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कविता

नशा मुक्त हो जीवन सबका
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नशा मुक्त हो जीवन सबका

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** दिखावे का युग आज है, बनावट ओढ़े सर पे ताज है, राजस्व की फिकर सत्ता को मय मदिरा घर-घर में आज है, लगा हुआ है ध्यान ये सबका, झूम रहा हर वंचित तबका, खोज रहा हर कोई कृपा ये रब का, तन मन धन बर्बाद है इससे, नहीं आता बाहर कोई इस सनक से, हर कोई दुखी हैं नशे की धमक से, यारों इस नशे को अब तो छोड़ो, कीमत चुकाये हैं नशे की सबब का, नशा मुक्त हो जीवन सबका, अब बात करें उस नशे की जो जीवन में बहुत जरुरी है, करलो समाजोत्थान का नशा, मिशन के गुणगान का नशा, जागृति अभियान का नशा, हर जीवन के सम्मान का नशा, मत भूलो इस नशे से भीमराव, फुले, पेरियार भी झूमे थे, जनजागरण के इस नशे के लिए बुद्ध, कबीर, गाडगे भी घर घर घूमे थे, तो छोड़ो नशा मद्यपान का, कुछ तो सोचो अपने सम्मान का। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी :...
माँ का गुणगान
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माँ का गुणगान

अर्चना तिवारी "अभिलाषा" रामबाग, (कानपुर) ******************** किन शब्दों से करूँ माँ का गुणगान । सृष्टि की जो है शोभा, है रत्नों की खान।। जिसकी ममता से सुरभित होता सकल यह संसार। शाश्वत प्रेम से परिपूरित जिसका हृदय महान।। रक्त की बूँदों को कर संयोजित बनती सृजन हार। पल्लवित होता बीज अंतस में होता चमत्कार।। अपने स्नेहिल वात्सल्य से जब उसका पोषण करती है । वह पुष्प कुसुमित होता पाता मां का दुलार।। माँ की महिमा का कोई नहीं है पार। माँ के हाथों होता है बच्चों का उद्धार।। दुष्कर राहों में बन जाती सहारा, जब बीच भंवर में फंसती है नाव की पतवार। लबों पर जिसके हर पल दुआएं सजती हैं। साँची प्रीति हृदय में जिसके हर पल ही पलती है। हृदय में सच्ची आस लिए प्रतिपल बच्चों का चिंतन करती है।। माँ ईश्वर का है अनमोल उपहार चरणों में जिसके स्वर्ग का द्वार.... आदर्श व त्या...
हिन्दी
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हिन्दी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम, एक सभी का नारा 'हिन्दी' भारत में जनमन की - 'जीवन - शिक्षा - धारा'।। सर्व-प्राचीना, संस्कृत-जननी, भगिनी जिसकी सब भारत भाषा दर-दर की बोली 'शिशु-सरल' निर्मल जिसकी मातृ - अभिलाषा इन बोली, उपभाषा में बसता प्राण हमारा हिन्दी भारत में जनमन की 'जीवन - शिक्षा - धारा'।। माँ की लोरी, पिता का गान गिनती, पहाड़ा, अक्षर-ज्ञान कविता, कहानी और विज्ञान विकसित-सोच-समझ-अनुमान मातृभाषा में ही अपने पलता संस्कार हमारा हिन्दी भारत में जनमन की 'जीवन - शिक्षा - धारा'।। अंग्रेजी, फ्रेंच, इटाली, जर्मन रूसी, चीनी, कोरियाई, बर्मन हित्ती, ग्रीक, युनानी, रोमन अल्बानी, तुर्की, फारसी, अर्बन होंगी बहुत सी भाषाएँ पर हिन्दी सबसे मधुरा-प्यारा हिन्दी भारत में जनमन की- 'जीवन - शिक्षा - धारा'।। ब्र...
चाय
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चाय

नीलेश व्यास इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** कोरे पन्नो के केनवास पर शब्दों के चित्र बनाता हूँ, जी हाँ मै भी चाय बनाता हूँ, लिखने से पहिले, सोचने से पहिले, साहित्य सिद्धि के शब्द मंत्रों को गढ़ने से पहिले, जी हाँ मै भी चाय बनाता हूँ, सुबह-सुबह मजदूरी पर निकलने से पहिले, स्कूल लगने की घंटी से पहिले, फेक्ट्री जाने से पहिले, व्यापार के मुहूर्त से पहिले, संसद जाने से पहिले, भक्ति में डूब जाने से पहिले, जी हाँ मै भी चाय बनाता हूँ, मेहमानों के जाने से पहिले, आश्रमों में आशीर्वाद के पहिले, शुभ काम करने से पहिले, जी हाँ मै भी चाय बनाता हूँ, तीर्थ यात्रा में, शवयात्रा में, जीवन यात्रा में, राष्ट्र सेवा में, कभी-कभी भूख मिटाने को, जी हाँ मै भी चाय बनाता हूँ, यह चाय केवल चाय नही, यह धर्मों से ऊपर, भावनाओं से ऊपर, कभी-कभी मानव को मानव से...
मौन
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मौन

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** मौन की छाती में छिपा हुआ ज्वालामुखी बाहर से नहीं दिखता पर होता है सीने में असीम आग को समेटे स्वयं की आग से स्वयं को जलाता है पर धीरे धीरे ...... मौन नहीं होता सदा स्वीकार का लक्षण बल्कि अक्सर होता है यह अस्वीकार .... वह समय भी आता है जब मौन मुखर होता है अट्टहास ही तो करता है शिव के तांडव सरिस महाविनाश लीला सीने की आग बिखरकर जला देती है मौन को मौन सशब्द हो जाता जब मिट जाता है मौन होने का अभिशाप हाय! मौन इतना भयंकर !! परिचय :- डॉ. अवधेश कुमार "अवध" सम्प्रति : अभियंता व साहित्यकार निवासी : भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
मन की पीड़ा
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मन की पीड़ा

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन की पीड़ा समझ, न पाये दुनियाँ सारी। सिमट गये है उज्वल रिशतें, भूल गये इमानदारी। रिशतों की छनकार मे, रहीं नहीं आवाज, ईष्या कपट द्धेश का, हो चुका आगाज। सच्चे अर्थों मे देखें, सबंधों मे प्यार नहीं, कार्यवाही के प्यार में कार्य से अब प्यार नहीं। सामाजिक प्राणी मनुज, सामाजिक सब जीव, उठ जाये यह भाव तो, हिले सृष्टि की नींव। यह प्रकृति का नियम हैं, यहीं जगत का रंग, जीवन मानव का कभी, होता नहीं निसंग। एक भ्रम कोरा प्रदर्शन, आस्थायें बची कहाँ, अब किसी के मध्य, निर्मल भावनाएँ है कहाँ। प्यार के दो बोल से, हो जाता जीवन सफल, इतना हर्दय विचार ले, सबंध होगे निकट मधुर। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। ...
धरती की प्रहरी लहरें
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धरती की प्रहरी लहरें

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** उमड़ घुमड़ कर, लहर लहर कर, लहराती सागर की लहरें मानों धरती की सीमाओं पर, देतीं लगातार पहरे। धरती को ख़ुशहाली देतीं, बन उसकी प्रहरी कोई दस्यु लाँघ न पाए, धरती की देहरी। तट पर आ लहरें, ख़ूब करें अटखेली कभी सिंवई की उलझी जाली, कभी बने मतवाली। छलाँग लगाकर उछल-उछल कर, करतीं सागर को मालामाल कभी झाग को घेर-घेर कर, ख़ूब बनाएँ सुंदर ताल। कभी मगरमच्छ सी मुँह बाए, लहरें दौड़ी-दौड़ी आएँ कभी षोडषी कमसिन सी, केशलटों को लहराएँ । धाराओं की तुम अमिट स्वामिनी, तुम सागर का प्यार तुम सागर से रूठ न जाओ, वह देता रत्नों का उपहार। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषा...
देश का प्राण
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देश का प्राण

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार(म.प्र.) ******************** युवा देश का प्राण है मोबाइल हर हाथों में डिजिटल इंडिया की पहचान है फिर उन हाथों छलावे के विज्ञापन दिख रहे है लालच के बाजार में युवा छले जा रहे है क्या विज्ञापन में लालच का कोंन सा खेल चल रहा है किसी युवा को कर्ज में डूब रहा है आज डिजिटल इंडिया की पहचान हमारा युवा किस ओर भटक रहा है उनकी आँखों मे कर्ज का बोझ पल रहा है आज उस कारण युवा मौत के साये में समा रहा है फिर भी इस देश मे लालच का बाजार क्यो सज रहा है। परिचय :- अक्षय भंडारी निवासी : राजगढ़ जिला धार शिक्षा : बीजेएमसी सम्प्रति : पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच ...
प्रश्न का उत्तर
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प्रश्न का उत्तर

माधवी तारे लंदन ******************** (काव्य रचना, श्रद्धेय स्वामी विवेकानंद के चरित्र के आधार पर) एक दिन विवेकानंद जी से पूछ लिया एक मासूम ने मात पिता का संतान पर अपने रहता है न समान अधिकार? तो फिर मां का ही गुणगान जरा ज्यादा होता रहता संसार भर बोले स्वामी-बालक का प्रश्न सुनकर सामने दिखी ईंट को ले आ तू सत्वर मिल जाएगा फिर तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर गया ईंट लाने बच्चा दौड़कर कहे स्वामी, इसे अब बांध लो तुम्हारे पेट पर खाना, पीना, सोना, उठना, बैठना करते रहो नौ घंटे ऐसा ही रहकर आज्ञाकारी बालक कर बैठा कहे अनुसार अल्पकाल में ही असहनीय कष्ट से हुआ बेहाल पछताकर बोला मन में-क्यों गया मैं स्वामी जी को प्रश्न पूछने ! समय पूर्व आते बालक को देखकर तकलीफ उठाते हुए आते उनके घर पर मुस्कुराते बोले स्वामी, मिल गया लगता है तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दर्द भरी...
इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर
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इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** तेरा नाम नही तो सब मुझसे खुश रहते है तेरा नाम लेते सब मुझसे नाखुश रहते है अपने हिस्से का प्यार सब चाहते है मगर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर समझ नही पाते लगाव घट नही सकता ये वो घाव है जो कभी भर नही सकता इश्क सीमारहित जिसका छोर नही पर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर चाहत के अफसाने जो दिन रात बढता उसके अगन से कोई भी बच नही सकता इश्क वो दरिया जिसमे ताउम्र डूबना मगर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर आग सीने में लग जाये एक बार इश्क की ताउम्र मिलेगी अब प्रेम में कसक व सिसकी इस कशिश में बीतेगी अब तो जीवन डगर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर उम्र गुज़ार देंगे केवल तेरे यादो के साथ मैं इधर लिखूं,आप उधर पढ़ना मेरे साथ अब तो पढ़ के ही प्रेम होगा हमारा अमर इश्क है तो दर्द सहना पड़ेगा जीवन भर किसी भ...
ममता की मुरत
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ममता की मुरत

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** ममता की मुरत है....! प्यारी सी जिसकी सुरत है....!! पल पल रहती जिसकी जरूरत है....!!! माँ से ही तो दुनिया ये इतनी खूबसूरत है....!!!! त्याग की देवी जिसे हम कहते है....! साये में जिसके हम रहते है....!! संतान के दर्द में आँसू जिसके बहते है....!!! सम्भाल कर रखना तुम उसे, अनमोल है माँ, हम कहते है....!!!! करूणा का बहता सागर है....! जीवन का रहता सार है....!! प्रभु का कहता विस्तार है....!!! माँ से ही बनता ये संसार है....!!!! पवन में पुरवाई है....! राग में जो सहनाई है....!! लक्ष्मी का रूप लेकर आई है....!!! संग अपने खुशियों की सौगात लाई है....!!!! परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
हँसते जख्म
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हँसते जख्म

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** मन के जख्मों पे मरहम कौन लगाए, हर शख्स जख्मों को बस कुरेदना चाहे। जख्मों की नुमाइशें बेकार हैं, छल कपट का फैला कारोबार है। अपनों ने जो दिए वो जख्म गहरे हैं, ख्वाहिशों पर लगाये सबने पहरे हैं। दर्द के पीछे छिपे बेनकाब चहरे हैं, दर्द मिला बेहिसाब, घाव गहरे हैं। अपनों की बेरूखी बड़ा दुख पहुँचाती है, पर इससे ज़िंदगी थम तो नहीं जाती है। दूना उत्साह बटोरना होता है, कुछ भी हो काम पर लौटना होता है। हमदर्द मिले न मिले, खुद को समझाना होगा, हर जख्म सहकर, मुस्कुराना होगा। आज मिली हो मात कल जीतकर दिखलाना होगा। कोई साथ दे न दे, हमें चलते जाना होगा। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलि...
मां तुझे नमन
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मां तुझे नमन

डॉ. भोला दत्त जोशी पुणे (महाराष्ट्र) ******************** यों तो हर दिन तेरा ही मां तुझ बिन कुछ न भाया था। तुझसे है अखिल सृष्टि सब पर तेरी ममता का साया था।। मैं जब संसार में आया तब था मां ने ही गोदी उठाया था। लोट-पोट कर सरकने लगा तो मां ने उठना सिखाया था।। लड़खड़ाकर गिरता तो मां ने ही चलना सिखाया था। मिट्टी में रेखाएं खींचता तब मां ने लिखना सिखाया था।। मैं पहाड़े रटने लगा तब मां ने ही गिनना सिखाया था। मैं बस! मां जानता था मां तूने ही गुरु से मिलवाया था।। गर्भ से जन्म दिया तूने फिर ज्ञान से द्विज बनवाया था। मैं राह भटक रहा था तूने धर्म का मर्म बतलाया था।। मां, तेरा उपकार न भूलूंगा मुझे पशु से इंसान बनाया था। मातृदिवस पर तुझे नमन मां सृष्टि का नमन स्वीकार रहे। जब तक सृष्टि बनी रहेगी मां तू ही जगत आधार रहे।। परिचय :-  डॉ. भोला दत्त जोशी निवासी : पुणे (म...
इन्तजार
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इन्तजार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अधर बनी गुलाब पंखुरी नयन बने कमल से नयन भी करते इशारे प्रेम के बालो से निकली लट से छुप जाते नयन माथे पे बिंदिया सजी लगती प्रभात किरण कंगन की खनक पायल की रुनझुन कानो में घोल देती मिश्री कमर तक लहराते लटके बालों से घटा भी शरमा जाए हाथो में लगी मेहंदी खुशबू हवाओं को महकाए सज धज के दरवाजे की ओट से इंतजार में आँखों से आँसू इन्तजार टीस के बन जाते गवाह इन्तजार होता सौतन की तरह बस इतनी सी दुरी इन्तजार की कर देती बेहाल प्रेम रूठने का आवरण पहन शब्दों पर लगा जाता कर्फ्यू सूरज निकला फिर सांझ ढली फिर वही इंतजार दरवाजे की ओट से समय की पहचान कर रहा कोई इंतजार घर आने का तितलियाँ उडी खुशबू महकी लबो पर खिल, उठी गुलाब की पंखुड़ी समय ने प्रेम को परखा नववर्ष में चहका प्यार। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि...
ऐ नारी
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ऐ नारी

कुंदन पांडेय रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** मेरा विचार है ऐ नारी, अपना परचम लहराना तुम। पथ के इन कंकड़ पत्थर से, क्षण भर भी ना कतराना तुम। हर कदम बढ़ाने से पहले, अपने सुविचार बढ़ाना तुम। मेरा विचार है ऐ नारी, अपना परचम लहराना तुम। कथनी करनी सब अपनी हो, सत मार्ग वही अपना ना तुम। कोई मिटा सके ना हल्के से, ऐसे निशान दे जाना तुम। मेरा विचार है ऐ नारी, अपना परचम लहराना तुम। अपनी ही करुण क्यारियों में, खुद पुष्प सुमन बन जाना तुम। हिंसक पशुओं से बचने को, खुद कांटे भी दिखलाना तुम। मेरा विचार है ऐ नारी, अपना परचम लहराना तुम। परिचय :-  कुंदन पांडेय निवासी : रीवा (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां,...
सातों सागर होंगे पार
कविता

सातों सागर होंगे पार

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** रुखसत हो चले दिनकर हो रहा तम का विस्तार, लौटेगा कल फिर आशा से जीवन में लेकर संचार। माझी की कश्ती भी देखो खोज रही फिर से नव तीर, सागर में भी उठती लहरें अरुण को वंदन करता नीर। फैल रही क्षतिज तक आभा लगती जैसे ज्योति दीप, जल में पड़ती उसकी छाया जैसे मोती रचती सीप। ज्यों-ज्यों फैल रहा अंधियारा जोश से भर चलती पतवार, जब तक है सांसों का स्पंदन रोक न पाए कोई धार। जीवन का है सत्य यही तो थम कर रहना होती हार चलते रहने से ही हर पल सातों सागर होंगे पार। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
शिक्षा की गहराई
कविता

शिक्षा की गहराई

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** शिक्षा में ही है अनन्त ज्ञान की  गहराई यह बुनियाद जिसने है मजबूत   बनाई समझ, बुद्धि, बढ़ी, चिंताएं नहीं   सताई  शिक्षित से प्रगति खुशियाँ महक  आई जीवन में अति उत्कृष्ट है    शिक्षाज्ञान पढ़लिख कर अर्जित करे   शिक्षाज्ञान दिलाती बढ़ाती सन्मान      शिक्षाज्ञान उजियारा का दीप जलाती  शिक्षाज्ञान शिक्षित जीवन से ही सर्वोत्तम   आराम जाति समाज देश का खूब कराता ज्ञान अनन्त सुख समृद्धि में कराता पाठदान दीपक बुझे नहीँ शिक्षा का पाएँ सन्मान कोई ना राखे कभी कहीं   त्रुटि उत्तम ज्ञान है शिक्षा की    घुंटी बाल्यकाल जीवन से ही    बूंटी राहत की यही है संजीवनी बूंटी पिलाने का सर्वजन रचाओ   संसार खुलेमन से सब मिलकर करें  प्रसार शिक्षितजनों का बढ़े विस्तृत   संसार खोले अनपढ़ अवरुद्ध शिक्षा का द्वार शिक्षा की रोशनी से करे ...
कह रही हूँ कुछ अपने बारें में
कविता

कह रही हूँ कुछ अपने बारें में

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** कह रही हूँ, कुछ अपने बारें में तुम सुनना मुझे कुछ यूँ, खामोश हो के भी, खामोश ना होना तुम, मेरे हर लफ्ज को, अपनी रूह से लगाना तुम, कह रही हूँ, कुछ अपने बारें में तुम सुनना मुझे कुछ यूँ।। थोड़ी सी चंचल हु मैं, नटखट और मस्तीखोर भी हु मैं, हर बात पर गुस्सा करने वाली हु मैं, अपनी ही धुन मे रहने वाली हु मैं, कह रही हूँ, कुछ अपने बारें में तुम सुनना मुझे कुछ यूँ।। चेहरे पर मुस्कान लिए फिरती हु मैं, दिल में एहसास लिए फिरती हु मैं, चाहती हु इस जहाँ में पंख फैलाना, मंजिल को पाने की कशमकश है अभी जारी, कह रही हूँ, कुछ अपने बारें में तुम सुनना मुझे कुछ यूँ।। यूँ ही कुछ लिखते रहना पसंद है मुझको, तुम सुनो तो, सुनाना पसंद है मुझको, यूँ ही हल्के से मुस्कुराना पसंद है मुझको, पर किसी का डांटना, मुझको पसंद ...
करुण नयन की करुण वेदना
कविता

करुण नयन की करुण वेदना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** देख श्रमिक के करुण नयन जो, द्रवित नहीं होता है। ऐसे मानव का दिल बिल्कुल, पत्थर-सा होता है। औरों के प्रासाद बनाते, तन से बहा पसीना। अंबर के नीचे ही उनको, पड़ता जीवन जीना। होली, ईद, दिवाली में ही, पूरा भोजन पाते। शेष दिनों में बच्चों के सँग, भूखे ही सो जाते। जिनके तन का स्वेद गलाता, लोहे को पानी-सा। बंजर भूमि रूप धरती है, हरा भरा धानी- सा। जो गरीब का हिस्सा खाकर, कष्ट उन्हें पहुँचाते। पाकर वे बद्दुआ दीन की, जीवन भर पछताते। करुण नयन की करुण वेदना, दूर हटाना होगी। हृद में पीर भरी निर्धन के, पीर घटाना होगी। करुण नयन,लख जो गरीब के, अति विचलित हो जाते। बन करुणानिधान दुनिया में, राम-सदृश यश पाते। हो संकल्पित, करें प्रतिज्ञा, दूर गरीबी कर दें। करुण नयन ना हों गरीब के, खुशियाँ, दामन भर ...
साथ मिलकर
कविता

साथ मिलकर

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाना हैं संकल्प लेकर सुशासन को आखिरी छोर तक ले जाना हैं भ्रष्टाचार को रोककर सुशासन को आखरी छोर तक ले जाना हैं सरकारों को ऐसी नीतियां बनाना हैं भारत को सोने की चिड़िया बनानां हैं आधुनिक प्रौद्योगिकी युग में भी अपनी जड़ों से जुड़कर रहना है प्रौद्योगिकी का उपयोग कुशलतापूर्वक करना है प्रौद्योगिकी पर जोर देकर विकास को बढ़ाना हैं कल के नए भारत को साकार रूप देना हैं भारत को परिवर्तनकारी पथ पर ले जाना हैं सबको परिवर्तन का सक्रिय धारक बनाना हैं न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन प्रणाली लाना हैं सुशासन को आखिरी छोर तक ले जाना हैं भारतीय लोक प्रशासन को ऐसी नीतियां बनाना हैं वितरण प्रणाली में भेदभाव क्षमता अंतराल को दूर करना हैं लोगों के जीवन की गुणवत्ता कौशलता विका...
कृतज्ञ धरती
कविता

कृतज्ञ धरती

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** अथाह जलराशि से तर होकर, कृतज्ञ यह धरती सम्पूर्ण हृदय से गदगद होकर, रचनाकार की स्तुति करती जो ईश्वर का वरदान न होता, तो मै प्यासी तिल-तिल मरती। कैसे तुम्हारी इस रचना का, माँ बन मैं पालन करती। कैसे ममता बिखरी होती, कैसे समता के रस से तेरी इस कृति को सम्पूर्ण समर्पण देती। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं। ...
आनंदमई
कविता

आनंदमई

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** इश्क, प्रेम, मोहब्बत ये सब शब्द अधूरे है एक बार तुम आ जाओ तो ये शब्द खुद-ब-खुद पूरे है। एहसास, वफा, दिल्लगी ये सब शब्द अधूरे है एक बार तुम छू लो मेरी रूह को ये शब्द खुद-ब-खुद पूरे है। अनुरक्ति, प्रीति, भक्ति ये सब शब्द अधूरे है एक बार तुम सिमट जाऊं मेरे अंतर्मन में ये शब्द खुद-ब-खुद पूरे है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कव...
लफंगे यार
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लफंगे यार

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वो लफंगे यार, जिनसे मिला मुझे बेइंतहां प्यार, बचपन में साथ खिलाया, जिंदगी में कैसे चलना है बताया, भरोसा तोड़े बिना मुझ पर भरोसा जताया, अपनों के प्रति कैसे सजग रहना है गाली खा-खा कर सिखाया, गाली मेरे अपनों ने ही दिया, यारी के लिए कड़वे शब्दों का घूंट पीया, मेरे बेमकसद जिंदगी में बदलाव लाया, समाज संग अम्बेडकरी मूवमेंट सीखाया, अपने महापुरुषों से मिलाया, हर इंसान में अच्छाई के साथ बुराई भी होता है, वो मेरा यार है और रहेगा फर्क नहीं पड़ता मुझे कि कोई उन्हें लफंगा कह रोता है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
दीन-दुखी के अधरों पर अब
कविता

दीन-दुखी के अधरों पर अब

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** दीन-दुखी के अधरों पर अब, सुख की मुसकानें रख आएँ। करें प्रेम की बरसातें हम, पावन धरती स्वर्ग बनाएँ।। जाति-धर्म का भेद मिटे सब, महके जीवन की फुलवारी। सद्कर्मों के मधुर बोध से, गुंफित हो ये दुनिया सारी।। छल-प्रपंच से नाता तोड़ें, मानवता की ज्योति जलाएँ। शील-त्याग की ध्वजा थामकर, मर्यादा की अलख जगा दें। सदाचार की गंग बहाकर, पथ-कंटक को दूर भगा दें।। नैतिकता का पाठ पढ़ा कर, राग-द्वेष को दूर भगाएँ। संस्कार हो अंदर जीवित, कलुष विचारों को भी मारें। संतापों से पार लगाएँ, सत्य - अहिंसा की पतवारें।। आशाओं के दीप जलाकर, संकट से हर प्राण बचाएँ। बंजर धरती उगले सोना, यौवन फसल प्रेम की बोए। सकल विश्व में हो उजियारा, नींद चैन की दुनिया सोए।। मित्र भाव का शंख बजाकर, गुंजित कर दें दसों दिशाएँ। पर...
मन का भोजन ज्ञान है
कविता

मन का भोजन ज्ञान है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जो स्थान सुनिश्चित रहकर, पुस्तक संधारण करते। जिनसे जीवन बनता सुखमय, उन्हें पुस्तकालय कहते। वेद पुराण, उपनिषद इन में, रामचरितमानस गीता। ज्ञान पिपासु, इन्हीं में जाकर, ज्ञान जिंदगी का पीता। रघुवंशम औ मेघदूत भी, रामायण से पावन हैं। ज्ञान पुंज पुस्तक भंडारण, सुखद और मनभावन हैं। सबका ही जीवन हीरा है, पर तरासना होता है। बिना तराशा हीरा भी तो, अपनी कीमत खोता है। होता सदा सीप के भीतर, बहुत कीमती- सा मोती। मानव जीवन की सीपी में, भरी किताबें ही होती। सभी पुस्तकें, सच्ची साथी, जीवन को महकाती। सुसंस्कृत जीवन होता है, हर मानव की थाती। प्रज्ञा वान बने हर मानव, पुस्तक विद्या देती है। मिले खाद पानी पौधों को, पुष्पित होती खेती है। मन का भोजन सिर्फ ज्ञान है, जो किताब से मिलता है। ज्ञानवान, गुणवा...