सफर
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रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर
गर! सफर में साथ हो अपनो का, तो सफर आसां हो ही जाता है।
तलाश हो गर! सही मंजिल की, तो कारवाँ बन ही जाता है।
वादियां खिली-खिली सी हो।
गर! ना हो दोस्त साथ तो।
चमन भी, चुभ ही जाता है।
गर! साथ हो दोस्त, परिवार तो।
विराना! चमन हो ही जाता है।
मुक़द्दर सभी का अपना-अपना।
लेकिन! कोई मंजिल तो होगी।
जहाँ में! जहाँ, हमसाथ हो ही जाता है।
मत कर! तलाश बिखरे पन्नो की।
कसूर पन्नो का नही।
गर! वक्त साथ ना हो तो।
हवा का रुख बदल ही जाता है।
चलते रहो, मुस्कुराते रहो।
सफर में! धूप-छावं तो होगी।
गर! सफर हो साथ अपनो का तो।
सफर आसां हो ही जाता है।
परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर
जन्म तिथि : ५.९.१९७०
लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख,
शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार,
प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्...