जल हम सब की जीवन रेखा है
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रचयिता : मंजुला भूतड़ा
मैंने पानी से रिश्ते बनते देखे हैं,
मैंने पानी से रूठे मनते देखे हैं।
मैंने देखा है पानी का मीठा कडवा खारा होना,
मैंने देखा है इस का सबमें सबके जैसा हो जाना।
घुलने मिलने आकार बदलने का गुण है,
कोई नहीं ऐसा जो इसके बिना मौन या चुप है।
यह हम सब की जीवन रेखा है,
क्या इस का भविष्य हमने कभी सोचा है।
क्यों नहीं दे पाते इसे कोई भाव,
क्यों नहीं रखते इसे बचाने का भाव।
एक दिन नहीं होने पर गृहयुद्ध छिड़ जाता है,
इस से हम सब का गहरा नाता है।
जल संरक्षण की बात प्रबल करनी होगी,
जल संवर्धन की तकनीक अमल करनी होगी।
तभी भविष्य- सुख सरल तरल हो पाएगा
यह जल का नहीं अपना भविष्य बनाएगा।
जो आज किया परिणाम वही फिर पाना है,
वरना पानी की बर्बादी पर पानी पानी हो जाना है।
बिन पानी क्या जीवन सम्भव हो पाना है
नई पीढ़ी के सम्मुख क...