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कविता

मर्म
कविता

मर्म

========================== रचयिता : भारत भूषण पाठक मृत्यु शय्या पर लेटी। है  करूणा की गाथा।। कहती वो मनुज-मनुज से। निर्मोही निर्मम से कर दो दया अब मुझपर। मेरे बहते इन अश्रुपर।। थी जब जीवन से पूरण। है मुझको वो सब स्मरण।। रहती थी घर में अपने। थे कितने मेरे सपने।। बिखर गए वो सपने। जैसे फँसता कोई है मधुकर। पीते हुए जब वो पुष्परस।। मृत्यु शय्या पर लेटी। है करूणा की गाथा।। कभी मैं थी मासूम सी गुड़िया। अपने बाबुल की चिड़िया।। रहती थी मस्त मलंग में। हो कर बाबुल के संग में।। है तुमने जब से तोड़ा। मेरा अस्तित्व झिंझोड़ा।। तब से प्राण विहीन में। कर दो दया अब मुझ पर। अब तो छिन्न-भिन्न में। मृत्यु शय्या पर लेटी। है करूणा की गाथा।। लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र :- आई.एस.डी., सरैयाहाट मे...
विराम
कविता

विराम

========================== रचयिता : संगीता केस्वानी सदियों पुरानी रीत है बदली, एक तरफा ये जीत है बदली, है विराम मेरी बेबसी का, है लगाम तेरी नाइंसाफी का,, न पर्दे से इनकार है, ना संस्कारो से तक़रार है, अब अपने फैसलों का मुझे भी अधिकार है, रौंद सके मेरे जीवन को तुझे अब न ये इख्तियार है,, अब ना अश्क-ऐ-आबशार होगा, ना हर पल डर का विचार होगा, सुखी -नुष्चिन्त हर परिवार होगा, मेरे भी हक़ में ये बयार होगा,, सायरा, गुलशन इशरत,आफरीन, आतिया का संघर्ष रंग लाया, मजबूरी से मज़बूती की जंग का सुखद परिणाम आया,, ना हूँ केवल वोट-बैंक या ज़ाती मिलकीयत, अब जाके पाई मैंने भी अपनी अहमियत,, तुम सरताज तो मैं शरीके-हयात, पाख ये रिश्ता-ऐ-निकाह ना होगा तल्ख तलाक से तबाह, न तलाक-ऐ-बिददत, ना तलाक-ऐ-मुग़लज़ाह, कर पायेगा इस रूह-ऐ-पाख का रिश्ता तबाह, सो मेरी जीत मैं तुम्हारी जीत, और तुम्हारी जीत में मेरी शान।। लेखिका परिच...
कटू सत्य
कविता

कटू सत्य

========================== रचयिता : संगीता केस्वानी पिता का घर "मायका", पति का घर "ससुराल", मेरा घर है कहाँ?, भाई का घर भाभी ने लिया, बेटे का घर बहू ने लिया, मैं हूँ कहाँ?, जीजा करे बहन से आनाकानी, बिटिया के यहाँ दामाद को परेशानी, मेरी अहमियत किसने पहचानी, मंदिर में पुजारी का डेरा, आश्रम में भी ना मिले बसेरा, कहने को सब अपने, पर कौन यहां मेरा?? ये कैसी विडंबना........ सृष्टि की सिर्जनकर्ता का अपना कोई स्थायी पता ही नही?????? लेखिका परिचय :- संगीता केस्वानी आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबाइल पर या गूगल पर www....
मेरे गिरधर
कविता

मेरे गिरधर

================== रचयिता : रीतु देवी मेरे गिरधर, मेरे गोपाल मुरली मनोहर , नंद के लाल तेरी मुरली की धुन सुन बजती है पायल रूनझुन। दर्शन करूँ तेरी छवि निराली, नित्य गाऊँ भजन सजाकर थाली। मोर मुकुट शोभे तोहे शिश, रम जाऊँ तुझमें ,माँगू न भीख मुरली मनोहर रखे हस्त मेरे शिश सदा, भक्त रहूँ केशव तेरा सर्वदा।   लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबाइल पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीज...
रोटी
कविता, छंद

रोटी

======================== रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर सायली छन्द की कविता रोटी तुम हो छोटी मोटी पतली भूख तुम्ही मिटाती। *** कही घी चुपड़ी कही सूखी रहती तृप्ताति आत्मा माँ। *** तुम्हारे हाथों भाती गर्म रोटी जीवन सन्देश सिखलाती। *** भूख तृष्णा तुम्ही ज्वाला पेट की बुझती तुम भाति।   परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोसा, विवशता, सलाम, पसीने की बूंद,  कविताएं :- वो सूखी टहनियाँ, शिक्षा, स्वार्थ सर्वोपरि, अमावस की रात, हायकू कविताएं राष्ट्र, बेटी, सावन, आदि। प्रकाशन : भाषा सहोदरी द्वारा सांझा कहानी संकलन एवं लघुकथा संकलन सम्मान : "भाषा सहोदरी" दिल्ली द्वारा आप भी अपनी क...
पिता और बेटा
कविता

पिता और बेटा

======================= रचयिता : सौरभ कुमार ठाकुर मजदूरी करके भी हमको उसने पढ़ाया है। कचौड़ी के बदले उसने सूखी रोटी खाया है। हम पढ़-लिखकर इन्सान बनेंगे, यह उम्मीद उसने खुद में जगाया है। जब पिया सिगरेट बेटा, देख वह शरमाया है। उसने नशा का मूँह ना देखा, बेटे ने शिखर आज चबाया है। उसकी उम्मीदों का आज गला घोंट, पता नही बेटे ने आज क्या पाया है। परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार) पेशा - १० वीं का छात्र और बाल कवि एवं लेखक जन्मदिन - १७ मार्च २००५ देश के लोकप्रिय अखबारों एवं पत्रिकाओं में अभी तक लगभग ५० रचनाएँ प्रकाशित सम्मान-हिंदी साहित्य मंच द्वारा अनेकों प्रतियोगिताओं में सम्मान पत्र, सास्वत रत्न, साहित्य रत्न, स्टार हिंदी बेस्ट राइटर अवार्ड - २०१९ इत्यादी। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फ...
हे कान्हा
कविता

हे कान्हा

======================== रचयिता : रुचिता नीमा हे कान्हा!!!!!! कैसे परिभाषित करु मैं अपने प्रेम को,,,,,, तेरा प्रेम मेरे लिये जैसे, बारिश की वो पहली बूंद,, जिससे महक उठे माटी।।।। वो रेत की तपिश में मिला एक बर्फ का टुकड़ा,,,, जो दे असीम सी ठंडक।।।।। तेरे प्रेम का अहसास है इतना शीतल की कड़ी धूप में मिल गया कोई शीतल झरना।।।। ऐसा लगा ही नही की हम एक नहीं, तू साथ नहीं, पर तू मुझसे जुदा भी नहीं,,,।।। हे राधिके!!!! मत दो हमारे प्रेम को कोई भी आकार,, और न ही यह है किसी रिश्ते का मोहताज एक रूह के दो रूप है हम,,, एक दूजे के बिन अपूर्ण है हम।।।।। निःशब्द, निर्विकार, निराकार सब सीमाओं से परे असीमित, अनन्त, अव्यक्त से हम....... राधे कृष्ण राधे कृष्ण राधे कृष्ण लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम....
कच्चे चूल्हे
कविता

कच्चे चूल्हे

======================= रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर कच्चे चूल्हे भूले, भूले सावन के झूले ।। प्रीत भी भूल चले है, दीवारो के छांव तले हैं। किससे क्या आश करें। किस पर विश्वास करें।। जिससे प्रीत बढ़ाई। वो भी है हरजाई।। ये जग नहीं अपनापन का, दुख कौन हरेगा मन का । सब मतलब के नाते। दिग्भ्रमित हमें कर जाते।। चेतनता हर जाती। सब शून्य नजर ही आती। मैं सोच रहा हूँ कैसे ? इस प्रीत से छुटकारा हो ना मोह रहे बंधन का, ना कोई जग प्यारा हो।। ह्रदय से एक आह निकले, और चाह मिटे पाने की। में मतवाला पागल बस, एक धुन हो कुछ गाने की।। वो दिवस शीघ्र आऐगा, जो मुझको तरसाते हैं। वो खुद एक दिन तरसेंगे, आंसू बन जो आते हैं।। अभी हृदय पावस है। मेघ सहज बन जाता। तेरी यादों में आकर, नेह सजल बरषाता ।। पतझर जिस दिन ये होगा। तुम तरसोगे सावन को, किंतु नहीं पाओगे, पुण्य प्रीत पावन को।। प्रकृति का है नियम सखे, परिवर्तन सब कुछ होता ...
बोलता कश्मीर
कविता

बोलता कश्मीर

======================= रचयिता : परवेज़ इक़बाल -नज़्म- बोलती हैं सलाखों पे भिंची गर्म मुट्ठियाँ सुने पड़े डाकखानों में लगे लिफाफों के ढ़ेर. और मोबाइल के इनबॉक्स में पड़ी लाखों चिट्ठियां... क्या सच में आज़ाद हूँ मैं....? सन्नाटे के शोर से फटती हैं कानों के रगें खामोश लब और सुर्ख आंखें धधकते सीने पस्त बांहें... सर्द हवा में भी है एक अजीब सी तपिश सवाल करती है चीखते दिल से यह खामोश सी खलिश क्या सच में आज़ाद हूँ मैं....? पूछती है बर्फ, चिनारों को अपनी सफेदी दिखा कर मुझे रोंद्ता नहीं कियूं कोई अब पहाड़ पर आकर... कहते हैं थपेड़े पानी के डल के किनारों से जाकर.. कोई तो खामोशी तोड़ो शिकारों से गीत गाकर... उतारो पानी मे सूखी पड़ी पतवारों को कोई तो आबाद करो इन सूने शिकारों को.... हाँ आज अफसोस नहीं तुम्हें मेरे हाल का लेकिन देना पड़ेगा जवाब कभी तुम्हें भी मेरे सवाल का ये नफरत हरगिज़ न खीर का ज़ायका बढ़ाएगी... दूध प...
वन्दे मातरम् गाते रहेंगे
कविता

वन्दे मातरम् गाते रहेंगे

============================== रचयिता : रीतु देवी वीर रस गीत वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम् गाते रहेंगे। सीमा पार घुसपैठियों को न आने देंगे।। हम संतान हैं वीरांगनाएं माताओं की मुँह तोड़ जवाब देगें शत्रुओं की गोलियों की चिंगारी बन हम राख कर देंगे हर कैम्प दुश्मनों के बुरी नजर फोड़ मुस्कान लाऐंगे होठों माँ-बहनों के वन्दे मातरम् ,वन्दे मातरम् , वन्दे मातरम् गाते रहेंगे। सीमा पार घुसपैठियों को न आने देंगे।। हर प्रहार सहेंगे भारतभूमि शान वास्ते हँसते-हँसते आँच न कभी आने देंगे माँ भारती पर सस्ते-सस्ते निकल बाहर आऐंगे रिपुओं के चक्रव्यूह तोड़कर जश्न मनाऐंगे बुरे मंसूबों पर पानी फेरकर वन्दे मातरम् ,वन्दे मातरम् , वन्दे मातरम् गाते रहेंगे। सीमा पार घुसपैठियों को न आने देंगे।। याद दिलाकर छठी का दूध धूल चटा देंगे युद्ध मैदान में सबक सिखाकर थर -थर रूह कंपा देंगे शैतान के मौत की नींद सुला दें...
मोड़ आया तो
कविता

मोड़ आया तो

=================== रचयिता : सतीश राठी मोड़ आया तो जुदा होने का मौका आया सीप से मोती विदा होने का मौका आया वह कली खिल गई और फूल बनी तो उसकी खुशबू में नहाने का है मौका आया जो जगह वह पा न सका फकीर बन कर बना इंसान तो खुदा होने का मौका आया गलतियों के खिलाफ जब उठेंगे हाथ सभी यह समझ लेना गदा होने का मौका आया पीठ पर धूप को लादे हुए जाएं कब तक झुकी है शाम तो विदा होने का मौका आया   लेखक परिचय :-  नाम : सतीश राठी जन्म : २३ फरवरी १९५६ इंदौर शिक्षा : एम काम, एल.एल.बी लेखन : लघुकथा, कविता, हाइकु, तांका, व्यंग्य, कहानी, निबंध आदि विधाओं में समान रूप से निरंतर लेखन। देशभर की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन। सम्पादन : क्षितिज संस्था इंदौर के लिए लघुकथा वार्षिकी 'क्षितिज' का वर्ष १९८३ से निरंतर संपादन। इसके अतिरिक्त बैंक कर्मियों के साहित्यिक संगठन प्राची के लिए 'सरोकार' एवं 'लकीर' पत्...
मुस्कुरा रहा वतन
कविता

मुस्कुरा रहा वतन

==================== रचयिता : कार्तिकेय त्रिपाठी 'राम' हरी-भरी वसुंधरा को देख कर मेरा वतन, मुस्कुरा रहा है ऐसे फूल का कोई चमन। हर जवान देखता है सीना तानकर यहां, आजाद,भगत,बोस ने जन्म लिया है जहां। जमीं है मेरे प्यार की जमीं है मेरे दुलार की, महक ये बिखेरती प्रेम,पावन,प्यार की। ये धरा भी देखो हमको कैसे यूं लुभा रही, छा रही अमराई है गंगा सुधा बरसा रही। इसका थोडा़ गुणगान करें और इसका मान धरें, गीत भी अर्पण करें और मन दर्पण करें। पा रहें हैं इससे मनभर खुशियों का जहान हम, रक्त रंजित ना धरा हो इसका धरें ध्यान हम। संजीवनी है ये धरा मुस्कानों से भर दें घडा़, इससे बढ़कर कुछ नहीं है इस धरा पर है धरा। पाकर धरा पर हम ये जीवन जीते ही तो जा रहे, शीर्ष पर फहरा तिरंगा हिन्द जन मुस्का रहे। लेखक परिचय :- कार्तिकेय त्रिपाठी 'राम' जन्म - ११.११.१९६५ इन्दौर पिता - श्री सीताराम त्रिपाठी पत्नी - अनिता, पु...
जन्मे कुअँर कन्हाई
कविता

जन्मे कुअँर कन्हाई

==================== रचयिता : मनोरमा जोशी बृज मे बटत बधाई, जन्मे कुअँर कन्हाई। आँधी रात घणी बरसात, जमना खल खल उबराई, जन्मे कुअँर कन्हाई। कारागृह के बंद द्धार, बिन चाबी ताले खुल गये, अदभुत लीला रचाई, जब जन्मे कुअँर कन्हाई। जहाँ जन्म लिया वहां पिया दूध नहीं, जहाँ दूघ पिया वहां लिया जन्म नहीं, दो दो माता ने खुशियां मनाई। ऐसे जन्मे कुअँर कन्हाई। कंस मामा का करने सफाया, रची कान्हा ने ऐसी माया, धन धन प्रभु की चतराई, शोभा बरणी न जाई । बाजत ढोल नगाड़ा घर घर, और बाजे शहनाई। जब जन्मे कुअँर कन्हाई। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्...
कैसा  है, क्यूँ  है, क्या है?
कविता

कैसा  है, क्यूँ  है, क्या है?

======================== रचयिता : मुनव्वर अली ताज कैसा  है, क्यूँ  है, क्या है? सवालों का हल नहीं ग़म को समझना    दोस्तों   इतना  सरल    नहीं ग़म  गैस  नहीं ,  ठोस  नहीं  और    तरल   नहीं ग़म की   परख   में कोई  अभी तक सफल नहीं जीवन   मिटा दें    ऐसे   कई     ज़ह्र    हैं   मगर ग़म   को  मिटा  सके  कोई   ऐसा  गरल    नहीं जो  दे   खुशी   हमेशा ,  हमें    ग़म  न  दे  कभी आदि  से  आज   तक   कोई   ऐसी  ग़ज़ल नहीं मैं  पी  चुका  हूँ   दर्द के सागर     को   इस लिए ग़म  के    दबाव    से   मेरी   आँखें सजल  नहीं ग़म  से   हरी भरी  हैं  ये   कागज़   की    खेतियाँ जल  है  ये  रोशनाई   का  ,  वर्षा   का जल  नहीं जो  'ताज'  है    उसी  पे  ही  उठती   हैं  उँगलियाँ कीचड़   बिना    खिले   कोई   ऐसा  कमल  नहीं   लेखक का परिचय :- मुनव्वर अली ताज उज्जैन आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अ...
इश्क और अश्क
कविता

इश्क और अश्क

============================= रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  इश्क और अश्क न नाम लो अश्कों का , इश्क में अश्क तो बहते ही हैं l इश्क किया है इश्क करेंगे , इश्क में अश्क भी मोती से लगेंगे l इश्क में अश्क तो बहते ही है, अश्क भी गम और खुशी की कहानी कहते हैं l लोगों का क्या, लोग तो कुछ भी कहेंगे, वादा करो रो रो के अष्ट नहीं बहेंगे जब भी बहेंगे अश्क तुम्हारे, सोचना दिल मेरा रोया है l नाम न लो अश्कों का, इश्क में इश्क तो बहते ही हैं l इश्क का अश्क से रिश्ता है पुराना इसलिए मेरे अश्कों पर ना जानाl ना नाम लो अश्कों का, इश्क में अश्क तो बहते ही ll लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
मतदाता की सांसद से अभिलाषा
कविता

मतदाता की सांसद से अभिलाषा

====================================================== रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  देखो जा रहे हो संसद की चौखट पर बस इतना याद रखना जाकर चौखट पर अपना शीश नवाना देखो जा रहे हो संसद की चौखट पर बस इतना याद रखना किसी के बहकावे में ना आना देना तून साथ सदैव सत्य का करना समर्थन हमेशा उचित का देखो जा रहे हो संसद की चौखट पर बस इतना याद रखना ना डरना ना घबराना रखना अपना पक्ष  हमेशा देखो जा रहे हो संसद की चौखट पर बस इतना याद रखना रखना ध्यान संसद की गरिमा का और रखना मान हमारा निभाकर अपना राजधर्म रखना राष्ट्रहित सर्वोपरि पूरे करना अपने किए वादे देखो जा रहे हो संसद की चौखट पर बस हमें भूल न जाना और हां जब हो जाए वहां अवकाश शीघ्र लौट आना जुड़े रहना जमीन से अपनों के बीच लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन...
बरसों बाद  बरसी खुशियाँ
कविता

बरसों बाद बरसी खुशियाँ

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** बरसों बाद  बरसी खुशियाँ कश्मीर के आँगन में केशर की क्यारियों में मधुप मधुर राग सुनाए कश्मीर के आँगन में ह्रदय में चुभते थे कभी भय के शूल वीरान पथ पे रोती थी बर्फीली वादियां कश्मीर के आँगन में सत्तर वर्षो से झांकते मासूम चेहरे सूनी पड़ी झीलों में कश्मीर के आँगन में अविरल बहते आँसू पलायन की गाथा सुनाते थे कभी कश्मीर के आँगन में नई इबारत लिखी सुनहरे सपने हुए साकार खिलखिलाने लगी दूब अब कश्मीर के आँगन में जन्नत महकी केशर सी स्वप्न हुए साकार कश्मीर के आँगन में संजय वर्मा "दृष्टि"   परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - ...
हिन्दुस्तान है महान
कविता

हिन्दुस्तान है महान

=================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" शांति का प्रतीक धर्मप्रिय सत्यशील ऐसा देश है हमारा हिन्दुस्तान, सभी मिलजुल के रहे,दिल की बात खुल के कहें, मन में तनिक भी नहीं अभिमान, जात और पात की ना करे कोई बात कद्र करते हम सबके जज्बात की, दुख और सुख में भी खड़े रहते साथ ना करते हम चिंता  दिन और रात की, वीरों के बलिदान का,इस धरा महान का,करते हम सभी मिल सम्मान है, भारत मां के लाल,हाथ में लिये मशाल,दुश्मनों की हर चाल को करते नाकाम है, देश का किसान,जो देश की है शान,उगा अन्न देश को देता जीवनदान है, सिंह सम दहाड़ भर, घाटियां पहाड़ चढ़,खड़ा सीना तान के जवान है, मंदिरों में गीता ज्ञान,मस्जिदों में है कुरान,दोनों धर्मों का अलग-अलग स्थान है, हिंदु मुस्लिमों में प्यार,सदा रहता बरकरार,सबका ईश्वर    सर्वत्र ही समान है, मां-बाप की तालीम,थोड़ी कड़वी जैसे नीम,पर सीख उनकी आ...
आजाद हो गये
कविता

आजाद हो गये

=========================== रचयिता :  राम शर्मा "परिंदा" कई धर्म - जातियाँ कई वाद हो गये । हे ! चन्द्रशेखर, हम आजाद हो गये ।। कदर नहीं बलिदान की चिंता धन और मान की भीतर से सब काफिर है बातें कर रहे हैं शान की स्वतंत्रता के नाम पर बरबाद हो गये । हे ! चन्द्रशेखर, हम आजाद हो गये ‌‌।। भूल गये निज संस्कृति हर जगह हो रही अति कहने को है पढ़े-लिखे मति बन रही है कुमति मानव के  नाम पर  अपवाद हो गये । हे ! चन्द्रशेखर, हम आजाद हो गये ।। परिचय :- नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम काम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १ परिंदा, २- उड़ान, ३- पाठशाला प्रकाशित हो चुके हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है, दूरदर्शन पर काव्य पाठ के साथ-साथ आप मंचीय कव...
रक्षाबंधन ,स्वतंत्रता दिवस,कश्मीर विजय
कविता

रक्षाबंधन ,स्वतंत्रता दिवस,कश्मीर विजय

============================ रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित सज़ी कलाई राखी से, रह रह कर याद दिलाती है। बहनों का प्यार निराला है, आँख आज भर आती है। बहन बड़ी हो या छोटी, ज़ज्बे में सदा बडी होतीं। दुख कैसा भी घनघोर रहे, सन्मुख सदा खड़ी होतीं। रक्षाबंधन के अवसर पर ही क्यों याद करें केवल उनको। ये रिश्ता है अनमोल जगत में, बतलाना होगा जनजन को। है संयोग आज इस दिन का, संगम ख़ास पुनीत हुआ। पन्द्रह अगस्त, रक्षा बंधन, तीजा, कश्मीर स्वतंत्र हुआ। तीन तीन त्योहारों की,,,,,,,,, शान बहुत अलबेली है। नहीं कलाई है सूनी, ,,,,,,,,,,,बहन न कोई अकेली है। भारत माता की जय बोलो तब बस इतना आभास रहे। हो तुम्हें मुबारक़ पर्व तीन,,,,,,,,,हर्ष और सौगात रहे। भारत माँ के मुखमंडल पर,,,नहीं वेदना कोई भी है। बहुत दिनों के बाद आज माँ,शायद खुश होकर सोई है। हो नमन राष्ट्र के नायक को, और लौह पुरुष को नमन करो। जो आँख दिखाये शत्रु ...
सच में कहीं ये देशद्रोही तो नहीं हैं ?
कविता

सच में कहीं ये देशद्रोही तो नहीं हैं ?

============================ रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित तरस बहुत आता है तुम पर,क्यों सोच आपकी ओछी है? धारा हटी तीन सौ सत्तर,क्यों फ़िर भी चाहत खोटी है? यू एन पर होता यकीन,पर देश प्रतिष्ठा नहीं सुहाती। कश्मीर मुक्त,होगा सशक्त सपने में बात नहीं नहीं भाती। सौ साल पुरानी एक पार्टी,निज कर्मों पर ना शर्माती। सिंहासन है अभिशिप्त ,कभी बेटा कभी मम्मी आती। लौह पुरुष से अमित लगें,मोदी की बात निराली है। देश आपके साथ हुआ,,,अब क़िस्मत खुलने वाली है। हम नहीं गुलामों में शामिल,हैं देश प्रेम के अभिलाषी। नहीं कभी स्वीकार हमें वो,हम हैं सच में भारत वासी। अफ़सोस हमें,क्यों है वज़ूद?जो देश द्रोह की बात करें? हम मोदी के दीवाने हैं,सदियों तक वो ही राज़ करें। कुछ पत्रकार हैं भृमित बहुत,,,,,,,,होता स्वभाव विद्रोही मन। केवल विरोध न कोई शोध,कलुषित है उनका तन मन धन। हम मोदी के अनुयायी हैं,,,देश प्रेम सर चढ़ बोले।...
रक्षाबंधन
कविता

रक्षाबंधन

======================= रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर भाई के माथे पर चंदन। बहिना का प्यारा स्पंदन। करूणा का त्यौहार वंदन। रक्षाबंधन ...रक्षाबंधन।। दूर भले हम लेकिन बहिना, तू भाई का प्यारा गहना। तेरी खुशियां मेरी खुशियां, कलाई पर मैंने जो पहना।। नेह अजर और अमर रहेगा, धागा प्रेम अजब गठबंधन।।... रक्षाबंधन ...रक्षाबंधन।।.... परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये...
श्रद्धांजलि
कविता, संस्मरण

श्रद्धांजलि

============================= रचयिता : डॉ. अर्चना राठौर "रचना" देकर श्रद्धाँजलि, दी सु-षमा को शमा धरती माँ है बहुत उदास, पर है आकाश भी उदास | खो दिया है आज उसको , देती थी जो सबको आस | भारत माँ का थी अभिमान, देश की थी आन और बान | सीता चरित्र ,नारी की शान, करते सब जिसका सम्मान | दहाड़ती जब  शेरनी  सी , हो सदन में खलबली सी | वो बोलतीं बेबाक थीं जब , सब देखते अवाक् थे  तब | ज्ञान की  भंडार थी  वो , संस्कृति का मान थी जो | वक्तव्य भिन्न भाषाओं में , करती विदेश जाती थीं तो है नभ रो रहा,धरा भी रो रही , बिटिया तो चिर निद्रा सो रही| अब तो नदियां सी हैं बह रहीं , यहाँ-वहाँ नयनों से हर कहीं | करते हम सलाम उनको , देकर सब सम्मान उनको | ह्रदय से सुमन अर्पित कर, हार्दिक श्रद्धाँजलि उनको | लेखिका परिचय :- नाम - डॉ. अर्चना राठौर "रचना" (अधिवक्ता) निवासी - झाबुआ, (म...
बाहर से हँसता हूँ
कविता

बाहर से हँसता हूँ

========================= रचयिता : रामनारायण सोनी दो पल को जागा फिर बरसों तक सोया हूँ आशा के पंखो पर सपनों को ढोया हूँ साँसों ने मोहलत दी उतना भर जी पाया कतरा भर पानी था सागर में खो आया आँसू का मोल यहाँ बालू से सस्ता है झूँठों की बस्ती में साँच हुआ खस्ता है फूलों की सेज सजी नीचे बस शूल धरे सूनी इस अमराई में गिद्धों के शोर भरे दोहरे इस चेहरे से दर्पण भी हार गया जीवन के उपवन को पाला क्यूँ मार गया सुर तो सब मीठे है कँपते उन तारों के पिटते हैं ढोल सभी गीत सजे प्यारों के जीवन की धारा संग तिनके सा बहता हूँ भीतर सौ ज्वाल लिये बाहर से हँसता हूँ   परिचय :- नाम - रामनारायण सोनी निवासी :-  इन्दौर शिक्षा :-  बीई इलेकिट्रकल प्रकाशित पुस्तकें :- "जीवन संजीवनी" "पिंजर प्रेम प्रकासिया", जिन्दगी के कैनवास लेखन :- गद्य, पद्य सेवानिवृत अधिकारी म प्र विद्युत मण्डल आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
जीवन और बारिश भाग – 2
कविता

जीवन और बारिश भाग – 2

पवन मकवाना (हिंदी रक्षक) इंदौर मध्य प्रदेश ******************** आँखों पर हाथ रखे वह देख रहा था टकटकी लगाए आस है जिनके रुकने की बरसने से गति तगारी लिए मजदूर की जो कमर पर लपेटे मैली सी चादर भूख मिटाने के यंत्र की भांति सड़क किनारे खड़े अपनी काग़ज की फिरकियों के रूप में अपने सपनों को बारिश के पानी में गलता देख रहे अधनगें कपड़े पहने उस अधेड़ की ठेले पर आधे कच्चे आधे पके केले लिए बैठी मक्खियां उड़ाती उस बूढी नानी की जो पाल रही है अपनी मृत बच्ची के बच्चों को जिन्हे छोड़ गया उनका जल्लाद बाप जब वह बेच ना पाया बूढी नानी के विरोध के चलते अपनी मासूम बेटियों को किसी और जल्लाद के हाथ दारु से अपना गला तर करने आस है इन सबको की रुके बारिश तो शुरू हो काम उस ऊँचे भवन का जिसके भरोसे छोड़ आये हैं अपना गाँव कई मजदूर की बारिश रुके तो खुले उनके पेट पर बंधी वह चादर रुके बारिश तो रुके गलना फिरकियों का आएं बच्चे ग्राहक ...