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कविता

परीक्षाव्रत
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परीक्षाव्रत

परीक्षाव्रत रचयिता : भारत भूषण पाठक दोहा - परीक्षापुरी के घाट पर भई परीक्षाव्रती के भीर।           परीक्षार्थी कलम घिसै ध्यान देत परीक्षक बलबीर।। सुन्दर पावन पुनीत बेला । चहुँओर दृश्य अलबेला।। कभी अधिगम कभी समागम। और मध्य में बार-बार फूटता बम।। कलरव का था लगा समाहार । हर तरफ केवल एक प्रश्न की गुहार।। प्रतीत था होता हाहाकार । उस पर प्रचण्ड गर्मी का प्रहार।। चल रहा था विषय पर्यावरण। था निर्मित अद्भुत वातावरण ।। था हो रहा हर तरफ पूछताछ का अधिगम । और परीक्षक फूट रहे  थे बन कर बम।। मेरी दशा को देखकर। कहा परीक्षक ने तनिक सोचकर।। आप भी  कुछ जुगाड़ बिठाइए । तभी मैंने कहा मैं शाकाहारी हूँ ...... इसलिए मुहतरमा आप मुझसे परे हो जाइये।। उसने पुन: कहा मैं समझी नहीं । मैंने तब उन्हें समझाया ।। मुहतरमा आज अपन का उपवास है। संग अपने पर पूर्ण विश्वास है। इतने में आने को हुए ...
पर्यावरण दिवस 
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पर्यावरण दिवस 

पर्यावरण दिवस  रचयिता : मनोरमा जोशी हरे भरे उपवन का बन जाये, हर घटक राष्ट्र का माली। क्लेश काल का बने ग्रास नित, काल निशा हो कभी न काली। लेकर के संकल्प आज हम, ऐक ऐक पेड़ लगाएं, पर्यावरण बचाएं। वन जब घटा हैं बड़ा है प्रदूषण, जन जन में फैली है बीमारी भीषण। यह संताप मिटाएं। आओ ऐक पेड़ लगाएं। पर्यावरण बिन सूना जग सारा, इसी से है जीवन सारा, इससें ही हैं सब गतिमान, हम सब रक्खे इसका ध्यान , स्वस्थय सुखी संसार बसायें। आओ हम एक पेड़ लगायें। अपना देश बचायें। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं।विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का...
गिरकर उठना
कविता

गिरकर उठना

गिरकर उठना रचयिता : मनोरमा जोशी गिरकर उठना, उठकर चलना यह काम है संसार का। कर्म वीर को फर्क न पड़ता, कभी जीत और हार का। जो भी होता है घटना क्रम, रचता स्यंम विधाता है। आज लगे जो दंड वहीं पुरस्कार बन जाता हैं। निशिचत होगा प्रबल समर्थन, अपने सत्य विचार का, कर्म वीर को फर्क न पड़ता, कभी जीत और हार का। कर्मो का रोना रोने से, कभी न कोई जीता है, जो विष धारण कर सकता है, वह अमृत को भी पी लेता है। संबल यह विश्वास ही है, अपने दृढ़ आघार का। कर्म वीर को फर्क न पड़ता, कभी जीत और हार का। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र-सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं।विभिन्न पत्र...
फिर इस बार होली पर वो …
कविता

फिर इस बार होली पर वो …

फिर इस बार होली पर वो ... पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** फिर इस बार होली पर वो, सच कितना इठलाई होगी.. सत रंगों की बारिश में वो, छककर खूब नहाईं होगी….। भूले से भी मन में उसके, याद जो मेरी आई होगी.. होली में उसने नफरत अपनी, शायद आज जलाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! ये क्या हुआ जो बहने लगी, मंद गति शीतल सी ‘पवन’.. याद में मेरी शायद उसने, फिर से ली अंगड़ाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! कैसी है ये अनजान महक, चारों तरफ फैली है जो.. मुझे रंगने को शायद उसने, कैसर हाथों से मिलाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! पीले,लाल, गुलाबी रंग की, मेहँदी उसने रचाई होगी.. आएगा कोई मुझसे खेलने होली, उसने आस लगाई होगी….। फिर इस बार होली पर वो ....!! डबडबाई आँखों से उसने, मेरी राह निहारी होगी..। पूर्णिमा के चाँद पे जैसे, आज चकोर बलिहारी होगी….। फिर इस बार होली...