यावर्त की मूल धरा। अमर रहे, सम्मानित, भारत का संविधान सदा बन जाए हमारी गीता, भारतवासी का ज्ञान सदा। देववाणी, सनातन संस्कृति कर्तव्य भाव का ध्यान सदा उपनिषदों की व्याख्या हो, वेदों का हो मान सदा।। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी,...
ये मौसमी बहारें
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ये मौसमी बहारें

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मौसम दे जाते संदेशें नसीहतें भी हैं दे जाते तालमेल रहे नियति से इसका सबको भान रहे बारी बारी से ये आते सारे नियम निभाते हैं आचरण से ही रहना है ये सबको सीख दे जाते गलतियाँ जो करोगे तुम भोगना तुमको ही होगा ये सारे बदलते मौसम प्रकृति के साथ चलते हैं झंझावात है आता तरु सब काँपने लगते हरित पल्लव सिहर जाते भय से रुग्ण हो जाते जो आया है उसे जाना झरकर उपदेश दे जाते ये सारे बदलते मौसम प्रकृति के साथ चलते हैं प्रस्फुटित नवकोपलें देखो स्वागत नवसृजन का है हलधर खेत में झूमे नदियाँ मल्हार हैं गाती सावनी बूंदे बरसकर के खुशियाँ धरा पर लाती ये सारे बदलते मौसम प्रकृति के साथ चलते हैं बसंत जब मुस्कुराता है सुहाने सफ़र सा अहसास माँ शारदे हो पुलकित वीणा तान झंकृत हो होता आल्हाद है चहुँ ओर नई उम्मीदें जगती है ये स...
जीने के कुछ सवाल
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जीने के कुछ सवाल

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** वो शख़्स आज भी, उसी गली पर मिलता है, गांव जाता हूंँ जब, वो शख़्स मुझे वहीं मिलता है, जानता हूंँ उसे अपने, बचपन के दौर से, आज भी मगर वो, उसी हाल में मिलता है, तंग रखा है शुरू से, मुफलिसी ने उसको, उससे निकलने की वो शख़्स, जिद्द लिए मिलता है, पढ़ते थे साथ तब कहता था, बदलेगी तक़दीर, मगर आज भी वो शख़्स, वो ही ख़्वाब लिए मिलता है, तोड़ दिए हैं सब सपने, हालातों ने उसके, अब तो बस जीने के, कुछ सवाल लिए मिलता है परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
इस जमाने में
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इस जमाने में

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बहुत जोर लगाना पड़ेगा सदियों से खड़े खंभे को हिलाने में, बस प्रेम ही है एक आधार नफरत के जखीरे को मिटाने में, वजूद मिट जाने का न रख डर बन जा नींव अपने विचारों को सृजाने में, भिगो देना आसान है पर समय लगता है सूखने और सुखाने में, हाड़ मांस सुखा मेहनत किया हूं पेट भरने के लिए नहीं सेंध मारा निजी खजाने में, मेरी बातें उतनी बुरी भी नहीं फिर क्यों घिरा रहता हूं किसी के निशाने में, कोई कुछ भी कहे बोले जी जान लगाया है मैंने कमाने में, क्योंकि मुझे समझ आ गया कि पैसा बहुत जरूरी है इस जमाने में। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
स्वाभिमानी
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स्वाभिमानी

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** विपरीत परिस्थितियों से लड़ने वाला। स्व-मान-सम्मान की रक्षा करने वाला।। हर जीवन की करे खुशियों की कामना। सहज ही कर लेते मुशीबतों का सामना।। नैतिक मूल्यों से सुरक्षित आत्मसम्मान। स्वाभिमानी जीवन की यही पहचान। छल-कपट, प्रपंच मन में कभी न आये। निश्छल सेवाभाव से व्यक्तित्व महान।। रिश्ते-नातों की समझते अहमियत। होते कर्तव्यनिष्ठ स्वभाव में वफादारी।। मान-मर्यादा इज्जत की करते परवाह। शिष्टाचार, सरल-व्यवहार, ईमानदारी।। स्वाभिमानी कर्तव्यनिष्ठता करे स्वीकार। संघर्ष राह में सदैव हार जीत को तैयार।। परिचय :  देवप्रसाद पात्रे निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्द...
धेनु हूँ मैं
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धेनु हूँ मैं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** माता हूँ मैं क्या माँ भी हूँ क्या हूँ पूजनीय, वंदनीय भी मैं या हूँ मनुष्य का साधन मात्र? जिसे साधते आए तुम, अपनी आस्था और धर्मों से कहते हैं भक्ति श्रद्धा का आधार हूँ मैं फिर भी सड़ती, कटती हूँ मैं, चित्कार कभी जो सुन पाओ राहों में तिल तिल मरती हूँ मैं होता नित्य प्रहार मुझ पर, घर-घर ने दुत्कारा मुझको मेरे बच्चे भूखे मरते पर मैं सबका उपकार करूँ रहे निरोगी काया जन की, नित घाव की पीड़ा सहती हूँ माँ बुढ़ी हो भारी लगती, निज स्वार्थवश ही प्यारी लगती जो ना हो आसरा श्रद्धा का माता से भी प्रेम नहीं पूजा जप-तप, और दान यज्ञ का भी कोई मोल नहीं है प्रश्न मेरे अन्तर्मन का क्या ऋण मेरा चुकाओगे??? नित-नित सहती इस पीड़ा को क्या तुम हर पाओगे???? तब उठो-उठो हे जन मानस माता को अगर बचाना है मानव सब कुछ भू...
आज बारी तेरी आई
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आज बारी तेरी आई

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** मान ले बात मात-पिता की आज बारी तेरी आई। पढ़ ले ,निखार ले खुद को वक्त को जानने की बारी आई । उठ प्रातः कर मेहनत पूरा दिन समय का सदुपयोग की बारी आई । भूल जा मस्ती, शरारतें, त्याग निंद्रा उज्जवल भविष्य करने की बारी आई। कम वक्त है पास तुम्हारे नसीहतें मानने की बारी आई । नहीं रहेंगे तुझे कहने वाले एक दिन तड़पाएगा वक्त ,समझने की बारी आई। अकेला रह जाएगा इस दुनिया में आज संभलने की बारी आई । कहीं पछताता ना रह जाए सीमा आज वक्त को जानने की बारी आई। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से...
सुनो !! प्राणाधार!!!
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सुनो !! प्राणाधार!!!

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सुनो !! प्राणाधार!!! तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श से फूट पड़ते हैं मेरे मन में प्रेम के नव अंकुर स्नेहमयी रक्तिम कोपले नवागत किसलयो पर खिल उठते हैं परागमय सुमन सुरभि से सुवासित मेरी सांसे अधरो पर तुम्हारे मुस्कान चाहे सुनो !! प्राणाधार!! तुमसे जीवन की सार्थकता तुमसे ही पाती मैं पूर्णता तुम्हें हर्षित देखकर ही तो सजती है अधरो पर मेरे हर्ष भरी मधुरिम मुस्कान गहराई अमराई देखकर ज्यो कोकिल गा उठती है मधुर गान अनुभूति होती है सुखद प्रियतम ज्यो जीवन उत्सव- सा उल्लासमय सुनो !! प्राणाधार!!! सजा लो ना तुम भी मुखड़े पर अपने प्रेम विश्वासमयी एक मधुर मुस्कान तुम्हारी मुस्कान से सजता मेरा संसार हाँ ! तुम्हारा प्रेम करता है मेरा श्रृंगार परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत...
मातृभाषा हिन्दी और हम
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मातृभाषा हिन्दी और हम

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** हिंद देश का वासी हूॅं मैं, हिन्दी मेरी भाषा है। इसका मान बढ़े नित जग में, यह मेरी अभिलाषा है।। रक्त बूॅंद बनकर मेरी यह, रग रग में बहती हर पल। ज्यों जल की धारा बहती है, नदियों में करती कल-कल।। तृषित जनों को सिंचित करती, जीवन की यह आशा है इसका मान बढ़े नित जग में, यह मेरी अभिलाषा है जननी जन्मभूमि सी प्यारी, मातृभाषा है यह श्रेष्ठ। एक यही हो भाषा सबकी, हो इसका उपयोग यथेष्ठ।। वर्षों की मेहनत से इसको, हमने खूब तराशा है इसका मान बढ़े नित जग में, यह मेरी अभिलाषा है हिन्दी प्राण है हिन्दुतां की, इसके बिन मृतप्राय सभी। इसका कर्ज चुका ना सकते, हम सारे ताउम्र कभी।। शांत इसी को पढ़कर होती, मन की सब जिज्ञासा है इसका मान बढ़े नित जग में, यह मेरी अभिलाषा है हिन्दी हिंदुस्तान का झंडा, विश्व गगन ...
बासंती छटा
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बासंती छटा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** माहिया- १२,१०,१२ आई-आई-आई रितुओं की रानी बासन्ती चहुँ छाई बौराई अमराई कोकिल कू कूके खुल कलियाँ मुसकाई फूली सरसों रानी धरती ने रंगी अपनी चूनर धानी जब रह-रहकर बोले पपिहा पिउ कहवां मनवां विरही हौले सूना-सूना लगता दुअरा घर-आंगन बिन साजन ना फबता रिमझिम-रिमझिम बरसे बारिश की बूँदें कैसे न हिया हुलसे नयना निंदिया घेरे अलसाई घरनी सपनों में ले फेरे अँखियाँ खुशियाँ लौरे महके जब मधुबन करते गुन-गुन भँवरे कलियाँ चहकीं महकीं मदमाती डगराँ बातें करतीं बहकीं घुल-मिल कर मन नाचे झूमे यूँ गाये मनहर बतियाँ बाँचे परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" निवासी : अमेठी (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
हिचकी
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हिचकी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** कौन याद कर रहा है मुझे? हिचकी आई, कोई तो हमारा है तभी तो मुझे हिचकी आई, दूर बैठे हैं मेरे प्रियतम! भारत माता की रक्षा में, उसने मुझे याद किया होगा? तभी तो मुझको हिचकी आई, चिट्ठी नहीं कोई संदेश! हिचकी है उनका संदेश, मैं भी नहीं इसको है मिटाउ, प्रीतम की याद में भी इससे पाऊं, नहीं उन्होंने मुझे बिसारा, मुझको याद किया है उसने, तभी तो मुझको हिचकी आई, पल पल तेरी याद हे आती, मुझको तो दिन रात सताती, तेरा एहसास मुझे दिलाती, तभी तो मुझको हिचकी आती, कब सोने का सूरज निकले नई किरण की आस भी जगले, प्रीतम के आने की उम्मीद है जागी, पर फुर्सत में मुझे हिचकी आती परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुर...
मृत्यु
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मृत्यु

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** मृत्यु अवस्था है जीवन की। बस काया के परिवर्तन की।। मोक्ष मिला तो लय जीवन है, जन्म मिला तो जय जीवन है। लोग सोचते हैं बस इतना, मरने तक का भय जीवन है।। जब कि अमर की मृत्यु कहाँ है? इससे सच्चा‌ सत्य कहाँ है ? कथा नहीं यह व्यथा कथन की, मृत्यु अवस्था है जीवन की।। दिखती नहीं अग्नि काठों में, कहाँ दूध में घी दिखता है? कहाँ बादलों पर बर्तन हैं, कौन कहाँ कविता लिखता है।। यह माया है साथ चलेगी, हर पड़ाव के बाद मिलेगी।। रही बात उत्थान पतन की, मृत्यु अवस्था है जीवन की।। पल - पल मृत्यु पा रहे तुम हो, पल - पल जन्म ले रहे तुम हो। तुममें प्राण उपस्थित पल पल, जीवन के भी जीवन तुम हो।। नाहक चिन्ता पाल रहे हो, दुविधा में क्यों डाल रहे हो। बातें करते हो दर्शन की, मृत्यु अवस्था है जीवन की।। चल...
गांव और शहर
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गांव और शहर

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** शहर जागता देर रात गांव जल्द सो जाता सुबह जल्द गांव उठता शहर उठता देर से खरगोश कछुए की कहानी की तरह। गांव उठेगा तो ही शहर जागेगा क्योंकि दूध चाय का गांव से ही तो आता। आती है ताजी सब्जियां गांव से जल्द सो जल्द उठो स्वास्थ्य का होता मंत्र सूरज की पहली किरण के दर्शन देवस्थानों से बजती घंटी पंछियों का कलरव पशु सेवा के पुनीत कार्य ईश्वरीय आराधना नित्य बनते ये क्रम गांव शहर का आधार बनाता सर्वसुविधा होती ये शहर दर्शाता गांवों में होती कहां सर्वसुविधा इसलिए तो गांव-गांव कहलाता शहर इसलिए तो इतराता। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार ...
वसंत ऋतु आगमन
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वसंत ऋतु आगमन

राम बहादुर शर्मा "राम" बारा दीक्षित, जिला देवरिया (उत्तर प्रदेश) ******************** आया वसंत, आया वसंत, कर शरद शिशिर का पूर्ण अंत। आया वसंत, आया वसंत।। जाड़े से आई जड़ता जो, जीवन संवेग को थाम लिया, जमता कर्तापन इससे पहले, किस ऋतु ने उसे विराम दिया, है महक उठी प्रकृति सारी, संग महका सारा दिग दिगंत। आया वसंत, आया वसंत।। स्वागत करने को सज संग, पछुआ लेकर आया पतझड़, जीर्ण शीर्ण पत्रक उतार, तरु लता कुंज बनकर निर्मल, नूतन स्वरूप हर शाखा पर, अनुपम सौंदर्य लेकर हेमंत। आया वसंत, आया वसंत।। पाटल मंदार के पुष्प गुच्छ, गेंदा कनेर के पीत पुष्प, खेतों में लहराती सरसों, उन पर भी पीले खिले पुष्प, भू पीत वर्ण श्रृंगार किए, बिखरा सर्वत्र बसंती रंग। आया वसंत, आया वसंत।। नस नस में जगाता नया जोश, जड़ चेतन सब हुए मदहोश, कलियों में हवन अंगड़ाई भरता, हर भ्रमर देख खो ...
सूर्यवंश के हंगामी
कविता

सूर्यवंश के हंगामी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कला-कौशल कशीदे कढ़ना, चांद कला जैसे होते। सुंदर कार्य संवाद बोल, घट-बढ़ कर मुखरित होते। नेक काज पर प्रोत्साहन, स्व स्फूर्त सहज ही बढ़ना कुछ कमियों की अनदेखी, तिरस्कार मार्ग से हटना लगते लोग नागवार ऐसे, भाए आंख चुराकर रहना कुछ अद्भुत उपलब्धि से, जीत की ताली ना बजना ऐसे लोग बहुत हैं जग में, खुशहाल व्यक्ति पर रोते। कला-कौशल कशीदे कढ़ना, चांद कला जैसे होते। सुंदर कार्य संवाद बोल, घट-बढ़ कर मुखरित होते। सम्मान समय पर जो होता, वही कद्र बनती मिसाल बुद्धि घट में कई छिद्र जड़े, उन्हें पूछना सिर्फ सवाल स्वभाव ही तो पहचान बने, कर्म योग रोशन मशाल दूध पी सांप जहर उगले, चारा खा धेनु दूध कमाल। गाय प्राणदायिनी सभी को, कृष्ण गौ सेवा में खोते। कला-कौशल कशीदे कढ़ना, चांद कला जैसे होते। सुंदर कार्य संवाद बोल, घट-बढ़ कर मुखरित होते। अ...
सीखो
कविता

सीखो

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** खुद की लड़ाई खुद लड़ना सीखो खा कर ठोकर सम्हलना सीखो..!! खुशी और गम आएंगे जिंदगी मे स्वीकार दोनों को करना सीखो..!!1 नदियों सा हर दम बहना सिखों सूरज की तरह निकलना सीखों..!! थककर ना बैठ मंजिल के मुसाफिर मंजिल की राह पर चलना सीखों..!! मुश्किलों से डटकर लड़ना सीखों पाने के लिए कुछ करना सीखों..!! बिन मेहनत के नहीं मिलता कुछ मेहनत पर भरोसा करना सीखों..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
ईर्ष्या हुई गझिन…
कविता

ईर्ष्या हुई गझिन…

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** ताज और तलवार चुभोते, चौराहे पर पिन। सद्भावों के कलधौती दिन, होने लगे मलिन।। ढीली गाँठे कसने बैठा, संविधान स्वैच्छिक। प्यास बुझाने लगे लहू से, नर पिशाच वैदिक।। आग लगा जाती बस्ती में, ईर्ष्या हुई गझिन।। रोज स्वार्थ का कुंभ नहाते, कपटी वैरागी। उजला दिखने फेंक रहे हैं, कालिख ही दागी।। गले लगाकर घोंप रहा है, छुरा पेट नलिन।। शब्दों के कृषकों ने बो दी, अपघाती फसलें। पगलाई है चर कर जिसको, मानव की नस्लें।। सरल प्रश्न जीवन के सत्ता, करती रही कठिन।। वरक चढ़े रिश्ते परकोटे, कर देते नंगे। जयकारे है सम्मुख पीछे, प्रायोजित पंगे।। डुबो गया है भाटा फिर से, निकले नये पुलिन।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
हर पल ऐसे ही जीना है
कविता

हर पल ऐसे ही जीना है

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** कल की चिंता में न डूबकर आज ही तो जीवन सोचकर बहाना तुझे पसीना है हर पल ऐसे ही जीना है। तेरा-मेरा से ऊपर उठकर सबका सच्चा साथी बनकर पल से पल को सीना है हर पल ऐसे ही जीना है। क्या लाए, क्या जाओ लेकर दुनिया को मीठे बोल ही देकर बजती जीवन वीणा है हर पल ऐसे ही जीना है। अहं भाव को सदा ही तजकर दुर्गम पथ का राही बनकर हर मन को यूं ही जीतना है हर पल ऐसे ही जीना है।। अंतर्मन के द्वंद से उठकर मन में आशा की लहरें भरकर जीवन का मधुरस पीना है हर पल ऐसे ही जीना है। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
आश्वस्त हूं
कविता

आश्वस्त हूं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** फांसी ले लूं या दे दो मतलब एक ही है, मेरा आकलन क्या है न पूछो इरादा नेक ही है, शायद मैं अपनी जिम्मेदारी न निभा पाया, अपने जज़्बात किसी को न बता पाया, शायद नजरिये का फ़र्क अजूबा है, मेरे या उनके सोचने का तरीका दूजा है, मैं अपने घर की मजबूत दीवार लग रहा था, पर कोई तो था जिन्हें मैं बीमार लग रहा था, संभाल पाना सबको शायद मेरी औकात नहीं, या हो सकता है अब शायद यह सोचना न पड़े कि अब मुझमें उस तरह की जज्बात नहीं, अब तो अब मैं तब भी खरा सोना था, मेरी जद में हर कोना था, नकार दो मेरा वजूद पर मैं शाश्वत हूं, समझा जाएगा मुझे कभी मैं पूरी तरह से आश्वस्त हूं। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरच...
नशा नाश का मूल
कविता

नशा नाश का मूल

विकास सैनी बापू गांव, कोटखावदा, (जयपुर) ******************** छोड़ो धुम्रपान और शराब, नशा नाश का मूल है। जो नर नशें को अपनाता, जीवन में बोता शूल है। नशा जिसने अपना लिया, यह जीवन की भूल है। गांजा गुटखा बीड़ी पीता, मानव जीवन धूल है। नशा जो करें उसे बुलावा, यम का स्वीकार है। बर्बाद होकर पहुंचे श्मशान, रोता उसका परिवार है। पीकर भांग धतूरा दारू, मौत गले लगाते है। कंचन सी काया को यूं, सब धूएं में उड़ाते हैं। परिचय : विकास सैनी निवासी : बापू गांव, कोटखावदा, (जयपुर) शिक्षा : कक्षा ९वीं राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय बापू गांव, कोटखावदा, जयपुर। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा...
बस इतनी सी चाह
कविता

बस इतनी सी चाह

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** बस इतनी सी चाह, चल सकूं नेकी की राह। ईमानदारी से हो जीवन निर्वाह, लूं न किसी बेबस की आह। अच्छाइयों को लूं मैं अपना, बुराइयों का करूं मैं दाह। प्रेम का हो मन में प्रवाह, घृणा को दूं मैं जला। ईश्वर की बनी रहे कृपा, सत्य की राह चलूं सदा। जीवन में बना रहे उत्साह, परपीड़ा में उठूं मैं कराह। बेईमानी की पड़े न मुझ पर छाँह, काबिलियत पर कर सकूं मैं वाह। गुणों को सभी के सकूं मैं सराह, अपनों की कर सकूं मैं परवाह। मिलती रहे सज्जनों की सलाह, दुर्जनों से मैं दूर ही भला। बस इतनी सी चाह। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
गणतंत्र दिवस
कविता

गणतंत्र दिवस

  अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** आओ साथी मिलकर सभी गणतंत्र दिवस मनाएंगे। स्वतंत्रता, समता, एकता और अखंडता को अपनाएंगे।। नया सूर्योदय, नया प्रभात, उमंग और उत्साह होगा। देश प्रेम की भावना लिये जन-जन में उल्लास होगा।। हर हाथों में तिरंगा झंडा लहराता प्रभात फेरी निकलेगी। भारत माता की जयगान मुख से वंदे मातरम निकलेगी।। शांति, साहस, सत्य और पवित्रता के ध्वजा फहराएंगे। आओ साथी मिलकर सभी गणतंत्र दिवस मनाएंगे।। वीर जवानों और अधिनायकों की कुर्बानी को याद करो। भारत के संविधान निर्माता बाबा साहब को याद करो।। व्यक्ति बने समाजवादी मन में हो बंधुत्व की भावना। न्याय, अवसर और अधिकार मिले यही है कामना।। बच्चे, जवान और वृद्ध मिलकर राष्ट्रगान हम गाएंगे। आओ साथी मिलकर सभी गणतंत्र दिवस मनाएंगे।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली...