आज का युग
आज का युग
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रचयिता : मनोरमा जोशी
हर जनों मे भ्रष्टाचार
का वास हो गया है
कलियुग मे सत्य बेईमानी
का दास हो गया है।
कट गई इंसानियत,
की पूरी फसल,
चारों और स्वार्थ का
घास हो गया है।
रिशवत के पैर जमे,
न्यालय मे भी,
न्याय का पन्ना झूठ,
का भंडार हो गया है।
गीता बाईबल कुराण
पड़े कोने मे,
कर्म चलती फिरती,
लाश हो गया हैं।
दिन रैन के सांक्षी,
चंन्द्र सूर्य होने पर भी,
हैं ऊपर के मालिक,
अभी तक न्याय नहीं किया
बेहतर होगा कि जमीन पर,
वीर हनुमान आ जाये,
लंका जैसी दुष्टों की,
नगरी जला जाये।
लेखिका का परिचय :- श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत ...